मौत के प्रकार आ विधि-विधान (डॉ. पुष्पा सिंह विसेन)

November 4, 2022
आवरण कथा
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आवरण कथा  

डॉ. पुष्पा सिंह विसेन

कई तरह के मौत होला जइसे कि जनमजात मौत, आकस्मिक मौत, अकाल मौत आ सामान्य मौत आदि।

दसवाँ बहुते महत्वपूर्ण होला, ओह दिन दूर दराज के सब लोग घरे आ जाला जे चिता जरला के बाद काम धंधा पर गइल रहेला। दसवाँ के दिनें सबहि के दाढ़ी मोछ अऊर मुड़ी के बाल छिला जाला। घाट पर चाहें घंट बंधइला के जगह पर ही महापात्र लोगन के दान दीहल जाला, जवना में सब सामान रहेला जेतना मरे वाला के उपयोग में आवत रहल, जइसे कि  चौकी,  पलंग, खटिया, रजाई, गद्दा,  तकिया, कपड़ा, छड़ी, जूता, चप्पल, चश्मा, घड़ी, स्टोव, चूल्हा आदि यानि जरुरत के सभ सामान के साथ राशन दाल, चावल, आटा, तरकारी, मशाला, मिठाई, मेवा, रुपया,  सोना,  चांदी सब कुछ दान कइल जाला तब ओही दिने घर पर हरदी वाला तरकारी छौंक के बनेला।

धरती के ई सगरी प्राणी सभे खातिर तय बा,  हमनिके जनम त मानुष तन लेके भइल बा, इंसान के सबसे हुशियार अऊर ज्ञानी प्राणी कहल जाला काहें कि ओके समझे वाला तेज दिमाग मिलल बा|  एही से इंसान आपन जीवन बहुते सोच-समझ के बिगाड़े,  बनावेला  अऊर बहुते तरह के विधि विधान के साथे आपन जिनगी के सब काम पूरा करेला।  हजारों संस्कार अऊर रीति रिवाज के साथे कई गो परम्परा के भी हमनी के पुरखा पुरनिया लोग बनवले बा, जवन आजु भी हमनी के घर-परिवार अऊर समाज के बीच बचल बा।

आजु मरला पर जवन दुखी परिवार में सबहि कुल खानदान मिलि के विधि विधान करेला ओकरा के हम आज बहुत ही बढ़िया से बताइब कि हमनी के सनातन  धर्म के विधि विधान कइसे शुरु कईल जाला।

मानव जीवन में पैदा भइला के साथे मरला के खेला शुरु हो जाला, केतना बच्चा लोग जनमते मर जाला अइसन मौत के जनमजात मौत कहल जाला। ओकरा बाद आकस्मिक मौत जवना में बच्चा, बूढा, जवान केहू के मौत हो सकेला, जेकर कारण कवनों घटना, दुर्घटना हो सकेला, जइसे केहू छत से गिर गइल, डूबिके मर गइल,  आगि में जरि के मर गइल, सड़क पर कुचल के मर गइल या केहू दुश्मनी से मारि दिहल या केहू खुदे फांसी लगाके मर गइल, माने एह में आत्महत्या, हत्या सबही तरह के मौत आ गइल|

एकरा बाद हम अकाल मृत्यु के चर्चा करतानी,  एह मे बाढ़, सूखा,  बेमारी जइसे कि हैजा, मलेरिया, कोरोना, डेंगू अऊर तूफान से एक साथे बहुत लोग मर जाला।

अब आइल बारी सामान्य मौत के जवन आपन सगरी उमर बीता के सौ बरिस या एहू से ऊपर हो के लोग दुनिया से जाला|  अइसन मौत के सब तइयारी बहुते विधि विधान से भरल पूरल परिवार करेला अऊर कम दुखी रहेला। अपनी अमीरी गरीबी के अनुसार बहुते दान पुन्य के साथे सब विधि विधान करेला अऊर ब्रह्म भोज भात के साथे कुल परिवार तेरह दिन तक संगे साथे रहि के निभावेला|

अब हम सबसे पहिले सामान्य मौत के बारे में आप सब के बतावे के चाहतानी कि कइसे जब ई आभास हो जाला कि अब घर के ई बुजुर्ग ना बचिहें,  त घर के कवनो एक आदमी गीता या रामायण के पाठ करे लागेला ताकि आखिरी समय में कुछ अध्यात्मिक बात काने में चलि जाए। पंडित जी के घरे बोला के दान पुन शुरु हो जाला अऊर अपनी परिवार कुल खानदान सबही के नाम से बाजी दान होखे लागेला|  देहि से परान निकलते ओह मरल देह के नीचे जमीन पर रख दिहल जाला, अऊर अगरबत्ती धूप जला दिहल जाला।

इहां ई बतावल जरुरी बाटे कि लोग अपनी-अपनी गाँव जवारे में होखे वाला विधि विधान ही करेला, थोडे़, बहुत अंतर होला|  हमनी के हिंदू समुदाय के सनातन धर्म के अनुसार पिता यानि बाबूजी के बड़के संतान मुँह में आगि देला अऊर माई के छोटका संतान देला, ई परम्परा चलल आवता।  मरल देहि के नहवावल जाला।  आदमी के आदमी लोग नहवावेला अऊर औरत के औरत लोग। ओकरा बाद नया कपड़ा पहिना के ईतर, फूल माला से सजावल जाला।  केतना लोग त बैंड बाजा भी बजवावेला अऊर शमशान तक जाला।  जब लोग चिता जरा के लौटेला त कुछ फल सेव, संतर, केला, उबालल आलू शरबत आदि लेला, ओकरा बाद दस दिन तक घर मैं छौंका, बघार नाहिं लागेला।  बिना हरदी के दाल अऊर आलू के चोखा चलेला|

