रिवाज
अखिलेश्वर मिश्र
विश्व के कई देशन में मृत्यु के बाद संस्कार के अजीबोगरीब रिवाज प्रचलित बा। दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील, जवन विश्व के सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश मानल जाला, में ‘यानोमामी’ नाम के जनजाति बा। ये लोग पर आधुनिकता के दूर-दूर तक असर नइखे। इहाँ मरेवाला आदमी के बड़ा अजीब प्रकार से अंतिम संस्कार कइल जाला। इहाँ के प्रचलित संस्कार विधि पर जल्दी विश्वास ना होई। इहाँ घर-परिवार के लोग मृतक के शरीर के सामूहिक भक्षण करेला। इहाँ मृतक के जलल राख के सूप बनाके पीए के रिवाज बा। अइसन मान्यता बा कि ये कइला से परिवार के सदस्य लोग के शांति मिलेला।
चीन में जन्म देवे वाली माँ के तीस दिन ले लोग से दूर राखे के प्रथा बा। ये समय में ऊ केहू से नइखी मिल सकत। ऊ ना कच्चा फल खा सकेली आ ना नहा सकेली। जापान में शिशु के गर्भनाल सम्हाल के रखे के प्रथा बा। चुकी नाल माँ से जुड़ल रहेला, एसे ओके सम्मान मिले के चाहीं, अइसन मान्यता बा।
यू.के. के वेल्स में मृतक के दाँत तूर के हमेशा साथ रखे के प्रचलन बा। अंतिम संस्कार के पहिले मृतक के दाँत तूर के मृतक के प्रिय आ करीबी लोग में बाँट दिहल जाला।
मृतक के पास पहिले से जमा दाँत के भी उनका साथ ही दाह संस्कार कर दिहल जाला।
गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लिखले बानीं- सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहउ मुनिनाथ। / हानि लाभ जीवन मरण, जस अपजस विधि हाथ।। सही में ई जन्म-मृत्यु आदमी के हाथ के चीज नइखे। वास्तव में जन्म-मृत्यु के खेल बड़ा अजीब बा। ई बड़ा गूढ़ आ रहस्यमय विषय बा। विज्ञान चाहे केतनो तरक्की क ले, जन्म-मरण पर विजय बड़ा मुश्किल बा।
जहाँ जन्म बा उहाँ मृत्यु भी सत्य बा। जन्म-मृत्यु एक दोसरा से जुड़ल बा। जन्म होई त प्राणी मरी, ई तय बा। जब शरीर से प्राणवायु निकल जाला, देह के गतिविधि बंद हो जाला। आत्मा के निकलला के बाद शरीर अर्थहीन हो जाला। ई सत्य बा कि आत्मा के नाश ना होला। ऊ कबो ना मरे। ऊ एक देह से दोसर देह धारण कर लेला। इहो कहल जाला कि मनुष्य के मरला पर ओकर आत्मा मनुष्य के अपना कर्तव्य के अनुसार दोसर जीव जंतु में प्रवेश पा जाला। ये विषय पर विद्वतजन के अलग-अलग मत बा।
आईं हमनी अपना विषय वस्तु पर विचार करीं। जन्म-मृत्यु पर जगह, समाज आ परिवेश के अनुसार तरह-तरह के लोकाचार, विचार आ रिवाज बा। हमनी इहाँ गर्भवती महिला के गर्भ धारण कइला के बाद कई तरह के सामाजिक बंधन से गुजरे के परेला। जइसे गर्भावस्था में महिला अपना ससुराल से मायके नइखे जा सकत। चंद्रग्रहण आ सूर्यग्रहण के समय गर्भवती महिला के जागल रहे के रिवाज बा। जच्चा-बच्चा के सुरक्षा खातिर महिला के शयन कक्ष के कोना पर कंडा (इकड़ी) के खड़ा करके रखे के प्रथा बा। पैदाइसी के बाद अलग-अलग रीति रिवाज के अनुसार महिला पर सूतक नियम लागू होला। अर्थात ऊ सूतक काल में अशुद्ध मानल जाली। सूतक से मुक्ति खातिर कुछ सामाजिक संस्कार के बाद ऊ सामान्य जीवन व्यतीत करे के हकदार हो जाली।
राजस्थान में त गर्भ धारण के समय से ही तरह-तरह के संस्कार शुरू हो जाला। इहाँ गर्भ के सुरक्षा खातिर देवी-देवता के पूजापाठ होला। जन्म के बाद लिंग भेद के अनुसार अलग-अलग संस्कार के रिवाज बा।
