मनोज भावुक
सोरह साल हो गइल। सोरह साल सुन के त बहुत लोग के मन बासंती हो जाला। सोरहवा साल पर त ना जाने केतना फ़िल्मी गीत बा। बॉलीवुड में गीत गूँजल कि ‘’सोलह बरस की बाली उमर को सलाम’’ त भोजीवुड में गाना बनल, ‘’सोरहे में सुन्नर सामान भइलू’’ ..
सोरह पर हमरो एगो शेर बा –
भउजी सोरह के बाड़ी आ साठ बरिस के भईया
बाज के चोंच में देखीं अंटकल बिया एक गौरइया
त हमरा कबो-कबो लागेला कि हमार भोजपुरी कई गो अइसने बाज के चोंच में अंटकल बिया।
एक बेर हिंदी के एगो महापंडित गरियावत रहलें, रे भोजपुरी के कुछ बा? आपन कवनो शब्दावली नइखे। खाली हिंदी में क्रिया पद लगा के भोजपुरी थोड़े बनेला? बहुत देर ले गप्प चलत रहल। हम लइका रहनी। लइका त आजो बानी, बुद्धि से। तब उमिरो से रहनी। चुपचाप सुनत रहनी।
पंडित जी नोकर पर चिचिअइनी- रे, चाह अभी ले ना बनल ?
बन गइल बा ए मलिकार बाकिर गिलसवा में गिलसवा अड़स गइल बा।
हमरा हँसी छूटल कि कादो भोजपुरी में कुछु नइखे। पंडी जी हमरा के खिसिया के देखनी।
बाकिर बड़ भइनी। तनी आँख खुलल त लागल कि साँचो, आपन भोजपुरी कहीं अड़स गइल बा।
फेर लागल कि ना ई हमार लड़िकबुद्धि बा। हमरा ठीक से भोजपुरी बुझाते नइखे। जेकरा बुझाता-बुझsता, उ खेलsता-खाता। ओकरा घर में रेड कार्पेट बा। हम चटाई पर के चटाइये पर रह गइनी। केतना लोग के ई नायक-महानायक, सांसद-विधायक बना दिहलस आ भावुक आदमी हम, हमरा भोजपुरी अड़सल लागsतिया ? .. अड़सल त हम बानी?
हमहीं ना, उ सब लोग अड़सल बा जे भोजपुरी खातिर अपना के होम कइले बा, स्वाहा कइले बा।
त सोरह साल पहिले गइल त रहनी प्लांट मैनेजर बन के बाकिर भोजपुरी के कीड़ा भी हमरा साथे लंदन पहुंचल रहे। अब किड़वा के कवन बीजा-पासपोर्ट लागे के रहे कि ना जाव। लंदन पहुंचते गीत लिखनी-
बदरी के छतिया के चीरत जहजवा से,
अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया
लन्दन से लिखऽतानी पतिया पँहुचला के,
अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया
दिल्ली से जहाज छूटल फुर्र देना उड़ के,
बीबी बेटा संगे हम देखीं मुड़ मुड़ के।
पर्वत के चोटी लाँघत, बदरी के बीचे,
नीला आसमान ऊपर, महासागर नीचे
लन्दन पँहुच गइल लड़ते पवनवा से,
अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया
हीथ्रो एयरपोर्टवा से बहरी निकलते,
लागल कि गल गइनी थोड़ दूर चलते।
बिजुरी के चकमक में देखनी जे कई जोड़ा,
बतियावें छतियावें जहाँ तहाँ रस्ते।
हाल चाल पूछनी हम अपना करेजवा से,
अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया
खैर, गीत लम्बा बा। फेर कबो सुनाएम। मेन मुद्दा प आवssतानी। भोजपुरी में लिखे-पढ़े आ कार्यक्रम करे के जवन कीड़ा रहे उ अउर तेजी से काटे लागल। हमरा किताब ‘’ चलनी में पानी’’ में के अधिकांश गीत लंदने में लिखाइल बा। चूंकि लंदन में भोजपुरी के भा भोजपुरी खातिर कुछु रहे ना त हम यूके हिंदी समिति, लंदन आ गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय, बर्मिंघम से जुड़ गइनी बाकिर भोजपुरी के साथे लेके, छोड़ के ना। लंदन से प्रकाशित पत्रिका ‘पुरवाई’ के कभर पेज पर हमार भोजपुरी गजल छपल। ई बात 2006 के ह। फगुआ के आसपास हम लंदन पहुंचल रहनी।
देखीं, फगुनी बयार बहssता त याद के पुरवाई मन के छू-छू के निकल जाता। हमार फैक्ट्री लंदन से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर हादम में रहे। हम सपरिवार गइल रहनी उहाँ। पत्नी अनिता सिंह अउर ढाई महिना के बेटा हिमांशु के साथे। बेटा अब इन्टर में पहुँच गइल बा अउर पत्नी सफ़र में हमसफ़र बन के सोरहवां साल में।
