जिनगी संभावना ह, समस्या ना

February 15, 2022
संपादकीय
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तर्क से परे बा बहुत कुछ। बहुत कुछ बा बुद्धि से ऊपर। बहुत कुछ बा beyond the obvious

बहुत कुछ बा जवन कहइला से कहाई ना। बहुत कुछ बा जवन लिखइला से लिखाई ना।

बहुत कुछ बा जवन अनुभव के अँटिया में दबा के देह के साथे बिला जाला। बहुत कुछ बा जवन होठ प आके हवा हो जाला। बहुत कुछ बा जवन कागज प उतर के अर्काइव होला बाकिर अनछपल रह जाला आ ओकर अगिला पीढ़ी ओह अनुभव के खजाना के रद्दी कागज लेखां बेंच देला। …आ फेर ओकर ठोंगा बनेला भा लोग ओह में चिनिया बादाम फोड़ के खाला। केतना बात कहीं। केतना दर्द बटोरीं। का-का कहीं, कइसे कहीं? का जाने हमरा कहहूँ के लूर बा कि ना?… आ का जाने जवन हम कहेब तवने रउरा बुझेब आ कि अपना चश्मा से दोसरे तस्वीर देखेब।

कहलका के मोल तबे बा जब सुनेवाला ओकरा के ओही रूप में बूझे। लिखे वाला लिक्खाड़ खातिर बूझे वाला बुझक्कड़ चाहीं। बूझे वाला के रिसीवर के पॉवर के उपयोगिता तबे बा, जब ऊ कहेवाला के बात के चित्र अपना मन के कैनवास पर ओही रूप में बना लेव।

हमनी के ऋषि-मुनि लोग बड़-बड़ बात सूत्र आ संकेत में कहले बा। ई त हमनी के समझ पर निर्भर करता कि हमनी ओकरा के केतना बूझत बानी। दरअसल बूझल त स्ट्रॉंग आब्ज़र्वैशन पर निर्भर करेला। सेब त पेड़ से पहिलहूँ गिरत रहे, ऊ न्यूटने चाचा के काहे लउकल?

ब्रम्हांड में बहुत कुछ बा जवन लउकल अभी बाकी बा, बस देखे वाला नजर चाहीं। बहुत कुछ जवन लउकता उ झूठ ह, ई आवे वाला समय बताई। आवे वाला समय बतवलस कि पृथ्वी चापुट ना गोल बिया। समय केतना चीज के झुठलवले बा। एह से तर्क आधार बा बाकिर बहुत कुछ तर्क से परे बा। जवन बा ओकरा पर संदेह कइल जा सकत बा आ जवना प भरोसा नइखे होत, उहो काल्ह साँच हो सकत बा। आज से पचास साल पहिले ई बात के मानित कि अमेरिका, यूरोप आ एशिया भा दुनिया के कवनो कोना में रहत आदमी अपना-अपना घरे में बइठल, एक दूसरा के देख के बतियाई, संगोष्ठी करी, परिचर्चा करी, मीटिंग करी, वेबिनार-सेमिनार करी। बाकिर इंटरनेट के अइला से अइसन तमाम संभावना के जनम भइल। काल्ह ई हो सकेला कि रउरा दिमाग के सब इन्फॉर्मेशन कवनो चीप में लेके दोसरा के दिमाग में ट्रांसफर कर दिहल जाय। एह से इन्फॉर्मेशन इकट्ठा कइल कवनों बड़का बात नइखे। ई त रटंतु विद्या वाली बात भइल। एह घरी के पढ़ाई में इहे चलता। रट के बढ़िया से उलटी क देला के हीं मार्क्स बा। जबकि जरूरी बा न्यूटन लेखां सोचल। आँख खोल के देखल, दिमाग खोल के जीयल। दुनिया में जीयल, अपने आप में ना। जादा इन्फॉर्मेशन इकठ्ठा कइला से भा अलूल-जलूल दिमाग में भरला से आदमी खुदे समस्या बन जाला जबकि आदमी समाधान ह। ब्रम्हांड में बहुत कुछ बा। ओकरा खातिर अपना दिमाग में बनावल दुनिया से बहरी निकल के पेड़-पौधा, चिरई-चुरुङ, झींगुर-मांगुर, तितली-भौंरा, बदरी-बूनी सब के सुने-देखे के पड़ी। तसलवा तोर कि मोर से बहरी निकले के पड़ी। जवन रउरा फेंकब उहे रउरा प गिरी आ गिरी त पहाड़ बन के गिरी सूद समेत। एह से अपना आ दोसरो के उल्लास खातिर जीहीं, खुशी खातिर जीहीं, सचेतन होके जीहीं, समभाव होके जीहीं, खोज खातिर जीहीं, पल-पल जीहीं, जी भर के जीहीं, जियला लेखां जीहीं, जीहीं अइसे कि मुअला के बादो जीहीं।

प्यार में रहला प सब चीजवे नीक लागेला आ नफरत में नीको चीज खराब लागेला। मन में माहुर रही त जिनिगिये माहुर हो जाई। जिनगी समस्या ना ह, जिनगी संभावना ह। एह से जीविका के साथे-साथ जीवन के समृद्ध करे वाला उदयोग के बारे में भी सोचल जाय। टेक्नोलॉजी के पास खुद के दिमाग थोड़े होला। दिमगवा त रउरे काम करी। एह से मानवीय चेतना के विकास, ओकर अपग्रेडेशन सबसे जरूरी काम बा।

हम का कहsतानी आ काहे कहsतानी, हमरो ठीक से बुझात नइखे। हं, संपादकीय के बहाने कुछ कहे के होला त बहुत कुछ दिमाग में चलेला। आज इहे चलल ह त इहे कहा गइल ह। रउरा बुझा जाई त बता देब। बाबा पांडेय कपिल कहले बानी कि ‘’ जीभ बेचारी का कही, ओकर का औकात ‘’ …. माने कलम बेचारी का कही। पुरनिया लोग जब चिठ्ठी भेजे त लिखे कि कम लिखना ज्यादा समझना।

त भाई हो लिखला, कहला से जादा जरूरी बूझल बा। बूझे खातिर बहुत कुछ तर्क से परे बा। रोआँ-रोआँ में बहुत कुछ महसूस होला। सिहरन होला। ओह सिहरन के, ओह कंपन के, ओह ध्वनि के सुने के कोशिश होखे।

प्रणाम।

मनोज भावुक

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