निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव
बात सन् १९५५ के हs जब हम आठवाँ क्लास में पढ़त रहनी। महीना कवन रहे ई इयाद नइखे। लेकिन ई इयाद पड़sता कि जाड़ा के दिन रहे। बोर्ड मिडिल स्कूल, मशरक का प्रांगण में मशरक के स्कूल सब-इंस्पेक्टर स्व० सिपाही सिंह पागल (ओ घड़ी उ आपन उपनाम ‘पागल’ लिखस) का सौजन्य से कवि-सम्मेलन भइल रहे। कवना अवसर पर ई कवि-सम्मेलन भइल रहे ई इयाद नइखे पड़त। राति के दस बजे के बाद एगो कविजी आपन कविता सुनावे खातिर मंच पर अइलें आ आपन कविता सुनावे के शुरू कइलें-
रतिया के घुंघटा उघारे असमनवा, हँसेला मिलनवा में प्यार।
ई कविता से ज्यादा गीत रहे। आवाज ओतने मधुर। श्रोता लोग ए गीत का रस में डूब गइल। जब इ गीत खतम भइल त पूरा पंडाल ताली का गड़गड़ाहट से गूँज उठल। कविवर अनिरुद्ध के सुने के हमरा जिनगी के ई पहिला मौका रहे। ओ घड़ी हम तेरह बरिस के रहीं। गीत के भाव आ बिम्ब त ओह उमिर में ना बुझाए के रहे, ना बुझाइल। लेकिन हमरा किशोर मन पर गीत के स्वर आ लय के बहुत गहिर असर पड़ल। समय बीतत गइल। आठ बरिस बीत गइल। सन् १९६३ में हम बी० ए० ऑनर्स के वार्षिक परीक्षा दे के रिजल्ट का इन्तजार में गाँव में रहत रहीं। ओही घड़ी एगो बिआह में हमरा अपना मौसी का इहाँ जाये के मौका लागल। संयोग देखीं कि ओ में अनिरुद्ध जी भी आइल रहन। परिचय भइल त आठ बरिस पहिले के उनकर जवान चेहरा उ गीत मन में कौंध गइल। बारात दरवाजे लाग के चल गइल त कविता के महफिल जमल जवना में कविता सुनावे वाला कवि अकेले अनिरुद्ध जी रहनी हमनीका श्रोता। साहित्य के विद्यार्थी रहे का वजह से तबतक कविता के समझ कुछ विकसित हो गइल रहे। एह वजह से जब हम १९६३ में जब हम दोबारा उहाँ के सुननी तब बुझाइल इ उ केतना बड़ कवि बाडन। ‘लाल पगड़िया लाल चुनरिया रंगे नगरिया लाल रे/बगिया में चइता रस मातल रंगे नजरिया लाल रे’ आ ‘दुनिया नाचे मन पहिया के घुंघरू बाजे झुनुन- झुनुन/ भइल भोर जागs बिला के घंटी बजे टुनुन-टुनुन/ फुटल किरन पनिघट पै छलके लाल गगरिया रे/ उड़े पाल जिनगी पुरवइया उछिले किरन लहरिया रे/चल रे मैना कइला बाते दूर डगरिया रे’ सुनके लोग झूम उठल।
२५ अगस्त, १९६३ के हमार रिजल्ट निकलल आ १३ सितम्बर, १९६३ के हम अमनौर उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू कइनी। पता चलल कि अनिरुद्ध जी नौतन बेसिक स्कूल में शिक्षक बानी। अमनौर उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय के उपप्राचार्य चन्द्रशेखर सिंह से अनिरुद्ध जी का बड़ा नजदीकी रहे। कभी-कभी स्कूल का होस्टल का रूम नंबर तीन में गोष्ठी जम जात रहे। अनिरुद्ध जी का अथक प्रयास से १९६५ में मकेर में कवि सम्मेलन के आयोजन भइल जवना में भिखारी ठाकुर आ जानकी बल्लभ शास्त्री दुनू जने शामिल रहे लोग। जब भिखारी ठाकुर के कवि सम्मेलन के अध्यक्ष बनावे के प्रस्ताव आइल त जानकी बल्लभ शास्त्री एकर कड़ा विरोध कइनी आ कवि सम्मेलन के बहिष्कार के धमकी दे देनी। तब अनिरुद्ध जी बड़ा निहोरा करके शास्त्री जी के मनवनी आ राम-राम कर के कवि सम्मेलन