सराप 

November 4, 2022
कहानी
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कहानी

डॉ. सुमन सिंह

 

आजी इनके-उनके टोवे लगलीं। आजी क लकड़ी नियन अंगुरी जेके छुआय जाय उहे कऊँच के कहे ‘ का हाड़ गड़ावत हऊ आजी। इंहवा तोहार बीनवा ना हे। कहीं होई कोने-अतरे लुकाइल-सोकताइल। कहनिया सुनावा न। आगे का भइल। का भइया लोग बचवलन जा अपने बहिन के ? की मर-बिलाय गइलीं? ‘ सबके कहनी क चिंता रहल अउर आजी के बीनवा क।

बीना बक्सा में से क्रोसिया से काढ़ल एगो सफेद-नीला रंग क बटुआ नियन कुछ ले अइलीं। आजी क दुनू तरहत्थी आँख बनि गइल रहे। बटुआ चौकोर बीनल गइल रहल। आजी चारो कोना के झालर के टो-टो के खींचे लगलीं। बहुत मेहनत के बाद एगो कोना क झालर ढील भइल आ ओम्मे अंगुली जाए लायक फांफर जगह बनल आ ओम्मे से मटर के दाना जइसन गोल-गोल सोने के चमकत काने क टप्स निकलल। आजी बिना आँख क देखत रहलीं आ बीनवा भरल आँखि लिहले आँख होते हुए भी देख ना पावत रहल।

अच्छा त बताव बचवा का – का कहेलन। तोहके हमार किरिया। कौनो आड़-परदा मत करीहे। बिना ढकले-तोपले बताव की बचवा का-का कहेलन।’ ओह दिन आजी बीनवा के आपन किरिया धराय के कुल्ह भेद ले लिहलीं। बीनवा रात भर आजी के बगल में रोअलस बाकिर आजी एक्को बार ओके चुप ना करवलीं। ओह दिन के बाद बड़की बखरी में केहू बड़की आजी क बोली ना सुनलस। बीनवो ना। आजी के सराप लगि गइल रहे।

“…त सात गो भइया क ऊ अकेल बहिन रहलीं। खूब सुग्घर। देह; जइसे लचकत कईन। रंग; जइसे उजरकी गइया क थाने के पंजरे क दूध। झक-झक उज्जर। कवनो भी रंग के कपड़ा में चनरमा जस चम-चम चमके।

ए बाची ! बाकिर भाग क बहुते न हीन रहलीं। सातो भइया जब चल जाएं कमाए त कुल भउजाई लोग मिलिके उनके खूबे खोभें। एतना तंग करें कि चलनी में पानी ले आवे भेज दें। बेचारी सोनवा सूप में पानी रोपत-रोपत राग काढ़ के रोवे….” अबहीं आजी कहनी आगे बढ़ावें तब ले भारती लपक के अड़ंगी मारें–

” चलनी में पानी ले आवे गइल रहलीं त सूप कहवाँ से आ गइल ? ए बड़की आजी कहनियां भुलाय गयलू ? ”

“अरे हं रे , चलनिया में पानी ले आवे गइल रहे …त आगे सुना लोग , चलनी में पानी कइसे भरात। जइसे चलनिया से पानी चुवे वइसे सोनवा के अँखिया से लोर बहे। भयवन के बिलख-बिलख बोलावें बाकिर सून बन में कवन सुनवाई। सांझ ले भूक्खल-पियासल रह जाएं अउर जब रोवत-फिफियात घरे आवैं त हिकभर गारी सुने के मिले। जान जा लोग एतना दुरदसा सहे के पड़त रहे उ टुअर-टापर लइकी के कि का बताईं..।”

“टुअर-टापर केके कहल जाला बड़की आजी? ” मोहन मोहनी भरल आँखिन क पुतरी नचावत पूछलन।

” जेकर केहू ना रहे ला। माने माई-बाबू ,हीत-नात।” भारती ज्ञान बघारत कहलीं।

“सात गो भाई त रहलन न ?” मोहन उमिर में छोट रहलन बाक़ी अक्किल में केहू से छोट ना गिनायल चाहें।

