डा. स्वर्ण लता
भोजपुरी बालगीत विविधता से भरल बा बाकिर भोजपुरी साहित्य के इतिहास में एह विषय पर चरचा खोजलो पर ना मिलेला। लोक साहित्य में बालगीत एकल गीत आ समूह गीत दुनो रूप में मिलेला। मुख्य रूप से बालगीत मनोरंजन के साधन हऽ। भोजपुरी बालगीत में खेल खेलवना, खेलवनिया पर गीत प्रचुर मात्रा में पावल जाला। चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह भोजपुरी बाल गीतन के आठ भाग में बॅटले बानी ओकरा में खेलावे के गीत-खेलवना एगो प्रमुख भाग बा। खेल गीत खेलत खा बालक/बालिका/ किशोर/ किशोरी के द्वारा गावल जाला बाकिर खेलवना फुसलवना, अझुरवना गीत परिवार के बड़-बुजूर्ग सदस्य आ नजदीकी रिश्तेदार द्वारा गावल जाला। खेल गीत बालक बालिका, किशोरी/किशोर, के होला तब खेलवना, फुसलवाना, बझवना, अझुरवना गीत बालक, बालिका, किशोर, किशोरी खातिर होला। मतलब कि बालक के पारिवारिक बड़-बुजूर्ग आ रिश्तेदार द्वारा जवना गीतियन के सस्वर लय-ताल मे, कोमल से कोमल आ सुमघुर आवाज में गावल जाला ओही पारंपरिक गीतियन के खोज के, अध्ययन करि के एहिजा राखल गइल बा। पारंपरिक बाल गीत प्राकृतिक नदी के धारा अस होले जवन कवनो घेरा के ना माने आ एक कियारी से दोसर तीसर कियारी में, एक ताल तलइया से दोसर-तीसर ताल तिलइया में मांकत रहेले स। एह गीतियन के गावत, खेलावत, फुसुलावत, अझुरावत, बझावत बडो़-बुजूर्ग के व्यायाम हो जाला। एह भाग के गीतियन के सुने खातिर लइका-लइकी बड़ बुजूर्ग के घेरले रहेलन सं। एह से बूढ़ो-बूढी के मनसायन रहेला, घर में शांति रहेला। पढ़े आ सीखे खातिर बइठे के आदत लइकन/लइकिन में स्वाभाविक रूप से पनपेला। बड़-बुजूर्ग के छोट-मोट टहल-टिकोरो हो जाला। बड़-बुजूर्ग के आ रिश्तेदार के अनुभव/ज्ञान के लाभ अगिला पीढी में स्थानातंरित होत रहेला। एह गीतियन से जवन अनुभव/सीख मिलेला उ भावी जिनगी में काम के साबित होला। बालक/बालिका के ज्ञान क्षितिज के विस्तार बिना अतिरिक्त मेहनत, समय के स्वाभविक रूप से हो जाला। जवन भावी जिंदगी के सफर में आइल समस्यन के हल करे में मददगार साबित होला। ओह में से कुछ बाल गीतन के नीचे देल जा रहल बा।
कोठी तर पितिआइन बाड़ी।।
से दुख देले बाड़ी।
से दुख लेले जास।।
एह गीत के चोट लगला पर रोवत लइका चुप करावे खातिर गावल जाला। भोजपुरी क्षेत्र में लोग भूत-प्रेत डायन ओझा पर विश्वास करेलन। हालाकि ई आदमी युगीन लोक आस्था ह बाकिर एह वैज्ञानिक उपलब्धियनो के युग में नेस्त-नाबुत नइखे भइल। कहल जाला कि गोतिया आ दाल गलावे कि चीज ह। पितिआइन सामने से ना छिप के वार कइले बाड़ी। उन्हुंकरे मंतर मरला से चोट लागल बा। जे दोसरा के राह में कांटा बोवेला ओकरो राह कंटकित हो जाला। ए बाबू तू चूप हो जा। रोवला से कुछ ना होई। तू देख लिहs तहार पितिआइन खुद एक दिन चोटिल हो जइहें। छू कहत मतारी चोटिल जगह पर मुंह से फूंक मार देली। यानि विश्वास धरावेला कि ऊ डायन हई तऽ हमहूं ओझाई के मंतर जानिला। झार देनी, उन्हूंकर मंतर खा गइनी।
