भोजपुरी दुनिया के अमूल्य धरोहर बा ई अंक

November 4, 2022
राउर पाती
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भोजपुरी जगत के 27 गो साहित्यकार के जवन जीवनी भोजपुरी जंक्शन के अंक में प्रकाशित भइल बा, ऊ भोजपुरी दुनिया के अनमोल धरोहर बा। सदियन तक ई अंक भोजपुरी दुनिया के गरिमा के गौरव बढ़ावत रही आ नया पीढ़ी के स्वाभिमान के भी आधार बनत रही। एह अंक के रचनाकार सभे के लेखनी में श्रद्धा के भाव अइसन समायोजित भइल बा कि एक एक शब्द आत्मा से संवाद कर रहल बा। एह अंक के डिजिटल टीम के संवेदना भी खुल के दिखाई दे रहल बा। एक पिता रामदेव बाबू के सम्मान में जब पुत्र मनोज भावुक जी के कलम चलल बा त श्रद्धा आ स्नेह के बारिश से पाठक के मन भीग जा रहल बा। कुल मिलाके ई अंक संग्रहणीय आ ऐतिहासिक बन गइल बा। एह अंक से जुड़ल हर व्यक्तित्व के बहुत बहुत आभार।

गणेश दत्त पाठक, लेखक, पत्रकार व आईएएस कोचिंग के संचालक, सिवान, बिहार 

भोजपुरी के गौरव विशेषांक ऐतिहासिक अंक बा 

अद्भुत आ बहुत महान काम बा अइसन ऐतिहासिक अंक के प्रकाशन। हमार लिखल लेख के भी एह अंक में जगह देवे ला बहुत बहुत धन्यवाद।

हमरा त ई ना बुझाला कि जेकरा गोड़ में पाँख बँधाइल बा आ जे कबो दिल्ली त कबो पटना, कबो लखनऊ त कबो कानपुर उड़त रहेला,  ऊ एतना सब कुछ क कइसे लेला?

धन्य बानी मनोज बाबू ! बड़ भइला के बावजूद प्रणाम करे के मन करता।

अजय कुमार पांडेय, वरिष्ठ लेखक, चंपारण 

कमाल के अंक बा

प्रियवर भावुक जी,

राउर भेजल पत्रिका मिलल। कमाल के अंक बा। एक सांस में बाबूजी विद्यार्थी जी के बारे में लिखल डॉ. जयकान्त सिंह जय लिखित अत्यंत सारगर्भित सुन्दर आलेख पढ़ि गइनी हां। अइसन काम कर के बाबूजी के कविवर नाटककार भिखारी ठाकुर जी के साथ ही संग्रह संस्करण में स्थान दे के रवा उनकर अकथ्य ईक्षि के सम्मान कइले बानी।

एह लेखे हमनी रवा प्रति धन्यवाद ज्ञापित करतानी जा।

प्रोफेसर विकास चंद्र, आरा  

गौरवान्वित महसूस हो रहल बा

भोजपुरी जंक्शन के इ अंक पढ़के बहुत अच्छा लागल। रउआ बहुत खोज कइले बानी। गौरवान्वित महसूस हो रहल बा। हमरा तरफ़ से शुभकामना अउर हार्दिक बधाई स्वीकार करीं ।

लेफ्टिनेंट जनरल एस के सिंह

 

माटी  के  पुरखन के दस्तावेज ह ई अंक

माटी  के  पुरखन के दस्तावेज ह ई अंक

भोजपुरियत के सान,बान मान ह ई अंक

माटी  के बोली के पहचान देवे वालन के

डंका  के चोट पर हैसियत गान ह ई अंक।

 

भोजपुरी जंक्शन आ भावुक के काम देखs

भोजपुरी  गौरव  के  आपन  पहचान  देखs

सीख  जोगावल  तुहूं पुरखन के सान, मान

माटी  के पुरखा के साहित्यक कमाल देखs।

 

