कहानी
पं. प्रभाकर पांडेय ‘बाबा गोपालपुरिया’
नींद अउर आंखि के रिस्ता अब एकदम्मे खतम हो गइल रहे। बार-बार उ इहे सोंचे लागल की बुजुर्ग इ काहें कहने हं की उ जवने सीट पर रहने हं उ अभिसापित बा, अउर साथे-साथे उ हमरा के अपनी टेसन ले जगले रहे के हिदायत दे गइने हं। खैर, अब टरेन भोंपू बजा देले रहे अउर खुस होके धीरे-धीरे आपन उतावलापन देखावत फेन से आपन स्पीड पकड़ल सुरू क देले रहे। टरेन के खुस देखि के बदरन के भी रहाइल ना अउर झमाझम बारिस में टरेन भींगे लागलि। पांचों मिनट ना बितल होई कि …
‘’हमार नाव चंदा हS। हम अपनी मउसी की घरे जा तानी।” सूरज भी हकलाके बोल परल, “हम सू…र..ज।” बस ए से अधिक ओकर डकार ना फूटल। एकरी बाद त उ नवजुबती ए तरे से बोलल सुरु क देहलसि, जइसे की उ कवनो समाचार-वाचिका होखे अउरी ओकरा 10 मिनट में बिना बरेक के हजारनगो समाचार सुनावे के होखे। सूरज त बस थूक घोंटले बइठल रहे अउर डेरात-डेरात अपनी टेसन के बेसब्री से इंजतार करत रहे।
लगभग 10 मिनट ना बीतल होई की उ नवयुबती (चंदा) शयनकालीन खूबसूरत, मादक पोशाक में बिखरन बालन की साथे दुनु हाथन में चाह के दु गो प्याली लेहले मादक अंदाज में चलत ओ कमरा में दाखिल भइल अउर मुस्कुरात एक प्याली चाह सूरज की ओर बढ़ा देहलसि। कंपकंपात हाथन के संभालत अपनी दायां हाथ के आगे बढ़ावत मने मन भगवान के गोहरावत सूरज कइसे भी क के उ प्याली अपनी हाथ में थामि लेहलसि अउर सुर्र-सुर्र क के चाह पियत अपनी आप के गरमावे लागल। अबहिन सूरज प्याली के पूरा चाह खतम ना कइले रहे, तवलेकहीं ओ के एगो बहुते अजीब अउर भयानक चीजु लउकल, जवन ओकर सीट्टी-पिट्टी गुम करे खातिर काफी रहे।
अरे इ का, जब प्याली रखले की बाद चंदा सूरज की लगे आइल त थोड़ा सहमि के सूरज से लमहिं खाड़ हो गइल अउर कातर दृष्टि से सूरज की ओर देखत उ रुद्राक्ष के माला निकाले के इसारा करे लागलि। अब त सूरज सब कुछ समझि गइल रहे, उ मन ही मन मुस्कुरात सिरहाने रखल हनुमान चालीसा के उठा के जोर-जोर से पढ़े लागल। एरे इ का, एन्ने सूरज हनुमान चालीसा पढ़ल सुरू कइलस अउर ओन्ने उ चंदा के सुंदर, आकर्षक, मासूम चेहरा अब अचानक कठोर होखे लागल अउर देखत ही देखल उ पूरा भयानक लागे लागल। एकदम ओइसने जइसन सूरज कुछ देर पहिलहीं उहां सीसा में देखले रहे।
