डॉ० रंजन विकास
युद्ध कवनो नया चीज नइखे। जब से एह धरती प सृष्टि भइल, तबे से युद्ध चलल आ रहल बा। इहो बात सही बा जे देस, काल आ परिस्थिति के हिसाब से समय-समय प ओकर रूप-सरुप बदलत रहेला। युद्ध कवनो समस्या के समाधान ना हऽ। ई बात सभे जानेला आ पहिलहूँ के लोग जानत रहे, तबो केहू बाज ना आवे। कबहूँ धर्म-अधर्म के, वर्चस्व के, स्वाभिमान के, आर्म्स के व्यापार खातिर, आपन-आपन दबदबा खातिर, आत्म-रक्षा में भा आउरो कवनो वजे से युद्ध हमेसा से होत रहल बा, बाक़िर मानवीय संवेदना त हर बेर नज़रअंदाज़ होत आइल बा।
हाल फिलहाल में रूस आ यूक्रेन के बीच युद्ध के जवन तस्वीर आ समाचार उभर के आ रहल बा, ऊ त रउरा सभे देखते-सुनत होखब। कवनो टेलीविज़न चैनेल होखे, सगरो 24×7 एके खबर आवत रहेला, जे पुतिन सेना यूक्रेन पर आक्रमण कऽ देले बा। आज-काल्ह के सगरी अखबारो एही खबर से रंगाइल रहता। सऊँसे दुनिया एकरा के रूसी घुसपैठ मान रहल बा आ अंजाम भोगे के धमकियो कम ना देहलस, बाक़िर एह ममिला में भारत सरकार के भूमिका विवेकपूर्ण रहल बा, जवना के सराहे में कवनो तरे के संकोच नइखे।
अबहीं यूक्रेन के सीमा पश्चिम में यूरोप आ पूरब में रूस से सटल बा। अब सवाल ई उठत बा जे सन् 1991 ले सोवियत संघ के हिस्सा रहल यूक्रेन आ रूस के बीच में अइसन का हो गइल, जवना के चलते आपसी दुसमनी दिन प दिन बढ़त चल गइल ? सन् 1991 में यूक्रेन सोवियत संघ से अलग भइल रहे, ओही घरी क्रीमिया के लेके यूक्रेन आ रूस के बीच बहुते बेर टकराव भइल रहे। बाक़िर अइसन का हो गइल, जे पुतिन के अपना सेना के युद्ध करे के आदेस देबे के पड़ल। एह युद्ध से सऊँसे दुनिया विश्व-युद्ध के मोहान प खड़ा बा। अब देखल जाव कि असली विवाद के जड़ का बा ?
रूस आ यूक्रेन के आपसी तनाव सन् 2013 के नवंबर में ओह समय सुरु भइल रहे, जब यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के कीव में विरोध होखे लागल, जबकि रूस उनकर पुरहर समर्थन करत रहे। विरोध करे वाला प्रदर्शनकारियन के बीच अमेरिका आ ब्रिटेन आग में घीव डाले के काम कइलस, जवना के चलते बगावत माटी के तेल नियर पसर गइल। मामला अतना जादे बढ़ गइल कि फरवरी 2014 में यूक्रेन के राष्ट्रपति यानुकोविच के देश छोड़ के भागे के पड़ल आ आखिर में ऊ रूस में सरन लेहले। एहिजा से विवाद जनम लेहलस। पलटवार करत रूस दक्खिनी यूक्रेन के क्रीमिया पर आपन कब्जा जमा लेलस। बात एहीजा ले ना ओराइल। यूक्रेन के अलगाववादियन के रूसी समर्थन मिले लागल। ई लोग पूर्वी यूक्रेन के बड़हन हिस्सो पर आपन कब्जा जमा लिहल। एजुगियो यूक्रेन सेना आ अलगाववादियन के बीच में तानातानी बढ़त चल गइल। अब सवाल बा जे 2014 से सुलगत विवाद अचानक जंग में कइसे बदल गइल।
अलगाववादियन से निपटे खातिर यूक्रेन एगो रणनीति बना के नाटो से दोस्ती कके खुल्लम-खुल्ला अमेरिका के आँचर थाम लेलस। बात तब बिगड़ल जब यूक्रेन नाटो में सामिल होखे के तइयारी करे लागल। रूस चाहत रहे, जे यूक्रेन नाटो के हिस्सा ना बनो। रूस के अइसन सोच रहे, जे यूक्रेन अगर नाटो के सदस्य बन जाई त रूस बहुते बुरा ढ़ंग से घिर जाई, काहेंकि भविष्य में नाटो देश के मिसाइल यूक्रेन के धरती पर तैनात हो सकेला, जवना से आगे जाके रूस के बड़हन चुनौती के सामना करे के पड़ सकत बा। एही से रूस के आपन अस्तित्व आ संप्रभुता खतरा में लउके लागल।
