गणेश दत्त पाठक
रूस यूक्रेन जंग के जंग शुरू भइले काफी दिन हो गइल लेकिन अभी जंग खतम होखे के कौनो संकेत दिखाई नइखे देत। लेकिन रूस आ यूक्रेन जइसन लोकतांत्रिक देसन के बीच जंग कई सवाल खड़ा जरूर करत बा? आमतौर पर मानल जाला कि आम जनता कबो जंग ना चाहेले। त आम जनता के विचार से अलग सत्ता में बइठल लोग ई फैसला कइसे ले लिहल? रूस के राष्ट्र के सुरक्षा अवरी यूक्रेन के संप्रभुता खातिर बातचीत त कईले जा सकत रहे। नाटो देसन में त लोकतांत्रिक सरकार बाटे सब, त कइसे रूस अवरी यूक्रेन विवाद के आउर हवा दिहल गइल? बड़का सवाल ई खड़ा होता कि का पश्चिम देसन में लोकतंत्र खोखलापन के शिकार हो गइल बा?
कबो संविधान बनावे खातिर अयोग्य मानल गइल भारत में लोकतंत्र होता परिपक्व
तनी याद करी, ब्रिटिश हुकूमत के समय, जब भारतीय लोग के संविधान बनावे के लायक ना समझल गइल। लेकिन आज भारतीय लोग के बनावल संविधान समय के कसौटी पर खरा उतर रहल बा। कुछ दिन पहिले के बात ह़ जब अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव के बाद सत्ता के बदलला पर केतना हंगामा मचल रहे। लेकिन भारत में ढेर सारा कमी के बावजूद चुनाव बाद सत्ता के बदलला पर कवनो असर न पडेला।
कबो अंग्रेजन द्वारा सभ्यता सिखावे के बात कइल जाव
एगो दौर उहो रहे जब बड़हन अंग्रेज कवि रूड यार्ड किपलिंग 4 फरवरी 1899 के टाइम्स ऑफ लंदन में छपल आपन कविता में भारतीय सभ्यता के लोगन के सिखावे खातिर ज्ञान बखारत रहले। उनकरे देश ब्रिटेन जौन नाटो के सदस्य ह दो लोकतांत्रिक देश के बीच जंग रोके खातिर कौनो कोशिश ना कइलस।
डेमोक्रेटिक इंडेक्स में भारत कनाडा से पीछे बा, फेर..
वर्ल्ड इकोनॉमिक इंटेलिजेंस द्वारा हर साल जारी होखे वाला डेमोक्रेटिक इंडेक्स में कनाडा से नीचे भारत बा। लेकिन कुछ दिन पहिले जब कनाडा में ट्रक वाला हड़ताल कर देहल त उहाँ इमरजेंसी लाग गइल। जबकि भारत में किसान लोग एक साल हड़ताल कइल तब सरकार ऊ लोग के बात मान लेहलस। ई कनाडा भी नाटो के सदस्य ह लेकिन जंग रोके खातिर कौनो प्रयास ना कइलस।
आखिर काहे लोकतांत्रिक देसन में संजम अवरी बातचीत के तरजीह नइखे दियात
जंग के दौर में लोकतांत्रिक राष्ट्र तबाह होते बा, रूस पर भी प्रतिबंध से आम जनता परेशान हो रहल बा। जंग के दौर में काहे लोकतांत्रिक देसन के सत्ताधारी लोग बातचीत नइखे करत, संजम नइखे रखत। का ई बात आम जनता के विचार से मिलता? त का एकरा के लोकतांत्रिक खोखलापन के हकीकत नइखे मानल जा सकत?
लोकतांत्रिक देसन के पहिला लक्ष्य जनता के जंग से रक्षा बा
लोकतांत्रिक मर्यादा विवाद सलटावे के आधार होला। लोकतंत्र जनता के अधिक से अधिक कल्याण से संबंधित होला न कि विनाश के आमंत्रण से। लोकतांत्रिक देसन के पहिला लक्ष्य जंग से जनता के सुरक्षा ही होखेला। रूस यूक्रेन जंग के शुरू भइला से पहिले जेगा अंतराष्ट्रीय घटनाक्रम तैयार भइल तिसरका विश्वयुद्ध के संकेत मिले लगल। यदि तिसरका विश्वयुद्ध शुरू हो जाई त ई लोकतांत्रिक देसन के बड़का असफलता ही मनाई।
लोकतांत्रिक कलेवर ना भइला से विश्व के कई गो संस्था भी आपन जोरदार भूमिका नइखे निभा पावत
हाल में विश्व के आर्थिक आ सामाजिक बेहतरी आ शांति खातिर बनल, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ आदि वैश्विक संस्था सब आपन जोरदार भूमिका नइखे निभा पावत। कारण ई बा कि ई सब संस्था के स्वरूप आ संरचना में लोकतांत्रिक तत्व के कमी बा। यदि ई सब संस्था के लोकतांत्रिक बना दिहल जाव त विश्व स्तर पर विकास आ शांति के समुंदर बहे लागी।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में संजम अवरी बात चीत के विशेष भूमिका होखेला। लोकतांत्रिक राष्ट्र में सत्ता पर बइठल लोग के ई कर्तव्य बा कि आम जनता के मन के भाव को समझल जाव आ ओकरा अनुसार निर्णय लीहल जाव। जंग के कबो आम जनता पसंद ना करेले। जंग लोकतांत्रिक देसन के खोखलापन के ही उजागर करेला। संजम ओरी बातचीत से ही विश्व में शांति आ सुकून के बयार बह सकेला।