अवघड़ का संगे एगो रात  (जयशंकर प्रसाद द्विवेदी) 

November 4, 2022
संस्मरण
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

अचके में हमार नींन खुलल अउर हम अपना के अवघड़ बाबा के संगे सड़क पर पवनी। बाबा अपना भारी भरकम आवाज में आदेश सुनवलन, चुपचाप संगे चलत रह बचवा। बाबा आगे-आगे अउर हम उनका पाछे-पाछे चल देहनी। हमरा गाँव के नियरे जंगल बा। बाबा जंगल के ओरी बढ़े लगलन। आउर हमार डरो गवें-गवें बढ़े लागल।

रहल होई १९८६-१९८७ के साल , जब हमरा के एगो अइसन घटना से दुई –चार होखे के परल , जवना के बारे बतावल चाहे सुनवला भर से कूल्हिये रोवाँ भर भरा उठेला। मन अउर दिमाग दुनों अचकचा जाला। आँखी के सोझा सलीमा के रील लेखा कुल्हि चीजु घूम जाला। इहो बूझे मे कि साँचो अइसन कुछो भइल रहे , कि खाली एगो कवनों सपनाने भर रहे । दिमाग पर ज़ोर डाले के परेला । बाक़िर उ घटना खाली सपने भर रहत नु, त आजु ले हमरा के ना किरोदत।

हमरा घर से चार–पाँच घर छोड़ के एगो हमरे गोतिया बंसी के घर बा। ओह घटना से असली जुड़ाव त बंसिये के रहे। हर गाँवन मे चिकारी करे वाले लोगन के फौज होले, हमनियों के इहवाँ बा। कुछ लोग उनकरा के रिगावते रहस, काहे ला कि उनका कवनों संतान ना रहुए । बंशी संतान खाति पूजा फरा अउर झाड़- फूक खूब करस अउर करावस। कबों-कबों ओझो-सोखा के बोलावस, आउर अपना घर में हवन पूजनो करावस। झूठ जाने कि साँच, उनका मन में ई बात रहे कि कवनों ऊपरी-चपरी के चक्कर उनका घरे पर बा। जवन कि उनका बंश बढ़ला से रोकत बाटे, चाहे ई ना चाहत होखे कि उनका घर मे कवनों संतान होखे।

जेठ के महीना रहल होई, जब कुल्हि स्कूल बंद हो जालन स। किसानों लो अपना फ़सली कामन से फारिग रहेला। गाँवन मे गर्मिए मे शादी बिआहो ढेर होला। कुल मिलाके फुरसते फुरसत रहेला। बंशी ओहि लगले एगो अवघड़ तांत्रिक के अपना घरे बोलवलन बाक़िर जब उ तांत्रिक उनका दुआर के निगचा चहुंपल, त कहलस कि दिन में हम रउरा घर में ना जा सकीले, राउर काम हमरा के रात में करे के परी। रात के हम तहार घर मंतर से बान्हब,फेरु घर में जायेम।  तबे कवनों उताजोग हो सकेला।

बंशी के घरे के नीयरे एगो हमरे आउर गोतिया के घर बा, जेकरा के हमनी सभे चाचा बोलीले। उनका घरे पर अवघड़ के रुके क इंतिज़ाम कइल गइल। फेरु त चाचा के घरे ओह अवघड़ बाबा से मिले खाति गाँव भर से लोग जुटे लागल। घंटा दू-घंटा ले ऊ बाबा गाँव के लोगन बात सुनलस आउर कुछ लोगन के समाधान बतवलस, फेरु अपना पूजा मे बइठ गइल । तनी चुकी देर मे संउसी भीड़ छट गइल। सभ केहु अपना अपना घरे चल गइल। चाचा से उ अवघड़ आपन घनिष्ठता बना लीहलस । चाचा जवन हाईस्कूल मे पढ़ावत रहनी, से उहो चाचा के मास्टर कह के बोलावस। कुल जमा ई मानल जा सकत बा कि उ सभके अपना भरम जाल मे फँसा लीहलस। चाचो उनका बाबा कह के बोलावस। चाचा फेरु हमरा के बोलवलन आउर ओह अवघड़ बाबा से हमरो परिचय करा देहलन।

