मनोज भावुक
अगर अन्हरिया से अँजोरिया के तरफ बढ़े के बा त आपन धरती आ आकाश बढ़ावे के पड़ी। आपन सुरुज खुद उगावे के पड़ी। तबे भीतर अँजोर होई। राउर आपन औरा (आभा) बनी। मन खुश रही। जीवन मजबूती से जीयब आ बोध के क्षमता बढ़ी।
हम बुद्धि के बात नइखीं करत, बोध के बात करत बानी। बुद्धि त युद्ध करा रहल बा। यूक्रेन आ रसिया में उठल बवाल से त पूरा दुनिया में भूचाल आइल बा। मानवता तबाह बा। मानव जवना अदभुत गिफ्ट या वरदान ‘’ बुद्धि’’ के चलते प्राणियन में सर्वश्रेष्ठ बा, उहे बुद्धि ओकरा के उलझवले बा। बुद्धि आदमी के बालनोचवा बना देले बा। सभे आपन बाल नोचत बा। सुख आ आनंद देवे में समर्थ बुद्धि दुख, डर, पीड़ा आ दहशत दे रहल बा।
दरअसल बुद्धि ई त बता देले कि दिल का ह, कहाँ बा, कइसे काम करेला बाकिर दिल में का बा, ई बुद्धि ना बता पावेले। ई बोध से पता चलेला। एहसास से पता चलेला। ओकरा खातिर अपना मन के धरती आ विश्वास के आकाश के बढ़ावे के पड़ी। कई गो सरहद के तूरे के पड़ी। देश, जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा, लिंग आदि के सरहद। इहाँ तक कि अपना देह के सरहद भी तूरे के पड़ी आ अध्यात्म के एह गूढ़ रहस्य के समझे के पड़ी कि हम ना त देह हईं ना मन…. हमरा विस्तार के कवनो सीमा नइखे। एह से हमरा के सीमा आ सरहद में नइखे बान्हल जा सकत।
दरअसल समझ के तीन गो स्तर बा- बुद्धि, बुद्धू आ बुद्ध। बुद्धि के हालत त रउरा देखते बानी। दिया जरा के अँजोर करे के जगह लुकार भाँज के घर जरा रहल बा। दोसरो के आ अपनो। आपन बुद्धि अपने खिलाफ बा।
त परेशान लोग थोड़े देर खातिर बुद्धू बने के कोशिश करता। दारू, अफीम, गाँजा पीके भा सेक्सुआलिटी में जाके भा ड्रग्स के इस्तेमाल करके थोड़े देर खातिर अपना नर्वस सिस्टम के, अपना तंत्रिका तंत्र के डाइवर्ट करता भा ओकरा एक्टिविटी के कम करता। हउ गनवा नइखीं सुनले, ‘’ मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूँ गम भुलाने को ‘’। त इहे हाल बा।
जानवर के पास बुद्धि नइखे। एह से ओकरा टेन्शनो नइखे। ओकर संघर्ष खाली प्रजनन आ भोजन भर बा। ओकरा ना त घर आ गाड़ी के ई. एम. आई. देवे के बा, ना यूक्रेन, पाकिस्तान से लड़े के बा। लड़ाई अंतिम समाधान नइखे। रहित त सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के प्रचारक अशोक ना बनितन। हर युग में युद्ध भइल बा बाकिर अंततः प्रेम के प्रकट होखहीं के पड़ल बा।
अभी महामारी (कोरोना) खतमों ना भइल कि युद्ध शुरू हो गइल। अभी त प्रकृति के करीब जाये, आपन जीवन शैली सुधारे, अपना के सजावे-सँवारे आ वृहत्तर अर्थ में मानवता के बचावे के कोशिश होखे के चाहीं। .. बाकिर हमनी के बारूद के ढेर पर बइठ गइनी जा। त ई बुद्धि हमनी के असंवेदनशील बनवले बा कि जागरूक?
कोरोना में लाश प लाश गिरल ह। अब युद्ध में गिरता। चीख-पुकार जारी बा। साँच पूछीं त टेंशन बुद्धि वाला के बा। बुद्धू आ बुद्ध के ना। काहे कि बुद्ध बनला पर राउर बुद्धि राउर दोस्त बन जाले। उ रउरा खिलाफ काम ना करे। उ परम आनंद आ परम शांति में ले जाले आ मन में करुणा भर देले, अहंकार के गला देले। .. ना त एह घरी आदमी के बुद्धि आ ओकरा भीतर बइठल अहंकार लाख रूपिया के प्रॉपर्टी खातिर करोड़ रूपिया के किडनी डैमेज करवा देता। देह-रूप-रस से बहकल शैतान मन अच्छा-अच्छा लोग के साम्राज्य मटियामेट क के जेल भेजवा देता। हम ई नइखीं कहत कि पइसा भा सेक्स जरूरी नइखे। अरे भाई पैसा ना रही त जियले मुश्किल हो जाई। सेक्स ना रही त सृजन भा यौवन सुख कइसे प्राप्त होई। ई त जरूरिए बा। एह में कहाँ कवनों दिक्कत बा। बाकिर ई जहां रहे के चाहीं, ओही जी रहे त ठीक बा। पइसा पॉकेट में रहे, सेक्स देह में रहे त समय आ जरूरत पर सुख दी, कामे आई बाकिर ई कपार पर चढ़ जाई त दुख दी, जेल भेजवाई।
त कपार में जवन रहे के चाहीं, उहे रहो .. कचड़ा ना। एकरे खातिर योग जरूरी बा। योगी बनल जरूरी बा। योग पूरा दुनिया में हर आदमी खातिर अनिवार्य शर्त होखे के चाहीं। तबे आदमी के भूमि तत्व आ आकाश तत्व सुधरी भा विकसित होई। तबे आदमी पंच तत्व के मरम बूझीं आ एकर श्रेष्ठतम उपयोग करी आ परिणाम दी। योगी ही विश्व के आ मानवता के बचा सकेलें। काश! विश्व के हर बच्चा योगी बने।
विश्व बंधुत्व के भावना के विकास के कामना करत बानी। इहे भावना युद्ध से बचा पाई।