रूस-यूक्रेन युद्ध आ ओकर विश्व पर प्रभाव

May 2, 2022
आवरण कथा
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ज्योत्स्ना प्रसाद

हमनी के पीढ़ियन से ई बात सुनत चलल आवतानी सन कि कवनों भी बड़ लड़ाई के मूल में- ज़र,जोरू आ ज़मीन एही तीनों चीज़न में से कवनों ना कवनों के प्रधानता रहेला। आजो कमोबेश ज़र आ ज़मीन ही युद्घ के मूल रूप से कारण रहेला। एकरा साथ ही समय के एह दौर में ‘ज़र’ के अर्थ में अगर हम तनि विस्तार करके देखीं त ओकरा में आज के परिस्थिति के अनुसार कुछ आउर बिन्दु भी बहुत आसानी से जोड़ल जा सकेला। जवना में हमरा हिसाब से परस्पर प्रतिस्पर्धी आ विरोधी देशन के आपन स्वार्थ, आपन व्यापार, आपन वर्चस्व, आपन अहंकार के हम बहुत आसानी से जोड़ सकेंनी।

अब बात रहल कभी युद्ध के कारण बनल ‘जोरू’ शब्द के। समय के एह दौर में कई देशन में गृहयुद्ध त होता, चाहे ओकर संभावना भी बनता। बाकिर देशी राज्यन के युग खत्म हो गइला से एकेगो देश में अपना अलग-अलग ध्वज के साथे आपन अलग-अलग अस्तित्व के एहसास करावत राजा लोगन के भी युग खत्म हो गइल बा। आज विश्व के ज्यादातर देशन में राजतंत्र के भी कब्र खोदा गइल बा। एह से ‘जोरू’ के वज़ह से कवनों दू देशन के बीच में लड़ाई के संभावना भी दूर-दूर तक लउकत नइखे। चूँकि एह काल-खण्ड में ‘जोरू’ कवनों भी युद्ध के कारण नइखे बनत। एह से ई भाव भी अब इतिहास-पुराण में ही सिमट के रह गइल बा।

अब चलीं अपना असली मुद्दा पर। यानी रूस-यूक्रेन युद्ध पर। यूक्रेन आ रूस दूनू ही देश पहिले सोवियत संघ के अंग रहे। सोवियत संघ के पूरा नाम रहे ‘सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ’ जेकरा के संक्षेप में USSR कहल जात रहे। ‘सोवियत’ शब्द श्रमिकन के परिषद के नाम से आइल बा आ लाल झंडा पर हथौड़ा आ दरांती प्रतीकात्मक रूप से देश के श्रमिकन के श्रम के प्रतिनिधित्व करेला।

कभी एह सोवियत संघ के दुनिया पर बहुत प्रभाव रहे। एकरा स्थापना के दशक के साथे अनेक देशन में महत्त्वपूर्ण सरकार उभरल। जवना में चीन, क्यूबा आ उत्तर कोरिया जइसन कई देशन में आजो अइसन सरकार मौजूद बा।

रूस USSR के सबसे प्रमुख गणराज्य रहे। ओकरा बाद के ओह महाद्वीप के दोसर बड़ देश रहे यूक्रेन। सोवियत संघ (USSR) विश्व के पहिला साम्यवादी देश रहे। एकर स्थापना रूस के ही एगो गृहयुद्ध के बाद भइल, जे सन् 1917- 1921 तक चलल। सोवियत संघ एक विशाल क्षेत्र के नियंत्रित कइलस आ शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथे प्रतिस्पर्धा भी कइलस। जवना कारण कई बार त ई बुझाव कि दुनिया अब एक परमाणु युद्ध के कगार पर आके खड़ा हो गइल बा।

ई बात अब जरूर बा कि सोवियत संघ के पतन के बाद से रूस में कम्युनिस्ट सरकार नइखे। हालाँकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोवियत संघ के पतन के 20 वीं शताब्दी के सबसे बड़ा भू-राजनीतिक तबाही मानेलन।

