आवरण कथा
विनय बिहारी सिंह
मृत्यु के लेके मन मे जौन डर रहेला ओकरे के दूर करे खातिर हमनी के वेद-पुराण बाड़े सन। बाकिर हमनी का लगे समय नइखे कि एह अमृत ज्ञान के पढ़ीं जा। सबकेहू के अपना जीवन में दू गो किताब जरूरे पढ़े के चाहीं- कठोपनिषद् आ भगवद्गीता। एह किताबन में अमृत तत्व बा। हमनी के उमिर एक-एक दिन बीतता। त आत्म तत्व के दीया जरावे में देरी ना होखे के चाहीं।
दू मार्ग होला- एगो श्रेय मार्ग आ एगो प्रेय मार्ग। प्रेय मार्ग वासना में डुबावे वाला ह। भोग-विलास में डुबावे वाला ह। आ श्रेय मार्ग कल्याण करे वाला ह। ईश्वर तक पहुंचावे वाला ह।
जब भी मृत्यु के बात होला त हठात कठोपनिषद के बात आ जाला। कठोपनिषद में यमराज से नचिकेता के संवाद हमनी के आंखि खोले खातिर दिहल बा। कथा ह कि नचिकेता के पिता वाजश्रवस मुनि अपना मुक्ति खातिर सर्वमेध यज्ञ कइले। नियम रहे कि जे संन्यास लेले बा ऊ जब सर्वमेध यज्ञ करी त आपन सब पदार्थ दान दे दी। त वाजश्रवस ऋषि दान में कुल बूढ़ आ बिसुकल गाय दान दिहले। पिता के एह दान पर नचिकेता के मन में दुख भइल। नचिकेता सोचले कि ई बूढ़ गाय कौनो काम के नइखी सन। दूध ना दिहन सन आ एकनी के अंतिम अवस्था बा। त पिता जी अइसन गाय काहें दान देतारे? नचिकेता अपना पिता से प्रश्न कइले कि हम राउर पुत्र हईं, हमरा के, केकरा हाथ में दान करब? पिता एह प्रश्न से खिन्न हो गइले। कुछ ना बोलले। बाकिर नचिकेता बार-बार आपन प्रश्न दोहरावे लगले। पिता वाजश्रवस मुनि बार-बार प्रश्न कइला पर खिसिया गइले। झुंझुआ के कहले कि तोहरा के हम मृत्यु के हाथ में देब। नचिकेता ईश्वर के परम भक्त। उनुका पिता के बात दिल पर लागि गइल। ऊ सीधे पहुंचि गइले मृत्यु के इंचार्ज यमराज का लगे। यमराज कहीं गइल रहले। नचिकेता यमराज के दुआरी पर बिना कुछ खइले-पियले तीन दिन ले बइठले रहि गइले। यमराज के पत्नी आग्रह कइली कि भोजन क लीं। बाकिर नचिकेता एक दाना अन्न ना खइले। तीन दिन बाद जब यमराज अइले त देरी खातिर ऊ ऋषि पुत्र से क्षमा मंगले आ कहले कि रउरा तीन दिन हमरा दुआरी पर बिना खइले-पियले रहल बानी। अब हमरा से जौन मन करे तीन गो बरदान मांगीं। हम देबे के तेयार बानी। नचिकेता कहले कि ठीक बा, त पहिला बरदान दीं कि हमरा पिता के क्रोध शांत हो जाउ आ जब हम एइजा से वापस जाईं त ऊ हमरा से ठीक से बतियावसु। यमराज कहले- ईहे होई। नचिकेता दोसरका बरदान मंगले कि हमरा के अग्निहोत्र यज्ञ के बारे में बताईं ताकि हम जीवन- मृत्यु रूपी बंधन से मुक्त हो जाईं। यमराज कहले कि अब तिसरका बरदान मांग। नचिकेता कहले कि तिसरका बरदान ई दीं कि हमरा ज्ञान हो जाउ कि आत्मा का ह। केहू कहेला कि आत्मा नित्य ह, अजर-अमर ह। आ केहू कहेला कि आत्मा के कौनो अस्तित्व नइखे। त हमरा के आत्मज्ञान के बरदान दीं। यमराज आत्मज्ञान के उपदेश दे दिहिते बाकिर तनीं सोच में परि गइले। सोचले कि अनाधिकारी के आत्मज्ञान के उपदेश ना देबे के चाहीं। नचिकेता अभी लइका बाड़े। इनिका के कइसे ई उपदेश दीं। ऊ एह प्रश्न के टारल चहले। यमराज कहले कि आत्मज्ञान के विद्या बड़ा सूक्ष्म होला। तूं छोट बाड़, समझि ना पइब। त एह बरदान के छोड़ कौनो दोसर बरदान मांगि ल। नचिकेता परम विद्वान बालक रहले। कहले कि हे यमराज, एह प्रश्न के रउरा के छोड़ि के केहू उत्तर ना दे सकेला। आ ई प्रश्न हम छोड़ब ना। ई प्रश्न हमरा के ध लेले बा। रउरा बचन देले बानी कि जौन मांगबि तौन दे देबि। त दीं। यमराज कहले कि एकरा बदला में स्वर्ग के कुल सुख ले ल, धरती के कुल सुख ले ल। पराक्रमी, धनवान आ सौ साल जीए वाला पुत्र, पौत्र लेल। मनुष्य के मन में जौन-जौन कामना आवेली सन, ऊ कुल दुर्लभ कामना के पूर्ति के बरदान ले ल। बाकिर आत्मज्ञान संबंधी प्रश्न मत कर। नचिकेता कौनो लालच में ना अइले। ऊ अपना बरदान पर अडिग हो गइले। यमराज के सामने कौनो उपाय ना रहे। हारि के ऊ नचिकेता के उपदेश शुरू कइले-