बहुत महीनी से बालमन में सीख भरल गइल बा कि दोसरा के बेमतलब ना तंग करे के चाहीं ना तऽ दुख देबहूँ वाला के एक ना एक दिन दुखित होखे के पड़ेला। दुख में विचलित ना होखे के चाहीं। महात्मा बुद्व कहले बाड़न कि संसार में दुख बा तऽ दुख दूरो करे के साधन बा। दुख देवेवाला बा तऽ दुख दूरो करे वाला बा।
बिलइया चाटे पतवा,
चाटत चाटत बिलइया,
गइल पिछुअरिया
कुकुरा धरलेलस,
भर अंकवरिया,
छोड़ छोड़ कुकुरा
अब ना आइब
तोरा पिछुअरिया।।
एह गीत में एगो बिलाई बिया जवन दोसरा के हकमारी कर के ओकर खाद्य पदार्थ लेके राजा के पिछुआरी में भाग के जाके खाए लागल। ऊ समझत रहे कि राजा के पिछुआरी में केहू ना आई। बाकिर पिछुआरी में खटका भइला पर राजा अपना कुकुर के लिलकार देलन आ ऊ धरि के बिलार राम के भभोरे लागल। बिलाई कान धरि के उठ बइठ करे लगली कि माफ कर दऽ अब से हम इहंवा कबो ना आइब।
एह गीत में सीख भरल बा कि केहू गलत काम कतनो सुरक्षित जगह पर छिप के करी ऊ सजाय से बांच ना सके। आदमी सामाजिक प्राणी हऽ ओकरा दोसरा के हक ना हथवसे के चाहीं। समरस समाज के निर्माण बदे आगे चलके बालक/ बालिका काम करे, इहे कामना गीतकार के मन में होई-गीत के रचना करत खा।
सिर पर देबो पउती।
गंगा पार बियाह देबो।
आवे के ना जाए के।
टुसुर टुसुर रोव के।।
कवनो रोवत लइकी के समझावल गइल बा एह गीत में कि चोट लागल बा तऽ ठीक हो जाई। साथ साथ धमकावल जात बा कि चुप हो जा ना तऽ रोवले चाहत बाडू तब दूर देश में माथा पर थोड़ा सा सामान देके बियाह करिके भेज देब जहंवा से आ ना सकबू आ जिंदगी भर बइठ के रोवत रहबू। बालमन में सीख भरल गइल बा एह गीत में कि रोवत रहे से समस्या के हल ना होई आ समय बर्बाद होई यानि समय बेसकीमती होला ओकरा के बर्बाद ना करे के चाहीं।
गुलगुल अंडा पार
तोहरा अंडा मे आग लागो
बाबू के खेलाव।।
दूधवा दे भर गगरी,
बबुआ पीही भर गगरी।।
दूध पिआवत खा लइका / लइकी छेरिआ जालिस। दूध पीअल ना चाहेलीस तब उपरांकित गीत गा गा के गीत में फुसला-फुसला के लइका / लइकी के दूध पियावल जाला। दूध पिआवे वाला जानत बा कि पीआवत खा जोर जबरदस्ती ना करे के चाहीं नाही तऽ पाचन क्रिया गड़बड़ा जाई। एही से अपना गीत में अझुरा के दूध पिआवे ला। बालक / बालिका के सुंदर शरीर के कामना मतारी-बाप के, भाई-बहिन के मन में रहेला।
पीठ पर पोंछ नाचे, ई तमासा कहां ?
छोट लइका / लइकी के खेलवनिया दूनो हाथ से उछाल उछाल लोकि-लोकि के गावेला। ऊ चाहेला कि अइसन बेला में बालक / बालिका के मन बाझ के बहल जाय। बालक/बालिका के हंसला पर खेलवनिया के आनंद के शब्दन मे व्यक्त ना कइल जा सके। ऊ हनुमान अस बलिष्ट शरीर के ध्यान दिला के ओकरा के शक्तिमान बनावे के कामना करेला।
खने सोना, खने रूपा के ।
बाबू चउवा चनन के,
पितिया पीताम्बर के,
मातारी हऽ लवंग के,
लोग बिराना माटी के ?
………………………?
कुर्सी ऊपर राजा अइसन।
ए बाबू तोर इया कइसन ?
मचिया बइठन रानी अइसन।
ए बाबू तोहार बाबू कइसन ?
कुर्सी बइठल कलक्टर जइसन।
ए बाबू तोर फुआ कइसन।
बेग लटकवले मेम जइसन।
ए बाबू तोर माई कइसन?