शुरू भइल आ बहुत सफल रहल। इयाद पड़ता कि ओ कवि सम्मेलन में अनिरुद्ध जी आपन बहुते मार्मिक कविता ‘हरना-हरिनी’ सुनवले रहीं- ‘हरना ताके हरिनी रोये अंसुअन धार, हाय! बंसुरिया सुनि धोखवा से पड़ि गइलीं जाल/ हाय बिहनिया जानि धोखवा से पड़ि गइलीं जाल’ सुनवले रहीं। सभकर आँख लोरा गइल रहे। फेरु १९६७ में मशरक में लोक संस्कृति मंच का बैनर में कवि सम्मेलन के आयोजन भइल रहे। ओह कवि-सम्मेलन में उनकरा के सुने के मौका मिलल।
हम १९६८-६९ में आयोजित बिहार लोक सेवा के संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में उत्तीर्ण भइनी आ हमार चयन बिहार उत्पाद सेवा खातिर हो गइल। अमनौर छूटल त बहुत संगी-साथी लोग भी छुट गइल। चिट्ठी-पत्री का माध्यम से एक-दोसरा के समाचार मिल जात रहे। अमनौर स्कूल आ ओह स्कूल के साथी-संघाती लोगन से कभी संपर्क ना छूटल। सन् १९८१ का अक्टूबर में पूर्वी चम्पारण (मोतिहारी) का अधीक्षक उत्पाद के रूप में हमार पदस्थापन भइल। संयोग देखीं कि अगिले साल सन् १९८२ में २९ से ३१ अक्टूबर तक अमनौर में अखिल भोजपुरी साहित्य के सातवाँ सम्मेलन भइल रहे। हम मोतिहारी से डॉ० ब्रजनाथ चौबे (अंग्रेजी के रीडर, एम० एस० कॉलेज मोतिहारी), राजीव रंजन चतुर्वेदी (अधिवक्ता,मोतिहारी सिविल कोर्ट), योगेन्द्र सिंह (एम० एस० कॉलेज मोतिहारी के प्राचार्य प्रो० भोलानाथ सिंह के आप्त सचिव आ हमार दोस्त राजेन्द्र सिंह कश्यप के छोट भाई ) आ बेतिया के बैजू हलुवाई आ उनकर दस गो कारीगर के लेके मोतिहारी पहुंचनी। ओह सम्मेलन में अनिरुद्ध जी बहुत सक्रिय रहीं। ३० अक्टूबर के कवि सम्मेलन रहे। मोती बी० ए०, गहमरी जी, जगन्नाथ प्रसाद, मुंहदुबर जी, लक्ष्मण पाठक प्रदीप, सतीश्वर सहाय सतीश, प्रो० उमाकांत वर्मा, डॉ० प्रभुनाथ सिंह आ अनिरुद्ध जी सहित बहुत कवि लोगन के जुटान भइल रहे। हम, डॉ० ब्रजनाथ चौबे आ रजीव रंजन चतुर्वेदी एके साथ बइठल रहीं। ओह कवि सम्मेलन में अनिरुद्ध जी ‘शरद गीत’ सुनवले रहीं-
ओस बुंदिया के बान्हे पयलिया, झुनुर-झुनुर नाचेली भोर
माथ बिंदिया छिंटाइल टिकुलिया, झुनुर-झुनुर नाचेली भोर
झरे नील नभवा से हीरा वो मोती
अंखिया का मेला में बांटेली जोती
दूध बुंदिया नेहाइल नगरिया, झुनुर-झुनुर नाचेली भोर
झनक ताल-ताल जड़े दरपन अंगनवा
चांदी के चदर पै नीलम गगनवा
हंस पंखवा पै उतरल शरदिया, झुनुर-झुनुर नाचेली भोर
खरलिच के नयना लुकाइल बदरिया
झर गइल तरेंगन नभ लरकल फुनुगिया
रूप महकेला महके उमिरिया, झुनुर-झुनुर नाचेली भोर
ई कविता सुनके डॉ० ब्रजनाथ चौबे खड़ा होके कविता के सराहना कइनी। उहाँ का हमरा से कहनी कि ‘शायद ही किसी भाषा के किसी कवि ने इतने दुलार से भोर को सहलाया हो।’ एह कविता में गजब के चाक्षुष बिम्ब के गुम्फन त बरले बा, रूप महकेला महके उमिरिया’ में जवन गंध्य बिम्ब बा उ अद्भुत बा। बिम्ब के अइसन प्रयोग बिरले देखे में आवेला।