हिलाचल प्रदेश में गर्भवती महिला के साथे उनका पति के भी कुछ सामाजिक बन्धन में रहे के होला। पत्नी के गर्भावस्था में पति कवनो जीव हत्या नइखन कर सकत। गर्भवती महिला के नदी, तालाब, वन, निर्जन स्थान आ चाहे प्रज्वलित आग के स्थान पर जाए से मनाही रहेला। ऊ मरल आदमी के चेहरा नइखी देख सकत। उनका सूर्यग्रहण आ चन्द्रग्रहण देखे से भी परहेज करे के होला। परिवार के कवनो भी सदस्य दस दिन तक कवनो भी पूजापाठ में सहभागिता नइखे कर सकत। संतान के सुरक्षा के लिहाज से छव महीना से एक साल तक संतान के घर से दूर कवनो जगे आ छायादार गाछ बिरिछ के नजदीक नइखे ले जाइल जा सकत। इहाँ दस महीना पर बच्चा के चानी के रुपया से खीर चखावे के रिवाज बा। तीन से पाँच, चाहे सात बरिस पर कुलदेवी के स्थान पर बच्चा के, मामा के गोद में रख के मुंडन के प्रथा बा।
विश्व के दोसरा देशन में भी जन्म से जुड़ल तरह-तरह के रीति रिवाज बा।
चीन में जन्म देवे वाली माँ के तीस दिन ले लोग से दूर राखे के प्रथा बा। ये समय में ऊ केहू से नइखी मिल सकत। ऊ ना कच्चा फल खा सकेली आ ना नहा सकेली।
जापान में शिशु के गर्भनाल सम्हाल के रखे के प्रथा बा। चुकी नाल माँ से जुड़ल रहेला, एसे ओके सम्मान मिले के चाहीं, अइसन मान्यता बा।
अफ्रीकी देश नाइजीरिया में नाल के जुड़वा भाई/बहिन माने के प्रथा बा आ एही से उहाँ गर्भनाल के दफन के समय शोक मनावल जाला।
इंडोनेशिया के बाली में त बच्चन के तीन महीना तक जमीन पर ना रखल जाला। महतारी अपना गोद मे ही रखेली। अइसन मानल जाला कि गोद में रहे वाला शिशु के सम्पर्क दोसरा दुनिया से बन जाला।
दक्षिण पश्चिम अमेरिका में बच्चा के पहिला हँसी बहुत महत्वपूर्ण मानल जाला। कहल जाला कि पहिलका हँसी पर शिशु दोसरा दुनिया से जुड़ जाला।
दक्षिण-पूर्व यूरोप के देश बुल्गारिया में त शिशु के बदसूरत बतावे के रिवाज बा। इहाँ अइसन सोंच बा कि बच्चा के बड़ाई पर शैतानी ताकत तारीफ सुन के बच्चन के तरफ आकर्षित हो जाला आ ऊ बच्चा खातिर अहितकर हो सकेला।
वियतनाम में भारतीय रिवाज के जइसन सासू माँ बच्चा के देखरेख करे खातिर आगे आ जाली आ चच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देली।
जन्म के संबंध में तिब्बती प्रथा भी बड़ा रोचक बा। इहाँ जन्म के समय बच्चा के सुरक्षा खातिर घर के बाहर दू गो तख्ती (बोर्ड) लटका दिहल जाला। एक तख्ती पर लिखल विचार बच्चा के शैतानी शक्ति से बचावेला त दोसर तख्ती पर लिखल विचार अच्छा आत्मा के बच्चा के रक्षा खातिर आमंत्रित करेला।
यूरोप के सबसे पश्चिमी छोर पर बसल आयरलैंड में भी गजब के प्रथा बा। इहाँ शादी के केक के एक भाग बच्चा के जन्म के बाद खुशी मनावे खातिर सुरक्षित रख दिहल जाला। एके ‘फर्टिलिटी ह्विस्की केक’ कहल जाला। बच्चा के नामाकरण के समय ये केक के ऊपरी सतह के बच्चा पर बारिश करावल जाला। अइसन मानल जाला कि जन्म के समय ये प्रकार के रीति रिवाज बच्चा के दीर्घायु बनावेला आ कवनो भी परेशानी से दूर रखेला।
आईं अब मृत्यु के बाद के सामाजिक रीति-रिवाज पर विचार करीं। अपना इहाँ हिन्दू के लाश जलावे आ मुस्लिम के दफनावे के प्रथा बा। इहाँ हिन्दू समाज में मरणोपरांत दाह-संस्कार के तरह-तरह के रिवाज बा। सामान्य रूप से मरला के बाद मृत शरीर के घर से बाहर कर दिहल जाला। शव के पास आग जला दिहल जाला, तुलसी पौधा रख दिहल जाला आ सुगन्धित अगरबत्ती जला दिहल जाला। कहीं मुखाग्नि से पहिले त कहीं बाद में मुखाग्नि देवे वाला व्यक्ति के मुंडन भी होला। हिन्दू समाज में जेष्ठ पुत्र ही मुखाग्नि देवे के हकदार मानल जाला। सामान्य रूप से एक वर्ग विशेष के द्वारा दिहल अग्नि से ही मुखाग्नि के प्रचलन बा। परिवार के पुरुष वर्ग के, सामान्यतः10वाँ दिन, मुंडन होला आ 12वाँ दिन विधिवत अंतिम श्राद्ध संस्कार कइल जाला। ये 12 दिन के अवधि में परिवार के केहू भी सदस्य कवनो धार्मिक आ शुभ समारोह में सहभागिता देवे के अधिकारी ना होखेला।
