लेखक: मनोज भावुक
जन्मतिथि- 8 अक्टूबर 1935
पुण्यतिथि- 14 अप्रैल 2022
बाबूजी ना रहलें। ना रहलें हिंडाल्को के मजदूर नेता रामदेव बाबू। 14 अप्रैल 2022 के 87 बरिस के उमिर में उनकर निधन हो गइल। एक झटका में चल गइलें। भोरे उठ के पार्क में टहललें, सोसाइटी के गार्ड सब से रोज के तरह ओकनी के घर-दुआर, खेत-खरिहान के हाल-चाल पूछलें, अपना दिनचर्या के सब काम खुदे कइलें, पूड़ी बनवा के खइलें, वीडियो कॉल पर पोता-पोती से बतिअइलें आ रात के पौने आठ बजे खाए से मना क के आँख मूदलें त फेर आँखें ना खोललें। सवा आठ बजे डॉक्टर अइलें, देखलें आ कहलें कि सब खतम।
अइसे केहू जाला भला ! .. बाकिर बाबूजी गइलें। लोग कहत बा कि अइसे गइल सौभाग्य के बात होला। कवनों पुण्यात्मा के हीं प्राण अइसे माने एतना आसानी से निकलेला। ई कमाल के महाप्रयाण बा।
अंत समय ले बाबूजी के ना कवनों शुगर, ना बीपी, ना आँख प चश्मा। हाँ, अंतिम समय में मेमोरी के कुछ गड़बड़ी जरूर हो गइल रहे। बाबूजी अक्सर हमरा से पूछस- राजनाथ सिंह से मिले ? …आ गड़करी से? आ चंद्रशेखर जी के लइकवा …का नाम ह, नीरज शेखर से? सबको बोलना रेणुकूट, मिर्जापुर वाले रामदेव जी याद कर रहे थे। फिर राजनीतिक जीवन के बहुत सारा घटना बड़बड़ाये लागस, बेतरतीब तरीका से… मतलब दाल में के भात में आ भात में के दाल में टाइप। कहीं के कहानी कहीं जुड़ जाय। .. दरअसल रेनुकूट से सटल पिपरी पुलिस स्टेशन के पास हमार जे निवास स्थान बा, उहाँ कवनों जमाना में लोहिया जी, जेपी जी, राजनारायण जी, चौधरी चरण सिंह, लालू जी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, जॉर्ज फर्नांडीज़, चंद्रशेखर जी आ राजनाथ जी आदि के आना-जाना आ लिट्टी-मुर्गा पार्टी आम बात रहे।‘’
खैर, अब त ई सब एगो कहानी हो गइल। कहानी त बाबुओजी हो गइलें। ऊ एक मुठ्ठी राख हो गइलें। अंतिम साँस लिहलें कलकता में बाकिर अंतिम संस्कार भइल उनका कर्मभूमि रेनूकूट में। रिहंद बाँध के श्मशान घाट पर 15 अप्रैल के ऊ पंचतत्व में विलीन हो गइलें।
जब हम लइका रहनी त बाबूजी दिन-रात सामाजिक काम में व्यस्त रहत रहलें आ जब बाबूजी बूढ़ भइलें त हम व्यस्त रहे लगनी। त साथ-सानिध्य कमे मिलल। हम अंतिम समय में भी ओतना समय ना दे पवनी बाकिर हमरा संतोष बा कि हमार माई हमेशा बाबूजी के साथे रहल आ छोट भाई धर्मेन्द्र आ उनकर परिवार भा भईया आ उनकर परिवार श्रवण कुमार के तरह उनकर सेवा कइलस। एह मामला में हम भाग के छोट रहनी आ अब त बाबूजी चलिये गइलें।
कबो-कबो हम सोचीलें कि काश ! बाबूजी हमरा में पूरा तरह से उतर जइते। उहे हिम्मत, उहे साहस, उहे ललकार, उहे तेवर, उहे ईमानदारी आ उहे मिजाज …
28 अप्रैल के बाबूजी के ईयाद में एगो श्रद्धांजलि सभा आयोजित भइल। ओह में बाबूजी के इष्ट-मित्र, संघर्ष के दिन के साथी-सहकर्मी आ स्नेही-शुभचिंतक के माध्यम से समाज आ मानवीय मूल्यन के प्रति उनका निष्ठा, प्रतिबद्धता, जीवटता, जीवंतता, बेबाकीपन आ जुझारूपन पर संवाद सुने के मिलल। बहुत सारा नया आ प्रेरक कहानी मालूम भइल जवना के बाबूजी पर केंद्रित किताब में शामिल कइल जाई।
फिलहाल भोजपुरी जंक्शन पत्रिका के माई-बाबूजी विशेषांक में ‘ हमार बाबूजी ‘ स्तम्भ के अंतर्गत बाबूजी के जवन कहानी लिखले रहनी, ऊ श्रद्धांजलि स्वरूप साझा कर रहल बानी।