हम मोतिहारी में जून १९८५ तक पदस्थापित रहीं। अनिरुद्ध जी से पत्र का माध्यम से संपर्क बनल रहे। एगो आउर बात के जिक्र करे के चाहतानी। १४ जुलाई, १९८४ के मोतिहारी के एल० एन० डी० कॉलेज में राष्ट्रीय एकता आ साम्प्रदायिक सद्भावना का सन्दर्भ में एगो विराट् सर्व भाषा कवि-सम्मेलन के आयोजन के निर्णय लेहल गइल। अनिरुद्ध जी एक-दू बार मोतिहारी आ के हमरा इहाँ ठहरल रहीं आ हमारा आवास पर काव्य-गोष्ठी भइल रहे। एह वजह से हमरा आ अनिरुद्ध जी के आत्मीय संबंध के बारे में लोग जानत रहे। ओह आयोजन के संयोजक सुरेन्द्र कुमार जी रहनी। उहाँ का ओह कवि-सम्मेलन में अनिरुद्ध जी के बोलावे के जिम्मा हमरा के संउपनी। हम ४ जुलाई के अनिरुद्ध जी के पत्र लिख के कवि सम्मेलन में भाग लेवे खातिर निहोरा कइनी आ उहाँ का मान गइनी।
जुलाई, १९८५ में हम सहायक आयुक्त उत्पाद का पद पर प्रोन्नति पा के रांची आ गइनी। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के नउवां अधिवेशन रांची में नधाइल। तारीख तय भइल २६ आ २७ अक्टूबर, १९८५। स्वगत समिति के अध्यक्ष पशुपतिनाथ सिंह जी रहीं। उहाँका हमरा से पता लेके अधिवेशन में भाग लेवे खातिर अनिरुद्ध जी के नेवता भेजले रहीं लेकिन कवनो कारण से अनिरुद्ध जी शामिल ना हो सकनी।
सन् १९५० से १९८६ तक बेसिक स्कूल में पढ़वला का बाद १९८६ में उहाँ का प्रधानाध्यापक का रूप में सेवा निवृत भइनी। सेवा निवृत शब्द पर उहाँका एतराज रहे। उहाँ के कहनाम रहे कि नौकरी के मियाद खतम भइला का बादो आदमी त सेवा करबे करेला-अपना परिवार के, समाज के। रिटायर खातिर सही शब्द नौकरी निवृत होखें के चाहीं। खैर, सेवा निवृत्त का बाद फुर्सते-फुर्सत रहे। उहाँ बड़ भाई कथारा कोलियरी में वर्क सुपरवाइजर रहीं आ बडका बेटा ओम प्रकाश फुसरो में भूमि विकास बैंक में काम करत रहस। ओम प्रकाश जी का अपना बड़का बाबूजी के डेरा आवंटित हो गइल रहे। सेवा निवृत भइला का बाद अनिरुद्ध जी साल में तीन-चार बेरा बेटा किहाँ जाईं त हमारो इहाँ आ जाईं आ हफ्ता-दस दिन जरुर रूकीं। ई क्रम १९८७ से १९८९ का अप्रैल-मई तक चलल। ओह समय हमारा इत्मिनान से उनकर पूरा कविता पढ़े-सुने आ ओपर विचार-विमर्श करे के अवसर मिलल। रात के ११-१२ बजे तक उनकरा कविता पर चर्चा होखे। बहुत कम लोगन का ई बात के जानकारे होई कि अनिरुद्ध जी का शास्त्रीय संगीत के बहुत आछा ज्ञान रहे। एकरा वजह से उनकरा गीतन में भा कविता में गजब के लयात्मकता रहे आ प्रस्तुती आ सस्वर पाठ भी संगीतमय होत रहे। ई हमार सौभाग्य बा कि उनकरा रांची प्रवास के दौरान उनकर पूरा के पूरा रचना उनकरा से सुने के अवसर मिलल। ओही घड़ी मालूम भइल कि उनकर कविता संग्रह के छपे के संपराह बहुत पाहिले भइल रहे लेकिन प्रकाशक का धोखा देला का करण संग्रह ना छप सकल। ई साचहूँ दुख के बात रहे कि भोजपुरी का सेवा में आपन पूरा उमिर दांव पर लगा देला के बादो उनकरा अपना कविता के प्रकाशन के सुख ना मिल रहे। हमरा बहुत दुःख भइल आ हम मने-मने संकल्प कइनी कि चाहे जइसे उनकर कविता के संग्रह जरुर छपी।
