कहाँ बा आपन हिंदुस्तान

October 12, 2021
कविता
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सुभाष चंद्र यादव

( एक )

 

कहाँ बा आपन हिंदुस्तान, दुलारा-प्यारा हिंदुस्तान।

पागल मनवां खोज रहल बा बस आपन पहिचान।।

कहाँ बा आपन …

 

 

जगत गुरु के महिमा सगरो माटी में मिली गइलें,

सोन चिरइया रहे कबो सपना के संपति भइलें,

बेद पुरान भुलाइल सगरो गीता के उ ज्ञान।।

कहाँ बा आपन …

 

 

जंगल-जंगल कुटिया-कुटिया जरे ज्ञान के जोति,

पर्वत-पर्वत हीरा चमके सागर-सागर मोती,

सगरो शान हवा हो गइलें गिरवी बा अभिमान।।

कहाँ बा आपन…

 

 

एके धरती एक गगन बा एके पवन बहेला,

अइसन आपन देश जहाँ भाँतिन के लोग रहेला,

केहू कश्मीर के मांगे केहू खालिस्तान।।

कहाँ बा आपन …

 

 

राजनीति के चतुर खिलाड़ी रोजो नाच नचावें,

धर्म जाति में देश बाँटि के सत्ता के हथियावें,

सस्ता खून महंग बा पानी कौड़ी के बा जान।।

कहाँ बा आपन …

 

 

जहाँ लड़े मंदिर से मस्जिद गिरिजा से गुरुद्वारा,

ऊपर वाला एके बाटे मनइन में बँटवारा,

कैद जहाँ मस्जिद मंदिर में अल्ला औ भगवान।।

कहाँ बा आपन …

 

 

अबहीन कुछऊ बिगड़ल नइखे आवs गरे लगावs,

भेदभाव विसरा के सगरो भारत नया बनावs,

जागs भारत के रहवइया भारत के संतान।।

कहाँ बा आपन …

 

 

( दू )-

 

देके कुरबानी रखलें देसवा के पानी ।

ओ जवानी के नमन, रहलें कइसन स्वाभिमानी।।

ओ जवानी के …

 

 

कबो राम रावण संघरलें, कृष्ण कंस के मरलें,

जब-जब संकट परल देस पर तब-तब लाज बचवले,

समय शिला पर अंकित बाटे जेकर अमिट निशानी।।

ओ जवानी के …

 

 

वीर शिवा राणा प्रताप के कइसे देश भुलाई,

गुरु गोविंद सिंह छत्रसाल के कइसे देश भुलाई,

जब तक बा इतिहास हमेशा महिमा गावल जाई,

सुनले बानी झाँसी वाली रानी के कहानी।।

ओ जवानी के …

 

 

कुँवर सिंह आज़ाद भगत गाँधी सुभाष मस्ताना,

अशफ़ाक उल्ला राजगुरु सुखदेव वीर मरदाना,

कफ़न बाँधि के देश की खातिर हो गइलें दीवाना,

केतने चढलें फाँसी केतने गइलें कालापानी।।

ओ जवानी के …

 

 

कइसन हिन्दू मुसलमान का पंजाबी मदरासी,

जे-जे भइल शहीद उ सगरो रहलें भारतवासी,

अमर शहीदन के सुभाष कहवाँ बा कवनो सानी।।

ओ जवानी के …

 

 

( तीन )

 

देखि आउ देशवा हमार मोर मितवा रे।

मोर हिन्द हउवें जग के सिंगार मोर मितवा रे।।

 

 

तीन ओर सागर के लहरी, लहर लहर लहरावे,

एक ओर हिमवान बिराजे कीर्ति धजा फहरावे,

जुग से खड़ा उ बाड़े बनिके पहरेदार मितवा रे।।

 

उत्तर में कश्मीर तू देखिह जेकर रंग निराला,

झील पहाड़ी सेव की बगिया में मनवां अझुराला,

दीहलें नन्दन बनवा धरती पर उतार मितवा रे।।

 

दखिन सागर उमड़ि-झुमडि के जेकर पाँव पखारे,

मोती रोज निछावर करिके मंगल मंत्र उचारे,

पहिले शीश झुका के करिह नमस्कार मितवा रे।।

 

पुरुब में सोने के बंगला अवर रतन के खानी,

गोद में लेके रोज खेलावेली गंगा महरानी,

उहवें बिखरल होई मलमल के तार मितवा रे।।

 

पछिम में पंजाब राज बा राजन में अभिमानी,

देश की खातिर बच्चा-बच्चा दे दीहलें कुर्बानी,

कबहीं जंग ना लागल जेकरी कटार मितवा रे।।

 

राम कृष्ण जेकरी माटी के अपने अंग लगावें,

एक प्रेम के राह देखावें करतब एक सिखावें,

देवता देखे बदे तरसे एकबार मितवा रे।।

 

बाल्मीकि विद्यापति तुलसी नानक कालिदास,

जेकर कविता प्रान में बसिके करे हास विलास,

जहवाँ रोज बहेला रसवा के धार मितवा रे।।

 

साल में जहवाँ छव रितुवन के हरदम लागे मेला,

खीलल फुलवा देखिके कलियन के मनवां ललचेला,

भंवरा करत होइहें कलियन से मनुहार मितवा रे।।

 

महुआ आम कदम अरु निबिया रस के मातल डोले,

कुहुकि-कुहुकि के डार-डार पर बिरहिन कोइल बोले,

जाने कहवां गइल नेहिया बिसार मितवा रे।।

 

माटी में जेकर जिनिगी बा जेकर कीरति महान,

जेकर खून पसेना मिलि के लहरे गेहूँ धान,

उनुकर रोवां-रोवां भरल बा उपकार मितवा रे।।

 

सीमा पर वीरन के देखिह बंहिया फरकत होई,

दगाबाज़ दुश्मन के देखि के छतिया करकत होई,

कहिह तोहरे से बा देशवा में बहार मितवा रे।।

 

वीर शहीदन के धरती अमर जे जग में बाड़े,

भगत सिंह आज़ाद बोस नेताजी मंगल पांड़े,

जेकरी दम से लहरे झंडा लहरदार मितवा रे।।

 

अंखिया भरि-भरि आवे मनवां रहि-रहि उठे हुलास,

बार बार चरनन में परि के विनती करें ‘सुभाष’,

तन-मन सगरो जाईं हम बलिहार मितवा रे।।

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