कहले कि दू मार्ग होला- एगो श्रेय मार्ग आ एगो प्रेय मार्ग। प्रेय मार्ग वासना में डुबावे वाला ह। भोग-विलास में डुबावे वाला ह। आ श्रेय मार्ग कल्याण करे वाला ह। ईश्वर तक पहुंचावे वाला ह।
श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेस्ततौ संपरीत्य विविनक्ति धीर:।
श्रेयो हि धीरोsभि प्रेयसो वृणीते प्रेयो मंदो योगक्षेमाद् वृणीते।।
जे धीर पुरुष बा, ऊ दूनो के भलीभांति बिचार क के, विवेतन क के, आपन रास्ता चुन लेला। जे बुद्धिमान बा ऊ प्रेय मार्ग छोड़ि के श्रेय मार्ग अपना लेला। प्रेय अविद्या ह त श्रेय विद्या ह। हे नचिकेता तूं श्रेय मार्ग वाला हउव। जेकरा के एह संसार के भोग ललचा के अपना बश में क लेला, ऊ प्रेय मार्ग के बंधन में हो जाला। आ जे ईश्वरीय सुख के श्रेष्ठ मानेला ऊ मोक्ष के प्राप्ति करेला। धन, एश्वर्य प्रमाद में डुबा देला। अइसना आदमी के आत्मा आ परमात्मा के व्याख्या नीक ना लागे। कामदेव के सुख बहुते दुख में डाले वाला ह। कामदेव के सुख असल में दुख के खाई में ढकेल देला।
नचिकेता, यमराज से प्रश्न पर प्रश्न करत गइले। त यमराज कहले कि-
एतद्ध्येवाक्षरं ब्रह्म एतद्ध्येवाक्षरं परम्।
एतद्ध्येवाक्षरं ज्ञात्वा यो यदिच्छति तस्य तत्।।
निश्चय जान कि ओम् ब्रह्म ह। इहे सबसे उत्तम अक्षर ह। एकरा के जे मनुष्य साधि ली, ओकरा के इच्छित फल अवश्य मिल जाई।
आत्मा ना उत्पन्न होखेला आ ना मरेला। आत्मा जन्म रहित, नित्य, अविनाशी आ अनादि ह। शरीर के नाश होखला पर भी आत्मा के नाश ना होला। आ सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, महान से भी महानतम परमात्मा मनुष्य के भीतरे लुकाइल बाड़े। एह ईश्वर के उहे जान सकेला जे विषय भोग में ना फंसी। माने जे नियम-संयम से आ अपना साधना आ भक्ति से ईश्वर के कृपा प्राप्त क लेले बा, ऊहे अपना भीतर लुकाइल ईश्वर के पा ली। ईश्वर हर शरीर में बिना शरीर के उपस्थित बाड़े। सर्वव्यापी बाड़े, सर्वज्ञाता बाड़े आ सर्वशक्तिमान बाड़े। जेकर मन दुराचार से ना हटी, जेकर मन अशांत बा, बुद्धि स्थिर नइखे, ओह चंचल मन वाला के ईश्वर ना मिलिहें। ओकरा भीतर बाड़े तबो ना मिलिहें।
रउरा पूरा कठोपनिषद पढ़ि जाईं त लागी कि भगवद्गीता में जौन उपदेश भगवान कृष्ण, अर्जुन के देले बाड़े, ओही तरह के उपदेश यमराज भी नचिकेता के देले बाड़े। भगवद्गीता के दोसरा अध्याय में भगवान कृष्ण, अर्जुन से कहतारे-
देही नित्यमवध्योsयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।। ( दूसरा अध्याय, 30वां श्लोक)
हे अर्जुन! ई आत्मा सबके शरीर में सदा ही अवध्य बिया। एह कारण से संपूर्ण प्राणियन खातिर तूं शोक मत कर।
भगवान कृष्ण कहतारे-
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।। (दूसरा अध्याय, 22 वां श्लोक।
हे अर्जुन जदि तू कह कि हम शरीर के वियोग के शोक करतानी त ईहो उचित नइखे। काहें से कि जइसे आदमी आपन पुरान कपड़ा छोड़ि के नया कपड़ा पहिरेला, ओहीतरे जीवात्मा पुरान शरीर छोड़ि देला आ दोसर नया शरीर पावेला।
त मृत्यु के लेके मन मे जौन डर रहेला ओकरे के दूर करे खातिर हमनी के वेद-पुराण बाड़े सन। बाकिर हमनी का लगे समय नइखे कि एह अमृत ज्ञान के पढ़ीं जा। सबकेहू के अपना जीवन में दू गो किताब जरूरे पढ़े के चाहीं- कठोपनिषद् आ भगवद्गीता। एह किताबन में अमृत तत्व बा। हमनी के उमिर एक- एक दिन बीतता। त आत्म तत्व के दीया जरावे में देरी ना होखे के चाहीं।