जब हम आपन मन के बात अनिरुद्ध जी से बतवनी त उनकरा सहजे विश्वास ना भइल। जब विशवास भइल त उनकर चेहरा पर अइसन खुसी छलकल जइसन आपन भुलाइल खेलौना मिलला पर लड़िकन का चेहरा पर छ्लकेला। अनिरुद्ध जी के समूची रचना एगो मोट पुरान कॉपी में रहे। अलग-अलग विषय पर सैंतीस-अडतीस बारिस का कालखंड में लिखल कविता में से ६८ गो रचना के चयन भइल। विषय का अनुसार ओह सब रचना के छव खंड में बाँटल गइल-‘गीत भोर के’, ‘गीत साँझ के’, गीत रितु के’, ‘गीत देस के’ ‘गीत खेत-खरिहान के’ आ ‘विविध गीत’। समग्र रूप से संग्रह में प्रकृति वर्णन, रितु गीत, खेत-खरिहान आ देस की गीत संकलित भइल। संग्रह के नांव रखाइल ‘पनिहारिन’। संग्रह में अनिरुद्ध जी के पचास का दसक में तहलका माचवे वाला ‘पनिहारिन’ शीर्षक गीत संकलित बा। पाण्डुलिपि हमारा ऑफिस में हमार स्टेनो टंकित कइलें। ओह घड़ी हम दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के उपायुक्त उत्पाद का पद पर पदस्थापित रहीं। हमार ऑफिस डोरंडा में नेपाल हॉउस में रहे। अशोक पागल से हमारा जान-पहचान रहे। उ बहुत आछा कवि आ नाटककार आ नाट्यकर्मी रहस। रांची के युवा कवि लोग के कविता-संग्रह ‘सोलह सफे’ उनकरा सुकृत प में छपल रहे। हम अशोक जी से बात कइनी आ पाण्डुलिपि उनकरा के संउप देनी। हम हिन्दी कहानी में युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित कहानी लेखिका ऋता आ सेंट कोलम्बस कॉलेज, हजारीबाग के हिन्दी विभाग के स्नातकोत्तर केंद्र के अध्यक्ष आ हिंदी के विख्यात समीक्षक डॉ० नागेश्वर लाल से संग्रह के भूमिका लिखववनी। हम रोज अपना ऑफिस से लौटे का बेरा सुकृत प्रेस जा के प्रूफ देख लीं। ओह घड़ी सुकृत प्रेस में हाथ से कम्पोजिंग होखे। अनिरुद्ध् जी आवरण पृष्ठ के स्केच तैयार कइले रहीं। ओकरे आधार पर विश्वनाथजी आवरण पृष्ठ तइयार कइलें। हम आ एगो मित्र दुनु आदमी मिलके छपाई के खर्चा के व्यवस्था कइनी जा। १९८९ का अप्रैल-मई में पनिहारिन छप के आ गइल।
एह बीच हमनी का संस्कार भारती से निकल के रांची में ‘अभिज्ञान परिषद’ नाम से एगो साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था के स्थापना कइनी जा। ऋता शुक्ल केअध्यक्ष, हमार मित्र हिन्दी के प्रोफेसर डॉ० सिद्धेश्वर सिंह के सचिव आ विजय मित्र के कोषाध्यक्ष बनावल गइल। हम संस्था के संरक्षक मंडल में रहीं। हमहीं संस्था के संविधान तैयार कइनी आ एक दिन में ओकर निबंधन करवनी। ओह घड़ी उत्पाद विभाग के आयुक्ते निबंधन विभाग के महानिरीक्षक होखस। रमाशंकर तिवारी जी उत्पाद आयुक्त–सह-सचिव आ निबंधन महानिरीक्षक रहीं। हमरा अनुरोध कइला पर दू घंटा में हमारा के निबंधन के प्रमाण पत्र उपलब्ध करा देनी। ओह संस्था का तत्वावधान में जून, १९८९ में रांची का जवाहरनगर प्रेक्षागृह में ‘अंधायुग’ नाटक के सफल मंचन भइल। अभिज्ञान परिषद का तत्वावधान में डॉ० शंकर प्रसाद का निर्देशन में रांची में नृत्य नाटिका के कार्यक्रम आयोजित रहे। एह सिलसिला में डॉ० शंकर प्रसाद का ८ से १० जुलाई, १९८९ तक रांची में रहे के रहे। अभिज्ञान परिषद का कार्यकारिणी में निर्णय लिआइल कि १० जुलाई के ‘पनिहारिन’ के विमोचन के होई । हम २६ जून, १९८९ के अनिरुद्ध जी के चिठ्ठी लिख के एह बात के सूचना देनी आ ओह तिथि के विमोचन में उपस्थित रहे खातिर अनुरोध कइनी लेकिन कुछ पारिवारिक उलझन का कारण उहाँ का उपस्थित ना हो सकत रहीं। एह वजह से ‘पनिहारिन’ कविता संग्रह के विमोचन ना हो सकल। ‘पनिहारिन’ बन्डल में बन्हाइल पड़ल रह गइल।