त साल 2006 में हम पत्नी आ बेटा के साथे भोजपुरी के भी लेके लंदन पहुंचल रहनी। ओकरा पहिले युगांडा, पूर्वी अफ्रीका में रहनी। उहाँ भी ई बेमारी रहे त 2005 में भोजपुरी एसोसियेशन ऑफ़ युगांडा के स्थापना कइनी। स्थापना में हमरा साथे आजमगढ़ के अजय सिंह भी रहलें। हम त युगांडा से भाया लंदन इण्डिया आ गइनी बाकिर स्वामी नारायण के भक्त अजय भाई त उहाँ जमीन-जायदाद खरीद के बसिये गइल बाड़न। खैर, भोजपुरी एसोसियेशन ऑफ़ युगांडा के स्थापना के बाद उहाँ तमिल, तेलगू, गुजराती, मराठी विंग के साथे भोजपुरी के भी एगो विंग खुलल। फगुआ-चइता उहवों गूँजल। दियरी-बाती आ छठ शुरू हो गइल। कई गो स्वीमिंग पूल आ विक्टोरिया लेक के किनारे छठ भइल। हम कई लोग के भोजपुरी पत्र-पत्रिकन के सदस्यो बनवनी।
मन बढ़ल रहे त लंदन में भी भोजपुरी समाज के स्थापना भइल। दरअसल 2006 में हमरा भोजपुरी गजल-संग्रह ‘ तस्वीर जिंदगी के ‘ के पर सिनेहस्ती गुलजार आ ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी के हाथे भारतीय भाषा परिषद सम्मान मिलल। ई खबर बीबीसी समेत तमाम अखबारन आ वेबसाइटन के सुर्खी बनल। बीबीसी लंदन, रेडियो खातिर मुकेश शर्मा जी (जे अभी बीबीसी दिल्ली के संपादक बानी ) हमार इंटरव्यू कइनी। ओकरा बाद हम लाइम लाइट में आ गइनी। फेर यूके के भोजपुरिया लोग हमरा संपर्क में आवे लागल आ अंततः हम भोजपुरी समाज, लंदन के स्थापना कइनी अउर लंदन के हाईड पार्क में एगो कार्यक्रम रखाइल। तय ई भइल कि सब केहू अपना-अपना घर से एगो भोजपुरिया डिश बना के ले आई त लंदन में केहू किहाँ पुआ पाकल, केहू किहाँ ठेकुआ बनल, केहू दाल में के दुलहा बना के ले आइल रहे त केहू लिट्टी त केहू मकुनी त केहू फुटेहरी .. माने अजबे-गजब हाल रहे। सितम्बर के महीना रहे। हाइड पार्क में जब गुनगुनी धूप में गीत-गजल के साथे लोक राग छिड़ल त ब्रिटेन में आरा-बलिया-छपरा लउके लागल आ पूस के देहसुख वाला घाम जइसन लागे लागल।
अब नू जेके देखीं, सेही लंदन पहुँच जाता शूटिंग करे भा प्रोग्राम करे। 15-16 साल पहिले अइसन ना रहे। एह से लोग में उत्साह ज्यादा रहे अउर अफ्रीका आ यूके में भइल भोजपुरी गतिविधि के भारतीय मीडिया में भी अच्छा कवरेज मिलल।
तीन साल पहिले 2018 में हमरा के गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय, बर्मिंघम द्वारा भोजपुरी नाइट्स खातिर आमंत्रित कइल गइल। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद द्वारा हमरा के यूके भेजल गइल अउर एक बेर फेर यूके के भोजपुरियन के भारी जुटान भइल। ई हमरा खातिर आनंद आ गर्व के पल रहे। उहाँ हमरा के गीतांजलि साहित्य व संस्कृति बर्मिंघम सम्मान से नवाजल गइल।
अइसे त युगांडा, यूके के अलावा दुबई, मॉरिशस आ अउर कई गो देश में जाए आ भोजपुरिया लोग से मिले-जुले-जोड़े-जुड़े के अवसर मिलल लेकिन एगो सवाल बरिसन से सालत आ रहल बा कि भोजपुरिया लोग त आगे बढ़ गइल, जे मजदूर बनके गइल, उहो मालिक बन गइल। मॉरिशस में सरकारी मान्यता भी मिल गइल बाकिर अपना देश में भोजपुरी खातिर अभी पचरे गवाता। भोजपुरी एगो सियासी मुद्दा बन गइल बा आ भोजपुरिया लोग के बतावे-जतावे के पड़sता कि भाई हो जनगणना में आपन मातृभाषा भोजपुरिये बतइहा। माई आ मउसी में फरक होला ए चनेसर .. बाकी सम्मान त सभकर बा। सवाल पहचान के बा आ पहचान अपने मातृभाषा से होला। ना त अधभेसर बन जाए के पड़ी। सवाल अस्मिता के भी बा। जेतना रोटी जरुरी बा ओतने इज्जत।
देखीं, अड़सल आ छटपटात भोजपुरी के कब खुला आकाश मिलsता ?