कनक किशोर, वरिष्ठ साहित्यकार, राँची 

बहुत-बहुत धन्यवाद

जीवन में पहली बार भोजपुरी में इतना ढेर सारा लिखा देख रहा हूं। इसके पहले नदिया के पार फिल्म जिस उपन्यास पर बनी थी उस उपन्यास को अर्थात “उधार का सेनूर” देखा था। यह उपन्यास भोजपुरी में लिखा है और इस उपन्यास के लेखक केशव प्रसाद मिश्र थे जो बलिया के थे और इलाहाबाद में एजी ऑफिसर में ऑडिट ऑफिसर थे। बाद में उनका स्वर्गवास हो गया था।

भोजपुरी साहित्य के क्षेत्र में इतना उम्दा कार्य करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। भोजपुरी भाषा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए जैसे लोगों की सक्रियता बहुत जरूरी है। 

तारकेश्वर सिंह, अवकाश प्राप्त जज 

भोजपुरी जंक्शन के संपादकीय विशेषांक अपने आप में एगो धरोहर किताब बन गइल बा।संपादकीय युगानुकूल निरन्तर चिंतन के परिणाम होला,जवन एह संस्करण में झलकता।एह संस्करण से संपादक के वक्त -वक्त के सृजनात्मक चिंतन के गहराई आ विविध विषयन पर सटीक मूल टिप्पणी बहुते सार्थक बाड़ीसन।सामाजिक,सांस्कृतिक, धार्मिक आ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयन के जइसे ई पत्रिका समेटले बिया,उ संपादक के संवेदना आ प्रतिभा के दर्शन हो रहल बा।आज के भागम भाग के जिनगी में भावुक जी के अइसन प्रयास एगो मजबूत आ अजगुत संकल्प के एहसाह करावत बिया ई पत्रिका।सगरी पत्रिका सन के कलेवर  अपने आप में अद्भुत आ आकर्षक बन गइल बा।ई पत्रिका निरन्तर समाज आ देश के आईना बनके सत्य के दर्शन करावत रहो,इहे कामना बा।एह निरन्तर सृजनात्मक प्रयास खातिर भाई मनोज भाउक जी के हिरदया से अउलाह बधाई आ सुभकामना बा। 

मनोज कुमार सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, आदमपुर, सिवान 

भावुकजी, आप बहुत उत्साही एवं ऊर्जावान हैं। भोजपुरी में आपकी यह नई संकल्पना की जितनी सराहना की जाय कम है।

मुझे मालूम नहीं कि भोजपुरी में भाषाविदों और साहित्यकारों की कोई विवरणिका है या नहीं। अगर नहीं है तो ऐसी विवरणिका या नामवाची कोष तैयार किया जा सकता है। 

निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव 

सकारात्मक दृष्टिकोण आ देश प्रेम से भरल संपादकीय विशेषांक 

आमतौर पर संपादकीय कौनो भी पत्रिका के आईना होला। काहेकि ओह पत्रिका के प्राण तत्व का बा एह बात के आभास पाठक के संपादकीय से ही हो जाला। अगर संपादकीय रोचक रहेला त ऊ पाठक के ओह पत्रिका के पढ़े खातिर प्रेरित भी करेला। संजोग से “भोजपुरी जंक्शन” के ज्यादा विशेषांक ही निकलेला। एह से एह पत्रिका के संपादक मनोज भावुक जी के आपन बात के अलग-अलग तरह से रखे के अवसर भी मिलेला। अब त “भोजपुरी जंक्शन” के विभिन्न अंक खातिर लिखल अलग-अलग संपादकीय एक जगह इकट्ठा होके “संपादकीय विशेषांक” के रूप में रउआ लगे बा। 

व्यक्तिगत रूप से हमरा भावुक जी के संपादकीय के जे बात सबसे अधिक प्रभावित करेला ऊ ह उहाँ के सकारात्मक दृष्टिकोण आ अपना राष्ट्र के प्रति लगाव। ओकर बानगी रउआ भी उहाँ के एगो संपादकीय से लेहल कुछ पंक्तियन में देख लीं- 

अमन वतन के बनल रहे बस

 हवा में थिरकन बनल रहे बस

 इहे बा ख्वाहिश वतन के धरती

 वतन के कन-कन बनल रहे बस ।”

 ज्योत्स्ना प्रसाद, वरिष्ठ साहित्यकार, पटना

 

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