ओ बेरा सावन अपनी जवानी के पार करत भादों के राह देखत रिसी में बुत होके नदी, गढ़ही, ताल-तलइयन के उभान कइले में लागल रहे। राति के करीब 11 बजत रहे। ओ राति की भयावह सैतानी कालिमा के करिया घनघोर बदरा अउर भी भयानक बना देले रहे। ये भयावह, रोंगटा खड़ा क देवे वाली रात के परवाह न करत गुगली-राधेनगरी एक्सपरेस एकदम्मे तेज रफ्तार से अपनी मंजिल की ओर दउड़ लगावत चलि जात रहे। अपनी सखी लौह-पटरियन के बेरहमी से रौंदत एगो बावली प्रेयसी की तरे, अपनी मंजिल रूपी परेमी से मिले खातिर उतावली इ एक्सप्रेस; आत्मा अउर परमात्मा की मिलन में आवे वाली मोह-माया के कइसे दरकिनार करे के बा, एकर सच्चा तस्वीर इ पेस करत रहे। हमेसा साथ रहे वाला, पग-पग पर साथ निभावेला पटरियन के इ छोड़ि के उड़ि गइले की फिराक में रहे। ना एकरा अपनी हमसखी पटरियन से कुछ लेना देना रहे अउर ना ही काल-चक्र से; एकरा त बस मंजिल लउके, मंजिल….मंजिल से एकाकार होखे के एकर बेचैनी साफ झलकत रहे।
एही टरेन की एगो डिब्बा में सूरज भी जतरा करत रहे। उ ‘पं. प्रभाकर पाण्डेय गोपालपुरियाजी’ के लिखल ‘ब्रह्म पिशाच’ के पढ़त-पढ़त पते ना चलल की कब भूत-परेतन की रहस्यमयी, अलौकिक, रोंगटा खड़ा क देबे वाली दुनिया के सयेर करत अपनिए सीट पर ओंधी की प्रेम-पल्लवित आगोस में समा गइल। हं, लेकिन ओकरिए पास की सामने वाला सीट पर सुतल एगो बुजुर्ग मनई करवट पर करवट बदलत रहने। ओ बुजुर्ग की करवट बदलले के कारन इ रहे कि अगिला टेसन पर उनकरा उतरे के रहे। अगिला टेसन आधा-पवन घंटा में आवेवाला रहे। ठीक 11 बजि के 40 मिनट पर चों-चों-चीं-चीं के दर्दभरी आवाज करत उ टरेन रुक गइल। ये चों-चों-चीं-चीं में टरेन के मजबूरी त रहबे कइल पर ड्राइबरे पर ओकर रिसि साफ झलकत रहे। रिसिआव काहें ना बेचारी, ओकरी न चाहते हुए भी, ओकर मखौल उड़ावत, ओ के गुलामियन की बेड़ियन से जकड़ि के रोक देले रहे ड्राइबर।
टरेन की रुकते, उ बुजुर्ग महोदय, फौरन अपनी सीट से उतरि के सूरज की सीट की लगे पहुंचि गइने अउर जोर-जोर से सूरज के हिलावत कहने, “बेट्टा, बेट्टा उठ ना! हमार टेसन आ गइल बा, तनि हमार सामान उतरववले में मदद क दे।” सूरज बिना कुछ बोलले, आंखि मलत, अधखुले मुंह से जम्हाई लेत उठि के बइठ गइल अउर फेर सीट से उतरि के ओ बुजुर्ग की सीट की नीचे से उनकर अटैची अउर एगो भारी-भरकम बेग निकाले लागल। सूरज अबहिन सामान निकालते रहे, तवले कहीं उ बुजुर्ग फेर से बोलि पड़ने, “बेट्टा, जल्दी कर। इ टरेन इहवां अधिका समय ले ना रुके ले…2-3 मिनट के स्टाप ह इ।” ओ बुजुर्ग के बाति सुनि के सूरज कुछ ना कहलसि बस इसारा-इसारा में ही ओ बुजुर्ग मनई के नीचे उतरे के कहि के एक-एक क के उनकर कुल्हि सामान नीचे उतार देहलसि। सामान सही-सलामत नीचे उतरि गइल ओकरी बाद उ बुजुर्ग खुस होखले की बजाय तनि चिंतित हो के सूरज की ओर देखने अउर फुसफुसात कहने, “बेट्टा, तनि