आवरण कथा
मार्कण्डेय शारदेय
सृष्टि के संरचना अतना वैज्ञानिक आ व्यावहारिक बा कि पारिस्थितिकी के बदौलत हर उपज आपन पहचान कराके, कुछ लेके, कुछ देके भावी पीढ़ी खातिर रास्ता स्वतः छोड़ देला। जानि के त केहू ना मरे, बाकिर काल अपना सफाई अभियान में ले लेला। एही में कवनो-कवनो गर्भस्थ, शिशु, पौगण्ड, किशोर, युवा आ प्रौढ़ो कालकवलित हो जालें। झाड़ू लगावत कबो-कबो कीमती सामानो बहरा जाला।
टेढ़ा के सोझा करे से ओझा कहलाय। मनुष्य में बड़ क्षमता हिय∙। ई अइसन जीव ह∙ जे हर रहस्य के उघारि के रख देबेला। हमनी के पूर्वज लोगो एह आदि-अन्त के पाटनि में पिसाइल बाड़ें। जीवन-रहस्य प∙ खूब चिन्तन-मनन कइले बाड़ें। तब जाके दूगो नतीजा मिलल- पुनर्जन्म आ कर्मसिद्धान्त। ई दोनो भारत के लोगन के आपन खोज ह∙। हमनी के ऋषि-मुनियन के देन ह∙।
एके समय दूगो बच्चा जनमल। एगो सम्पन्न परिवार में आ एगो विपन्न परिवार में। पुनः एगो सर्वांग-पूर्ण, स्वस्थ आ एगो हीनांग आ रुग्ण। एह बच्चन के कवन पाप-पुण्य? कवन कर्मवीरता आ कवन कर्मकृपणता कहाई? कवना क्रिया के ई प्रतिक्रिया हिय? आखिर अम्बानी आ भिखारी किहाँ दू जीव एके समय अइलें, त∙ परिणाम भिन्न काहें पइलें? यदि पूर्वकृत्य से ना जोड़बि त∙ का उत्तर होई राउर? एसे स्पष्ट बा जे दूनो जीव अपना पूर्वजन्म के कृत्य के सजा-मजा पावे आइल बाड़ें।
गीता में भगवान कह∙ताड़ें- ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ध्रुवं जन्म मृतस्य च’ (2.27)। अर्थात्; जेकर जन्म भइल, ओकर मृत्यु होखबे करी। होखबे करी; माने जरूरे होई। केहू के रोकले ना त∙ रुकल बा आ ना रुकी। जीव-जन्तु, फेड़-रुख के के बात करो, हिमालयो एक-ना-एक दिन ध्वस्त होई। सृष्टिकर्ता ब्रह्मो जी के काल निर्धारित बा। माने; उनुको कबो जाहीं के बा। फिर; हमनी का कवना खेत के मुरई बानी जा!
जनम के पड़ावे मरण ह∙। सृष्टि के परिणामे संहार ह∙। नवीनता खातिर जरूरियो बा। खेत के एक फसल कटाई, तबे दोसर रोपाई। अगर जनमे होइत आ मरण रुक जाइत त∙ सोंची; आदमी प∙ आदमी लदा जाइत कि ना! तबो ना होखित। केहू का खाइत-पीहित! आजु त∙ अतने जनसंख्या प∙ धरती कँहर∙ताड़ी। कतना मन्वन्तर आ चतुर्युग बीतल, अगर सभ लोग जीयत रहित त∙ कहँवा रहित, का खाइत? खाये खातिर ना त∙ साग-सब्जी, कन्द-मूल, अन्न-फले बचितें आ ना जीवे-जन्तु। अइसे में शायद जइसे मौसम में पेड़ के फरल फर तूर लियाला, भेड़ के बार उतार लियाला, ओही लेखा आदमी आदमी के मांस उतार-उतार के खाइत।
खैर; सृष्टि के संरचना अतना वैज्ञानिक आ व्यावहारिक बा कि पारिस्थितिकी के बदौलत हर उपज आपन पहचान कराके, कुछ लेके, कुछ देके भावी पीढ़ी खातिर रास्ता स्वतः छोड़ देला। जानि के त केहू ना मरे, बाकिर काल अपना सफाई अभियान में ले लेला। एही में कवनो-कवनो गर्भस्थ, शिशु, पौगण्ड, किशोर, युवा आ प्रौढ़ो कालकवलित हो जालें। झाड़ू लगावत कबो-कबो कीमती सामानो बहरा जाला।
