सुरेश कांटक
का कहीं ए हरिचरना के माई
जिनगी बेहाल भइल होत ना कमाई
चारो ओरी ताकतानी केहू ना सहाई
कइसे के बाल बाचा जिनगी बचाईं
सगरो बाजार बंद कइसे का बेचाई
बंद इसकूल बाटे होखे ना पढ़ाई
करजो भेटात नइखे आवेला रोआई
सँझिया सबेर कइसे चुल्हवा जोराई
का कहीं ए हरिचरना के माई !
हीत नाता कामे नाहीं आवे कवनो भाई
लागेला कि दुनिया बनल बा कसाई
मुअलो प अब केहू कामे नाहीं आई
दूरे दूरे सभे रहे के से हम बताईं
का कहीं ए हरिचरना के माई !
सगरो बढ़ल जाता बड़े बड़े खाई
रतिया अन्हरिया में पड़े ना दिखाई
अस मन करेला जहर हम खाईं
बाकिर तोर मुँह परि जाला दिखलाई
का कहीं ए हरिचरना के माई !
बबुआ बेमार बाटे मिले ना दवाई
देखे सभ लोग बाकिर भीरी नाहीं आई
लीलेला समइया बनल बैरी बाबू माई
कांटक के करेज कुहुँकेला कसमसाई
का कहीं ए हरिचरना के माई !
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