सावधानी रखिहे, काहें कि हमार सीट अभिसापित बा। देख, 12 बजे के बा, अच्छा होई कि तें अपनी टेसन पर उतरले ले जगले रहु, वइसे भी 3-4 घंटा में तोर टेसन आइए जाई।” सूरज कुछ समझि ना पवलसि पर चेहरा पर परसन्न मुद्रा बनावत ओ बुजुर्ग मनई के हाथ हिला के अलबिदा कहलसि। फेर सूरज उहवें चाह बेंचत एगो लइका से एक भरुका चाह लेहलसि अउर सुरुढ़-सुरुढ़ गरम चाह के चुसकी लेत अपनी सीट पर आके बइठ गइल। चाह खतम भइले की बाद उ खिरकी से भरुका बाहर फेंक देहलसि अउर फेर ओ बुजुर्ग की कहल बात के अनमना होके सोंचे लागल। अब त बार-बार सूरज की दिमागे में ओ बुजुर्गे के ही बाति घुमे लागल अउर नींद ओकरी आंखि से कोसो दूर भागि गइल। नींद अउर आंखि के रिस्ता अब एकदम्मे खतम हो गइल रहे। बार-बार उ इहे सोंचे लागल की बुजुर्ग इ काहें कहने हं की उ जवने सीट पर रहने हं उ अभिसापित बा, अउर साथे-साथे उ हमरा के अपनी टेसन ले जगले रहे के हिदायत दे गइने हं। खैर, अब टरेन भोंपू बजा देले रहे अउर खुस होके धीरे-धीरे आपन उतावलापन देखावत फेन से आपन स्पीड पकड़ल सुरू क देले रहे। टरेन के खुस देखि के बदरन के भी रहाइल ना अउर झमाझम बारिस में टरेन भींगे लागलि। पांचों मिनट ना बितल होई कि टरेन फेर से अपनी पूरा स्पीड में आ गइल अउर बरखा भी अब अपनी जवानी की दहलीज पर कदम रखि के टरेन की रफ्तार से आपन रफ्तार मिलावे लागल। मधिम-मधिम हवा की साथे जोरदार, घर्घराहट के आवाज करत ओ बरखा अउर टरेन के स्पीड की चलते अब हवा भी डेरवावत सांय-सांय करे लागल।
सूरज की आस-पास के सीट भी लगभग खाली ही हो गइल रहनींसन, काहेंकि सब टेरनहिया लोग पहिलहीं की टेसनन पर उतरि गइल रहे लोग, अउर पिछला टेसन पर एगो बचल बुजुर्ग भी सूरज के आगाह क के टेंसन देत उतरि गइल रहने। खैर, सूरज डेरायेवाला थोड़े रहे, फिर भी उ सोंचलसि की भिनसहरे लगभग 3-4 बजे ले हमार टेसन आइए जाइ, त काहें ना जागि के ही सफर काटि लेहल जाव। उ बुजुर्ग की उतरत समय जलावल गइल बत्तियन के वइसे ही जरत छोड़ देहल ठीक ना बुझलसि अउर अपनी ऊपर की एक बत्ती के जरत छोड़ बाकी सब बत्तियन के बुझा देहलसि। बत्तियन के बुझवले की बाद उ अपनी सीट पर सामने वाला सीट की ओर मुंह क के लेटि गइल अउर आंकि बंद क के कुछ गुनगुनाए के कोसिस करे लागल।