जनम के साथे मौअत त∙ जुड़ले बा, बाकिर का मृत्यु के बाद जनमो होला? अगर होला त∙ मोक्ष का ह∙? मोक्ष के मतलब त∙ जन्म-मरण के विरामे नू ह∙ ? त∙ भगवान काहें कहताड़ें- ‘ध्रुवं जन्म मृतस्य च’? माने; मरेवाला के जनमो जरूरे होई। जरूरे होई त∙; मोक्ष के सिद्धान्ते धराशायी हो जाई। ईहे तत्त्वचिन्तन ह∙। आसान नइखे समुझल। बाकिर; टेढ़ा के सोझा करे से ओझा कहलाय। मनुष्य में बड़ क्षमता हिय∙। ई अइसन जीव ह∙ जे हर रहस्य के उघारि के रख देबेला। हमनी के पूर्वज लोगो एह आदि-अन्त के पाटनि में पिसाइल बाड़ें। जीवन-रहस्य प∙ खूब चिन्तन-मनन कइले बाड़ें। तब जाके दूगो नतीजा मिलल- पुनर्जन्म आ कर्मसिद्धान्त। ई दोनो भारत के लोगन के आपन खोज ह∙। हमनी के ऋषि-मुनियन के देन ह∙।
पहिले कर्मसिद्धान्त प∙ आवल जाउ। एकरा बाद पुनर्जन्म प∙। काहें कि कर्मसिद्धान्ते के देन पुनर्जन्म ह∙। हमनी के दर्शन के दू पारिभाषिक शब्दन प ध्यान देबे के होई। एगो बा ‘कृतप्रणाश’ आ दुसरका बा ‘अकृताभिगम’। पहिलका के अर्थ भइल जे कइला के फल ना होई। दुसरका के अर्थ ई जे ना कइला के फल मिले। दूनो बात सही नइखे। मतलब ई जे हर क्रिया के प्रतिक्रिया होले। एसे कृत के नाश ना हो सकेला। माने; हमनीका नीक-जबून जे करम जा ओकर परिणाम होखबे करी, ओकर फल पावही के परी। दुसरको बाति गलते बिया। अकृत के अभ्यागम के तात्पर्य बा, बिना कइले फल पावल। ई कहाँ सम्भव बा? लोग कहबे करेला; कर त∙ खो। जइसन करनी, तइसन भरनी। ईहो क्रिया के प्रतिक्रियवे के ओर ध्यान दियावत बा। मतलब जे कृतप्रणाश आ अकृताभिगम दोष हवें। माने ई सिद्धान्त के विरुद्ध बाड़ें। यानी; अइसन ना हो सके जे केहू पुण्य भा पाप करो आ ओकर फल मिलबे ना करो। ईहो ना हो सकेला जे बिना कइल अपराध के सजा मिलो आ बिना कइल सुकर्म के पुरस्कार मिलो।
लेकिन; ई साँच बा जे समाज में बहुते लोग लउकेलें जो गलते-गलत काम करेंले आ उनुकर बढ़न्तिये होत जाले। अइसनो लोग लउकेलें जे कवनो तरह के गलत ना कइलो प∙ कष्ट सहेलें। पहिलका व्यक्ति के लेके सोचल जाउ त∙ कर्मफल मिलित त∙ ऊ कइसे उन्नति प∙ रहतें? दुसरको प∙ सोचल जाउ त∙ उनुकर सब कइल अकारथे नू बा? कहाँ क्रिया के प्रतिक्रिया लउकत बिया∙? बबूर बोवेवाल आम चाभता कि ना? आम बोवेवाला बबूर के काँटन के दरद पावता कि ना? एह प्रश्नन के उत्तर हमनी के कर्मसिद्धान्त के पासे बा।
