खाँटी भोजपुरिया आ हिंदी साहित्य के गंभीर अउर विचारोत्तेजक आलोचक मैनेजर पांडेय जी के 6 नवम्बर 2022 के दिल्ली में निधन हो गइल। पांडेय जी से हमार पहिला भेंट सन 2008 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मेलन में भइल रहे। हमनी के एक साथे टेलीविजन के एगो परिचर्चा में भी भाग लेले रहनी जा, जवना में हमरा आ पांडेय जी के अलावा अरुणेश नीरन, जगदीश गोवर्धन (मॉरिशस) आ सोमदत्त दल्तमन (मॉरिशस ) भी शामिल रहीं। विश्व पटल पर भोजपुरी के बात भइल। हम लंदन में भोजपुरी विषय पर बोलनी। पांडेय जी के ज्ञान से बेसी उहाँ के बोले के अंदाज, भोजपुरी में खाँटीपन आ स्पष्टबयानी हमरा के प्रभावित कइलस।
हम महसूस कइनी कि 23 सितंबर, 1941 के लोहटी, गोपालगंज में जनमल आ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में प्रोफेसर रहल पांडेय जी हमेशा अपना अंदर अपना गाँव आ अपना मातृभाषा के जीवंत रखनी। हमरा उहाँ के साथे कई गो कार्यक्रम में मंच साझा करे, आपन बात रखे आ सम्मानित होखे के सौभाग्य भी मिलल। टेलीविजन में भी हमरा आग्रह पर उहाँ के अइनी आ भोजपुरी में लमहर बातचीत कइनी। निर्भीक, बेबाक, रोचक आ सरस बतकही पांडेय जी के विशेषता रहे। कबीरदास के उहाँ के भोजपुरी के कवि मानत रहीं आ ई बात उदहारण के साथ डंका के चोट पर कहत रहीं।
उहाँ के पहलके किताब साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका के हिंदी आलोचना में जोरदार स्वागत भइल। तब से शब्द और कर्म, साहित्य। के समाज शास्त्रच की भूमिका, भक्तिर आंदोलन और सूरदास का काव्या, हिंदी कविता का अतीत और वर्तमान, आलोचना में सहमति असहमति, भारतीय समाज में प्रतिरोध की भूमिका, अनभै सांचा, आलोचना की सामाजिकता, उपन्यास और लोकतंत्र, साहित्यद और दलित दृष्टिह,शब्दस और साधना, संगीत रागकल्पतद्रुम, संकट के बावजूद और साहित्य और समाजशास्त्रीय दृष्टि सहित उहाँ के अनेक पुस्तक प्रकाशित भइल। हिंदी अकादेमी के शलाका सम्माून, राष्ट्री य दिनकर सम्मा्न, गोकुलचंद्र शुक्लत पुरस्कादर आ सुब्रहमण्य् भारती सम्मािन सहित कई गो पुरस्कार से नवाजल गइल।
समाज के विसंगति, विद्रूपता आ विडंबना पर दृष्टिबपात करे वाला आ ओह पर निडर होके बोले वाला अइसन आलोचक फेर केहू दोसर ना होई। ना होई केहू फेर मैनेजर पांडेय। स्मृतिशेष के नमन !