यूक्रेन 1918-20 में स्वतंत्र रहे। बाकिर दूगो विश्व युद्ध के बीच के अवधि में पश्चिमी यूक्रेन के कुछ हिस्सा पर पोलैण्ड, रोमानिया आ चेकोस्लोवाकिया के अधिकार हो गइल। बाद में यूक्रेन, यूक्रेनी सोवियत समाजवादी के रूप में सोवियत संघ के हिस्सा बन गइल।

रूस के सीमा एक दर्जन से अधिक देशन से मिलेला, जवना में अनेक देश पहिले सोवियत संघ के ही हिस्सा रहे। बाकिर आज ऊ सब देश ‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ यानी नाटो के सदस्य बन गइल बा।

यूक्रेन के सीमा पश्चिम में यूरोपियन देशन से आ पूरब में रूस के साथे लागल बा। हालाँकि यूक्रेन सोवियत संघ के सदस्य रह चुकल बा आ आजो यूक्रेन के आबादी के करीब छट्ठा हिस्सा रूसी मूल के भइला के कारण यूक्रेन के रूस के साथे गहरा सामाजिक आ सांस्कृतिक जुड़ाव भी बा। एकरा साथ ही रूस सन् 19 94 में एगो समझौता पर हस्ताक्षर करके यूक्रेन के स्वतंत्रता आ संप्रभुता के सम्मान देबे पर आपन सहमति जता भी चुकल बा। बावजूद एकरा सन् 2014 में यूक्रेन के लोग रूस समर्थक अपना राष्ट्रपति के ओकरा पद से च्युत क देहलस। जवना के चलते रूस यूक्रेन से नाराज हो गइल आ ऊ दक्षिणी यूक्रेन के क्राइमिया प्रायद्वीप के अपना क़ब्ज़ा में ले लेहलस। एकरा साथ ही रूस यूक्रेन के अलगाववादीयन के आपन समर्थन भी देहलस। जवना के चलते ऊ लोग पूर्वी यूक्रेन के एगो बड़ा हिस्सा पर आपन क़ब्ज़ा क लेहलस। तब से रूस समर्थक विद्रोहियन आ यूक्रेन के सेना के बीच चलत लड़ाई में अबले 14 हज़ार से अधिक लोग मरा चुकल बा।

रूस यूक्रेन के क्राइमिया पर सन् 2014 में ई कहत क़ब्ज़ा क लेहलस कि ओह प्रायद्वीप पर रूस के ऐतिहासिक दावा रहल बा। काहेकि यूक्रेन सोवियत संघ के हिस्सा रह चुकल बा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कहनाम बा कि चूँकि यूक्रेन के गठन ही कम्युनिस्ट रूस कइले रहे। एह से सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के अर्थ ऐतिहासिक ‘रूस’ के टूटला जइसन ही भइल। हमरा कहे के तात्पर्य ई बा कि सोवियत संघ के अंग के रूस आजो अपना ही देश के अंग समझेला।

यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के झुकाव पश्चिमी देशन के ओर रहल ह। एह से रूस के अपना सुरक्षा खातिर चिंतित भइल वाजिब बा। रूस के ई लागता कि ओकरा सुरक्षा-संबंधी चिंता के पश्चिमी देश आ विशेष रूप से अमेरिका द्वारा नज़र अंदाज़ कइल जाता। संभवतः अमेरिका आ पश्चिमी देशन के भी ई बुझात रहल ह कि अब रूस ओतना शक्तिशाली नइखे कि ऊ नाटो के साथे अमेरिका के जब सहयोग रही तब ऊ कवनों तरह के कोई कड़ा विरोध कर पायी। एह से अमेरिका के सह पर जइसे नाटो सन् 1994 में एक-एक करके हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, लातविया, लिथुवानिया जइसन देशन के धीरे-धीरे करके नाटो के सदस्य बना लेहलस। ओइसही यूक्रेन के भी नाटो में ऊ शामिल क ली।