टरेन अपने प्रियतम से मिलले खातिर आतुर कवनो मदमस्त नवयौवना की तरे बारिस के परवाह न करत, सरसरात, तेज गति से पटरियन से आपन नाता तुड़त दउड़त चलि जात रहे। अचानक बिजुरी कउंधल अउर डिब्बा की खिड़की में लागल कांच के पार करत डिब्बा में कुछ देर खातिर ऊंजियार क के रफूच्चकर हो गइल। तब्बे अचानक हड़बड़ा के सूरज उठि के अपनी सीट पर बइठ गइल। ओकरा एइसन लागल की कवनो मनई तेज कदम से ओकरी डिब्बा में आइल होखे। अरे इ का, उ कुछ समझे एकरी पहिलहीं एगो नवयुवती अटैची थमले धड़ाम से आके सामने वाला सीट पर बइठ गइल। मधिम रोसनी में उ बहुते सुन्नर लागत रहे। उ पूरा तरे भींगल रहे अउर ओकरी बालन की लटन से लगातार ठोप्पे-ठोप्पे पानी चुवत रहे। सूरज हक्का-बक्का हो के इ सब देखते रहे, तवलेकहीं उ नवयौवना आपन अटैची खोलि के ओ में से तउली निकालि के आपन बार पोंछे लागलि। जब उ अपनी बालन के पोंछे लागलि त ओ मंद परकास में ओकर खूबसूरती अउर बढ़ि गइल रहे। अबहिन सूरज सहज भइले के कोसिस करो, ओकरी पहिलहीं ओकरा ओ बुजुर्ग यातरी के बात मन परि गइल। फेन उ लागल सोंचे कि एतना तेज बारिस में, एतना तेज रफ्तार वाली टरेन में इ बला (बाला) चढ़ल त चढ़ल कवनेंगा? जेहन में इ बात अवते, उ पूरा तरे पसीना-पसीना हो गइल। फेन ओकर दिमाग अपनी दिमागी मजबूती के गवाही देत कहलसि की हो सकेला की पिछला टेसन पर ही इ जुबती कवनो दूसरे डिब्बा में चढ़ि गइल होखे अउर अब ए डिब्बा में अपनी सीटे पर पहुंचल होखे। पर फेर सुस्त दिमाग की भेजा में इ संका उत्पन्न भइल की अगर इ पिछला टेसन में कवनो दूसर डिब्बा में चढ़ि भी गइल होखे त भींगल काहें बिया, काहें की पिछला टेसन पर टरेन की चलले की साथे बारिस शुरू भइल रहुवे। अउर इ ए तरे भींगल बिया, जइसे लागता की अब्बे खूब बरखा में भींग के आइल होखे। अब त सूरज के दिमाग एकदम्मे काम कइल बंद क देहलसि अउर उ बिन बरसा के भी अनवरत पसीना से पूरा तरे नहाए लागल। एतने ना, पसीना के कुछ बूंद त ओकरी लिलारे पर घर बनावत एक-एक क के ओकरी आंखि की ओर बढ़े लगनीसन। उ गुमसुम मन से डेरा के सहमि गइल अउर बिना कुछ बोलले अपनी सीट पर जड़वत बनि गइल।
5 मिनट की सन्नाटेदार चुप्पी की बाद, उ नवयुवती मंद मंद मुस्कुरात हाथ मिलववले की अंदाज में आपन हाथ सूरज की ओर बढ़ावत बोल पड़लि, “हमार नाव चंदा हS। हम अपनी मउसी की घरे जा तानी।” सूरज भी हकलाके बोल परल, “हम सू…र..ज।” बस ए से अधिक ओकर डकार ना फूटल। एकरी बाद त उ नवजुबती ए तरे से बोलल सुरु क देहलसि, जइसे की उ कवनो समाचार-वाचिका होखे अउरी ओकरा 10 मिनट में बिना बरेक के हजारनगो समाचार सुनावे के होखे। सूरज त बस थूक घोंटले बइठल रहे अउर डेरात-डेरात अपनी टेसन के बेसब्री से इंजतार करत रहे। अचानक पता ना का भइल की खूब तेज चोंइयात अउर न चाहि के भी टरेन अपनी जगहि पर एकदम्मे जड़वत हो गइल। एइसन लागल की पटरीकुल टरेन की पहिया से पूरा तरे लपटिया के ओके आगे बढ़ले से एकदम्मे रोक देले बानी सन। सायद कवनो बहुत छोट टेसन रहे…एकदम उजाड़ वाला..