जनम-मरन के लोक-विज्ञान

November 4, 2022
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डॉ. शंकर मुनि राय ‘ गड़बड़ ‘

मेहरारू के कलपल सून के पुजारी जी के आँख खुलल आ ऊ इशारा से ओह मेहरारू के अपना भिरी बोलाके कहलन कि खीसा है कि जबले साँस, तब ले आस, निरास होखेके जरुरत नइखे, अबे कुछ नइखे बिगड़ल तोहार, तोहरो गोद भरा जाई. प्रभु कृपा…! अतना सुनके मेहरारू भकुहा गइल कि डगडर बाबू त कहले रहन कि उमिर गुजर गइल, बाकिर पुजारी जी त अगमजानी बुझा तानी!

एगो बुढ़िया रहे, ऊ अपना जवानी में खूब रूपवन्ती रहे, बाकिर बुढ़ारी में ओकर अंग-अंग झूले लागल रहे। एक दिन ऊ अपना सुंदर जवान बेटी के संगे जब मेला घूमत रहे त एगो बूढ़ अदिमी ओकरा के गुण्डेर के देखत रहे…फेर पुछलस कि रउआ फलानी हई का? बुढ़िया कहलस कि हं, का बात बा? तब बुढऊ कहलन कि हम चिलाना हई, हमनी के बचपन में एके संगे खेलत रहिंजा, तूं बहुते सुंदर रहू, तोहार सुनराई का  हो गइल ? बुढ़ी अपना लईकी के ओर  इशारा कइली आ  कहली कि हमार सुनराई देखे के बा त देख ल हमरा बेटी के, हम एकरे में समाइल बानी! कहानी ख़तम!

एगारह अंजुरी नेपाली गांजा, एक चंगेली धतूर आ एक पांजा बेलपत्तर लेके ऊ शिबाला के हाता में पलरल रहे। ओकरा संगे एगो जवान आ एगो अधबूढ़ मेहरारू अंचरा पसार के बइठल रहिसन।  पुजारी जी तीन चीलम गांजा चूस के ओठँघल रहन अपना कुटिया में आ मंदिर के कपाट सरकारी स्कूल नियन ओठँघावल रहे, माने कि भगवान के दर्शन कइल मना रहे। ना रहाइल तब  अधबूढ़ मेहरारू पुजारी जी के गोहरा के घिघियाइल कि बाबाजी मंदिर खोल दिहीं बड़ी दूर से आइल बानी जा, दरबार में अरज लगावेके बा, खानदान डूबे के बिध लागल बा, हमार त बीत गइल बाकिर हमरा सवत के गोद खाली ना जायेके चाही।

हे भोलेनाथ मनसा पूरन करीं, शिवरात के दिन इक्कीस गगरी दूघ चढ़ावे के तैयारी बा !

मेहरारू के कलपल सून के पुजारी जी के आँख खुलल आ ऊ इशारा से ओह मेहरारू के अपना भिरी बोलाके कहलन कि खीसा है कि जबले साँस, तब ले आस, निरास होखेके जरुरत नइखे, अबे कुछ नइखे बिगड़ल तोहार, तोहरो गोद भरा जाई. प्रभु कृपा…! अतना सुनके मेहरारू भकुहा गइल कि डगडर बाबू त कहले रहन कि उमिर गुजर गइल, बाकिर पुजारी जी त अगमजानी बुझा तानी! ऊ बिलख के कहलस कि कइसे बाबाजी!   तब पुजारीजी बतवलन कि कुछ दिन एही शिबाला में रह के भगवान के सेवा करे के परी, घंटी डोलावे के परी, आगे प्रभु कृपा…गोद भर जाई, सूना ना रही ! मेहरारू के लागल कि ऊ अपना गोदी में लइका खेलावतिया….आँख डबडबा गइल ओकर…!

ओने ओकर सवत जब पुजारी के पंडिताई सुनलस तब ओकरा अपना बुढ़िया काकी के दिन इयाद पर गइल। कइसे बेचारो एगो लइका के आस में सात गो लइकी जनमवले रही, बाकिर बेटा-पतोह के मुंह ना लउकल। बेचारो कहवाँ-कहवाँ के भारा ना भखली आ अंत में सब जगह-जायदाद बेटी-दामाद के देके अपने कहाँ त चल गइल रही, केहू देखल ना उनका के, बस सब केहू ईहे कहे कि पुजारिन बन गइली…भगवान के सेवा में गुजार दिहली आपन बुढ़ारी कवनो पुजारी के संगे…! ओकरा बुझाइल कि सपना में बिया, गांव के महटर जी के कनियाँ इयाद परल जवन जवनिये में मुसमात भइल रहे आ फेर बियाह करे के कहलस त गांव भर में छी मानो-छी मानो हो गइल आ कहाला कि बाद में ऊ ‘सोनागाछी’ के कोठइत  बन गइल। ना ना ना…!