अब जब कवनों तरह से यूक्रेन नाटो के सदस्य बन जाई तब नाटो बहुत आसानी से यूक्रेन के मदद से अपना सेना के रूस के मुहाने पर खड़ा क दी। एह तरह से नाटो के रूस पर आक्रमण कइल आसान हो जाई। ई सब सोच के रूस चिंतित बा। हालाँकि यूक्रेन के रूस के ई चिंता समझे के चाहीं। काहेकि कभी दूनू देश सोवियत संघ के हिस्सा भी रह चुकल बा। बाकिर यूक्रेन अमेरिका आ पश्चिमी देशन के बहकावा में आके रूस के ई चिंता ना समझ सकलस आ आज ओकर परिणाम भुगतत अपना पूरा देश के युद्ध के आग में झोंक देले बा।

रूस चाहता कि यूक्रेन नाटो के सदस्य ना बने। एकरे साथ ही ऊ कवनों यूरोपियन संस्था से भी ना जुड़े। नाटो के सेना सन् 1997 के पहिले के स्थित में लौट जाय आ पूरब में सेना के ना ही कवनों विस्तार होखो आ ना ही पूर्वी यूरोप में ओकर कोई सैन्य गतिविधि ही होखे। एकरा खातिर रूस क़ानून के पुख़्ता भरोसा चाहता।

फिलहाल नाटो के 30 देशन के सदस्यता बा। बाकिर ओकर नीति ह-“हर केहू खातिर दरवाज़ा खुला रखे के”। नाटो अपना एह नीति से पीछे हटे के तइयार नइखे। रूस-यूक्रेन युद्ध के हमरा अनुसार इहे असली कारण बा। काहेकि नाटो के एही नीति से यूक्रेन के आस रहे कि ऊ बहुत आसानी से नाटो के सदस्य बन जाई।

यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेस्की यूक्रेन के नाटो में शामिल करे खातिर बेचैन बाड़न। एह से ऊ यूक्रेन के नाटो में शामिल होखे खातिर एगो तय समय-सीमा आ संभावना स्पष्ट करे के माँग करत रहल बाड़ें। बाकिर जर्मनी के चांसलर द्वारा निकट भविष्य में एह तरह के संभावना से साफ इनकार कइल जात रहल बा।

यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेस्की के एह युद्ध के पहिले उनका अपना देश में भी ओतना लोकप्रियता ना रहे। बाकिर एह युद्ध के समय स्वाभाविक रूप से अपना देश से प्रेम रखे वाला लोगन के नज़र में उनकर महत्त्व बढ़ गइल बा। चूँकि ऊ यूक्रेन के कमाण्डर इन चीफ भी हउअन, एह से ओह दृष्टि से भी रूस-यूक्रेन युद्ध में उनकर काम सराहनीय रहल बा। ऊ एक ओर जहाँ अपना सेना के मोराल बढ़ावे में कामयाब होत दिखाई दे तारन उहईं दोसरा ओर अमेरिका आ नाटो से अपना तरह से मदद के गुहार भी लगावतारन।

24 फरवरी से रूस-यूक्रेन के बीच लड़ाई शुरू भइल। ऊ लड़ाई बा दस्तूर आज यानी 12 मार्च आ युद्ध के 17 वाँ दिन भी ज़ारी बा। एह दूनू देशन के बीच कई दौर के बातचीत भी भइल बाकिर कवनों ठोस नतीजा अभी ले ना निकल। कबो-कबो त हमरा ई बुझाता कि रूस-यूक्रेन के बीच जवन वार्ता जहाँ से शुरू भइल रहल ह ऊ वार्ता घुम फिर के ओही जगह पर जा पहुँचता। ह, ई बात जरूर कहल जा सकेला कि कई दौर के वार्ता के बाद भी जे ज़ेलेस्की के तेवर कड़ा लउकत रहल ह, ऊ अब तनिमनी नरम पड़ल बा। ऊ अब यूक्रेन के नाटो आ रूस के बीच तटस्थ रहे के बात भी करतारन।

यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेस्की नाटो के सदस्य देशन से भी बहुत खुश नइखन लउकत। काहेकि ऊ यूक्रेन के मदद जवना तरह से नाटो के सदस्य देशन से चाहत रहले ह ओह तरह से उनका नइखे मिलत। ऊ रूस खातिर नाटो के सदस्य देशन से ‘नो फ्लाई जोन’ के घोषणा चाहत रहले ह। बाकिर यूक्रेन खातिर कवनों देश रूस जइसन शक्तिशाली देश से दुश्मनी मोल लेबे के तइयार नइखे ।