दसवाँ बहुते महत्वपूर्ण होला, ओह दिन दूर दराज के सब लोग घरे आ जाला जे चिता जरला के बाद काम धंधा पर गइल रहेला। दसवाँ के दिनें सबहि के दाढ़ी मोछ अऊर मुड़ी के बाल छिला जाला। घाट पर चाहें घंट बंधइला के जगह पर ही महापात्र लोगन के दान दीहल जाला, जवना में सब सामान रहेला जेतना मरे वाला के उपयोग में आवत रहल, जइसे कि  चौकी,  पलंग, खटिया, रजाई, गद्दा,  तकिया, कपड़ा, छड़ी, जूता, चप्पल, चश्मा, घड़ी, स्टोव, चूल्हा आदि यानि जरुरत के सभ सामान के साथ राशन दाल, चावल, आटा, तरकारी, मशाला, मिठाई, मेवा, रुपया,  सोना,  चांदी सब कुछ दान कइल जाला तब ओही दिने घर पर हरदी वाला तरकारी छौंक के बनेला।

सभे तेरहवीं तक रुकेला। दसवाँ के बाद तेरहवीं के अऊर महंगा सामान अंगना में दान कइल जाला जहां गाँव जवार के सबहि लोग रहेला, सिरिया दान एके कहल जाला। तेरहवीं के पक्का भोजन के साथे, दही चिऊरा, मार्हा के भी भोजन में राखल जाला अऊर सबहि पंडित जी लोगन के दरिया, कटोर, लोटा गिलास अऊर कपड़ा रुपिया दान कइल जाला|

तेरहवीं के दूसरा दिने भतवान होला जवना में कच्चा भोजन यानि भात, दाल, कढ़ी, तरकारी आदि बनेला  अऊर आपन कुल खानदान के साथे पूरा गाँव भोज भात खाला।  एकरा बाद जाके जग पूरा होला।

अब दगहा माने जे आगि देले बा ओकरा दिनचर्या के बारे में बता दीहि कि उनकर भोजन एक समय ही घरे में बनेला अऊर केहू एकही औरत बनावेली।  सबेरे सांझे उहे दगहा आदमी घंट में पानी डाले जाला अऊर उंहा दीया जरा के आवेला। ई काम चिता जलवा के दूसरे दिन से शुरु हो जाला अऊर ओही दिने सांझे के बेरा बिना हरदी के दाल भात अऊर आलू के चोखा बनेला।  मरवा के बाद तबे घर में चूल्हा जरेला। चाह पानी अऊर रिश्तेदार के भोजन नाश्ता सब गाँव के दूसरे परिवार खानदान के लोग संभाल ले ला।  ई हमरी सनातनी परम्परा के एगो हिस्सा बाटे कि दुख में सब लोग एक हो जाला। सब काम मृत्यु संस्कार के निपटला के बाद बरसी के विधि बाकी रह जाला जवन आदमी लोग के ग्यारह महीना के बाद होला, औरत का छ: महीना पर।

घर परिवार अऊर खानदान में अगर केहूके, तिलक, बियाह, घर भोज, छठी, बरही या अऊरो कवनो शुभ काम सालि भीतरे तय बाटे त बरसी के प्रावधान तेरहवीं के बाद दूसरे दिन कर देवे के विधान भी बाटे।

अब घर में आइल बेटी बहिन के बिदाई भी साड़ी कपड़ा मर मिठाई के साथही कइल जाला, ई हमरी सनातनी धर्म के ऊ विधि विधान हऊवे जवन सबसे श्रेष्ठ बाटे,  काहें कि हम दिल्ली में देखले बानी कि लोग घर में लाश रखि के पहिले खाना खाला फिर फूंके जाला। खैर ई सब त समय के साथे लोग परिवर्तन करे लागल बा, लेकिन आज के समय में भी लोग सब संस्कार के निभावत बा।

अब हम जन्मजात मौत के बारे में बताइब कि कइसे अपनही घरे के लोग ओह नवजात बच्चा के सफेद कपड़ा में लपेट के कहीं दूर बारि-बगईचा में गाड़ि आवेला अऊर कवनो विधि विधान ना होला,  जबकि बारह बरिस के बाद जवना के जनेऊ भइल रहेला, ओह बच्चा के सब कुछ कइल जाला, बस परिवार के बीच, पंडित जी करवा देले। अऊर अठारह से ऊपर के जवान के त हरदी लगा के चिता में दीहल जाला कि ई कुवांरे मर गइल बा।  मौत के बहुते रुप बाटे सामूहिक मौत में त कवनो विधि विधान के बिना ही जला, गाड़ि दीहल जाला, जइसे हालहिं के कोरोना से मरल लोग के भइल हऊवे।

ई सब संस्कार रीति रिवाज, विधि विधान, जवना के चर्चा कइनी हं ऊ सब उत्तर प्रदेश अऊर बिहार के संदर्भ में बहुते जियादा निभावल जाला अऊर प्रचलित भी ज्यादा बाटे। जहाँ-जहाँ ई लोग बस गइल बा ऊहवां भी निभा रहल बा|  मौत अटल सत्य हऊवे अऊर सबहि के जनमे से तय रहेला, ईहो हमनी के सनातनी ग्रंथ में लिखल बाटे।

ई जिनगी नाहि हमार कवनो जयदाद हऊवे,

ऐ मौत तनि रुकs त हम आईब तू सच हऊवे।

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