डॉं0 स्वर्ण लता
भोजपुरी के वर्चस्व कवि आ सिद्ध-साहित्य साधक ‘आरोही जी के सारस्वत साधना अपूर्व आ अनुकरनिय रहे। विलक्षण मेघा आ कलम के धनी महाकवि चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह के जन्म विद्यालय प्रमाण-पत्र के अनुसार 02.01.1941 ई0 आ जबकि वास्तविक जन्मकुण्डली के आधार पर माघ अष्टमी कृष्ण पक्ष 1994 वि0स0 तदनुसार 23 जनवरी 1938 ई0 में भइल रहे।
इहाँ के जन्म ग्राम- नोनार, पो0- नोनार, थाना- पीरो, जिला- भोजपुर ह। इ गाँव आरा से 44 कि0मी0 दक्षिण, आरा-सासाराम पथ, रेलवे लाइन के किनारा अवस्थित बा, एकरा अलावे काँटा टोली, राँची , झारखण्ड आ पकड़ी, आरा में आपन मकान बा।
आज के करीब आठ सौ बरिस पहिले इहाँ के परिवार गोरखपुर (उतर प्रदेश), सहगौरा गाँव से आके कुरमुर्ही, थाना- तरारी, जिला- भोजपुर में बस गइल रहे। बाकिर 1857 के बाद इहाँ के परिवार नोनार में निवास कर रहल बा।
शिक्षा–दिक्षा:-
इहाँ के परिवार में अंग्रेजी पढ़ल, भंइस पोसल आ महुआ के पेड़ लगावल मना रहे। अइसन मानसिकता रहे कि जे अंग्रेजी पढ़ेला ऊ अंग्रेजन के मददगार होला आ देश के दुश्मन ह। इहाँ के पढ़ाई 9 बरिस के उमिर में गाॅवे के प्राथमिक विद्यालय नोनार में 1948 ई0 में षुरू कइनी आ साले डेढ साल में तीन-चार क्लास पढ़ गइनी फिर मध्य विद्यालय हसन बाजार, भोजपुर, उच्च विद्यालय पीरो, भोजपुर आ हर प्रसाद दास जैन कॉलेज आरा में 1959 तक पढ़नी अउर बिहार कृषि महाविद्यालय सवौर भागलपुर से कृषि स्नातक 1962 में कइनी। एही दौरान एक साल बिहार आ एक साल भारत भ्रमण के सुयोग्य प्राप्त भइल जवना के चलते विभिन्न जगहन, प्रांतन, राज्यन के जानकारी भइल।
सरकारी सेवा में पदस्थापन:-
इहाँ के पहिला पहिल कृषि निरीक्षक के रूप में कृषि प्रसार पर्यवेक्षक, प्रखण्ड अरवल में 1962 ई0 पदस्थापित भइनी। पुनः जहानाबाद, नवादा, गया मे स्थानांतरण भइल। फिर 1964 ई0 में कृषि प्रसार पर्यवेक्षक के रूप में तमाड़ राँची में पदस्थापित भइनी; आ भरनो तथ सिल्ली प्रखण्ड में काम करत प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी के पद तक पहुँच गइनी। 1971 में सहायक पाट-प्रसार पदाधिकारी के रूप में समस्तीपुर, दरभंगा, किशनगंज, पुर्णिया में पदस्थापित रहनी। ओकरा बाद औरंगाबाद आउर टिकारी गया में भी प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी रहनी। 1977 में काराकाट रोहतास आऊर चरपोखरी भोजपुरी में प्रखंड कृषि पदाधिकारी के रूप में कार्य कइनी। 1988 से 1996 तक प्रखण्ड विकास पदाधिकारी के पद पर करपी (जहानाबाद) हिरणपुर (साहेबगंज),
दुमका, टोंटो, जगन्नाथपुर (पश्चिमी सिंहभूम) आ सूर्यपुरा प्रखण्ड, रोहतास में काम कइनी। 1997 से 1999 तक यानि सेवामुक्ति तक अनुमंडलीय कृषि पदाधिकारी या जिला कृषि पदाधिकारी के रूप में डाल्टेनगंज, पलामू में कार्य कइनी।
सहित्य सेवा:-
इहाँ के परिवार में कोई साहित्यकार ना रहे तबहूँ स्कूली शिक्षा के दरम्यान 1952 में, जबकि सातवें, क्लास में पढ़त रही, तबहीं से हिन्दी आ भोजपुरी में दोहा के रचना करे लगनी। 1960 ई0 में ‘अंजोर’ स0 नर्मदेश्वर सहाय, पत्रिका में पटना से एगो कविता ‘बसंत’ शीर्षक से छपल रहे। ‘‘भोजपुरी कहानियाँ पढ़ के कहानियनों के इहाँ के रचना करे लगनी आ 1967 ई0 में भोजपुरी कहानियाँ पत्रिका में एगो कहानी ‘खन्दान के इज्जत’ छपल तब से इ सिलसिला मृत्युपर्यनत तक लगले रहल। इहाँ के सेवा काल के दौरान जहाँ -जहाँ रहनी ओही परिवेश से प्रभावित होके लिखनी। भोजपुर से बाहर दोसरा भाषा-भाषी क्षेत्र में रहला के कारण इहाँ के भाषा में घुमक्कड़ साधु-संत जइसन अनेक भाषा के शब्द घूल मिल गइल बा। अखिल भारतीय
साहित्य सम्मेलन से शुरूआती दौर से ही सम्मिलित हो गइल रही आ ओकर हर कमिटियन में कवनो ना कवनो तरह से रहनी। 1980 से ही भोजपुरी साहित्यकार दर्पण के निर्माण में लागि गइनी जवना के चलते इहाँ के मात्र सूचना पर भोजपुरी के साहित्यिक आयोजन में शामिल हो जात रहीं। जेकरा चलते अधिकाधिक साहित्यकारन से व्यक्तिगत सम्बंध स्थापित भइल। भोजपुरी अकादमी, बिहार में भी सदस्य रहल बानी।
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