जनम आ मरन : भावुक जी के संपादकीय दृष्टि (डॉ० ब्रज भूषण मिश्र)

November 4, 2022
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डॉ० ब्रज भूषण मिश्र

हाले फिलहाल ‘ भोजपुरी जंक्शन ‘ के संपादक मनोज भावुक के पिताजी के निधन भइल। सोभाविक रहे कि भावुक जी पिता के छतर छाँह उठ गइला से भाव विह्वल हो गइलन। उनकर पिताजी अइसन ओइसन बेकती ना रहीं, बलुक मजदूर नेता के रूप में नामवर रहीं रामदेव सिंह जी। भावुक जी के मन मथे लागल कि आखिर कवन अइसन ऊ तत्व बा जवना से मनई जनम लेवेला, ओकर काया आकार लेवेला, ओकर बुद्धि ज्ञान बढ़ेला, नीमन बेजाय करम करेला आ ऊ कवन तत्व बा कि ऊ निकल जाला त ओकर काया निष्प्राण हो जाला, महक उठेला। जरवला दफनवला पर आह उह तक ना करे। … आ एह संबंध में शास्त्र, दर्शन वगैरह का कहत बा, ओकर जानकारी लेवेला ऊ एह विशेषांक के परिकल्पना कइलन। ऊ शास्त्रज्ञ लोग से, दार्शनिक लोग से, विचारक लोग से एह नेवरतक आलेख के आग्रह कइलें। बाकिर एह विषय के ओर भावुक जी के धेयान एकवैगे नइखे गइल। ई विषय कवनो ना कवनो रूप में उनका के हरमेस मथत रहल बा। भोजपुरी जंक्शन के अधिकांश संपादकीय एह बात के प्रमाण बा। भावुक जी के आध्यात्मिक सोच आ जीवन दर्शन समय-समय पर लिखाइल उनका संपादकीय में परिलक्षित होत रहल बा।

भावुक जी अपना संपादकीय के शीर्षक देवेलन, मथेला के साथ प्रस्तुत करेलन। ओही मथेला के सहारे उनका संपादकीय में जवन जीवन मरन के ऊपर विचार आइल बा, हम इहाँ धेयान दिआवे के चाहत बानी। एह मरनशील दुनिया में रउरा सुख के बाँटेवाला ढेर लोग मिल जाला, बाकिर दुख के बाँटेवाला ना मिले। ना मिलेला ओइसन कान्ह, जेकरा ऊपर आपन माथ टिका के रोइयो सकीं। मनोज भावुक         ‘ जिंदगी जंग ह, बोझ ना ‘ शीर्षक से अपना एक संपादकीय में लिखत बाड़न- ” सुख के महफ़िल से इतर दुख के साथी चीन्हे के पड़ी। अइसन साथी जेकरा सामने बेफिक्र होके दिल खोलल जा सके। जेकरा कान्हा प मूड़ी ध के फूट-फूट के रोअल जा सके। जे बेकहले राउर दुख बूझे आ अपना जोर भर मदद करे। अइसन साथी मिलल मुश्किल बा। बाकिर दोसरा खातिर अइसन साथी त बनले जा सकत बा। ई अपना अख्तियार में बा। “

भावुक जी के एगो संपादकीय बा – ‘ खुद के लवना के तरह रोज जरावत बानी’ …  जवना में कोरोनाकाल के त्रासद स्थिति के मार्मिक वर्णन बा। ई काल अइसन रहल कि कुछ लोग बेमारी से मरल, कुछ लोग बेमारी के हदसे मर गइल,  कुछ लोग के बेमारी के नाम पर मार दिहल गइल,  कुछ लोग के सिस्टम मार दिहलस। रोजी रोजगार छुटला से कुछ लोग भूखे मर गइल। भावुक जी लिखत बाड़न –      ” दरअसल दिल आ दिमाग के रास्ता पेट से होके जाला। पेट में आग लागी त ओकर लपट दिल आ दिमाग तक जइबे करी। जब लपट दिल आ दिमाग तक जाई त ओकर असर परिसंचरण तंत्र आ तंत्रिका तंत्र यानी कि दिल के धड़कन आ दिमाग के फड़कन पर पड़बे करी। बीपी बढ़ी आ दिमाग खराब होई। ख़राब दिमाग से सही निर्णय होला ना। आदमी अंड-बंड करे लागेला। त सउँसे देश में अंड-बंड के स्थिति उपजे के ढेर संभावना बा। ई बहुत बड़ त्रासदी बा जवन कोरोना लेके आइल बा। कोरोना खाली बेमारी ना जिनगी के राहु-काल बा। “