जर्मनी ई घोषणा त कइये चुकल बा कि ऊ रूस से गैस, तेल के आयात पर रोक ना लगाई। बाकिर यूके रूस पर प्रतिबंध लगावे के घोषणा कइले बा। एह घोषणा के अर्थ हो गइल कि एह मद में ओकरा अपना बजट के आठ गुना खर्च बढ़ावे के पड़ी।

अमेरिका भी पहिले कहले रहे कि यूक्रेन के संप्रभुता सुरक्षित करे खातिर ऊ प्रतिबद्ध बा। बाकिर यूक्रेन पर आक्रमण भइला के बाद ऊ रूस पर प्रतिबंध लगावे, यूक्रेन तक हथियार पहुँचावे जइसन मदद ही करता। बाकिर यूक्रेन के मदद में आपन सेना नइखे उतारत। पोलैण्ड यूक्रेन के हथियार देबे के एवज़ में अमेरिका से सौदाबाजी करे के चाहता।

रूस-यूक्रेन युद्ध विश्व के ई बता देहले बा कि अपना देश के हर परिस्थिति से जूझे खातिर सबसे पहिले अपना देश के ही मजबूत आ आत्मनिर्भर बनावल जरूरी बा। दोसर जरूरी बात ई कि कवनों लड़ाई अपने बूते पर ही लड़े के चाहीं। दोसरा के भरोसा पर कवनों युद्ध ना लड़ले जा सकेला आ ना जीतले जा सकेला। एह बात के समझ अब यूक्रेन के भी हो गइल बा कि अभी ओकर हैसियत अइसन नइखे कि ऊ रूस जइसन महाशक्ति से युद्ध खुल के लड़ या जीत सके।

हमरा डर बा कि अपना ज़िद्द में आके ज़ेलेंस्की अपना हरा-भरा देश के खण्डहर में तबदील ना कर देस। वैसे रूस चाहित त ई युद्ध कबे समाप्त हो गइल रहित। बाकिर उहो अपना रणनीति के तहत यूक्रेन के खेला रहल बा। रूस के रणनीति के ई हिस्सा रहल बा कि ऊ पहिले चारो ओर से घेरेला तब ओकरा पर आपन चाँप चढ़ावेला। कीव के साथ आज ऊहे हो रहल बा। वैसे पुतिन के तरफ़ से ई बात निकल के आइल ह कि यूक्रेन के टार्गेट पूरा हो गइल। पुतिन के वक्तव्य बा कि उनका यूक्रेन के सत्ता बदले में रुचि नइखे। ऊ सिर्फ रूस के सुरक्षा के लेके चिन्तित बाड़न। बाकिर हमरा बुझाता कि युद्ध के आग अभी आउर धधकी। एकरा लपेट में कुछ आउर देश आई। बाकिर कब आ कइसे ई समय बतायी।

रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव

  • पूरब में नाटो के विस्तार-योजना अब खटाई में पड़ गइल। अइसे त नाटो के सदस्य बने खातिर ज्यादातर देशन के आकर्षण आ लालच रहेला कि ओकरा देश पर अगर कवनों देश आक्रमण कइलस तब ओह आक्रमण के समय ओह सदस्य देश के मदद खातिर नाटो के सदस्य देशन के सामूहिक कार्यवाई होई। बाकिर नाटो के अनुच्छेद पाँच के तहत सामूहिक कार्यवाई खातिर गठबंधन के सब सदस्यन के कवनों सामूहिक कार्यवाई खातिर सहमत भइल जरूरी बा। बाकिर नाटो के 71 साल के इतिहास में अनुच्छेद पाँच के प्रयोग सिर्फ एक बार ही 9/11 के समय भइल बा। जब अमेरिका में आतंकी हमला भइल रहे।

