सरिता सिंह गोरखपुर
आज विश्व युद्ध के जौंन त्रासदी भइल बा ओसे खाली रूस ही नाही, जेतना भी देस बाटे सबही में खड़मंडन मचल बा, सागरो जहान ई विभीषिका से त्रस्त ह, कतहुं भी शांति नाही लौकत बा, कुल देसन में भयावह स्थिति बा, सगरो विश्व में हाहाकार मचल बा, कुल ओर त्राहि-त्राहि के दृश्य बा, ई सब देख के एगो प्रश्न मन में उठेला! का युद्ध ही एगो रास्ता बा, काहे नहीं शांति क राह चल के कवनो उपाय खोजल जाय?
अब प्रश्न उठत बा कि शांति के विकल्प का बा? नि:संदेह शान्ति के स्थापना युद्ध ना बुद्धत्व से मिल सकेला। हमनी के ई जाने के जरूरत बा कि बुद्धत्व का ह? एकर सही अर्थ अगर जाने के होखे त हमनी के आपन पौराणिक इतिहास के सहारा लेवे के पड़ी-
तिलक योग्य ना बा तलवार काटे बेगुनाहन के शीश।
खून सनल बा जेकर हाथ, कइसे उ पाई आशीष।।
जवन तलवार बेगुनाह के मूडी काटेला ओकर कबो जयकार ना होला। सम्राट अशोक भी अपना राज्य के विस्तार खातिर युद्ध कइलें, जेकर परीणाम बहुत वीभत्स भइल आउर अंतिम बेला थक हार के बुद्ध के शरण ले लिहलें।
मगध के सम्राट अशोक भी शांति के स्थापना खातिर स्त्रियन के सामने आपन अस्त्र डार देहलें आऊर सेना के सामने आपन अस्त्र डालके युद्ध रोके के घोषणा कइलें। अंतिम में जाके बुद्ध के शरण में भिक्षु बनके जीवन यापन कइले। ओही जा से वैचारिक क्रांति के विगुल बजल। अशोक गौतम बुध के सिखावल राह पर चल के पूरा विश्व के सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि पंचशील के सिद्धांत के संदेश पहुंचइले। विश्व के कोना-कोना में जाईके सबके एक ही मूल मंत्र दिहले। प्रेम, दया, सेवा, के साथ लेई विश्व में नव जागृति के संचार कइले।
विश्व के इतिहास उठा के देखीं। प्राचीन काल से लेके देवता युग में भी कहल गइल बा कि जवना घर में सब भाई मिलके प्रेम भाव से रहेले, ओही घर में शांति आ संपन्नता के वास होला। जेकरे अंदर संतोष ना बा, लूटपाट आ उत्पात ही करेला त होला महाभारत के युद्ध। तब का भइल ? एगो सभ्यता के समूल नाश हो गइल। रावण के अत्याचार के परिणाम लंका दहन भइल, कुल मिला के निष्कर्ष के रूप में इहे कहे के बा –
युद्ध शक्ति के स्थापना नाही नाश मात्र बा।
युद्ध विकास के आधार नाही विनाश मात्र बा।
अगर ई युद्ध नाही रुकल त एक दिन अइसन आई कि सागरो दुनिया के समूल नास हो जाई।
बुद्ध के मन में धारण करीं, शुद्ध बनी।