“ए बचवा। हमार धन हो। केहूओ रहे बाकिर आपन माई जब ना रहेलीं न त लइका-लइकी टुवरे हो जालन। ए भाई सब बोलत-बतियावत ह बीनवा कहवां हे? कहंवा हऊ ए बीना बाची।” आजी इनके-उनके टोवे लगलीं। आजी क लकड़ी नियन अंगुरी जेके छुआय जाय उहे कऊँच के कहे ‘ का हाड़ गड़ावत हऊ आजी। इंहवा तोहार बीनवा ना हे। कहीं होई कोने-अतरे लुकाइल-सोकताइल। कहनिया सुनावा न। आगे का भइल। का भइया लोग बचवलन जा अपने बहिन के ? की मर-बिलाय गइलीं? ‘ सबके कहनी क चिंता रहल अउर आजी के बीनवा क।

“जा लोग पहिले बीनवा के बोलाय ले आवा जा तब कहनी सुने के मिली नाहीं त ना सुनाइब।”

सब जान जाय की अब बीनवा बिना कहनी ना सुने के मिली। एक-एक क के लइका भाग-पराय जाएं बाकिर केहू बीनवा के बोलावे ना जाए। आजी दुनू आँख से आन्हर। तनिको ना लउके। बस बीनवा-बीनवा गोहरावें। बड़की बखरी ए ! बीनवा, ए ! बीनवा के टांठ अवाज से गूंजे लगे आ कुल बेटी पतोह बटुराय के बूढ़ी के गरिआवे लगें। जाने कवने कोना-अंतरा में लुकाइल बीनवा दउड़ के आजी के कोन्हरी वाले घर में पहुंच जाए- ” काहें चिचियात हऊ। चुप रहा। इहंवे हईं हो आजी।”

बीनवा आजी के अन्हरिया क अंजोर रहल। उनकर हाथ-गोड़। बिना माई के बीनवा क ओह बड़की बखरी में केहू आपन रहल त बड़की आजी अउर सात लइका-सात पतोह के चालीस परानी से भरल-पूरल घर में आजी क केहू आपन रहल त बीनवा।

” कुछ चाही ? पानी ले आईं ? नहईबू ? खाए के चाही ? बोला ? ” बीनवा एक्के साँस में पूछे आ आजी ओकर हाथ धय के बइठा लेवें।

” पहिले बताव कहवाँ रहली ह ? स्कूले गइल रहली ह ? का ? ना गइली ह आजो ? जा ए बाची ! तोहार माई तोहरे खातिर का-का ना सहलस। मार-धक्का खइलस बाकिर तोहके पढ़ावे में कवनों कोर-कसर ना छोड़लस। बाक़ी तू पढ़बू ना न …?” आजी एक्के सुर में बोलें बाकिर बीनवा कुछ ना बोले। गुमसुम उनके बगल में आके सूत  जाए।

” आजी हो ! मम्मी कइसन रहलीं ? का हमके मानत रहलीं ?” ई एगो अइसन सवाल रहल जवने के पूछत क ना त बीनवा थके ना बतावत क आजी थकें।

” का बताईं बाची। कुल गाँव घूम आवे केहू बाकिर ओकरे नियन गिहिथिन-सुग्घर पतोह ना देखाई। अइसन-अइसन खाना बनावे की पेट भर जाए बाकिर हियरा ना जुड़ाये। किसिम-किसिम क कपड़ा सी घले। हमार कुल बेलाउज-साया उहे सीयले रहल। हऊ जवन टेबुलवा पर मेजपोस ह उहे सीयले रहे। हमहूँ सात गो पतोह अउर लेहड़ा भर नातिन पतोह उतरलीं। केहू ओकरे गोड़ क धोवन ना ह। हमके अबहीं तनी-मनी देखाय। नहाए-धोवे लाठी लिहले चल जाईं बाकिर तोहार माई पीछे लगल आवे। अकेले ना छोड़े। अपने सास के डरन हमसे ढेर बोले ना बाक़ी आड़े अलोते कुछ नीक नोहर बनावे त मुठिए में लुकववले दे जाए। तोहार आजी एक ले चुरइन। अइसन सोना नियन पतोह क जियल हराम क देवे बाकिर का मजाल कि दुलहिया कब्बो ओकर बुराई बतियावे। कब्बो ना ए बाची। बेचारी कुल आग अपने छाती में दबवले चलि गइल। केहू ना जान पइलस की काहें आपन परान ले लिहलस। तोहन दुनू भाय-बहिन के टुअर-टापर बना गइल…। ” जेतने आजी रोवें ओतने बीनवा बाकिर धीमे-धीमे काहें की आजी के कोन्हरी वाले घर मे वइसे त केहू ना झांके बाक़ी इन्हन दुनू जानी क बतकही कइसे देवाल डांक जाए पते न चले।

