मार्कन्डेय शारदेय
विश्वनाथ प्रसाद ‘शैदा’ एगो अइसन नाँव जे आपन व्यक्तित्व आ कृतित्व से अपने ना, अपना साथे आपन जिला-जवार, प्रदेश आ भोजपुरियो के एगो अलगे पहचान देलस। उनुकर कारयित्री प्रतिभा शैक्षणिक प्रमाणपत्रन के ऊँचाइयन के दरकिनार कइके आ सम्पन्नता के बड़-बड़ इमारतन के नजरअंदाज करत ‘स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते’ एह सूक्ति के चरितार्थ कइलस। उनुका में ना शेखी बघारे के आदत रहल आ ना केहू के प्रति बेअदबी से पेश होखे के। अदब के साक्षात् मूर्ति रहन शैदाजी। जे मिलो, जेकरा से मिलसु मुस्काइये के। बच्चा, बूढ़, छोट-बड़ के इंचटेप बिना रखले प्रसन्नता से मिलल उनुकर सहज स्वभाव रहल। हँ, ज्ञानवृद्ध के कवनो उमिर होखे, उनुका समक्ष सहजता से सिर नवाने में, सड़को प पैर छूवे में परहेज ना करसु।
शैदाजी से हम कतना निकट रहलीं आ ऊ हमरा से कतना निकट रहलें, ई कहल कठिन बा। हम जब प्राइमरी में रहलीं, त ऊ हमार शिक्षक रहलें। ऊ जवना स्कूल के शिक्षक रहलें, ओही में हमार बाबुओ जी शिक्षक रहलें। ऊ जवना महल्ला के रहन, ओकरा से कुछुवे दूरी प हमरो महल्ला रहल। हमरा दरवाजा प हरसाल अनन्तव्रत के कथा बाबूजी बाँचत रहन आ शैदोजी श्रोता लोगन के मण्डली के सदस्य रहसु। कबो बाबूजी के कहत सुनलीं, ‘रउरा हतना दूर काहें आ जाईंला, रउरा नगिचे त कथा होले’। त ऊ तुरते कहलें, ‘जब कौण्डिन्य मुनि अनन्त भगवान के खोजे कहाँ-कहाँ चल गइलें त हम कतना दूर आइल बानी’? फेरु त दूनो जाना के चेहरा भोर का फूल हो गइल।
हमार कवि कब जागल, ई विषय नइखे, बाकिर जब जागल त शुद्धिकरण खातिर गुरु तलाशे लागल। शैदाजी अवकाशप्राप्त हो चुकल रहन। सुनले रहीं जे सुबह उनुकर बइठकी सुग्रीव सिंह जी के इहाँ रहेला, जे डुमराँव राज के मैनेजर रहन आ मैनेजर साहब के नाँवे से विख्यात रहन। अपना शहर में उनुकर सबसे अधिक सम्मान रहल। शाम के सम्भवतः द्वारका प्रसाद के दुकान प उनुकर बइठकी रहे। कवि-सम्मेलन, गोष्ठी भा कवनो सभा-सोसाइटी में ना जाये के रहे त दिनभर घरही रहसु। हमरा घर से उनुकर घर मात्र पाँच से सात मिनट पैदल दूर रहल। बस, जवन लिखीं, लेके पहुँच जाईं। बैठिके बिस्कुट खाईं, चाय पीहीं, आपन कविता सुनाईं आ उनुकर कविता सुनीं। हमार कवि के तराश हो जाउ त घरे आ जाईं।
ऊ पान खाये के बड़ शौकीन रहलें। हमरो घरे पानसंस्कृति रहल। पनबट्टा पासे राखसु। गइला प पान खुदे लगाके खियावसु आ अपनहूँ खासु। कबो बाजार में बाबूजी उनुका मिल गइलें त बताइयो देसु जे मार्कण्डेय अइसन कविता लिखले बाड़ें। बाबूजी पूछियो बइठसु त उनुको के सुनावे के परे।