2- यूक्रेन के रूस से युद्ध ठान के जे ओकर स्थिति भइल बा ओकरा के देखत आ साथ ही अमेरिका आ यूरोपीय देशन के समर्थन के आश्वासन पर अब ओह इलाका के कोई भी देश हाल-फिलहाल में मास्को से बैर मोले के हिम्मत ना करी। अमेरिका आ पश्चिमी देशन के बहकावा में आके यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेस्की के बोली के जे तेवर रहल ह ओहमे अब तनि नरमी आइल बा। ऊ कहतारन – “हम अपने देश के लिए सुरक्षा गारंटी जैसे अन्य मुद्दों पर रूस से चर्चा करने से नहीं डरते। हमें तटस्थ स्थिति के बारे में बातचीत करने से भी कोई भय नहीं है।” ऊ इहो कहतारन कि नाटो यूक्रेन के सुरक्षा-गारण्टी आ सदस्यता देबे के अभी तइयार नइखे। ज़ेलेंस्की के कहनाम बा- “मैंने आज 27 यूरोपियन नेताओं से पूछा कि क्या यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जायेगा— उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।”

3- द्वितीय विश्वयुद्ध के खत्म भइला पर अमेरिका आ सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के शुरुआत होत रहे। ओही बीच सन् 1949 में नाटो के गठन भइल। शुरुआत में एह संगठन में 12 देश शामिल भइल। बाकिर धीरे-धीरे नाटो के सदस्य देशन से संख्या बढ़े लागल। अब एकर संख्या 30 हो चुकल बा। एहमें से कइगो देश सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो में शामिल भइल। सबसे अंत में नार्थ मैसेडोनिया गणराज्य मार्च 2020 में नाटो में शामिल भइल। एह सबसे प्रेरणा लेते कुछ आउर देश जइसे बोस्निया, हर्जेगाविना, जार्जिया आ यूक्रेन भी नाटो में शामिल होखे के इच्छा जतवलस। हालाँकि एह देशन के नाटो के ओर से अभी तक कोई समय-सीमा नइखे देहल गइल। बाकिर यूक्रेन के साथे जवन भइल ओकरा के देखत रूस के प्रभाव आ दायरा वाला क्षेत्र से कवनों देश के फिलहाल नाटो के सदस्यन में शामिल होखे के कवनों संभावना नइखे दीखत।

4- नाटो में शामिल होखे के पीछे सबसे बड़ा लोभ ई बा कि सदस्य देशन के ई विश्वास रहेला कि अगर ओकरा देश पर हमला भइल तब गठबंधन में शामिल देशन के सेना ओकरा मदद खातिर आगे आई। बाकिर नाटो के वास्तविकता त ई बा कि अपना कवनों सदस्य देश के अनुरोध पर शायद ही कभी नाटो ओकरा के ओह तरह से मदद कइले होखे। नाटो यूक्रेन के भी मदद ना कइलस। यूक्रेन के बारे में त ई सोचल जा सकेला कि अभी नाटो के सदस्य नइखे। बाकिर नाटो त तुर्की के मदद के अनुरोध के भी ठुकरवले रहे। जबकि ऊ सन् 1952 से ही नाटो के सदस्य बा। नाटो चार्टर के अनुच्छेद पाँच ई गारंटी देता कि अगर कवनों सदस्य देश पर हमला होई तब ऊ आपन सामूहिक सैन्य प्रतिक्रिया तंत्र के सक्रिय कर दी। बाकिर फरवरी 2020 में जब सीरिया के इदलिव प्रांत में रूस के वायु शक्ति से लैस सीरिया के सरकारी जवान तुर्की के 34 सैनिकन के मार देहलस। ओह घड़ी नाटो ओकरा के समर्थन ना कइलस।