घर घर घूमत बिलाई जइसन।
इहे गीत जब माई आ चाची गावेली तब फुआ के जगह पर चाची आ माई के जगहो पर फुआ गावेली। छने छने छेरिआत लइका के कांहा पर पार के फुआ खेलावेली आ गा गा के बझावे के प्रयास करेली। एह गीत मे कुल खानदान के मान मर्यादा के ओर ध्यान लगावल जाला। एकरा प्रति हमेशा चौकस चेतना बालमन, अचेतन, में भरल जाला। बाबा घर के सर्वोच्च स्थान पर होले। जीवनानुभव से पाकल। सर्वशक्तिमान घर-परिवार के मालिक एही से उन्हूंका के राजा कहल गइल बा। अइसने राजा के पत्नी रानी बन के पूजन जाली। संपूर्ण व्यवस्था के कर्ता पिता परिवार में जिलाधीश के हैसियत वाला होला। जेकर भाई कलक्टर होई ओकर बहिन सान से अकड़ के मेम अस चलबे करी। बबुआ के फुआ माई के ननद भइली, ननद भउजाई में हंसी-मजाक बराबर से चलत आइल बा। इहां पर गीत में हास्य में पुट देल गइल बा। एही के तहत बबुआ के माई के घर घर घुमत बिलाई कहल गइल बा। एक तरह से गीत में बेमतलब ना घूमे के हिदायत दिहल गइल बा। जवन जीवन में सीख के अनमोल भीख दे रहल बा।
गीत सं 7 के देखल जाय। बबुआ के तनी भर ओठ बिजकावते मातारी के करेज करकरा के फाटे लागेला। ऊ कांही पर पार के गीत गावे लागेली। स्नेह के उतुंग चोटी पर पहुंच के देह गेह के सुधि हेरा जाला। मातारी बदे सबसे सुंदर बबुआ होले आ बबुआ खातिर मतारी। उत्तम रूपक पल पल पर बिटोरत-छिटांत रहेला। गीत में बाबू चउआ चनन के कही के निर्माता के प्रति अगाध स्नेह आ आदर के भाव उकेरल गइल बा। पितिया यानि चाचा के पीतांबर कहल गइल बा। पीताम्बर भगवान विष्णु/ कषण के पहिरन हऽ। पावन चंदन चर्चित बेदी पर पीताम्बर धारण करिके बइठले पर दूनों के मान मर्यादा बढेला। बाप-चाचा में अभेद भाव राखे के, भाईचारा राखे के परोक्ष रूप से बतावल गइल बा। साथे साथे चेतावल गइल बा कि अपना बाप-पितिया अस मिल-जूल के रहब तबे जीवन में सफल होईब। एह से हमेश ख्याल रही कि तू का हवऽ।
घी के लोंदा बबुआ खाय।।
बबुआ/बबुनी के तेल लगा के आंख मुंह पोछत गीत के गा-गा के बझावल जाला। एह गीत में कहल गइल बा कि काम निकाले खातिर ठकुरसुहाती बोलल अनुचित ना हऽ। तेल लगावे वाला/वाली के बबुआ/बबुनी के गीत में अझुरा के स्थिर राखलो मकसद रहेला ताकि आंख-कान खोदाय मत।
महना जुआठ अइसन।
तेलिया के झंवड़ा दुबरा।
हमार बाबू कुमना।।
तेल लगावत खा ई गीत गा-गा के बाबू के स्थिर राखे के कामना राखल जाला।
पाएंट ला कि टोपी ला ?
चिलरा खोईछा नाचेला।।
जो रे चिलरा खेत खरिहान।
लेके अइहे कनकजीर धान ।।
ओही धान के चुरा कुटइबो।
बाभन-बिसुन भोजन करइबो।।
बभना के पूत दिही असीस।
जीय बबुआ लाख बरीस।।
13 घुघुआ घुघेली, आतम चउरा ढेरी।
पत्ता उडिआइल जाय, बिलइया खदेड़ले जाय।
चल लइके दानापुर, दानापुर में का बा ?
