बुझ गइल वाग्देवी के एगो वरद लौ

March 21, 2022
सुनीं सभे
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आर.के. सिन्हा

लता मंगेशकर के शरीर पूरा हो गइल। सरस्वती पूजा के अगिला दिन विदा होत लता मंगेशकर के देख के लागल जइसे मां सरस्वती अबकी बार अपना सबसे प्रिय पुत्री के ले जाये हीं स्वयं आइल रहली। लता मंगेशकर के हमनीं के बीच ना रहला के मतलब बा कि वाग्देवी के एगो वरद लौ बुझ गइल बा। लता जी अपना निर्दोष सुर से भारतीय संगीत वांग्मय के समृद्ध बनवली। उ हमनी के भाव कातर, अहिंसक, रचनात्मक अउर आशावान बनावे में मदद कइली। उनकर साधना आत्म यज्ञ के तरह रहे।

सुरकोकिला लता मंगेशकर किम्वदंती के पर्याय बन चुकल बाड़ी। उनका गीतन के कद्रदान दुनिया भर में मौजूद बा। जेतना लोकप्रिय उ अपना देश भारत में रहली, ओतने लोकप्रियता उनका सरहदी मुल्क पाकिस्तान में भी मिलल। उनकर आवाज़ अउर गायकी के खुबसूरती बा कि पर्दा पर कमसिन नायिका लोग के शोखी, चंचलता, अल्हड़पन व रूठे-मनावे के अभिव्यक्त करे में जेतना जीवंतता महसूस कइल जाला, ओतने हीं भावप्रवणता मां-बहिन पर फिल्मावल गाना में देखे के भी मिलेला।

27 जनवरी, 1963 के दिल्ली में लता मंगेशकर नेशनल स्टेडियम में जब आपन अमर गीत गवली त हजारन लोग रोवत रहे। उहवाँ चीन के साथ भइल जंग में शहीद भइल जवानन के इयाद में एगो कार्यक्रम आयोजित कइल जात रहे। ओ जंग के परिणाम के कारण देश हताश रहे। लता मंगेशकर जइसहीं ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी…”  गवली त उहाँ उपस्थित अपार जन समूह के साथ-साथ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के आंख भी नम हो गइल रहे

ख़ालिस हिन्दी गीत के तौर पर ज्योति कलश छलके जइसन कालजयी प्रस्तुति बा त ऐ मालिक तेरे बंदे हम जइसन गीत निराशा के क्षणो में गहन अंधकार से निकले के रौशनी देला। गांधीवादी जीवन दर्शन के प्रभाव ये प्रस्तुति में झलकेला। ई गीत चेतना के स्पंदित कर आश्वस्ति के भाव जगावेला। अध्यात्म के स्तर पर परंपरागत जीवन मूल्य-बोध के असर के बावजूद आशावाद के ज़िंदा राखे के पाठ ह। अइसन स्वच्छ निर्मल मन के व्यक्तित्व दुर्लभ होला जइसे लता जी रहली। संस्कृत के श्लोकन के गायन होखे चाहे रामचरितमानस के गायन होखे चाहे उर्दू के गजल होखे, चाहे बांगला के कवनों गीत होखे, उ एक समान सहजता से सुमधुर स्वर में गाके श्रोतागण के कुछ क्षण में ओही स्वप्नलोक में पहुंचा देत रहली। उ अपना स्वर के साथे हमेशा हमनीं के पास अमर रहियें, समय कवनों भी आवे। उनकर स्वर कबो ना लडखड़ाइल, उनके आवाज में उहे ताजगी रहल जवन कवनों बच्चा के आवाज में होला. उ शुद्ध चरित्र अउर निर्मल मन के स्वामिनी रहली। उनकर प्रशंसा आ श्रद्धांजलि में शब्द नइखे मिलत। मृत्यु हमेशा शोक के विषय ना होला। मृत्यु जीवन के पूर्णता ह। लता जी के जीवन जेतना सुन्दर रहल, उनकर मृत्यु भी ओतने हीं सुन्दर भइल। उनके जइसन सुन्दर अउर धार्मिक जीवन विरले के हीं प्राप्त होला। लगभग पांच पीढ़ी उनका के मंत्रमुग्ध हो सुनले बा आ हृदय से सम्मान देले बा।

 

उनकर पिता जी जब अपना अंतिम समय में घर के बागडोर उनके हाँथ में थमवले, तब उ तेरह वर्ष के नन्ही जान के कंधे पर छोट-छोट चार बहन-भाई के पालन के जिम्मेवारी रहे। लता जी आपन समस्त जीवन ओ चारू के समर्पित कर देहली। आ अब जब उ गइली ह त उनकर परिवार भारत के सबसे सम्मानित प्रतिष्ठित परिवार में से एक बा। कवनों भी व्यक्ति के जीवन एसे अधिक सफल का होई? लता मंगेशकर के पवित्र शख्सियत के हीं परिणाम रहे कि आजाद भारत के सभ राष्ट्रपति अउर प्रधानमंत्री उनका से आदरभाव से मिलत रहे। उनकर कद देश के कवनों भी नागरिक से बड़ा रहे। देश के पहिला राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से लेके मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अउर पहिला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से लेके नरेन्द्र मोदी से उनकर निजी संबंध रहे। उ जब राज्यसभा सदस्य रहली तब हीं उनके भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजल गइल रहे। ई बात साल 2001 के ह। उनका पद्म भूषण 1969 में, पद्म विभूषण 1999 में आ दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 1989 में मिल गइल रहे। जाहिर बा, उ ये सब पुरस्कार के लेवे खातिर भी राजधानी आवत रहली। लता मंगेशकर 1983 में राजधानी के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में आपन पसंदीदा गीत सुना के दिल्ली के कृतज्ञ  कइले रहली। ओ कार्यक्रम के आयोजन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) कइले रहे ताकि कपिल देव के नेतृत्व में वर्ल्ड कप क्रिकेट चैंपियन बनल भारतीय टीम के खिलाड़ी सबके पुरस्कृत कइल जा सके। लता जी इहाँ कार्यक्रम पेश कइला के बदला में एक पइसा भी ना लिहली। ओ कार्यक्रम में उ रहें ना रहें हम महका करेंगे… – ऐ मालिक तेरे बंदे हम… अजीब दास्तां है ये… मेरी आवाज ही पहचान है… आज फिर जीने की तमन्ना है… जइसन आपन अमर गीत सुनवले रहली। येही बीच जब से उनकर राज्यसभा के कार्यकाल 2005 में समाप्त भइल त फिर उ संभवत: एने ना अइली। केतना अद्भुत संयोग बा कि अपना लगभग सत्तर बरिस के गायन कैरियर में लगभग 36 भाषा में हर रस/भाव के 50 हजार से भी अधिक गीत गावे वाली लता जी अपना पहिला आ अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान के भजन हीं गवले बाड़ी। ‘ज्योति कलश छलके’ से ‘दाता सुन ले’ तक के यात्रा के सौंदर्य इहे बा कि लताजी ना कबो अपना कर्तव्य से डिगली ना अपना धर्म से! ये महान यात्रा के पूर्ण भइला पर हमनीं के रोम रोम रउआ के प्रणाम कर रहल बा लता जी। हमनीं जेतना चाहीं ये बात पर गर्व कर सकेनीं कि हमनीं अपना जीवनकाल में लता मंगेशकर के देखले सुनले बानीं।

 

( लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं।)

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