अक्टूबर-नवंबर के फेस्टिवल मन्थ यानी कि पूजा-पाठ के महीना कहल जाला। नवरात्र-दशहरा से दिवाली-छठ ले पूजे-पूजा। अनुष्ठाने-अनुष्ठान। एगो आध्यात्मिक माहौल। सवाल ई बा कि ई सब खाली पूजा के रस्म-अदायगी भर बा आ कि लोग बाग पर एकर असरो बा ?
कवनो दिया में कतनो तेल होखे, कतनो घीव होखे, उ बुताइल बा त ओकर महत्व नइखे। जरते दिया के मान बा। बुताइल दिया या त फेर से जरावल जाला या विसर्जन में चल जाला।
हमरा बुझाला कि पूजा-पाठ, प्रार्थना मन के दिया के जरावे खातिर होला। मन के शोधन खातिर होला। मन के रिचार्ज करे खातिर होला। कठिन से कठिन समय में भी सकारात्मक रहे खातिर होला, संभावना खोजे खातिर होला।
प्राण यमराज के हाथ में जाये ओकरा पहिले तक अपना हाथ में ठीक से रहे के चाहीं। ठीक से माने ठीक से। अपना नियंत्रण में। एही खातिर साधना कइल जाला। परमात्मा भा प्रकृति से जुड़ल जाला। अपना इहाँ के सब पूजा-पाठ आ तीज-त्योहार के वैज्ञानिक महत्व बा। ई सब अंततः स्वास्थ्य, शांति, सकून, शक्ति, साहस, समाधान, समृद्धि आ सद्भावना प्रदान करे खातिर बनल बा। ओकरा ऐतिहासिक महत्व के एगो अलग आयाम बा।
दशहरा आ नवरात्रि में राम गूँजत रहेलें। रामलीला चलत रहेला। खुद राम के लीला अपना आप में हर समस्या के समाधान समेटले बा। राम जेतना दुख, राम जेतना परीक्षा से के गुजरल बा? मंच भा टेलीविजन के रामलीला में दुख के ग्लैमराइज कइल गइल बा। लोग के ग्लैमराइज्ड दुख, विषाद भा लड़ाई देखे में मजा आवेला बाकिर जे ओकरा के भोगले बा, जे ओह में तपल बा, ओकरा से पूछीं। शायर साहिर लुधियानवी के एगो गीत के पंक्ति बा-
जो तार से निकली है वो धुन सब ने सुनी है
जो साज़ पे गुज़री है वो किस दिल को पता है
हिन्दी-उर्दू-भोजपुरी के शायर भाई साकेत रंजन प्रवीर के एगो शेर बा –
गम सुनावे में दम निकल जाला
हं मगर मन तनी बहल जाला
गम, दुख, पीड़ा, कष्ट, तनाव जिंदगी के हिस्सा ह। ई सब ऊर्जा के क्षीण करेला। मन के बैटरी के डाउन करेला। हमरा समझ से पूजा-पाठ, योग-अनुष्ठान, ध्यान आदि मन के चार्ज करे खातिर होला ताकि कष्ट, बीमारी, दुख आदि होखबो करे त ओकर एहसास ना होखे भा कम होखे। बाहर में कतनों हलचल होखे, अंदर (मन) शांत होखे। इहे साधना ह। साध लेला पर ई संगीत जइसन लागेला।
मनोज भावुक के एगो शेर बा –
दुखो में ढूंढ ल ना राह भावुक सुख से जीये के
दरद जब राग बन जाला त जिनगी गीत लागेला
आ साँच पूछीं त जिनगी गीते ह, बस एकरा के राग आ लय में रखे के पड़ी। समय, परिस्थिति आ कुछ राक्षसी प्रवृति के लोग रउरा के बेलय करे के कोशिश करी बाकिर साधना इहे ह कि बाहरी परिस्थिति के असर अंदर ना पड़े। मुश्किल समय भी संभावना बन जाय। दरअसल हर समस्या में एगो संभावना छुपल रहेला, बस सकारात्मक नजरिया के बात बा।
एक बार, जहां एक आदमी बेरोजगारी के रोना रोअत रहे, उहें दुसरका बेरोजगार आदमी कहलस- “ हमनी के सौभाग्यशाली बानी जा कि बेरोजगार बानी जा। बेरोजगार आदमी के पास असीम संभावना बा। उ कुछओ कर सकेला। कुछओ बन सकेला। काहे कि उ कवनो खूँटा से नइखे बंधल। बंधन मुक्त बा। जे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस बन गइल बा या कवनो खास प्रोफेशन से बंध गइल बा, उ बंध गइल बा। हमनी कहीं से, कुछुओ से बंधल नइखीं त हमनी खातिर आकाश खुला बा। पूरा आकाश आपन बा। कहीं उड़ सकत बानी जा। “
कहे के मतलब कि हर परिस्थिति में सकारात्मक नजरिया रखल जा सकेला। हर जगह संभावना बा। दुख, निराशा आ परेशानी जइसन कवनो चीज हइये नइखे। आत्मा के असली प्रकृति उल्लास ह। देह आ मन त बाहरी चीज ह। अध्यात्म सोच के इहाँ तक पहुंचा देला। एह साँच तक पहुँचा देला। इहाँ तक पहुंचे में पूजा-प्रार्थना, योग, ध्यान, स्वाध्याय, उपवास, व्रत आदि मदद करेला। एह सब से आत्मा के रिचार्ज करीं।
दशहरा, नवमी, दियरी-बाती आ छठ के शुभकामना के साथ
प्रणाम
मनोज भावुक