विश्व के कई देशन में मृत्यु के बाद संस्कार के अजीबोगरीब रिवाज प्रचलित बा। दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील, जवन विश्व के सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश मानल जाला, में ‘यानोमामी’ नाम के जनजाति बा। ये लोग पर आधुनिकता के दूर-दूर तक असर नइखे। इहाँ मरेवाला आदमी के बड़ा अजीब प्रकार से अंतिम संस्कार कइल जाला। इहाँ के प्रचलित संस्कार विधि पर जल्दी विश्वास ना होई। इहाँ घर-परिवार के लोग मृतक के शरीर के सामूहिक भक्षण करेला। इहाँ मृतक के जलल राख के सूप बनाके पीए के रिवाज बा। अइसन मान्यता बा कि ये कइला से परिवार के सदस्य लोग के शांति मिलेला। ई लोग मौत पर गीत गावेला आ रो-रो के संवेदना प्रकट करेला।
इंडोनेशिया के ‘दानी’ ट्राइब के लोग परिजन के मृत्यु पर लाश के दफन ना करेला। ऊ लोग अधजला लाश के घर पर लाके कुछ प्रक्रिया के बाद ममी के तरह सुरक्षित रख देला। इहाँ पुरुष के मौत पर परिवार के महिला लोग के कष्ट के सामना करेके परेला। इहाँ पुरूष के मौत पर परिवार के महिला लोग के अंगुली काटे के प्रचलन बा। हालांकि अब ये प्रथा पर प्रतिबंध बा, फिर भी ई प्रथा अभी जारी बा।
दक्षिणी कोरिया में लाल कलम के प्रयोग केहू के मरले पर कइल जाला। इहाँ लोग लाल पेन के दुर्भाग्य के निशानी मानेला। एही से इहाँ जीवित व्यक्ति के बारे में लाल पेन से ना लिखल जाला।
चीन आ फिलीपींस में बहुत जगह शव के ताबूत में रख के ऊँचा स्थान पर लटका देवे के प्रथा बा। इहाँ के लोग के ई मान्यता बा कि अइसन कइला से मृतात्मा सीधा स्वर्ग पहुँच जाला।
इंडोनेशिया के बाली में मृत व्यक्ति के जीवित माने के प्रथा बा। एही से इहाँ केहू के मरला पर लोर बहावे से मनाही बा।
दक्षिणी मैक्सिको के मायन में अधिकतर समुदाय में मृतक के घर में ही दफनावे के प्रथा बा। एकरा पीछे गरीबी कारण बतावल जाला। वियतनाम में मृतक के बेटा-बेटी मृतक के शरीर से कपड़ा उतार के हवा में लहरावेला आ मृतात्मा के पुकारेला। मान्यता बा कि अइसन कइला से आत्मा मृतक के देह में पुनः प्रवेश क जाला।
तिब्बती बौद्ध समुदाय में शव के टुकड़ा-टुकड़ा क के गिद्ध के खिला देवे के प्रथा बा। अइसन मानल जाला कि गिद्ध अपना उड़ान के साथे मृतक के आत्मा के स्वर्ग पहुँचा दी।
यू.के. के वेल्स में मृतक के दाँत तूर के हमेशा साथ रखे के प्रचलन बा। अंतिम संस्कार के पहिले मृतक के दाँत तूर के मृतक के प्रिय आ करीबी लोग में बाँट दिहल जाला।
मृतक के पास पहिले से जमा दाँत के भी उनका साथ ही दाह संस्कार कर दिहल जाला।
देश-विदेश आ अनेकानेक जाति-उपजाति में तरह-तरह के अजीबोगरीब रीति-रिवाज आ प्रचलन भरल परल बा। बहुत अइसन परंपरा बा जवना के कवनो तरह से जायज भा तार्किक नइखे ठहरावल जा सकत। आज के आधुनिक समाज बहुत से प्रचलन के तर्क के कसौटी पर कसे के चाह रहल बा। समाज में समयानुसार परिवर्तन होत रहेला। बात कवनो आ कहीं के भी होखे, निराधार विचार आ परंपरा से समाज के मुक्त कइल बहुत जरूरी बा।