जहां एगो बलफ टिमटिमाट रहे। अबहिन सूरज कुछ समझि पावे तवलेकहीं ओ टेसन पर लगल माइक ओ जोरदार बारिस में घोंघिया उठलनसन। एगो मरदानी आवाज में घोसना कइल जात रहे की तकनीकी खराबी की चलते गुगली-राधेनगरी एक्सपरेस अबे आगे ना जा सकेले। ए तकनीकी खराबी के दूर कइले में घंटन लगि सकेला। सब यातरी लोग सहजोग करो। सूरज खातिर अब एगो अउर नया मुसीबत। अब त ओकर दिमाग पूरा तरे चकरा गइल, रोवाइन परान हो गइल। अब उ करे, त का करे? उ घड़ी की ओर निगाह डललसि, राति के 2 बजे जात रहे। फेन मन के तसल्ली देहलसि की वइसे भी 2-3 घंटा में सबेर हो जाई, तवलेक टरेने में बइठल-बइठल ही इंजतार कइल ठीक रही। तब्बे, ओकरी सामने की सीट पर करवट बदलत उ खूबसूरत नवयौवना बोल परलि, “लागता कवनो बड़का खराबी हो गइल बा। अगर तूं चाहS त हमरी साथे टरेन से उतरि सकेलS। ए टेसन से तनिके सु दूरी पर हमार एगो रिस्तेदारी बा, हमनी जा उहां जा सकेनीजां अउर फेर सबेरे-सबेरे कवन अउर टरेन पकड़ि के अपनी-अपनी टेसन की ओर?।” ओकर इ बाति सुनि के सूरज कुछ बोल त ना पवलसि पर पता ना काहें, ओ नवजुबती की पीछे-पीछे आपन समान ले के उतरि गइल।
तेज बरखा में अपनी तेज-तेज कदमन से छप-छप करत टेसन से बाहर जात उ नवयुवती अउर बेसुध हो के ओकरी पीछे बेमन से कदम बढ़ावत सूरज। लगभग 5-7 मिनट चलले की बाद उ नवजुबती एगो घर की लगे पहुंचि के बाहर लागल घंटी बजवलसि। ओकरी घंटी बजवते दरवाजा खुलल अउर उ घर में ढुके लागलि, सूरज भी ओकरी पीछे-पीछे घर में ढुकल। ओ घर की भीतर खाली एक्के मेहरारू रहे, पर सूरज ओ हू के ठीक से देखि ना पवलसि। खैर घर की अंदर पहुंच के उ चंदा नाव के जुबती घर में से एगो तउली लिया के सूरज की ओर बढ़ावत कहलसि की कपार-देहिं पोंछि ल। एकरी बाद उ काफी महंगा रात में पहिने जाए वाला पहनावा भी सूरज के ले आ के देहलसि। पहनावा देहले की बाद, उ नवजुबती हौले-हौले मुस्कुरात कहलसि, “तूं आराम से आपन कपरा बदललि ल, तवलेक हम गरमागरम चाह बना के ले आवतानी।” ओ खूबसूरत नवजोबना चंदा की चेहरा पर एगो अजीब रहस्यमय परेम में सनल सांति पसरल रहे। अब सूरज तनि-मनि सहज महसूस करत रहे पर ओकरी मन से डर अबहिन पूरा तरे निकलल ना रहे। उ धीरे से कहलसि, “चाह पिए के मन त नइखे करत” पर पता ना फेर का सोंचि के कहलसि, “ठीक बा, बनवा दीं तनि चाह।”