रूस चाहत रहे, जे नाटो के आउर विस्तार ना होखे। एही मनसा से राष्ट्रपति पुतिन के मांग के दबाव यूक्रेन आ पश्चिमी देसन प रहे। बात बिगड़त देख के रूस यूक्रेन प हमला कऽ देलस। अमेरिका आ सऊँसे यूरोपियन देस रूस के ऊपर बहुते तरे के पाबन्दी लगा देहले सन। ओकरा बादो सगरी पाबन्दी के नज़रअंदाज करत रूस युद्ध में आपन आउर आक्रामक तेवर जारी रखलस। आज स्थिति अइसन बा कि यूक्रेन के बड़हन हिस्सा पर रूस के कब्जा हो गइल बा। अगर अइसन हाल रहल त एह दिन पूरा यूक्रेन रूस के कब्जा में आ जाई। शुरू में अमेरिका समेत नाटो के सगरी यूरोपीय देसन के हर तरह के मदद मिले के भरोसा प यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की धोखा खा गइले। बाद में उहे भइल जे होखे के उम्मीद रहे। अमेरिका समेत नाटो के सगरी यूरोपीय देस आपन-आपन गोड़ घींच लेहले सन। अमेरिका त सोझे आपन आँचर झार देहलस। एतना जन-धन-सम्पति गँववला आ सऊँसे उक्रेन में तबाही के मंजर देखला के बादो यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अपना जिद्द से बाज नइखन आवत। अखाड़ा के हारल पलवान जस उनकर हाल बा, तबो आपन लंगोटी के धूर झार के रूस से लड़े खातिर तइयार बइठल बाड़े। बुझाता जे युद्ध में उनकर मति हेरा गइल होखे। उनकर मानवीय संवेदना त साफे ख़तम हो गइल बा।
साँच कहल जाव त दोसरका विश्व युद्ध के बाद सऊँसे दुनिया दू फाड़ में बँट गइल – एक ओर अमेरिका आ दोसरका ओर सोवियत संघ। 25 दिसंबर 1991 के सोवियत संघ खण्डे–खण्ड टूट के 15 गो अलग-अलग राज्य बन गइल, जवना में यूक्रेन, आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आ उज्बेकिस्तान देस बाड़े सन। सोवियत संघ के विघटन के बाद आजाद मुल्कन के मान्यता त मिलल, बाक़िर कई मुल्कन का बीच आज ले सही ढंग से विवाद के समाधान ना हो सकल। सुरुए से यूक्रेन के सामने बड़हन चुनौती बनल रहल, जवना में पूरबी आ पश्चिमी यूक्रेन के लोगन के बीच अलग-अलग विचारधारा भइल, पूरब आ पश्चिम यूक्रेन में भाषा के साथे-साथे राजनीतिक रूझानो एक-दोसरा से साफे अलग-अलग रहल आ यूक्रेन में भीतरे-भीतरे अलगाववाद के चलते बगावत के चिंगारी के सुलगल प्रमुख वजे बा। बस ! रूस एही चिंगारी के आग में बदले के कोशिश कइलस, काहेंकि आपन देस माने सोवियत संघ के विघटन के मलाल त रूस के राष्ट्रपति पुतिन के हमेसा कचोटत रहेला। उनकर तेवर देख के अब यूरोपीय देसन, नाटो भा अमेरिका के होस ठिकाने लागल बा। एह लोग के ई बुझा गइल बा जे रूस के खिलाफ कवनो तरे के सैन्य कार्रवाई कइला प सऊँसे दुनिया तबाह हो सकत बा।
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परिचय: (सेवानिवृत मूल्यांकन पदाधिकारी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार। वर्त्तमान में “भोजपुरी साहित्यांगन” में सह-संचालक का रूप में कार्यरत।)