पास बोलावे गाँव रे आपन

November 15, 2021
गीत/ग़ज़ल
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मनोज भावुक

जिनगी के दुपहरिया खोजे जब-जब शीतल छाँव रे

पास बोलावे गाँव रे आपन, पास बोलावे गाँव रे।

गाँव के माटी, माई जइसन

खींचे अपना ओरिया

हर रस्ता, चौराहा खींचे

खींचे खेत-बधरिया

गाँव के बात निराला बाटे, नेह झरे हर ठांव रे।

पास बोलावे गाँव रे आपन..

भोर इहाँ के सोना लागे

हीरा दिन-दुपहरिया

साँझ सेनुरिया दुलहिन जइसन

रात चनन-चंदनिया

केसर के खुशबू में डूबल बा आपन गाँव-गिराँव रे।

पास बोलावे गाँव रे आपन..

कचरी, महिया, छेमी, चिउरा

शहर में कहाँ भेंटाये?

कांच टिकोरा देख-देख के

मन तोता ललचाये

गाँव में अवते याद पड़ेला जाने केतना नाँव रे।

पास बोलावे गाँव रे आपन..

हर मजहब के लोग साथ में

फगुआ-कजरी गावे

जग-परोजन पड़े त सब

मिल-जुल के पार लगावे

दुखवा छू-मंतर हो जाला गाँव में पड़ते पाँव रे।

पास बोलावे गाँव रे आपन..

भारत के जाने के बा तs

जाईं गाँवे-गाँवे

स्वर्ग गाँव में बाटे

ई  त ऋषियो-मुनि बतावें

सुनs संघतिया, गाँव में घुसते, हुलसे मन-लखराँव रे ।

पास बोलावे गाँव रे आपन..

 

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