शैदाजी के कदकाठी मध्यम रहल। शरीर भरल-पूरल। गोल-मटोल। रंग साँवर। मुखमण्डल गोल के साथे तजोदीप्त। साफ-साफ धोती-कुर्ता आ दूनों कान्हें लटकल गमछा। कान्हि ले लटकल बड़-बड़ बाल। लिलार प गोपी चन्दन आ रोरी के टीका। मुँह में पान। बाईं कलाई में घड़ी आ दायाँ हाथ में नक्काशीदार छड़ी। हमरा आँखिन में उनुकर ईहे सजीव सूरत आजुओ बिया। सड़क प मन्थर चाल में जब चलसु त लागे जे वाकई कवनो सरस्वतीपुत्र कहूँ से निकल पड़ल बा। लोगन के दृष्टि से सम्मान छलकत रहल। हम उनुकर शिकायत केहू मुँहे कबो ना सुनलीं। हाँ, कविद्वन्द्व जरूर सुनले रहीं। इयाद त नइखे जे कवन कवि ‘शैदा के मैदा बनाके कूटिके पीसिके चालिके चूलिके….’ जइसन कविता बनाके उनुका के सुनइले रहन त ऊ ‘खुदा ने कान काटा है, रसूला नाक काटेगा’ कहि सुनइलें। ‘सखि मोर मरदा, बड़ बकलोल रे। ओकरा बजरिया तकरियो ना मिले, सेतिहे के ले आवे रोजे ऊ ओल रे’। ई पंक्तियो कवनो कविये खातिर प्रत्युत्तर में कह गइल रहे। ऊ त अइसन कवि रहन जे राहचलते कविता बना लेसु आ सड़को से कवनो कागज उठाके झट लिख मारसु।
डुमराँव के साहित्यिक इतिहास के एगो भाग अवश्य शैदायुग कहाई। उनुकर समकालीन कवियन में सत्यनारायण ‘सौरभ’, हरिहर प्रसाद ‘बेकार भोजपुरी’, शिवशंकर प्रसाद जायसवाल ‘मौजी’, कालूराम अखिलेश आ जवाहरलाल श्रीवास्तव प्रमुख रहन। उनुकर परवर्ती समकालीन कवियन में किशोर डुमराईं, मुफलिस रमेश, अम्बिकादत्त त्रिपाठी ‘व्यास’, वासुदेव प्रसाद शायर और लल्लूलाल केशरी के नाम विशेष तौर से लीहल जा सकेला। परन्तु शैदाजी के जवन लोकख्याति मिलल, ऊ अउर लोग खातिर दुर्लभे रहल। ऊ बिहार आ बिहार से बाहरो अपना कवित्व के ध्वज फहरावत रहन। ऊ राष्ट्रीय स्तर प रहन। उनुकर गायनकला आ काव्यसौष्ठव से सभे निहाल होते रहे। उनुकर हास्य-व्यंग सभे के गुदगुदावे, काँट चुभावे आ चिंउटी काटत रहे। ऊ मंचीय कवि-महारथियन के पहिल पंक्ति में सुशोभित होत रहन आ कवि-सम्मेलनन के गौरवान्वित करत रहन।
शैदाजी के जन्म बिहार के डुमराँव में रवानी (कमकर) परिवार के रामटहल राम के सुपुत्र के रूप में 24 जनवरी, वर्ष 1911 के भइल रहे। शिक्षा मिडिले तक हो पावल। पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण ऊ डुमराँवे के ‘शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय’ के परिसर में स्थित ‘अभ्यासार्थ मध्य विद्यालय’,जेकरा के ‘प्राक्टिसिंग स्कूलो’ कहल जात रहे, ओही में बतौर शिक्षक नियुक्त रहलें। ऊ आगे चलिके प्रवेशिको (मैट्रिक) पास कइलें।
शास्त्रकार लोग के शब्दन में शैदाजी के बुद्धिमान कहल जाउ भा आहार्यबुद्धि?; हमरा समझ में दूनों के योग कहल जाई। ऊ अवश्य पूर्वजन्म के संस्कार से बुद्धिमान रहलें। एही से भोजपुरी के पहिला व्याकरण लिखेवाला पुण्यश्लोक पं. रासिहारी राय शर्मा इनिका के जन्मजात कवि कहले बाड़ें (‘श्रीदुर्गा-महिषासुर संग्राम’ के अनुशांत्मक ‘दू शब्द’ में)। परन्तु जइसे दत्तात्रेय के अनेक गुरु रहन, ओसहिये ऊहो गुणग्राही रहन। एही के बदौलत ऊ भोजपुरी, हिन्दी, ब्रजभाषा, उर्दू आ अँगरेजियो में आपनि काव्यप्रतिभा से सभके चमत्कृत करत रहन। उनुकर लाइब्रेरी में हमरा कवनो खास किताबि ना लउकली सँ आ हमरा पता नइखे जे ओह घरी उनुका कवनो आचार्य से सत्संग होत रहे। एहसे स्पष्ट बा जे ऊ जन्मजात कवि रहन। मुहावरा-कहावत से भरपूर चुटीला अंदाज में उनुकर प्रस्तुति साधारणीकरणे रहे। भोजपुरी साहित्यकारन के बीच प्रयोगधर्मी के रूप में खूब यश पावत रहन। उनुकर नाँव के सोहरत दूर-दूर ले रहल। ऊ अपना समय में त अपना कवितन, गीतन से लोगन के जीभ प बइठले रहन, आजुओ उनुकर कुछ ना कुछ पंक्तियन के लोग बोल-गाके निहाल हो उठेलें। साँच मानल जाउ त ऊ जनता के कवि रहन। शृंगार रस उनुकर अंगी रस रहल, बाकिर व्यंग्य खातिर ऊ कम ख्यात ना रहन। शेष रस घलुवे में कहल जा सकेलें।
शैदाजी नारीहृदय रहन। भोजपुरी नारीगीतन प उनुकर बड़ पकड़ रहल। स्त्रियन के हाव-भाव भा सुख-दुःख, विरह-मिलन, काम-काजे के ऊ मुख्य वर्ण्य विषय रखलें- ‘खटाई बिना कोंहड़ा कइसे बनीं’! ‘फगुआ सखी, निगिचाइल हो, पिया घर ना अइलें’-जइसन ऊ नारी के पीर त गइबे कइलें समाज-सुधार खातिर व्यंग्यबाणो / गभिया चलावे में कोताही ना कइलें- ‘बहनोइया अपना सरवा के सोरहो आना साला हो गइल। हमरो देस बंगाला हो गइल’।। अन्ततः रामकथा प आधारित ‘रावण-अंगद संवाद’ के रूप में रामगुनो गइलें। जइसे महाराज भर्तृहरि शृंगार, नीति आ वैराग्य के कवि रहन, लगभग ओसही ऊ शृंगार, नीति (व्यंग्य) आ भक्ति के कवि रहन। भोजपुरी के यशस्वी साहित्यकार हवलदारपति त्रिपाठी ‘सहृदय’ जी के ई कथन उनुकर कवित्व प पकिया मोहर बा- ‘अइसे त शैदाजी के हास्य-व्यंग्य कवितन के कवि-सम्मेलन के श्रोता-मंडली खूब सराहना करत आइल बा, बाकिर इहाँ के सिंगार आ बीर रस के कवितो से भोजपुरी साहित्य के कम रसगर नइखीं बनवले। ‘शैदा’ के गाभी निसाना प बड़ा गहरा चोट करेली स’।
प्रसाद गुण के कवि शैदाजी शब्दशिल्प आ भावसौन्दर्य के सिद्धहस्तन में से एक रहन। पद्मश्री शारदा सिन्हा, जोगीन्दर सिंह अलबेला आ निधि दुबे के द्वारा गावल जायेवाला उनुकर प्रसिद्ध गीत ‘बताव चाँद केकरा से कहाँ मिले जाल’ भावुकन के हृदय में उतर जाला नु! अब लोकगायिका चन्दन तिवारी उनुकर कजरी गीत के स्वर देके जन-जन तक पहुँचावे के काम करताड़ी। दुःखद-सुखद बात ई बिया जे शारदाजी ‘शैदो के आपन बनाल सँघतिया’ के जगह ‘हमरा के अप्पन बना ल सँघतिया’ गावताड़ी। अलबेला आ निधि दुबे के भी ईहे हाल बा, बाकिर चन्दन तिवारी उनुकर नाँव नइखी हटइले। ऊ ओसहीं गावताड़ी,जइसे शैदाजी लिखले बाड़ें –
‘जब से आइल सवतिया मोर, सुखवा लेलस हमसे छोर,
झरे अखियाँ से लोर, नइया मोर परल बा ‘शैदा’ माहाधार में
सावन के बहार में ना’।।