रूस-यूक्रेन युद्ध के तात्कालिक आ दूरगामी परिणाम

कवनों भी युद्ध के तात्कालिक आ दूरगामी दूनू परिणाम निकलेला आ ऊ दुनिया पर आपन असर भी डालेला। कारण विज्ञान आ तकनीकि के प्रभाव से आज समूचा दुनिया एक वैश्विक गाँव में बदल गइल बा। जवना के चलते कवनों जगह के वास्तविक दूरी अब कवनों मायने नइखे रखत। आज हम ई देखतानी कि पूरा संसार के व्यवस्था, आर्थिक आ व्यापारिक आधार पर ध्रुवीकरण आ पुनर्संघटन के प्रक्रिया से गुज़र रहल बा। एह से विश्व के कोई भू-खण्ड के घटना दोसरा भू-खण्ड के प्रभावित कइला बिना रह ना सकेला। एह से विश्व के कवनों कोना में अगर युद्ध होला त ओकर तात्कालिक प्रभाव त पड़बे करेला, ओकरा साथ ही ओकर दूरगामी प्रभाव भी पड़ेला। एही बात के प्रसिद्ध अर्थ शास्त्री प्रो. अरूण कुमार एह तरह से कहतारन कि वैश्वीकरण के कारण कवनों भी जंग के दुनिया के हर हिस्सा पर प्रभाव त पड़बे करेला ऊ युद्ध खाड़ी देशन में होखे चाहे अफ्रीका में। बाकिर रूस-यूक्रेन के युद्ध दू देशन के सामान्य युद्धन से अलग बा। काहेकि ई युद्ध दो देशन के बीच के साधारण युद्ध ना ह बल्कि विश्व के दू महाशक्तियन के बीच के टकराहट ह। एक ओर त प्रत्यक्ष रूप से रूस के सेना दिखाई देता। बाकिर दोसरा ओर अमेरिका आ नाटो द्वारा परोक्ष रूप से समर्थित यूक्रेन के सेना बा। जवना में तनातनी अपना देश पर भी प्रभाव छोड़ सकेला।

तत्कालिक रूप से वैश्विक कारोबार, पूँजी प्रवाह, वित्तीय बाज़ार आ तकनीकी पर भी प्रभाव पड़ी। कारण रूस के यूक्रेन पर हमला के कारण रूस पर प्रतिबंध लागू हो गइल बा।

फिलहाल दुनियाभर में रूस गैस, तेल के बहुत बड़ा आपूर्तिकर्ता ह। एह से रूस पर प्रतिबंध लगावे से एह सब चीजन के दुनिया में बेतहाशा कीमत में बढ़ोतरी होई। यूक्रेन भी कवनों कमज़ोर देश ना रहल ह। ऊ विश्व के गेहूँ आ खाद्य तेलन के बड़हन निर्यातकन में से एगो ह।

जब प्रत्यक्ष चाहे परोक्ष रूप से दो ताकतवर देशन के बीच संघर्ष होई तब एक अलग तरह के बाजार में अनिश्चितता के दौर आ जाई। जवना के चलते आपन पूँजी कहीं डूब ना जाय एह डर से विदेशी निवेशक बाज़ार से आपन पूँजी वापस निकाले लागेलें। जवना के चलते प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफ.डी.आई. आ विदेशी संस्थागत निवेश यानी एफ.आई.आई. के कवनों देश में आवल कम हो जाई। युद्ध के स्थिति में कोई भी निवेशक अपना पूँजी के अपने ही देश में निवेश करे के चाहेला। ताकि ओकरा देश के अर्थ व्यवस्था में मजबूती बनल रहो।

रूस-यूक्रेन युद्ध आज सतरहवॉं दिन में प्रवेश कर गइल। युद्ध आज ना काल खत्मे हो जाई। बाकिर शीत युद्ध थमे वाला नइखे। काहेकि ई लड़ाई वैचारिक लड़ाई ना ह। ई लड़ाई त दू महाशक्तियन के बीच के वर्चस्व के लड़ाई ह। एह से एह युद्ध से नतीजा सिर्फ दुइयेगो देश ना भुगती बल्कि दुनियाभर में मंदी आ महँगाई आपन रंग देखावे लागी। रूस के कंपनियन पर प्रतिबंध लगला से वैश्विक कारोबार प्रभावित होई। हालाँकि पश्चिमी देश एह कोशिश में बा कि पेट्रो उत्पादक आपन उत्पाद बढ़ा देव। ओपेक (OPEC) देशन से भी ई अनुरोध कइल जा सकेला। बावजूद एकरा पेट्रो उत्पादन के घरेलू कीमत बढ़ल तय बा। पेट्रो के दाम बढ़ला से स्वाभाविक रूप से सब चीजन के दाम बढ़ जाई।