अभिज्ञान परिषद का कार्यकारिणी में सन् १९९० में कवि- सम्मलेन आयोजित करे के निर्णय भइल। ओह कवि-सम्मेलन में स्थानीय कवि लोगन का अलावा हिन्दी के मशहूर गीतकार वीरेंद्र मिश्र, माहेश्वर तिवारी, भारत भूषण, जानकी बल्लभ शास्त्री आ उर्दू के मशहूर शायर बशीर बद्र आइल रहे लोग।ओ कवि-सम्मेलन में भाग लेवे खातिर हम अनिरुद्ध जी के चिठ्ठी लिखनी। अनिरुद्ध जी रांची अइनी आ कवि-सम्मेलन में भाग लिहलीं आ आपन इ गीत सुनवनीं-
‘सरसों फूल बसंती पगिया पीत चुनरिया रंग दे रे
नैन गुलाबी चटक प्रेम रंग मीत नजरिया रंग दे रे
धरती धानी बसन फसिल जब पके, कनक रंग काया
कांटा-फूल कुसुम रंग चोला, ई माटी के माया
उड़े बिहग बिसरे ना भुंइया नेह अॅँचरिया रंग दे रे ‘
गीत खतम भइला पर बहुत देर तक जवाहर नगर प्रेक्षगृह श्रोता लोगन का ताली से गड़गड़ात रहल। बशीर बद्र अनिरुद्ध जी के अपना अँकवार में भर लेहलन। देश के नामी गीतकार लोगन का उपस्थ्ति में एह बात पर मोहर लाग गइल कि भोजपुरी में भी ओतने नीमन गीत लिखा सकता जतना कि हिंदी भा उर्दू में आ गीतकार का रूप में सब लोग अनिरुद्ध जी के सराहना कइल। अब समय के खेल कहीं आ आउर कुछ एकरा बाद अनिरुद्ध जी से करीब २१ बारिस ले संपर्क टूटल रहल। २०१३ में जब पटना में आयोजित अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन के पच्चीसवां अधिवेशन में उनकरा के सम्मानित करे के बारे में महामाया प्रसाद विनोद से सूचना मिलल। विनोदजी से उनकर मोबाइल नंबर लेके हम उनकरा से संपर्क कइनी। २१ बारिस से टूटल कड़ी फेरु जुड़ल। हमरा खातिर ई बहुते खुसी के बात रहे।
२९ अक्टूबर, २०१८ के पं० गणेश चौबे पुण्य तिथि के अवसर पर लंगट सिंह कॉलेज का भोजपुरी विभाग में अनिरुद्ध जी के दू गो भोजपुरी काव्य-संग्रह ‘गीतां के गाँव में’ आ ‘कृष्ण बाल लीला आ दोहावली के विमोचन भइल। ओह कार्यक्रम में शामिल होखे खातिर रांची से हम, हरेराम त्रिपाठी चेतन आ कामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव निरंकुश मुजफ्फरपुर गइल रहीं जा। ओह विमोचन समारोह में अनिरुद्ध जी का कविता पर मुख्य वक्तव्य हमार रहे। फरवरी। २०१९ में मुजफफरप[उर में हमरा भतीजा के बिआह रहे। हम मुजफ्फरपुर गइल रहीं। निरंकुश जी भी पहुंचल रहस। पता चल कि अनिरुद्ध जी के तबियत खराब बा। हमनी उनकरा से भेंट करे पैगम्बरपुर स्थित उनकरा आवास पर पहुंचनी जा। उहाँ का बिछावन पकड़ लेले रहीं आ उठे-बइठे में बहुत तकलीफ रहे। फिर भी, बेटा से उठा के बइठावे के कहनी। उहाँ का बोले में भी तकलीफ रहे लेकिन अपना लड़खड़ात आवाज में दू गो कविता सुनवनी। ई उहाँ से अंतिम मुलाकात साबित भइल। ७ मार्च, २०१९ के ९२ बारिस का उमिर में उहाँ का चल बसनी। ई दुखद समाचार हमरा ओही दिन विनोदजी आ ब्रजभूष्ण मिश्र जी से मिलल। अन्तरंग लोग कतनो लमहर जिनगी जी के चल बसे, ओकरा ना रहला के दुःख रह-रह के सालेला आ जिनगी भर पीड़ा देवे ला। गेहुंआ रंग, कुर्ता-धोती में लिपटल दुबर –पातर काया, छोट-छोट बिखरल केस, गोद में चप्पल भा बाटा के जलसा जूता, झुकल गरदन, चेहरा पर मुस्कान आ हमेश कुछ बुदबुदात-गुनगुनात- अनिरुद्ध जी के ई छवि मन का एल्बम में हमेशा खातिर संजो के रखा गइल बा।