कर्म के तीन रूप बा- संचित, संचीयमान आ प्रारब्ध। ई तीनो पूर्व आ वर्तमान जन्म प∙ आधारित बाड़ें। एहिजा संचित (सँचल) से तात्पर्य बा, पूर्वजन्म में बटोरल। माने ई जे कवनो व्यक्ति एह जनम से पहिले जवन पाप-पुण्य, नीक-जबून काम कइलस आ ओकर फल ना पइलस। मतलब; जइसे केहू बैंक में रुपया रखत गइल, बाकिर कबो निकललस ना। भा; निकलबो कइलस त∙ कमे। अइसना में बैंक के पासे ओकर रुपया रहि गइल बा। ऊ जब चाही, निकाल ली। संचीयमान के अर्थ बा, एह जनम में जवन गलत-सही कर्म बा, ऊ बटोरा रहल बा। माने; एह जनम के कमाई संचीयमान कहाई। तिसरका बा, प्रारब्ध। प्रारब्ध के शाब्दिक अर्थ ह∙ प्रारम्भ भइल। बाकिर; दार्शनिक अर्थ ह∙ पूर्वजन्म के कर्मफल, जवन एह जनम में मिल रहल बा। ई अइसने कहाई जइसे, केहू के सर्विस कइला के बाद मिलत पेंशन। भा; कइल अपराध के बहुत बरिसन बाद सजा।
रउरा कहि सकींला जे हम पूर्वजन्म परजन्म ना मानी। भा; चार्वाकमत से ‘भस्मीभूतस्य भूतस्य पुनरागमनं कुतः’? अर्थात्; जे मर-बिला गइल, जेकरा के जरा-दफना दियाइल, ऊ फेरु कहाँ से आ सकेला? बाकिर हमनी के दर्शन पुनर्जन्म के पूरा-पूरा मानेला। रउरा नइखीं मानत त∙ रउरे बताईं जे एके समय दूगो बच्चा जनमल। एगो सम्पन्न परिवार में आ एगो विपन्न परिवार में। पुनः एगो सर्वांग-पूर्ण, स्वस्थ आ एगो हीनांग आ रुग्ण। एह बच्चन के कवन पाप-पुण्य? कवन कर्मवीरता आ कवन कर्मकृपणता कहाई? कवना क्रिया के ई प्रतिक्रिया हिय? आखिर अम्बानी आ भिखारी किहाँ दू जीव एके समय अइलें, त∙ परिणाम भिन्न काहें पइलें? यदि पूर्वकृत्य से ना जोड़बि त∙ का उत्तर होई राउर? एसे स्पष्ट बा जे दूनो जीव अपना पूर्वजन्म के कृत्य के सजा-मजा पावे आइल बाड़ें।
हँ∙, जवन पहिले उदाहरण दियाइल रहे कि कुछ लोग गलते-गलत करेलें तबो बढ़न्तिये प∙ रहेलें आ कुछ लोग सदाचारियो होके कष्ट में रहेलें त∙ एहिजो कर्मसिद्धान्ते फर∙ता। जेकरा के प्रारब्ध कहल जाला। एकर आशय ई बा जे सत्कर्म-दुष्कर्म दूनो बटोराइल बाड़ें। पहिलका के पासे सत्कर्मवाला पहिला खेप आइल बा, एसे ओकर वर्तमान दुष्कर्म कम प्रभावी बा। एही तरे दुसरका के पासे पहिला खेप दुष्कर्म में से आव∙ता आ मिल∙ता। एहसे ओकर वर्तमान सत्कर्म प्रभावी कम होता। एही से कहल गइल बा- ‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’। अर्थात्; शुभ भा अशुभ, पाप भा पुण्य, जवन कर्म कइल गइल बा, ओकर फल अवश्य भोगे के मिली। कर्म बेकार ना जाई। कबीरो कहताड़ें- ‘करम गति टारे नाहिं टरै’।
गीता कह∙तिया-
‘ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था, मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्य-गुण-वृत्तिस्था अधोगच्छन्ति तामसाः’।।(14.18)
अर्थात्; सात्त्विकजन के ऊर्ध्वगमन , राजसी लोग के मध्यम लोक आ तामसी लोग के अधोगमन होला।
एह तीनो गतियन के स्पष्टतः कहल जाउ त∙ कर्म के मोताबिक मुअला के बाद हमनी के तीनगो गतियन में से कवनो ना कवनो गति होइबे करी। एहनिन में पहिलकी बिया ऊर्ध्वगति; माने मोक्ष भा स्वर्ग पावल, दुसरकी बिया मध्यमलोक। मतलब; पुनः मनुष्य से मनुष्ये बनके जनमल। अब आईं तिसरकी भा अन्तिम गति प∙। त∙ ई हिय∙ अधोगति। माने; मनुष्येतर निम्न योनि, जइसे जंगम प्राणियन में- पशु-पक्षी, कीड़ा-मकोड़ा आ स्थावर प्राणियन में- वृक्ष-लता, तृण आदि में से कुछुओ बनल। ई सभ हमनी के करनी के फल हवें। मतलब; ईहो जे पशु-पक्षी से लेके घास-पात तक हमनिये के हईंजा, हमनिये के पूर्वज के जीवात्मा के बास बा एहनिन में। ई कुकरम के नतीजा ह∙। पाप के परिणाम ह∙।