शिबाला के कपाट खुल गइल रहे, भगत-भगतिन के आवाजाही शुरू हो गइल रहे, सब केहू संतान खातिर अरज लेके आइल रहे। शिबाला में ‘हरहर बमबम’ के होहकार मचल रहे। माता पार्वती जी के आराम कइल दुलम भइल रहे।  बाकिर भगवान पशुपति नाथ जी के समाधि ना टूटत रहे। ऊ एकदम पत्थर बन के बइठल रहन। मातारानी उनका के झकझोरली आ कहली कि जेकरा के जवन देबे के बा तवन दिहीं, दुआरी पर से मजमा हटाईं….! भगवान के आँख खुलल तब सउँसे दुनिया के मरद-मेहरारू लोग लइका-लइकी खातिर रोवत-बिलखत लउकल। केहू ओझा-गुनी से हारल रहे त केहू बाबाजी के तिकड़माजी से लुटाईल आ केहू डगडर-बैद से…!

मातारानी से ना रहाइल त पुछली कि प्रभु! दुनिया में जनम आ मउवत के मरम सुनाईं..!

तब पशुपति नाथ एगो कहानी सुनवनी—

एगो बुढ़िया रहे, ऊ अपना जवानी में खूब रूपवन्ती रहे, बाकिर बुढ़ारी में ओकर अंग-अंग झूले लागल रहे। एक दिन ऊ अपना सुंदर जवान बेटी के संगे जब मेला घूमत रहे त एगो बूढ़ अदिमी ओकरा के गुण्डेर के देखत रहे…फेर पुछलस कि रउआ फलानी हई का? बुढ़िया कहलस कि हं, का बात बा? तब बुढऊ कहलन कि हम चिलाना हई, हमनी के बचपन में एके संगे खेलत रहिंजा, तूं बहुते सुंदर रहू, तोहार सुनराई का  हो गइल ? बुढ़ी अपना लईकी के ओर  इशारा कइली आ  कहली कि हमार सुनराई देखे के बा त देख ल हमरा बेटी के, हम एकरे में समाइल बानी! कहानी ख़तम!

एकरा बाद भोलेनाथ जी कहानी के मरम समुझावत कहनी कि हे देवी! जनम आ मरन त एगो लगातार चले वाला प्रक्रिया ह, एह में केहू के वश ना चले। ई एगो संयोग ह, कलियुग में विज्ञानी लोग एकरा के एक्स आ वाई के संयोग कहेला। एकरे से संतान पैदा होली। लोकवेद के कहनाम बा कि एह दुनिया से अलगो एगो लोक बा, जवना के विज्ञान बहुते विकसित बा। धरती के सब जिया-जंत ओह विकसित लोक के मशीनरी ह, कम्प्यूटर नियन काम करता आ धीरे-धीरे घसेटात-घसेटात एक दिन खिया जात बा।

बुढ़िया के कहानी पर ध्यान द, सामाजिक जीवन में एकरे के जिजीविषा कहल गइल बा। बाप मतारी के परान अपना बेटा-बेटी में बसेला। ऊ मरे ना, कहेला कि इहे लोग हमार परान ह ….करेजा ह ! एही से कहल जाला कि संतान जरुरी ह ! इहे जीवन के पुरुषार्थ ह, एकरा बिना जीवन अधूरा मानल गइल बा।

गीता में एकरे के जीवन के अमरता बतावल गइल बा।  कहल गइल बा कि–नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः….! आत्मा अजर-अमर होला….अविनासी होला…एकरा जरे-गले के नइखे! जइसे अदिमी पुरान कपड़ा छोड़ के नया पहिर लेला, ओसही आत्मा अपना पुरान देह के छोड़ के नया धारण कर लेला।

भौतिक विज्ञान में एकरे के ऊर्जा के बदलाव कहल गइल बा। माने ऊर्जा के विनास ना होखेला, ओकर रूप बदल जाला। सौर ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा सब एकर अलग-अलग रूप ह।

ऊर्जा के एही रूप के डार्विन विकासवाद कहले बाड़न। ऊर्जा के जब रूप बदलेला तब ओकर स्वरुप नया हो जाला। अइसही अदमी आपन पुरान जीवन छोड़त-छोड़त एह रूप में आइल बा।

एही बात के पुराण में अवतार के रूप में कहल गइल बा। जीव के जनम समुंदर में भइल पहिले।  काहे कि ओहिजा सब कुछ रहे….छिति..जल..पावक.. गगन आ समीर भी। बाकिर जीव के विकास लगातार होत गइल..रुकल ना..! चलले के जीवन आ रुकला के मउअत कहल गइल बा।  त जीवन के विकास क्रम छोट से बढ़ होत गइल…अंडा..केचुआ…बेंग …जलपरी… से पहिला अवतार मत्स्य अवतार फेर जल से बहरी निकलल जीव आ कछुआ अवतार हो गइल…बराह….नरसिंह होते-होते रामावतार तक..!

कहानी सुनते-सुनते मातारानी के संगे सब भगत-भगतिन लोग अंतर्ध्यान हो गइल!

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