लगभग 10 मिनट ना बीतल होई की उ नवयुबती (चंदा) शयनकालीन खूबसूरत, मादक पोशाक में बिखरन बालन की साथे दुनु हाथन में चाह के दु गो प्याली लेहले मादक अंदाज में चलत ओ कमरा में दाखिल भइल अउर मुस्कुरात एक प्याली चाह सूरज की ओर बढ़ा देहलसि। कंपकंपात हाथन के संभालत अपनी दायां हाथ के आगे बढ़ावत मने मन भगवान के गोहरावत सूरज कइसे भी क के उ प्याली अपनी हाथ में थामि लेहलसि अउर सुर्र-सुर्र क के चाह पियत अपनी आप के गरमावे लागल। अबहिन सूरज प्याली के पूरा चाह खतम ना कइले रहे, तवलेकहीं ओ के एगो बहुते अजीब अउर भयानक चीजु लउकल, जवन ओकर सीट्टी-पिट्टी गुम करे खातिर काफी रहे। दरअसल उ जवने कमरा में बइठल रहे, उहवां बगलिए में एगो बहुते बड़हन सीसा लागल रहे। अचानक उ ओ सीसा में तकलसि, त का देखता की ओ सीसा में एगो बहुते भयावह एक आंखिवाली चुड़इल लउकSतिया। उ अपनी गांव-जवार में चुड़इल के जवन बखान सुनले रहे, इ चुड़इल भी एकदम्मे ओइसने रहे। ए चुड़इल के बार एकदम्मे लटिआइल, पूरा तरे तितर-बितर अउर चेहरा एकदम्मे विभत्स। सूरज एकदम्मे घबड़ा गइल काहें की ओकरी लगे बइठल चंदा त बहुते मोहक अउर पेयारी रहे। संघे-संघे ओकरी अउर चंदा की अलावा ओ कमरा में केहू ना रहे, तो फेन सीसा में लउकत उ चुरइल कवन रहे? उ सुनले रहे की भूत-परेत-चुड़इल-डाइन कुल के सीसा में असली रूप लउकि जाला। अब उ तनी सावधान होत, हनुमान जी के नाव लेत चाह पी के खाली प्याली चंदा की ओर बढ़ा देहलसि। चंदा के प्याली पहिले ही खाली हो चुकल रहे। सूरज की हाथ से प्याली लेहले की बाद उसे धीरे से उठल अउर हथिनी जइसन चाल से चलत घर की अंदर चलि गइल। ओकरी जाते सूरज फेन ओ सीसा में देखलसि, त का देखता की चुरइल अब गायब बिया।
खैर, सूरज अब काफी सावधान हो के सोंचे लागल की अब का करीं, तवलेकहीं ओकरा टरेन में मिलल ओ बुजुर्ग मनई के बात इयादि आ गइल। अब सूरज समझि गइल रहे की उ बुजुर्ग मनई का कहल चाहत रहे। खैर तब्बे सूरज के नेटुआबीर बाबा के इयाद आ गइल। दरअसल नेटुआबीर बाबा के थान सूरज की गांव में एगो बगीचा में बा अउर नेटुआबीर बाबा एगो बहुते परतापी देवता मानल जाने। सूरज जब-जब गांवे जाला त उ नेटुआबीर बाबा की थाने के साफ-सफाई क के अगरबत्ती जरा के उनके गोड़ जरूर लागेला। सूरज की गांव के लोग के पूरा विस्वास बा की अंधरिया होखे चाहें केतनो बड़हन बिपति पड़े, पुकरले पर नेटुआबीर बाबा गांव की हर मनई के रछा करे जरूर आवेने। अब सूरज बार-बार मन ही मन लागल नेटुबाबीर बार के गोहरावे। अरे ई का अबहिन उ 10-12 बेर ही नेटुआबीर बाबा के नाव लेहलसि तवलेकहिं एगो खूब तेज, डरावनी आंधी जइसन हवा ओ कमरा में परवेस कइलस। उ हवा एतना तेज रहे की ओ कमरा में लागल सीसा भी एकदम्मे हिले लागल। इ देखि