भोजपुरी मातृभासाई अस्मिता के खोज

November 15, 2021
आलेख
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प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह जय

‘ भाषा ‘ के ‘ भासा ‘ लिखल देख के बिदकी जन। भोजपुरी के उचारन के दिसाईं इहे सही बा। भोजपुरी में भाषा के भासा बोलल आ लिखल जाला। काहे कि ई बैदिक परम्परा से आइल देसी प्राकृत भासा ह। प्राकृत मतलब बोले भा उचारे के प्रकृति आ प्रवृत्ति के हिसाब से लिखाए वाली ना, लिखाए वाला भासा। कवनो भासा में लिंगो ओह भासा-भासी जनसमूह के बेवहार से तय होला जइसे-संस्कृत के पुलिंग ‘आत्मा’ हिन्दी में स्त्रीलिंग हो जाला। हिन्दी के स्त्रीलिंग ‘चर्चा’ आ ‘धारा’ उर्दू में पुलिंग हो जाला। खैर, इहाँ बात होत रहल ह भाषा आ भासा के, त ऋग्बेद के 7/7/4 आ 8/23/5 में ‘अभिख्या भासा बृहदा ‘ क के प्रयोग भइल बा आ भाषा चाहे भासा ‘ भाष् ‘ चाहे ‘ भास् ‘ धातु से बनल बा। जवना के अर्थ होला- ब्यक्त वाक् मतलब समुझे-बूझे जोग बोलल। संस्कृतो में लिखल बा कि ‘ भास् व्यक्तायां वाचि।’ एह से भोजपुरी में भाषा के भासा चली। अइसहूं भोजपुरी के उचारन में अकसरहाँ जुड़वा ब्यंजन के बेवहार ना होला चाहे होइबो करेला त संस्कृत आ हिन्दी के प्रभाव से होला, ओही तरह से भोजपुरी में  ण, श आ ष के जगे न, स आ ख के उचारन होला। जवना के बारे में आगे बात राखल जाई। अबहीं असली मुद्दा मातृभासा के बा।

भोजपुरी हमार मातृभासा ह, मात्र भासा ना ह। मातृभासा मतलब हमरा आ हमरा मतारी द्वारा अपनावल हमरा पैतृक परिवार आ पड़ोस के कम से कम तीन-चार पीढ़ी के पारंपरिक संस्कार-पारिवारिक बेवहार के भासा। हमरा जिनगी के ऊ पहिल भासा,जवन हम अपना मतारी के गर्भ में पलात-पोसात छठे-सतवाँ महीना से सुभद्रा के अभिमन्यु जइसन महसूसे लगनीं आ जनम लिहला के बाद मतारी आ परिवार-पड़ोस के गोदी में तुतरात ‘तूती’ के रूप में पाके अबोध से सबोध भइनीं। सबोध भइला के बाद जिनगी के ओही पहिल भासा के जरिए आगे के जीवन सुखमय जीये खातिर आउर-आउर भासा के सिखनीं, पढ़नीं, लिखनीं आ अपनवनीं। एह तरह से बाद के अरजल हर उपयोगी भासा के मातृभासा भइल हमार भोजपुरी। एह तरह से हमरा खातिर भोजपुरी भासा हमरा अरजल हिन्दी, संस्कृत, अंगरेजी आदि हर भासा के मातृभासा बा।

साँच कहीं त पुरान भारतीय वाङ्मय में ‘ मातृभासा ‘ जइसन कवनो सब्द नइखे। ई अंगरेजी का ‘मदरटंग’ के हिन्दी अनुबाद ह। ऋग्वेद का एगो ऋचा में कहल गइल बा – ‘ इला सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुव:। ‘ पच्छिम के बिद्वान एकर अंगरेजी में उल्था कइलें – ‘ वन शुड रेस्पेक्ट हिज मदरलैंड, हिज कल्चर एंड हिज मदरटंग, बिकौज दे आर गिभर्स ऑफ हैप्पिनेस।’ ( One should respect his motherland, his culture and his mothertongue, because they are givers of happiness.

एह अनुबाद में ‘ सरस्वती ‘ मतलब ‘ बानी ‘ खातिर ‘ मदरटंग ‘ माने मातृभासा सब्द के पहिला बेर प्रयोग भइल। बच्चा का मतारी के भासा के मातृभासा कहल गइल। जवना से कई गो सवाल खड़ा हो गइल; जइसे- जदि बच्चा के जनम देते ओकरा मतारी के मृत्यु हो जाए तब ओह बच्चा के मातृभासा का होई?, बच्चा का मतारी के मातृभासा ओकरा बिआह के पहिले ससुरार का परम्परागत पारिवारिक भासा से अलग होखी तब ओह बच्चा के मातृभासा का होई? आदि। तब पच्छिम के भासाविद् लोग कहल कि बच्चा के मतारी, बाप सहित ओकरा परिवार आ पड़ोस के परम्परागत बेवहारिक बोली भा भासा के ही ओह बच्चा के पहिल भासा, निज भासा, स्वभासा भा मातृभासा कहल जाई। जवना में ऊ बच्चा तुतरात अबोध से सबोध होखी आ ओही सीखल-अरजल पहिल पारिवारिक भासा के माध्यम से जीवन-जगत से जुड़ल जानकारी अउर दोसर भासा सबके बोले, पढ़े आ लिखे के काबिल बनेला। एह से ओह बच्चा के उहे परम्परागत पारिवारिक भासा ओकर मातृभासा कहाई। एकर पच्छिम के बिद्वान लोग अंगरेजी में कहल- ” द टर्म ‘ मदरटंग ‘ शुड बी इंटरप्रेटेड टू मीन दैट इज दि लैंग्वेज ऑफ वन्स मदर। इन सम पैटर्नल सोसाइटीज, दि वाइफ मूव्स इन विथ द हस्बैंड एंड दस मेय हैव ए डिफरेंट फर्स्ट लैंग्वेज, ऑर डायलेक्ट, दैन द लोकल लैंग्वेज ऑफ द हस्बैंड, येट देयर चिल्ड्रेन यूजुअली वनली एस्पीक देयर लोकल लैंग्वेज। ऑनली ए फ्यू विल लर्न टू एस्पीक मदर्स लैंग्वेज लाइक नैटिव्स। मदर इन दिस कन्टेक्स्ट प्रोबेब्ली ओरिजनेटेड  फ्रौम द डिफिनिशन ऑफ मदर एज सोर्स, ऑर ओरिजिन; एज इन मदर कन्ट्री ऑर लैंड।—— इन द वर्डिंग ऑफ द कोस्चन ऑन मदरटंग, द एक्सप्रेसन ‘ एट होम ‘ वाज एडेड टू एस्पेसिफाई द कान्टेक्स्ट इन विथ द इंडिविजुअल लर्न्ड द लैंग्वेज।”

 

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