लाल लाल सिपहिया बा, दूनो कान कटावल बा,
परती में बेलावल बा। परती में सुगवा,
बिनेला खटोलवा, ओह पर सूते मामा-मामी,
बीच में बालकवा।
ए……….बहू हंडिया-पतुकी सहरले रहिहऽ
बबुआ जात बा भड़ाक
मामा के छंवड़ा रोवत बा।
केरा दूगो जोहत बा।
रोवे दे खकचोदा के
नाचे दे पंवरिया के,
देखे दे महाजन के।
बाबू के छेदा दे नाक दूनो काना।।
भा
घुघुआ माना, उपजे धाना,
अइहें बचिया के मामा,
छेदा दिहें काना
पेन्हा दिहें बाला
नया भीत गिरेले, पुराना भीत उठेले,
सम्हरिहे बुढिया, छिपा लोटा।
भा
घुघुआ माना उपजे धाना,
धनि धनि अइले बबुआ के मामा,
बबुआ के नाक कान-कान दूनो छेदवले,
सोनरा के देले भर सूप धाना
सोनरा के पूतवा देला असीस
बबुआ जीए लाख बरीस।
अथवा
घुघुआ माना मनेर से, अरवा चावल डेढ सेर
बबुआ खाई दूध भतवा, बिलइया चाटी पतवा
पत्ता उडिया गइल, बिलाइया लजा गइल।।
बालक/बालिका के हाथ-पांव तनिक दीढ़ हो जाला। ऊ बइठे लागेला।
ओकर गर्दन-मुंडी दीढ़ हो जाले तब खेलवनिया चीताने सूत के अपना दूनो गोड़वन के पेट-छाती पर मोड़ के ओकरे पर बालक के बइठा के ओकर दूनो हाथ अपना हथवन से धरि के उपरांकित घुघुआ-गीतियन के गा के खेलावेला।
राम आ कृष्णा के माई अपना शाही सामर्थ के बल पर अपना पूत के सोना के पलना पर झुलावत होइहें बाकिर भोजपुरिया खेलवनिया के पांवे पलना बनि गइल बा। एही पांव पलना पर जीवन के शास्वत संगीत गा के अपना पूत के मन-प्राण में जीवन के सार तत्व बइठावत बाड़ी। एह गीत में ई बतावल गइल बा कि आदमी के विवेक हर दम जागल रहे के चाहीं। उड़िआत पतई के पाछा-पाछा धावल आ दोसरा के जूठ पतल चाटल नीच कर्म हऽ। जातो जाला आ भातो ना भेंटाय। नया भीत गिरेले, पुराना भीत उठेले में महात्मा कबीर के उल्टवांसी के शिल्प शैली में जीवन के अनिवार्य परिवर्तन के बात बतलावल गइल बा यानि परिवर्तन प्रकृति के शास्वत नियम हऽ जवना के देख के घबड़ाए के ना चाहीं। नया-पुरान आ पुरान-नया होत रहेला। एकरा के रोकल संभव नइखे। आदमी के अमर करे के प्रयास युग-युग से होत आ रहल बा आजो हो रहल बा। अविष्कार सतत चलत रहेवाली प्रक्रिया हऽ, चलत रही एहू में दू राय नइखे। आदमी अमरत्व प्राप्त करे लागी तब जल-जमीन-हवा के समस्या कइसे हल होई? एकर कल्पनो अबहीं ना कइल जा सके। सुख दुख में समभाव से रहल ज्ञानी आदमी के काम हऽ।
एह गीत में अंग्रजी राज के गंध बा। कहल जात बा कि दानापुर चलल जाय तब सवाल उठत बा कि उहंवा जाके का मिली? जवाब जन्मत बा कि उहां चल के सैनिक बनल जाई। देस में कवनो राजा महराजा रह नइखन गइल। भर्ती हो रहल बा। उहंवा भर्ती हो गइला पर सभ दुख दलिदर भाग जाई। बाकिर सुनेवाला, प्रतिरोध करत कहत बा कि ना ना। ई अनुचित होई। जे लोक भर्ती होके अंग्रजी सेवा में बा। ऊ धर्म के विरोध काम कइला के चलते समाज से बहिस्कृत कर दीहल गइल बा। स्वधर्में मरन…….के याद करावल गइल बा-एह गीत में। बहाल लोग के ना धर्म रह गइल बा ना जात। ऊ लोग जात धर्म के बंधन से अलग बा।