अनिरुद्ध जी के जनम सारण जिला का डीहीं गाँव में ९ मार्च, १९८६ के भइल रहे। ई गाँव गंडक नदी का किनारे बसल बा। गंडक के नारायणी, सदानीरा आ हिरण्यवती भी कहल गइल बा। कसया (कुशीनगर), जहाँ का खुदाई शिविर में अज्ञेय जी के जनम भइल रहे उ हिरण्यवती नदी पर बसल बा। सेंट लुइस, जहाँ अंग्रेजी के मशहूर कवि टी० एस० एलियट के जनम भइल रहे, मिसौरी नदी पर बसल बा। टी० एस० एलियट का नदी से बहुत लगाव रहे। नदी के बारे में उनकर दु गो उक्ति इयाद आ रहल बा। पहिलका कि ‘नदी हमनी का भीतर बिया’ (‘द रिवर इस विदीन अस’) आ दोसरका कि ‘कवनो बड़ नदी का किनारे जनम लिहला में कुछ बात त जरुर बा जे उ नइखे समझ सकत जेकर जनम नदी का किनारे ना भइल होखे’ (‘देयर इस समथिंग इन हैविंग बीन बोर्न बाई थे साइड ऑफ़ अ बिग रिवर व्हिच इस इन्कम्युनिकेबल टू दोज हु हैवे नॉट’)। हमारा बुझाला कि शालिग्रामी नारायणी का किनारे पर बसल गाँव में अनिरुद्ध जी के जनम भइला में भी कुछ त बात बा। नदी के किनार पर बसल गाँव, ओह गाँव के चेंचर-चांचर, डीह-डीहवार, पेड़-पौधा, चिड़ई-चुरुंग, फल-फूल, साँझ-बिहान, खेत-खरिहान, रितु आ सबका उपर आदमी जन उनकर अनुभूति आ कविता के बिम्ब के स्रोत रहल बा। इहे कारण बा कि उनका अधिकतर कविता प्रकृति से संबंधित बा आ एकरा अलावे ओमे जन-जीवन की झांकी आ माटी के महक भी मौजूद बा।
बात-चीत का सिलसिला में अनिरुद्ध जी बतवले रहीं कि जब उ १९४७-४८ में राजेन्द्र कॉलेज, छपरा में आई० कम० के छात्र रहस ओही घड़ी गीत आ कविता का और उनकर रुझान रहल। शुरू में उहाँ का हिंदी में छिटफुट कविता लिखत रहीं। कॉलेज के प्राचार्य मनोरंजन बाबू के अध्यक्षता में बराबर कवि गोष्ठी भइल करे। ओमें ई आपन हिन्दी के कविता सुनावस। स्तीश्वर सहाय वर्मा सतीश आ उमाकांत वर्मा इनकर समकालीन रहे लोग। ई तीनो जने एकउमिरिया भी रहे लोग। सभे हिन्दी में कविता लिखे। एक दिन मनोरंजन बाबू संझिया पहर अनिरुद्ध जी के अपना डेरा पर बोलवलें आ भोजपुरी में गीत आ कविता लिखे खातिर प्रोत्साहित कइलें। एह तरह अनिरुद्ध कि सन् १९४९ से भोजपुरी में कविता लिखे के शुरू कइलीं आ ई सिलसिला उनकरा २०१९ में उनकरा बिछावन पकड़े तक चलल। एह तरह अनिरुद्ध जी के रचना-आयुष्य सत्तर बरिस के बा। एक बेर के बात हs कि छपरा के नन्दन लाइब्रेरी में हिन्दी के विकास पर आयोजित गोष्ठी साँझ के कवि –सम्मलेन में बदल गइल। ओह कवि-सम्मेलन में अनिरुद्ध् जी के भोजपुरी कविता श्रोता लोग के मोह लेहलस। ई बात उहाँ के हिन्दी साहित्यकार लोगन के अखर गइल। उ लोग भोजपुरी के गंवारू भासा कह के अनिरुद्ध जी के उपेक्षा कइल। ओह मंच पर सतीश्वर सहाय सतीश भी रहीं जेकरा इ बात ना सहाइल। सभे के सामने उहाँ का