“जब उनकर परान जात रहे ओह समय कुछ कहलीं का ऊ ?” बीनवा एक्के बतिया आजी से पूछे अऊर आजी ओके फिर-फिर बतावे में कब्बो ना अनकसांय।

” तोहार माई तोहरे नाम गोहरावत चलि गइलीं। ओकर करेजा रहलू तू ए हमार बाची।” आजी बीना क कपार सुहरावत उनके अपने करेजा से लगाय लेवें।

” आजी हो !”

” हं, बोला बाची।”

” एक बेर जा के भगवान जी ओरी से का केहू कब्बो ना आवेला ?”

” नाहीं हो ।”

” सपनों में ना ?”

” का कहल जा सकेला।”

” आजी हो ?”

” हं बोला बाची।”

” एगो बात पूछीं। तोहके बुरा ना न लगी ?”

” पूछा ….।” बीनवा बहुत कोसिस करे बाक़ी बात ना पूछ पावे। आजी नब्बे पार हो गइल रहलीं। चमड़ी हाड़ छोड़ दिहले रहल अउर जगह-जगह से झूल गइल रहल। आँख-दाँत, हाथ-गोड़ सबही से लचार। नहाए बैठें त लुग्गा पहिरे खातिर इनके-उनके गोहरावें बाकिर केहू अपने कमरा से हाली बहरियाये ना। टट्टी-पाखाने जाएं त केहू पानी देवे ना आवे। बइठल-बइठल जब ना रह जाए त रोवे-गरिआवे लगें। केहू अइबो करे त एतना झनके-पटके कि सात लइका आ सात पतोह के माई क भरल-पूरल परिवार देवी-दुर्गा मनावे की बड़की बखरी क बड़की बुढ़िया मू जात त जान छूटत। बीनवा जेकरे लग्गे बइठे ऊहे बड़की बुढ़िया के कोसे लगे। बड़की बुढ़िया सबके कुफुत क कारन रहे। सब मिलके बड़की बुढ़िया के सरापे बाकिर बड़की बुढ़िया पर कवनों असर ना देखाय। बीनवा बड़की बुढ़िया से पुछल चाहे की केहू क सराप केहू पर लगेला कि ना ? लेकिन ना पूछ पावे।

एक दिन बीनवा आजी के बगल में सूत के उनके अपने स्कूल क खिस्सा-कहनी सुनावत रहल की आजी एकाएक टोकलीं –

” ए बाची ! जा बक्सा में से अपने माई क बीनल अक्किल गुम ले आवा।” आजी फुसफुसा के कहलीं।

” उ का होला ? ” बीना आजिए नियन फुसफुसा के पूछलीं।

” हाली जा नाहीं त केहू आ जाई।” आजी अइसे हड़बड़ी में रहलीं कि बीना क करेजा धड़के लगल रहे। बीना बक्सा में से क्रोसिया से काढ़ल एगो सफेद-नीला रंग क बटुआ नियन कुछ ले अइलीं। आजी क दुनू तरहत्थी आँख बनि गइल रहे। बटुआ चौकोर बीनल गइल रहल। आजी चारो कोना के झालर के टो-टो के खींचे लगलीं। बहुत मेहनत के बाद एगो कोना क झालर ढील भइल आ ओम्मे अंगुली जाए लायक फांफर जगह बनल आ ओम्मे से मटर के दाना जइसन गोल-गोल सोने के चमकत काने क टप्स निकलल। आजी बिना आँख क देखत रहलीं आ बीनवा भरल आँखि लिहले आँख होते हुए भी देख ना पावत रहल।