धान के पइआ फेंके लाएक होला बाकिर आदमी के पइया फेंकल ना जाय। रचल खटोला पर मामा मामी के बीच बालक बिहंस सकेला। खकचोदा में एगो व्यंग भरल बा। द्वेश के भाव के दखल अंदाज नइखे। घर में जब बालक के रोवाई सुनाई, ऊ बिहंसी तब पांव नचबे करी। महाजन दीदा भर के निहार लेस कि पूत पवला के खुशी धनी गरीब के घर में एक समान होला। आपन पूत सभका प्यारा होला। पूत के जवान होखते दुख भाग जाई। सुख-दुख में समभाव राखे के, जीवन समर में हरवे हथियार के हरदम चौकस रहे के, निर्माण के जुझारू उत्साह राखे के चटक रंग भरल बा-एह गीत में। हार के हार मान के जीवन जंग से पराइल कायर के काम हऽ।
नदिया किनारे आव
सोना के कटोरवा में
दूध-भात ले ले आव
बबुआ के मुहंवा में घूट।।
खाना, खाए में कवनो बालक नाकुर-नुकुर करे लागेला, मुँह के पास कवर ले गइला पर रोए लागेला, मुंह हटा-हटा लेला तब खिआवे वाला आदमी लइका के घर के बाहर भा छत पर ले जाके चंदा के देखा-देखा के उपरांकित गीत गा गा के कवरे कवर खाना खिआ देला। ए गीत में नजदीकी रिश्तेदार के संपन्न के बखान आ बालक के सुख-चैन के कामना भरल बा। खात खा मन चंचल ना रहे के चाहीं। शांति के साथ खाना खइले पर नीक से देहे लागेला, ई खिआवे वाला के मन में बा। एही से ऊ बहला, फुसला, खेला-खेला के खाना खिला रहल बा कवनो तरह के जोर जबरदस्ती नइखे करत। एह में सुख समृद्वि के कामना भरल बा।
बाप-माई गलहू चिचोर कोड़ना
सांझी खानी देख लीहs भर अंगना
उहंवा से ले अइहें भर ढ़कना
मोटरी पटक दिहें भर अंगना
दूधवा पिआ दिहें तीन ढ़कना।।
तेल के घटाई चढ़ो, बाबू के मोटाई,
बाबू कोतल सन, बाबू कोतल सन,
धोबिया के पाठ सन, तेली के जुआठ सन,
गंगा जी के सेवार सन,
काचर-कुचर कउआ खाई, घी के लडु बबुआ खाई,
दिनो दिन होखस बीस, बबुआ जीअस लाख बरीस।
मतारी-बहिन, चाची, मामी भा फुआ दादी के मुंह से बहला के तेल लगावत खा ई वात्सल्य के गीत गावल जाला। एह गीत में लइका के सोगहग विकास के कामना कइल गइल बा। बालमन के प्रौढ़ प्रौढ़ चीज से परिचित करावे के प्रयास कइल गइल बा। अइसने बने के सीख देल गइल बा।
तेर बाप ना डालावे
तेाके हमहीं डोलाई
एह गीत में मइया बाप के जगह पर मउसी, मउसा, आजी-बाबा, चाचा चाची फुआ-फुफा लगा के गावल जाला। आकास में उड़त चिरई आ झुला झुलत किशोरियन के देख के झूले खातिर लइका जिद करेला। बाप मतारी कवनो कारण बस लइका के मांग पूरा ना कर पावे तब दोसर केहू नजदीकी रिश्तेदार एक हाथ लइका के दूनो गोड़ आ एक हाथ से ओकर दूनो बांह धरि के झुलावत आ गावत रहेला। एह गीत के द्वारा हमरा समुझ से लइका के अवचेतन में ई भाव भरल गइल बा कि अपना नजदीकी से नजदीकी आदमी के मददगार ना बनलो पर समाज के केहू ना केहू आगे आके मदद कर सकेला एह से खाली अपना नजदीकी रिश्तेदार के अलावे दोसरो केहू के गैर ना समझे के चाहीं।
अपने खाली कठवतिया में बबुआ के देली उलदिया मे।।
तेही खातिर बाबू हमार रूसेलन
उलदी कठउती के दूसेलन,
रूसल रूसल बाबू ममहर जाय,
उहंवा से अनले कनकजीर धान,
ओही धान के चुड़ा कुटाईब,
कमकजीर के चुड़ा सोरहिया-दूध,
खालऽ बबुआ जइब बड़ी दूर।।
कुकर भुकत आवेला, बानर नाचत आवेला।
चीलर काटत आवेला, सुअर देखत आवेला।
बइठ मामा चैकी पर, अडरे मडेर के झोपड़ी
कउआ रे कहंरिया, मइनी के बजनिया
छोटकी के तेल देनी, बड़की के आग
उठ रे जटिनिया, बेटी भइली तमासा
मामा कउआ नीचे दाढी
अब ना मामा जीही, गुड़ गुड़ हुक्का पीही।
बबुआ के मामा आवेले
घोड़ा पर कि हाथी पर ?