प्रतिज्ञा कइनी कि आज से सतीश के रचना खाली भोजपुरिये में होई। अइसने एगो घटना सिंदरी के कल्याण केंद्र में आयोजित हिन्दी के कवि-सम्मेलन में घटल रहे जवना में सतीश जी, उमाकांत वर्मा आ अनिरुद्ध् जी के कविता पाठ खातिर आमंत्रित कइल गइल रहे। ओह कवि-सम्मेलन के अध्यक्षता दिनकर जी केरे के रहे लेकिन अचानक उनकरा दिल्ले चल जाए का वजह से नागार्जुन जी अध्यक्षता कइनी। ओह कवि सम्मेलन में आसनसोल से आइल हिन्दी के कवि भोलानाथ ‘बिम्ब’ जन श्रोता के मूर्ख भोजपुरी भासा के गंवार के भासा कह के आलोचना करे लगलन। नागार्जुन जी उनकरा के कस के डांट देनी आ कहनी कि ‘तुम्हारी कविता में क्या है, कुछ भी नहीं। उमाजी की कविताओं में क्या नहीं है?कविता वही है जो जन साधारण की जिंदगी से जुड़ी हो, जो जन-मानस को छू ले, अपनी और खींच ले और हृदय सरोवर में हलचल मचा कर आंदोलित करे।’ अनिरुद्ध जी के कविता नागार्जुन का ए कसौटी पर एकदम खड़ा उतरताs।
अनिरुद्ध जी का कविता से गुजरला पर ई अनुभव होला कि पढ़े आ सुने वाला रस में सराबोर हो गइल। चारों और फूल फूला गइल आ भक् से दिया बर गइल। एकर कारण इ बा कि अनिरुद्ध जी का कविता में छंद, लय, नाद आ ध्वनि के सौन्दर्य, प्रकृति आ आदमी के सुंदर आ मनोहर छवि आ ओकरा से जुड़ल भाव सब एके साथ देखे के मिल जाला। ‘पनिहारिन’ का भूमिका में अनिरुद्ध जी के कविता का बारे में हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठित प्रोफेसर आ विख्यात आलोचक डॉ० नागेश्वर लाल के संस्मरण उल्लेख करे लायक बा-
‘ बात सन् १९५१ की है जब उन्हें आरा के एक कवि सम्मेलन में देखा था। वे अपनी ‘पनिहारिन’ कविता सुना रहे थे। पूरे वातावरण पर जादुई सम्मोहन छाया हुआ था। यह विशेष अनुभव का विषय था। उस कविता की एक पंक्ति मेरे भीतर रह-रह के प्रतिध्वनित होती रहती है-‘अँचरा के सब पाल उडवले भूँइए नाव चलेला।’ इसमें दो दृश्यों का समीकरण है और उसके बाद धरती पर नाव चलने की असंभव कल्पना के सहारे एक अपूर्व उन्मेष है। यह अपूर्व उन्मेष ही सर्जनशीलता का प्रमुख संकेत माना जा सकता है। यह साधारण बात नहीं कि अनिरुद्ध की कई कविताओं में यह अपूर्व उन्मेष है।’ उहाँ का आगे कहले बानी, ‘ अनिरुद्ध की कविताएँ सहजपण से जातीय संस्कृति के कर्म में सौन्दर्य, संवेदना और सार्थकता का प्रीतिकर संप्रेषण करने में समर्थ हैं। इससे एक रास्ता खुलने की आशा होती है, ऐसा रास्ता जिससे सौन्दर्य और सार्थकता की एक साथ यात्रा हो सके।’ ई अनिरुद्ध जी के कविता पर बहुत बड़ प्रशस्ति बा।
रामबृक्ष बेनीपुरी, राम विलास शर्मा, हंस कुमार तिवारी, जानकी बल्लभ शास्त्री, राहुल संकृत्यायन, श्याम नारायण पाण्डेय आ डॉ० हरिवंश राय बच्चन अनिरुद्ध जी का कविता के प्रशंसा कइले बा। बच्चन जी के टिप्पणी भी उल्लेख करे लायक बा- “अनिरुद्ध जी की रचना ‘पनिहारिन’ सुना। उसमें ग्राम को छू करे बहती नदी का प्रवाह है। स्वाभाविकता के साथ माधुर्य की जो छटा कवि ने भर दी है उससे ऐसा प्र्तीत होता है जैसे, फूलों के साथ-साथ दीप भी जलते बह रहे हों। उनकी गूँज मेरे कानों में बहुत दिनों तक बनी रहेगी।”