गवें-गवें साँझ हो गइल। हमरो के रात में चाचा के घरे रुके के पड़ गइल। रात में जब सब केहू भोजन क के सूत गइल आ रात के मजग गइल, ओकरा बाद अवघड़ बाबा के करतब चालू भइल। अचके में हमार नींन खुलल अउर हम अपना के अवघड़ बाबा के संगे सड़क पर पवनी। बाबा अपना भारी भरकम आवाज में आदेश सुनवलन, चुपचाप संगे चलत रह बचवा। बाबा आगे-आगे अउर हम उनका पाछे-पाछे चल देहनी। हमरा गाँव के नियरे जंगल बा। बाबा जंगल के ओरी बढ़े लगलन। आउर हमार डरो गवें-गवें बढ़े लागल। बाबा के न जाने कइसे ई बुझा गइल, फेरु उ हमरा के ढांढस ई कह के बंधवलन “ डेरो मत बचवा ” , बस चुपचाप चलत रह । जंगल के रस्ते में एगो भैरव बाबा के मंदिर बाटे, बाबा ओनी सिर झुकावत आगु बढ़लें अउर हम उनका पाछे जंगल मे हेल गइनी। जंगल में करीब 50 डेग भितरी गइला का बाद बाबा फेरु हमरा से कहलन, “ बचवा तू इहवें खड़ा रह। हम ओनिए खाड़ हो गइनी। बाबा एगो झाड़ के नगीचे चहुंप के आपन एगो गोड़ जमीन पर पटकलें , फेरु त अइसन कुछ भइल कि हम खड़े खड़े काँपे लगनी। एगो मुरदा कफन मे लिपटल जमीन के ऊपर आ गइल । बाबा ओहि पर बइठ के थोड़ी देर कवनों मंतर के जाप कइलें । फेरु ओकर कफन हटा के मास खाये लगलन। हमरा डर के मारे सगरी देह कांपत रहे, बाकि उहवाँ चुप-चाप खड़ा रहला के इतर हमरा लगे कवनों दोसर उपाय ना रहे। आपन भोजन पूरा कइला के बाद, बाबा खाड़ होके दोबारा से आपन गोड़ जमीन पर पटकलें, त ऊ मुरदा गाइब हो गइल । फेरु हमरा के लउटे के कहलन, पलक झपकते हमनी के फेरु ओही सड़क पर आ गइनी सन,जहवाँ हमार नींन खुलला के बाद अपना के पावले रहीं । फेरु कब आउर कइसे हम अउर ऊ बाबा आपन-आपन बिछौना पर चहुंप गइनी जा, ई आजु ले हमरा के ना बुझाइल। बाक़िर छत पर जहवाँ हमनी के सुतल रहनी सन, चाचा कपारे हाथ ध के बइठल रहलें । उनकर नींन खुल गइल रहे अउर उहवाँ हमरा आउर बाबा के ना देखि के घबरा गइल रहलें। घर के कुल्हि केवाड़ी खिड़की देख चुकल रहलें, कुल्हि उनका के बंदे भेंटाइल रहे। फेरु बाबा चाचा से कहलें, काहो मास्टर, काहें बइठल बाड़ा ? चाचा घबरा गइलें, आ हमरा ओरी देखत कहलें , ना बाबा हम त ठीक बानी ।

अब तू सभे सो जा लो, हमरा के काम करे के बा, ई क़हत बाबा जमीन पर लेट गइलन, फेरु हमनियों के अपना-अपना बिछौना पर लेट गइनी जा। नींन हमनी के कब अपना कबुजा में ले लीहलस, ई ना बुझाइल। हमनी के सुतला का बाद अवघड़ बाबा बंशी के घरे जा के आपन तांत्रिक क्रिया कलाप कइलें कि ना, हमनी के ना पता चलल । भोरे सबका जगला के बाद अवघड़ बाबा हमनी से कहलें कि राती के ऊ आपन कुल्हि काम क देले बाड़ें। एकरा संगही ऊ इहो बता दीहलें कि बंशी के घरे संतान ना हो सकेले। साँचो अजुओ ले बंशी के संतान सुख ना हो सकल। जब कबों हमरा ई घटना मन पर जाला, हमार रोआं- रोआं काँप उठेला आउर अवघड़ बाबा के चेहरा आँखी में नाच जाला ।

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