जीवन बा त ओह में तरह तरह के समस्या बा, अझुरहट बा, जवन मनई के जीवन में तनाव पैदा करेला। ई स्थिति शांति से मरहूँ ना देवे। बाकिर ई बात ना बा कि एकर निदान नइखे। निदान बा प्रेम। ईश्वरीय सत्ता बा जवना से सब संचालित होत बा। देर सबेर सबकर न्याय बा आ एह ईश्वरीय न्याय से डरे के चाहीं। भावुक जी ‘ प्रेमे इलाज बा तनाव के मथेला से एह पर विचार करत लिखले बाड़न –     ” राक्षसन के काम त दोसरा के तकलीफ में अट्टहास कइल ह। पीड़ित आदमी के भी एह सच्चाई के स्वीकार कर लेवे के चाहीं। एहू बात के पक्का यकीन होखे के चाहीं कि जे दोसरा खातिर गड्ढा खोदेला, ईश्वर ओकरा खातिर गड्ढा खोद देलें। ईश्वर के सत्ता पर भरोसा करे के चाहीं। एह से तनाव कम होई। हर युग में एह दुनिया में अच्छा आ बुरा आदमी रहल बा। एह से समस्या त रही। हमेशा रही, अलग-अलग रूप में। ओकर असर रउरा तन आ मन पर कम से कम पड़े, ओकरा खातिर अपना के अंदर से मजबूत करे के पड़ी। साधना करे के पड़ी। फॉर्गेट एंड फॉर्गिव के फार्मूला अपनावहीं के पड़ी। अपना दिमाग के प्यार के कटोरा बनावे के पड़ी। ओह में नफरत टिकी ना। “

जे जनम लिहले बा, एक दिन मरबे करी। जहिया ई जीवन मृत्यु के राजा यमराज के हाथ में चल जाई, ओह दिन अपना हाथ में का बाची। एह से जब तक ई जीवन बा, अपना नियंत्रण में रहे। एही से एह जीवन के ठीक राखेला पूजा, जप-तप के विधान बा। प्रकृति आ परमेश्वर से जुड़े पर जोर बा। मन के सकारात्मक ऊर्जा से भरल राखे के चाहीं। ‘ मन के रिचार्ज करीं ‘ शीर्षक वाला संपादकीय में एही बात पर विचार कइले बाड़न भावुक जी – ” प्रार्थना मन के दिया के जरावे खातिर होला। मन के शोधन खातिर होला। मन के रिचार्ज करे खातिर होला। कठिन से कठिन समय में भी सकारात्मक रहे खातिर होला, संभावना खोजे खातिर होला। प्राण यमराज के हाथ में जाये ओकरा पहिले तक अपना हाथ में ठीक से रहे के चाहीं। ठीक से माने ठीक से। अपना नियंत्रण में। एही खातिर साधना कइल जाला। परमात्मा भा प्रकृति से जुड़ल जाला। “