अनिरुद्ध जी के कविता भोजपुरी कविता के एगो नया मोड़ दिहलस, भोजपुरी कविता का लेखन-शैली नया दिशा लउकावल। ‘पनिहारिन’ में संकलित देस गीत भी बेजोड़ बा। जब १९६२ में चीन के आक्रमण भइल त सर्व भासा कवि-सम्मेलन में उनकर बढ़ावा गीत ‘आज महाधार में देश के पुकार बा, क्रम के गोहार बा/ सामने पहाड़ बा, तूँ जवान चढ़ चलs झूम-झूम बढ़ चलs /बाण पबन कमान पर सनसनात चल चलs’ होखे चाहे १९६७ के सूखा आ अकाल में मेघ के मनुहार, ‘ तू ही कन्हैया राजा, बिजरी राधा रानी/ बरसा बरसs हो, बरससs हो, हो बदरा बरससs हो, अनिरुद्ध के भीतर के कवि अपने कवि-कर्म के प्रति हमेशा सजग रहल
अनिरुद्ध जी के गद्य-लेखन भी ओतने गहिर आ धारदार रहे। भोजपुरी कविता आ साहित्य के बारे में उनकर जानकारी अद्भुत रहे। कुतुबपुर में २०-०२-१९८३ के आयोजित सारण जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पन्द्रहवां अधिवेशन में उनकर अध्यक्षीय अभिभाषनण पठनीय बा, संग्रहनीय बा। बढ़ पन्ना के एह अभिभाषण में भोजपुरी कविता आ साहित्य के पूरा इतिहास बा भोजपुरी के संत कवि से लेके आज तक कवि लोगन के बारे में। एही तरह ६-७ अप्रैल, १९९६ में गाजीपुर में आयोजित अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पन्द्रहवां अधिवेशन में अनिरुद्ध जी कवि सम्मेलन के अध्यक्षता कइले रहनी। उनकर अध्यक्षीय अभिभाषण के कुछ अंश प्रस्तुत करतानी, जवन कविsता आ कवि- कर्म से संबंधित बा-
“ मूलतः कविता शब्द कर्म ह। शब्द जड़ ना होला। ई चेतन सत्ता ह जेकरा पर परिवेश आ पर्यावरण के प्रभाव होला, जे परम्परा से जुड़ल होला आ प्रयोग से तरासल जाला। गितिशील जिनगी नीयर कविता के गतिशील बनावे दिसाईं, कवि समाज जागरूक रहे। कविता के सचाई का नगीचा ले आवे में कविता के कला आदर्श बिसरे के ना चाहीं।कविता कला के रूप ह आ कला चेतना के जगावेली आ उन्नत बनावेली। कहल गइल बा कला सत् -चित् -आनन्द देले। एह आनन्द के भावना लोक में श्रोता आ पाठक रंग जाए त कविता सार्थक हो जाले। कला अंतर से फूटेला। अंतरात्मा परमात्मा के अंश ह। आत्मा का वाणी में परम ब्रह्म परमेश्वर के दर्शन होला। कविता वाणी के वाणी हs। वीणा से नील स्वर हs। काव्य के रचनाकार के हम जदि ब्रह्म कहीं त गलती ना कहल जाई।”
कविता, कवि-कर्म आ कवि प्रस्थिति पर अतना सार्थक टिप्पणी बहुत कम नजर आवेला। अनिरुद्ध जी के ई टिप्पणी उनकर कविता का कर्मशाला के उप उत्पाद ( बाई प्रोडक्ट) कहल जा सकता।
विश्व भोजपुरी सम्मेलन के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में ‘भोजपुरी भूषण’ , अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के पच्चीसवां अधिवेशन में भोजपुरी के सर्वतोभावेन विशिष्ट सेवा खातिर ‘माधव सिंह पुरस्कार’ भारतीय साहित्य परिषद्, मुजाफ्फरपुर का और से ‘कबीर सम्मान’ बहुत सारा सम्मान से सम्मानित अइसन महान कवि, साहित्यकार, भोजपुरी के वर्ड्सवर्थ आ पन्त आ आपन भोजपुरिया संस्कृति के ध्वजवाहक आ अपना बड़ भाई समान आ दोस्त के हम नमन करतानी।