रूस-यूक्रेन युद्ध के भारत पर प्रभाव

रूस-यूक्रेन युद्ध के जे प्रभाव अन्य देशन पर पड़ी ऊ सब कमोबेश भारत पर भी पड़ी। बाकिर भारत खातिर तत्काल प्राथमिकता बा यूक्रेन में फँसल भारतीय छात्रन के सकुशल देश वापस ले आवल। अभी तक 15-16 हजार छात्र मिशन गंगा के तहत अपना देश वापस आ चुकल बाड़ें। कुछ पड़ोसी देशन के लोग के भी मदद कइल गइल बा। बाकिर जले ले भारत के एक भी छात्र यूक्रेन में फँसल रहीहे ई मिशन चलत रही। एकरा साथ ही ओह छात्रन के भविष्य के भी चिंता भारत सरकार के करे के पड़ी जेकरा युद्ध के कारण अपना पढ़ाई के मझधार में ही छोड़ के अपना देश लौटे के पड़ल बा।

बाज़ार में अभी ओतना पूँजी नइखे एह से महँगाई आपन रंग देखइबे करी। आयात अधिक आ निर्यात कम भइला से भुगतान में संतुलन बिगड़े के अधिक संभावना रहेला। विदेशी निवेशक के बिकवाली के दबाव से बाज़ार कमज़ोर होई। एह से लोग अभी से ही अपना पइसा के सोना में निवेश करे लागल बा। जब सोना के माँग भारतीय बाजार में बढ़ी तब सोना के अधिक से अधिक आयात होई। सोना के माँग अधिक भइला से अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में सोना महँगा होई आ रूपिया टूटी। स्थानीय बाज़ार में सोना महँगा होई। जवना के चलते अपना देश के ही ना दुनिया भर के बजट बिगड़ी। एकर नतिजा ई होई कि देश के वास्तविक विकास में तुलनात्मक कमी आई। युद्ध के आशंका से सेना आ हथियार पर अधिक पइसा खर्च होई। राजस्व में भारी कमी आई। जवना के चलते राजस्व घाटा बढ़ी आ तब सरकार सामाजिक क्षेत्र के कामन से आपन हाथ खींचे लागी। जवना से देश के गरीब जनता प्रभावित होई। वैश्वीकरण के अवधारणा से जब विश्व समुदाय पीछे हटे लागी तब एकर सबसे ज्यादा नुकसान भारत जइसन विकासशील देश के ही होई।

भारत बहुत हद तक खाद्य तेल खातिर यूक्रेन पर निर्भर बा। भारत उहाँ से 1.5 विलियम डॉलर के सूरजमुखी के तेल, ऊर्जा, धातु आ खाद्य पदार्थ मँगवावेला।

रक्षा के क्षेत्र में भारत रूस पर निर्भर बा। रूस पर प्रतिबंध लगवला से भारत के कई रक्षा संबंधित सौदा अधर में लटक सकेला। एकरा साथ ही रूस के पेमेण्ट खातिर भारत के नया तरीका खोजे के पड़ी। भारत के लद्दाख पर चीन के गिद्ध दृष्टि के देखत भारत के अपना रक्षा-संबंधी भंडार के बढ़ावल जरूरी हो जाई। जबकि रूस पर CAATSA के तहत पाबंदी लगवला से हथियार के सप्लाई पर बहुत असर पड़ी।

एह तरह से हम समझ सकेनी कि युद्ध विश्व के कवनों खण्ड में काहे ना होखे बाकिर ओकर प्रभाव विश्व के हर देश में कवनों ना कवनों रूप में पड़ेला। एकरा साथ ही ओह क्षेत्र विशेष के आदमी त आदमीए ह युद्ध के प्रभाव उहाँ के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सब पर पड़ेला। चारो ओर त्राहि-त्राहि मच जाला। बसल बसावल घर उखड़ जाला। करोड़ों में खेले वाला लोग शरणार्थी बने खातिर मजबूर हो जाला। बम के धमाका खाली इमारते के खण्डहर में ना बदले बल्कि उहाँ के लोगन के मानसिक स्थिति पर भी असर डालेला। एह से भरसक युद्ध के विभीषिका से बचे के चाहीं।

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