मनोज भावुक
जिनगी के दुपहरिया खोजे जब-जब शीतल छाँव रे
पास बोलावे गाँव रे आपन, पास बोलावे गाँव रे।
गाँव के माटी, माई जइसन
खींचे अपना ओरिया
हर रस्ता, चौराहा खींचे
खींचे खेत-बधरिया
गाँव के बात निराला बाटे, नेह झरे हर ठांव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन..
भोर इहाँ के सोना लागे
हीरा दिन-दुपहरिया
साँझ सेनुरिया दुलहिन जइसन
रात चनन-चंदनिया
केसर के खुशबू में डूबल बा आपन गाँव-गिराँव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन..
कचरी, महिया, छेमी, चिउरा
शहर में कहाँ भेंटाये?
कांच टिकोरा देख-देख के
मन तोता ललचाये
गाँव में अवते याद पड़ेला जाने केतना नाँव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन..
हर मजहब के लोग साथ में
फगुआ-कजरी गावे
जग-परोजन पड़े त सब
मिल-जुल के पार लगावे
दुखवा छू-मंतर हो जाला गाँव में पड़ते पाँव रे।
पास बोलावे गाँव रे आपन..
भारत के जाने के बा तs
जाईं गाँवे-गाँवे
स्वर्ग गाँव में बाटे
ई त ऋषियो-मुनि बतावें
सुनs संघतिया, गाँव में घुसते, हुलसे मन-लखराँव रे ।
पास बोलावे गाँव रे आपन..