कुकुर भूंकत आवेला
बानर नोचत आवेला
चीलर काटत आवेला
सुअर देखत आवेला।
लइकन के अपना मामा से बहुत प्रेम होला। बबुआ के मामा से बबुआ के बाप पितिया के मजाक के रिश्ता होला। एही से मामा के नांव पर उपरांकित गीतियन में हास्य व्यंग भरल गइल बा।
20 सुगवा धनवा खात बा
मार बेटी भक्षनी, गोड़ में देवो पैजनी,
खाए के देबो भोजनी,
गंगा पर बिआह देब,
आवे के ना जाए के
टुसुर टुसुर रोवे के ।।
21 हाल हाल बबुआ, कुरूई में ढेबुआ,
बाप दरबरूआ, मातारी अकसरूआ,
माई तोहार गइली चिचोर खनना,
सांझी खानी अइहे तऽ भर अंगना।
आदमी देखो भा आपन आंख मुंदी लेवो बाकिर वातावरण के प्रभाव से ऊ बाच ना सके। हवा-पानी हमेशा आपन प्रभाव सीधे भा घुमा के डालत रहेला। घर में द्वेष पैदा करिके सोना के कटोरा केहू ले भागल। भोजन करे-करावे बदे बाच गइल काठ के उलदी। आदमी के खून में बइठल सोना के कटोरा के संस्कार अबहीं भुलाइल नइखे। लइका के रूसले एक मात्र अस्त्र होला, जवना के प्रयोग बालगीतन में जगहे-जगह पावल जाला। चहबचा के जगह पइसा जोगा के राखे बदे माटी के कुरूई बांच गइल बा। गरदन में गुलामी के फंदा डालके दरबार कइला के बादो पेट नइखे भरत। घर-आंगन में बालक के अकसरूआ छोड़ि के भंवरा-भंवरा धाके मतारी के सामने चिचोर खने के मजबूरी सर पर सवार बा। घर के तंगेहाली से लइका ममहर जाके नीमन खाए लाएक धान ले आवत बा। एह बात में सहयोग के स्नेहिल भावना के पावल जाता। साथे-साथ भोजपुरिया संस्कृति के सुगंध भरल बा कि विवाहोपरांतो भाई अपना बहिन के भुला-त्यागि ना देवेला आ मौका पर मदद करे में आना-कानी ना करे। धरती पर उपलब्ध जानवरन में सनातनी आदमी खातिर गाय सबसे पावन-पवित्र जानवर होले। ओकरो में सोरही। जवना के पोंछ के बाल के चंवर बनेला। गाइ के स्थान उंच पीढा पावेला। बाकिर ई प्रजाती दूर हिमालय क्षेत्र में पावल जाले, भोजपुरी क्षेत्र में ना। इहां सोरही के अर्थ सोरह नीमन गुण लक्षण वाणी समझल जाए के चाहीं। चुड़ा-दूध खा के यानि सहयोग पा के, मंजिल के दूरी बता के जीवन या़त्रा के प्रति प्रोत्साहन देल गइल बा। मिथिला क्षेत्र के गीत रहित तब चूड़ा-दूध के बदला मे चूड़ा-दही रहित। ई गीत मोतिहारी (बेतिया) तरफ के हऽ ना तऽ चुड़ा-दूध के बदला दूध-भात गावल जाइत। ऊ इलाका मीथिला से सटल क्षेत्र हऽ ऐ्ही से भात ना चूड़ा रखल गइल बा। बालपन में लइकन में कल्पना के बहुलता रहेला। धीरे धीरे वास्तविकता से परिचित करावेले सुझाव मनौवैज्ञानिक सच्चाई द्वारा उपरांकित दूनो गीतियन में मनो वैज्ञानिक भाव के उतारल गइल बा। मनौवैज्ञानिक कसउटी पर कसाला पर दूनो गीत खरा बाड़ीस।
पारंपरिक बाल गीत बालक बालिका में संस्कार के जड़ रोपे में त मददगार होखबे करेला साथ ही बचपन में अभाव का होला ई ना जाने देवे। ऊपर वर्णित गीतन से स्पष्ट बा कि गीतन के रचना बाल मनोविज्ञान के आधार पर कइल गइल रहे जे आजो प्रासंगिक बा।