जीवन एगो कला ह। एह जिनगी के जीए के कला जाने के चाहीं। आपन जीए के तरीका अइसन रहे, जवना से कवनो समस्या पैदा मत होखे। हर संभावना के एह जीवन में ढूँढ़ल जा सकत बा। ‘ जिनगी संभावना ह, समस्या ना’ मथेला वाला संपादकीय में मनोज भावुक इहे बतावे के कोशिश कइले बाड़न –   ” काल्ह ई हो सकेला कि रउरा दिमाग के सब इन्फॉर्मेशन कवनो चीप में लेके दोसरा के दिमाग में ट्रांसफर कर दिहल जाय। एह से इन्फॉर्मेशन इकट्ठा कइल कवनों बड़का बात नइखे। ई त रटंतु विद्या वाली बात भइल। एह घरी के पढ़ाई में इहे चलता। रट के बढ़िया से उलटी क देला के हीं मार्क्स बा। जबकि जरूरी बा न्यूटन लेखां सोचल। आँख खोल के देखल, दिमाग खोल के जीयल। दुनिया में जीयल, अपने आप में ना। जादा इन्फॉर्मेशन इकठ्ठा कइला से भा अलूल-जलूल दिमाग में भरला से आदमी खुदे समस्या बन जाला जबकि आदमी समाधान ह। ब्रम्हांड में बहुत कुछ बा। ओकरा खातिर अपना दिमाग में बनावल दुनिया से बहरी निकल के पेड़-पौधा, चिरई-चुरुङ, झींगुर-मांगुर, तितली-भौंरा, बदरी-बूनी सब के सुने-देखे के पड़ी। तसलवा तोर कि मोर से बहरी निकले के पड़ी। जवन रउरा फेंकब उहे रउरा प गिरी आ गिरी त पहाड़ बन के गिरी सूद समेत। एह से अपना आ दोसरो के उल्लास खातिर जीहीं, सचेतन होके जीहीं, समभाव होके जीहीं, खोज खातिर जीहींपल-पल जीहीं, जी भर के जीहीं, जियला लेखां जीहीं, जीहीं अइसे कि मुअला के बादो जीहीं। “

आज के मनई बुद्धि से कम काम ले रहल बा, युद्ध पर अमादा रहत बा। ई युद्ध पइसा आ सेक्स खातिर कइल जा रहल बा। बाकिर, एकर जरूरत त एगो सीमा तक बा। युद्ध समाधान रहित त सम्राट अशोक का बुद्ध के शरण में ना जाए के पड़ित। ‘ युद्ध ना बुद्ध के दरकार बा ‘  शीर्षक संपादकीय में भावुक जी इहे फरिअवले बाड़न –  ” हम ई नइखीं कहत कि पइसा भा सेक्स जरूरी नइखे। अरे भाई पसा ना रही त जियले मुश्किल हो जाई। सेक्स ना रही त सृजन भा यौवन सुख कइसे प्राप्त होई। ई त जरूरिए बा। एह में कहाँ कवनों दिक्कत बा। बाकिर ई जहां रहे के चाहीं, ओही जी रहे त ठीक बा। पइसा पॉकेट में रहे, सेक्स देह में रहे त समय आ जरूरत पर सुख दी, कामे आई बाकिर ई कपार पर चढ़ जाई त दुख दी, जेल भेजवाई। ‘’

आगे भावुक कहत बाड़न ‘’ जानवर के पास बुद्धि नइखे। एह से ओकरा टेन्शनो नइखे। ओकर संघर्ष खाली प्रजनन आ भोजन भर बा। ओकरा ना त घर आ गाड़ी के ई.एम.आई. देवे के बा, ना यूक्रेन, पाकिस्तान से लड़े के बा। लड़ाई अंतिम समाधान नइखे। रहित त सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के प्रचारक अशोक ना बनितन। हर युग में युद्ध भइल बा बाकिर अंततः प्रेम के प्रकट होखहीं के पड़ल बा। “

अपना एगो अउर संपादकीय ‘ जिंदगी युद्ध ना उत्सव ह ‘ में जिंदगी में युद्ध से बचे पर जोर देले बाड़न। ऊ जे लिखले बाड़न, विचार जोग बा – ” केहू खुदे लड़ जाता। केहू केहू के ललकरला से लड़ जाता। पगलेटन के कमी थोड़े बा, अपनो देश में बाड़न स। हर गली-मोहल्ला में। भोजपुरियो समाज में, अफरात। केहू के नीचा देखावे खातिर केतनो नीचे गिर जाय खातिर गिरोह बान्ह के तइयार। आ रउरा साथे समस्या ई बा कि रउरा रचब कि इन्हनी से अझुराइब! आपने एगो दोहा मन परत बा –

