मर गइलें बाबा। मर गइली ईया। मर गइलें नाना। मर गइली नानी। बाबुओजी मर गइलें। … बाकिर ना मरल ओह लोग से जुड़ल संबंध। पितृपक्ष इहे बतावेला। श्राद्ध-पिंडदान आ तर्पण क के पूर्वज लोग के इहे नू बतावल जाला कि आजो ऊ लोग हमनी के परिवार के हिस्सा बा। आजो हमनी के ओह लोग के स्नेह आ आशीर्वाद के जरूरत बा। आजो ऊ लोग हमनी का जिनिगी में जीयत बा आ धड़कन में धड़कत बा।
आखिर हमनी का हईं जा के ? ओही लोग के नू परछाईं ! ओही लोग के नू प्रतिरूप ! ओही लोग के गुणसूत्र ! ओही लोग के डीएनए ! त अलगा कइसे हो सकेनी जा? ओह लोग के नाक-नक्शा, रंग-रूप, लंबाई, सुघराई, हाव-भाव हमनी में उतरल बा त कइसे कहीं कि ऊ लोग दुनिया से पूरा तरह चल जाला। अरे, ऊ त हमनिये में रहेला लोग आ हमनी के बोली-भाषा, लहजा, व्यवहार आ संस्कार में अभिव्यक्त होत रहेला।
असहूँ हमनी का देश का दर्शन आ चिंतन परम्परा में मृत्यु के जीवन के खतम भइल ना मानल जाला बलुक देह के रूप परिवर्तन मानल जाला। हमनी ई मानीले कि हमनी के पितर लोग कवनो ना कवनो रूप में विद्यमान बा। एही वजह से शादी-बियाह आ अउरी अनुष्ठान में पितरो लोग के नेवतल जाला।
संत लोग कहेला कि हमनी के ईश्वर के संतान हईं जा, ईश्वर हमनी के अंदर बाड़ें तबो हमनी के ईश्वर के पूजा करेनी जा। ओही तरे हमनी के अपना पूर्वज के जामल हईं जा, ओही लोग से हमनी के देह मिलल बा, तबो हमनी के पितृपक्ष में अपना पूर्वज लोग के पूजा करेनी जा, श्राद्ध, पिंडदान आ तर्पण करेनी जा।
श्राद्ध आ श्रद्धा एकही स्रोत से निकलल बा। ओही तरह से तर्पण आ तृप्ति बा। पितर लोग खातिर श्रद्धा से कइल गइल मुक्ति-कर्म के श्राद्ध कहल जाला आ उन्हन लोग के तृप्त करे खातिर तिल मिश्रित जल अर्पित करे के क्रिया के तर्पण कहल जाला।
दरअसल श्राद्ध में श्रद्धा आ भावना ही प्रमुख बा। जवन सनातन धर्म अपना मुअला पुरखा-पुरनिया के पूजे के बात करत बा, ऊ जीयत बाप-दादा के तिरस्कार करे वाला बेटा-पतोह के कवना रूप में देखत होई, ई समझल जा सकेला। मुअले ना, अपना जीवित बुजुर्गन के प्रति भी आदर, सत्कार आ सम्मान के पवित्र भाव रखे के चाहीं ना त ई श्राद्ध, तर्पण आ पिंडदान एगो रस्म-अदायगी भर कहाई।
पितृपक्ष के दौरान पितर लोग के श्राद्ध कइल जाला। एह से सुख-समृद्धि के आशीर्वाद मिलेला आ पितर लोग संतुष्ट होलें।
एह सब के समझे-बूझे खातिर भोजपुरी जंक्शन के दू गो विशेषांक ‘ जन्म-मृत्यु’ पर निकालल गइल। ई ‘ जन्म-मृत्यु विशेषांक’ ( भाग-2) ह। ई काव्यमय विशेषांक बा। एह में जन्म-मृत्यु पर गीत-गजल आ कविता ढेर बा। जीवन के मरम समझावत तरह-तरह के राग वाला फिल्मी गीतो बा।
जिनिगियो त एगो रागे नू ह! हमार एगो दोहा बा –
जिनिगी एगो राग ह, खुल के गाईं गीत।
टूट जाय कब का पता, साँसन के संगीत॥
पितृपक्ष चल रहल बा। पितर लोग के संगे गाय, कुत्ता आ कउआ के भोजन दियाइल ह। कउआ उचरत बा। हमार आपन एगो शेर इयाद आवत बा –
उचरे लागल हमरो छान्ही काग, ए बाबा
लागत बा कि हमरो जागी भाग, ए बाबा
प्रणाम !
मनोज भावुक