अब आइल जाउ जे पुनर्जन्म कइसे होला? त∙ सिद्धान्त के सार ई बा जे भौतिक मृत्यु के बाद सूक्ष्म तन के साथे सूक्ष्म मन जुड़ल गन्तव्यपथ प∙ अग्रसर होला। मन के साथे कृत पाप-पुण्य लपेटाइल रहेला। मतलब; कर्मक्षय कबो ना होखे। अब ऊ सूक्ष्म शरीर दू राहन में से कवनो में प्रवेश करेला। पहिला ह∙ देवयान आ दुसरका ह∙ पितृयान। देवयान, माने स्वर्ग आदि लोकन के जाइल। पितृयान के मतलब चन्द्रलोक, यमलोक कावर यात्रा।
अभी देवयान के छोड़िके पितृयाने प∙ चलल जाउ। पितृयाने से पुनर्जन्म सहजे जुड़ल बा। एहिजे पाप-पुण्य, कुकर्म-सुकर्म के अनुसार अगिला योनि निर्धारित होके कर्मभोग खातिर पुनः नया देह के निर्धारण भइला प∙ मनुष्य भा मनुष्येतर बने खातिर फिर धरती प∙ उतरे के पड़ेला। पाप-पुण्य के तउल बराबर होई त∙ मनुष्य फिर मनुष्ये बनेला। पाप के अधिकता जतना मात्रा में होई, ओतने निम्न से निम्न योनियन के प्राप्ति होई। मतलब; कुकर्म बहुते त∙ जड़ प्राणी आ कुकर्म के पलरा तनिका भारी त∙ जंगम प्राणियन में पशु-पक्षी। कुकर्म के मध्य स्थिति में कीड़ा-मकोड़ा।
अब आईं ऊर्ध्वगमन प∙। ई पुण्य-प्रताप के देन ह∙। बाकिर; एहिजो पुनर्जन्म से छुटकारा नइखे। ई उत्तमलोक ह∙। बाकिर; जइसे खूब रुपया उझिलले बानी त∙ पाँच सितारा होटल के आनन्द लेत बानी। पइसा खतम होते निकाल बाहर। ए छूँछा, तोहके के पूछा। मतलब; फेरु चुहिया के चुहिये।
हँ∙, जबले कर्म रही, तबले कर्मफल के चक्की में पिसाते रहे के परी। आखिर काम होई त∙ दाम मिली नू! नीमन काम त∙ इनामो भरपूरे मिली। आ गलत रही त∙ मारो खाये के परी। बाकिर; ई कइसे सम्भव बा जे काम के परिणामे ना होखो! त∙; एही खातिर शास्त्रज्ञ लोग समुझावल जे नेकी करु आ दरिया में डालु। माने ई जे निष्काम कर्म करीं। अर्थात्; काम में सत्कर्मे करीं, बाकिर अहंकार मत पालीं। भा; ईहो ना जे हे शिवजी! तहार पूजा करतानी तू नीमन वरदान द∙ भा हमार मनकामना पूरा कर∙। जब पूजा के बदले मनकामना खरीद∙तानी त∙ दुकानदार देबे नू करी! आजु ना त∙ कबो। निष्काम के मतलब ई जो कवनो बनियादम ना। बाकिर; कइनी त∙ पइबे करब। मँगले-बेमँगलहूँ। एहसे बिना कामना के सभ कइके ओकर फलो उनुके के समर्पित कइला से कर्मफल से व्यक्ति लिप्त ना होला। मतलब; प्रभावी ना होला। जब प्रभावी ना होई त∙ व्यक्ति के कर्मक्षय भइला के बाद, माने ओकर समस्त कर्म कवनो बही-खाता में ना रहला से ना त∙ स्वर्ग के हकदार हो पाई आ ना नरके के। पुनर्जन्म के राह रुक जाई। त∙ जाई त∙ कहाँ जाई?