भावुक छोटे उम्र में एतना फइलल नाँव

कुकुरो पीछे पड़ गइल, कउओ कइलस काँव…

अच्छा त भाई, इहो सोहागभाग! के कही कि कुकुरन के पाछा धाईं, कउअन के पाछा उधियाईं, बढ़िया बा कि आपने राह धइले जाईं! “

 

दुनिया में अइसन लेखक भइल बाड़ें,  जे दिल दिमाग में हर हमेश खातिर अंकित हो जाला। ऊ एह पृष्ठभूमि पर ई बात लिखत बाड़न कि झूठ के हल्ला उठा के कुछ लोग केहू के डिफेम करे के चाहेला, कुछ समय खातिर ओकरा जीवन में अन्हार फइलावेला, जवन ओकरा खातिर मरन समान होला। बाकिर, सत्य देर सवेर हाजिर हो के ओह अन्हार के छाँट देवेला। ‘लेखक ऊ जे दिल में छप जाय ‘ शीर्षक संपादकीय में जीवन में सत्य के स्थान के बारे में ऊ लिखत बाड़न –  ” हालाँकि एने एगो अउरी फैशन बढ़ रहल बा। कुछ लोग गिरोह बनवले बा अपना टीम में शामिल बाउरो लोगन के ब्रांडिंग खातिर आ टीम से बहरी के बढ़ियों आदमी के निंदा भा डिफेमेशन खातिर। साहित्य से लेके सियासत तक ई खूब चलत बा। ट्रोलर ग्रुप आ ट्रोल कंपनी सक्रिय बा। फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स में एगो डायलॉग बा, अउर बहुत पहिले प्रसिद्ध अमेरिकन लेखक मार्क ट्वेन भी कहले बाड़ें कि  साँच जब ले जूता पहिरेला, झूठ सँउसे दुनिया घूम के आ जाला ‘… लेकिन सत्यमेव जयते के सिद्धांत त सदियन में नू बनल बा। ई झूठ कइसे हो सकेला। अंत में सत्य, कुछ अउरो आभा, अउरो प्रभा, अउरो तेज के साथे अपीयर होइये जाला।”

जनम, आ उहो मानव जीवन दुर्लभ ह। एगो श्लोक में कहल बा- ” नरत्वम् दुर्लभम् लोके “। एह से जब ई दुर्लभ मानव जीवन मिलल बा, त मरनो निश्चिते बा। एही से एह मानव जीवन के अपना करम से, अपना किरती से अइसन बना जाईं कि मरला के बादो अमर रहीं, लोग गुनगान करे। एही बात के भावुक जी अपना संपादकीय- ‘ गोदी से लेके डोली, डोली से लेके अर्थी ‘ में बुझावे के कोशिश कइले बाड़न – ” बाकिर सोचे के बात बा कि राम बन ना जइतन त ऊ राजकुमार राम भा राजा राम त रहितन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ना होखे पइतन। सोचे के बात बा कि जन्म पर त राउर अधिकार नइखे बाकिर कर्म पर त बड़ले बा। गरीबी में पैदा भइला पर राउर वश नइखे पर गरीबे रह के मुअला में राउर दोष त बड़ले बा। कहाँ से शुरू भइल बानी, ई बड़ बात नइखे, अंत कइसन होता भा अंत के बादो लोग के दिल में रउरा केतना आ कइसे जगह बनावत बानी, ई महत्वपूर्ण बा। कर्म श्रेष्ठ रहला पर जन्मतिथि के साथे पुण्यतिथि के भी सेलिब्रेशन शुरू हो जाला ना त जीयत रहला पर त कुकुर भूँकत बाड़न स, मुअला पर के पूछी। ”

आखिर एह मानव जीवन के कइसन बनावे के चाहीं, कइसे जीए के चाहीं कि राउर कीर्ति गान गावल जाए। जनम से मरन आ ओकरा बाद तक के जतरा के सफल कइसे बनावल जाए, अपना संपादकीय के जरिये भावुक जी नीके बतवले बाड़न।

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