आजी कहत रहलीं ‘ तोहरे बदे सबसे लुकवाय के बनववले रहल तोहार माई। ए बाची, के रहल ओकर आपन कि समझत ओके। हमरे लग्गे रखि गइल रहे। हमार का भरोसा, क दिन जिहीं। चोराय के ध लिहा। अपने बियाहे में माई क निसानी समझ के लेले जइहा।’

आजी बारह बरीस के बीना के काँपत हथेली में माई क निसानी थमावत धिरावत रहलीं ‘ केहू से कहिहे जिन नाहीं त छीन लिहन स। देख त बक्सवा में लाल पियर चुनरी होई ..ह ?

” हं …।” बीना सिसकत कहलीं।

” एहू के ध ले। हमार निसानी। तोरे बियाह ले फाटी ना। बहुत मजबूत बिनाई ह। जवन जरी क तार देखत हई न उ चानी क ह। हमार माई देले हे। ओह घरी पूरे जवार में हल्ला मचि गइल रहे कि हेतना महंग चुनरी लीलावती के चढ़ावल गइल ह।”

“तोहार नाम लीलावती ह आजी ?”

” हं रे।”

” बतावा। केहू के पते ना ह घर में …हमहूँ के ना बतवले रहतू त ना पता चलत।”

” आजी हो ! एगो बात पूछीं ?” बीना आजी क बक्सा रखत कहलीं।

” पूछ न। काहें डेराली ?”

” डेराई ला ना ..।”

” तब ? ”

“तोहके बुरा लगी न ऐसे ना पूछिला।”

” अरे बक्क बाची। तोरे बात क काहें के बुरा लगी। अच्छा पूछ।”

” अगर हम केहू के सराप देहीं त ओके लग जाई का ?” बीना सोकतइले पूछलीं।

” नाहीं हो। ई कुल कहले-सुनले क बात ह। अच्छा केके सरपले रहलू ह ?” आजी हँसत रहलीं।

” छोड़ा ! तोहके बतावे जोग बात ना ह । ” बीना अपने माई अउर आजी क दीहल निसानी लुकवावे के फेर में चिंता में पड़ल कहलीं।

” झूठ काहें बोलत हई। तू गऊ नियन सिधवा लइकी। काहें केहू के सरपबी। साँच बताव। के केके सरापत रहल ह।”

” छोड़ा न आजी। तोहरे मतलब क बात ना ह।” बीनवा के डर रहल की आजी झूठ पकड़ न लें। हड़बड़ी में उ कमरा में से भागल चाहत रहल की आजी ओकर बाँह पकड़ के अपने लग्गे बइठा लिहलीं।

” बतावा न बाची। तोहके हमार किरिया।” बीनवा केहू से सुनले रहल की किरिया खाके जदी झूठ बोलल जाला त जेकर किरिया खाइल जाला ऊ मू जाला। बिना किरिया खइले बीनवा आजी से सांच छिपावे क बहुते कोसिस कइलस बाकिर आजी नान्ह लइका नियन जिदिया गइल रहलीं।

” बतावा बाची। ” आजी क जिद पर बीना के बतावे के पड़ल की घर भर में सबही उनके सरापे ला। इँहा तक कि बड़को बाबा जिनके आजी सबके ले ढेर माने लीं। सबकर सरपले क आजी के बुरा ना लगल बाकिर बड़का बाबा क नाम ध-ध के कई बार पूछलीं ‘ अच्छा त बताव बचवा का – का कहेलन। तोहके हमार किरिया। कौनो आड़-परदा मत करीहे। बिना ढकले-तोपले बताव की बचवा का-का कहेलन।’ ओह दिन आजी बीनवा के आपन किरिया धराय के कुल्ह भेद ले लिहलीं। बीनवा रात भर आजी के बगल में रोअलस बाकिर आजी एक्को बार ओके चुप ना करवलीं। ओह दिन के बाद बड़की बखरी में केहू बड़की आजी क बोली ना सुनलस। बीनवो ना। आजी के सराप लगि गइल रहे।

डॉ. सुमन सिंह

वाराणसी

 

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