जाई त∙ कहाँ जाई? अवश्य ई प्रश्न होइबे करी। त∙ उत्तरो आसान नइखे। वास्तव में हम गृहस्थजन प∙ घर-गृहस्थी चलावे के बड़ बोझ रहेला। कमइब∙ ना त∙ खइब∙ का ? अपने आ मेहरारू-लइकन के खाये खातिर कमाही के पड़ेला। भक्ति में भगवान से कुछ माँगलो सकाम साधना ह∙। निष्काम योग के बड़ रूप ह∙। ई सहज ना होला। सभ कइके सभ कुछ सउँपल सहज ना ह∙। एहसे संन्यासवृत्ति ह∙। गृहस्थो ई वृत्ति अपना सकेला। बाकिर; ओकरा खातिर सभसे कठिन होला। एही से हमनी किहाँ जीवन के चउथा अवस्था संन्यास रहल। माने ई जे सांसारिक जीवन में सन्मार्ग से विद्या आ धन के अर्जन क∙के परिवार के भरण-पोषण कइलीं। फेरु वानप्रस्थी होके देशाटनो कइलीं। अब सभ राग छोड़ विराग अपनाके जीवन के निष्काम बिताईं। विदेशी आक्रमण आ शासन के चलते ई आश्रम-व्यवस्था बिला गइल। तबहू सकाम से निष्काम के मार्ग रुकल नइखे आ ना रुकी।
हँ∙, अष्टांगयोग में- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आ समाधि; ई जवन आठगो बतावल गइल बाड़ें, ई जीवन-पाठशाला के आठगो कक्षा हवें। एक-एकगो पास करत-करत समाधि तक सब सम्भव हो जाला। एकरे से परम पद, सर्वोच्च उपाधि कैवल्य मोक्ष सिद्ध होला।
भक्ति में मोक्ष के चार गो विभाग बा- सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य आ कैवल्य। सालोक्य के मतलब जीवनान्त के बाद भक्त अपना इष्ट देवता के प्राप्त करी। सामीप्य माने; ऊ खाली उनुका लोके में ना रही, बलुक उनुकर पार्षद आदि रूप में उनुका जरिये हमेशा रही। सायुज्य के माने ई जे इष्ट में ओसही समा जाई, जइसे नदी सागर में जाके विलीन हो जाले। बाकिर; सालोक्य आ सामीप्य में त∙ विशेष सम्भावना फिर धरती प∙ आवे के रहेले। सायुज्य में कमे। कैवल्य में कबो, कवनो सम्भावना के गुंजाइश ना रहेले। मतलब; कवनो कर्मफल इचिकियो प्रभावित ना क∙ पावेला। ईश्वर के मूल रूप ब्रह्म ह∙ आ ऊ निर्गुण, निराकार, निर्विकार, निरंजन ह∙। ओही में विलीन जीव ब्रह्म हो जाला। ईहे ब्रह्मलीनता हिय∙। बाकिर एहिजा पहुँचल सबसे कठिन बा। निष्काम कर्मयोग के साधना करत आ सिद्ध भइलो प कतने जन्म-मरण होत रहेलें। एहसे पुरुषार्थ-चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष) में मुक्ति परम आ चरम ह∙। एकरा के आत्यन्तिक दुःख से निवृत्ति कहल गइल बा।
जन्म बार-बार होला, मरणो बार-बार होला। बाकिर; जे सत्कर्म-दुष्कर्म के विभेद के जानकार बा, जानकारे ना; बलुक सत्कर्मे के अपनाहू वाला बा, ऊ बार-बार कर्मलोप से मुक्ति के प्रयास से एक ना एक बेर छुटकारा पाइये ली। ईहे बा, जन्म-मरण के मूल रहस्य। ईहे बा पुनर्जन्म के कारण। आ; ईहे बा कर्मसिद्धान्त के खेल।
मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)