शैदाजी के ‘चाँद’ नामक कविता ‘चितचोर’ के पृष्ठसंख्या 6 में संगृहीत बा। एह पुस्तक के प्रकाशनकाल फरवरी 1953 लिखल बा। ऊ कब से लिखे शुरू कइलें, ई कहल कठिन बा, बाकिर अपना निधनकाल 2 दिसंबर 1985 से लगभग छव महीना पहिले तक लिखते रहन। छव महीना पहिले एहसे जे ऊ ओकरा बाद अस्वस्थे होत गइलें। खटिया पकड़ लेलें। स्मृति मन्द प मन्द होत गइल। पचहत्तरवाँ साल पूरा करे में कुछुवे बचल रहे कि स्वर्ग सिधार गइलें।
उनुकर प्रकाशित प्रमुख कृतियन में- 1.गीतमंजरी (हिन्दी, उर्दू, भोजपुरी में, प्रकाशनकाल-1950 ई)., 2.चितचोर (भोजपुरी गीतसंग्रह, 1953 में), 3.जागरण (ब्रजभाषा, हिन्दी, उर्दू, भोजपुरी, 1955 में), 4.आपन देस आपन गीत (भोजपुरी, 1964 में), 5.डुमरेजिन चलीसा (1973 में), 6.श्रीदुर्गा-महिषासुर संग्राम(भोजपुरी प्रबन्ध,1977 में) आ 7.रावन-अंगद संवाद (भोजपुरी प्रबन्ध-1982 में), आ 8.शैदा व्यंग्य बावनी (…)। एकरा अतिरिक्त अप्रकाशितन में डुमराँव के झाँकी (डुमराँव के बिरासत प आधारित काव्य), जय बंगलादेश (नाटक) के साथ-साथ अउरो कतने फुटुकर कविता रहीं सँ। पता ना, उनुकर पाण्डुलिपि कहाँ बाड़ी सँ।
उनुका के अनेक साहित्यिक संस्था सम्मानित कइलीं सँ आ उनुका के सम्मानित क के स्वयं सम्मानित भइली सँ। मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालयो उनुका समये में ‘करे के ना चाहीं’ कविता के पाठ्यक्रम में स्थान देलस। उनुका के सम्भवतः 14 संस्थानन से सम्मान मिलल रहे, जवना में पटना में 4 फरवरी, 1979 के भोजपुरी अकादमी, पटना द्वारा तत्कालीन राज्यपाल के करकमल से दीहल ताम्र-पत्र विशेष मान राखता। आजु ऊ एह दुनिया में नइखन, बाकिर ऊ आजुओ अपना कृतित्व से बाड़ें आ काल्हुओ रहिहें। उनुकर सारस्वत अवदान उनुका के बिसरले बिसरे ना दी।
1.पतरा तू देख पतरातू न जा।
2.शहर की सफाई से का वास्ता है,
जिधर देखिए हँस रहा रास्ता है
शहर के किनारे पड़ा है जो राशन
उसे घर में लाएँ लिये जाएँ बासन,
ये मिस्लेमलाई मुफ्त का नास्ता है।
शहर की सफाई से क्या वास्ता है।
3.ये नगारे का है घेरा या कि घेरा नाँद का
या कि चूतड़ है हमारे द्वारिका परसाद का।
5.शैदा पियेंगे चाय डुमराँव नजर आएगा मोगलसराय से।
6.बड़ सुख देला मोरा दुअरा के नीम रे
7.रहलीं करत दूध के कुल्ला, छिल के खात रहीं रसगुल्ला,
सखी,हम खुल्लम-खुल्ला, झूला झूलत रहीं बुनिया फुहार में,
सावन के बहार में ना।
8.हमरो देश बंगाला हो गइल,
बहनोइया अपना सरवा के सोरहो आना साला हो गइल।
हमरो देश बंगाला हो गइल।
9.गोसाईं जी फेरु आईं भारत में हमरा।
स्वागत में रउरा के चाह पियाइब,
दूध मलाई हम कहँवा से पाइब,
घर-घर पोसाइल बा कुकुरे नु झबरा।
गोसाईं जी, फेरु आईं भारत में हमरा।।
10.घर ही पढ़लें भइलें मास्टर,
घरही पढ़लें भइलें डाक्टर
सब गुनवा में गामा हउवें।
बुद्धि कम अधिका विवेक बा।
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