के सूरज डरि गइल अउर आंखि बंद क के भोंकारि पारि के रोवे लागल। साथे-साथे नेटुआबीर बाबा के गोहरावत जा। अचानक का भइल की सूरज के लागल की ओकरी कंधा पर केहू हाथ धइले बा। उ डेराते डेरात आंखि खोललसि त का देखता की एगो बुजुर्ग, सौम्य, अलौकिक देहिं वाला मनई ओकरी लगे खड़ा बा, जवने की गठल पूरा देहिं से खूब चमकदार आभा निकल रहल बा। सूरज कुछ बोले, ओकरी पहिलहीं उ देवतुल्य मनई बोल परल, “सूरज डेरइले के ताक नइखे। हम नेटुआबीर बाबा हईं। तूं एगो काम करS, अपनी अटैची में से रुद्राक्ष के माला निकालि के पहिन लS अउर हनुमान चालीसा निकालि के अपनी सिरहाने ध लS।” सूरज फटाफट अटैची खोलि के रुद्राक्ष के माला पहिन लेहलसि अउर हनुमान चालीसा सिरहाने ध देहलसि। एकरी बाद नेटुआबीर बाबा कहने की एकदम्मे डेरइले के ताक नइके, अब उ चुरइल तोहार कुछ बिगाड़ ना पाई, हिम्मत राखS, हमरा ए बेरा अब्बे गांवे जाए के परी, कवनो भगत इयाद क रहल बा। एकरी बाद नेटुआबीर बाबा अंतरधान हो गइने अउर सूरज मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़े लागल। इस सब भइले में पांचो-सात मिनट ना लागल।
अरे इ का, जब प्याली रखले की बाद चंदा सूरज की लगे आइल त थोड़ा सहमि के सूरज से लमहिं खाड़ हो गइल अउर कातर दृष्टि से सूरज की ओर देखत उ रुद्राक्ष के माला निकाले के इसारा करे लागलि। अब त सूरज सब कुछ समझि गइल रहे, उ मन ही मन मुस्कुरात सिरहाने रखल हनुमान चालीसा के उठा के जोर-जोर से पढ़े लागल। एरे इ का, एन्ने सूरज हनुमान चालीसा पढ़ल सुरू कइलस अउर ओन्ने उ चंदा के सुंदर, आकर्षक, मासूम चेहरा अब अचानक कठोर होखे लागल अउर देखत ही देखल उ पूरा भयानक लागे लागल। एकदम ओइसने जइसन सूरज कुछ देर पहिलहीं उहां सीसा में देखले रहे। चंदा के पूरा तरे खुलल बार हवा में लहराए लागल अउर उ गरजे लागलि अउर संघे-संघे अट्टहास भी करे लागलि। उ चिल्लाए लागलि की तें हमसे बचि के ना जा सकेले, हम तोर अंत क देइब, लेकिन चंदा की भयानक रूप अउर चिल्लइले के सूरज पर कवनो असर ना परल; उ परेम से हनुमान चालीसा पढ़ल जारी रखलसि। अब सूरज हनुमान चालीसा पढ़त धीरे-धीरे ओ कमरा से बाहर निकले लागल। ओन्ने उ चंदा अपनी मायाजाल में सूरज के उलझावे के, डेरवावे के पूरा कोसिस कइल चालू रखलसि पर सूरज पर अब ए चीजन के कवनो असर पड़त ना दिखत रहे। अबहिन सूरज ओ घर से निकलि के तनिके दूर आगे आइल त का देखता की उ घर-बस्ती सब गायब बा अउर उ चंदा (चुरइल) भी। अरे इ का, अब त उहां एगो भयानक जंगल रहे। घना अउर बीहड़ जंगल। सूरज के रस्ता ना सूझत रहे की केन्ने जाए के बा। फेर उ नेटुआबीर बाबा के इयाद कइलस। ओकरी इयाद करते नेटुआबीर बाबा उहां आ गइने अउर आगे-आगे चले लगने। सूरज अचानक पूछ परल की बाबा, इ कवनि चुरइल रहलि ह, अउर हमके काहें परेसान करत रहलि ह। नेटुआबीर बाबा कुछ बोलने ना अउर सूरज के जंगल से बाहर निकाली के कहने, “सूरज हउ जवन सामने बस्ती लउकता, ओ में के पहिलका घर के दरवाजा खट-खटवले पर तोहरी सवाल के जवाब मिल जाई।” एतना कहि के नेटुआबीर बाबा फेनु अंतरधान हो गइने।
बस्ती में पहुंचि के जइसे ही सूरज नेटुआबीर बाबा द्वारा बतावल ओ घर के दरवाजा खटखटवलसि, दरवाजा खुलल अउर ओ में से एगो बुजुर्ग मनई निकलल। उ मनई सूरज से पूछलसि की बाबू तूं के हव, अउर तोहरा के से मिले के बा? ओ बुजुर्ग की एतना पूछते सूरज रात वाली सारी घटना एकसंसिए ओ के सुना देहलसि। सूरज के बात सुनले की बाद ओ बुजुर्ग की आंखन से लोर टप-टप चुवे लागल। उ बोल पड़ल, “चंदा हमरे लइकी रहे, जवन 5 साल पहिले परलोक सिधार गइल।” फेन लंबा सांस छोड़त उ मनई कहलसि, “चंदा ओ बेरा 17 साल के रहे। उ एही टरेन से जाति रहे। ओकरी डिब्बा में 2-3गो नवजुवक भी रहने। जब टरेन ए जंगल से हो के गुजरे लागल, त उ दू-तीनू लफंगा चैनपोलिंग क के टरेन रोकि देहने सन, अउर जबरजस्ती चंदा के ले के ए ही जंगले में उतरि गइने सन। फेर आपन हवस मिटवले की बाद हमरी चंदा के कतल क देहने सन। तबे से चंदा मरि के भी जिंदा बिया अउर ए टरेन से आवे वाला हर ओ युवा मनई के, जवन ओ सीट (जवने पर तूं बइठल रहलS ह) पर बइठल होखे, अपनी माया जाल में फंसा के इहां उतारि ले ले अउर फेर ओ के मार देले। दरअसल जहां टरेन रुकले के आभास होला, उहां कवनो टेसन नइखे अउर ना ही कवनो घोसना ही होला।”
खैर उ सज्जन सूरज के इहो बतवने की उ अगिला महीना गया जा के पिंडदान कइल चाहताने ताकी चंदा के भटकत आत्मा शांत हो जाव अउर केहू के अहित मत करो। उ कहने की उ कइगो अनुष्ठान, पूजा-पाठ करवा दे ले बाने, लेकिन चंदा के आत्मा के मुक्ति नइखे मिलल।
सूरज त बचि गइल लेकिन अफसोस की ओ दुष्ट आताताइयन की चलते चंदा की साथे-साथे केतने निर्दोसन के जान चलि गइल। कवनो एइसन काम मत करीं, जवने से केहू के नोकसान होखो भा रउरी करम के खामियाजा रउआं भा दूसरे के भोगे के परो। सहीं करीं, नैतिक करीं। भगवान सदा रउरी साथे बाने। जय-जय।
वरिष्ठ ब्लागर, साहित्यकार, भाषाविद, समाजसेवी एवं स्वतंत्र विचारक। “ब्रहम पिशाच (हिंदी)”, “वर्णमाला – अक्षर ज्ञान (हिंदी)”, “मंथरा खंडकाव्य (हिंदी)” अउर “मामा-दांते (भोजपुरी) प्रकाशित” ।
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