स्मृतिशेष गीतकार ब्रजकिशोर दुबे

December 30, 2022
श्रद्धांजलि
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जन्मतिथि- 24 जनवरी 1954

पुण्यतिथि – 14 नवंबर 2022

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भोजपुरी गीतकार ब्रजकिशोर दुबे के 14 नवंबर के संदिग्ध हालत में मौत के बाद से मीडिया के मित्र लोग लगातार पूछ रहल बा जे ब्रज किशोर दुबे के रहल ह ? इहे भोजपुरी कलम के नियति आ दुर्भाग्य बा। लोग के गीत इयाद रह जाला, गीतकार भुला जाला। 

रक्षा-बंधन पर हर साल एगो गीत पूर्वाञ्चल में गूँजेला – राखी हर साल कहेले सवनवा में, भइया बहिनी के हरदम रखिहs मनवा में / बहिनी बसेलू तू हमरा परनवा में, तोहरी मनसा पुराइब हर जनमवा में’ राखी पर एह से बढ़िया गीत का हो सकत बा? ई हृदयस्पर्शी गीत ब्रजकिशोर दूबे जी के लिखल ह। एह गीत में ई ताकत बा कि कवनो कारण से भाई-बहिन में रूसा-फूली भइल होखे भा बोलचाल बंद होखे त गीत मन के मइल आँख के लोर से धोके रिश्ता के टूटल तार फेर से जोड़ सकेला। चित्रगुप्त जी के संगीत पर, अलका याज्ञनिक आ मनहर उदास के आवाज में, दूबे जी के संवेदना से भरल बोल आ भाव जादू करत बा। शत्रुघ्न सिन्हा आ शकीला मजीद पर फिल्मावल फिल्म ‘बिहारी बाबू’ के ई गीत एगो अमर गीत बा।

के ह ब्रजकिशोर दुबे ?

24 जनवरी 1954 के मंगरवलिया, रोहतास, बिहार में जनमल ब्रजकिशोर दुबे जी से उनका यात्रा पर न जाने केतना बेर हमरा बातचीत भइल बा। बकौल दूबे जी, “ आकाशवाणी, पटना के ‘चौपाल ‘ के मुखिया जी ‘ (स्व। गौरी कांत चौधरी ) के पुत्र आ हमार मित्र सुप्रसिद्ध पत्रकार लक्ष्मी कांत ‘सजल ‘ जी हमरा के 1984 में एक दिन राम बाबू से मिलववले जे ‘माई ‘ फिल्म बनावे के तइयारी में रहन। बातचीत में ऊ हमरा के ‘माई ‘ के गीत लिखे के कहलन आ हम गीत लिखे में लाग गइलीं। एही बीचे ‘गंगा किनारे मोरा गाँव ‘ के निर्देशक दिलीप बोस जी पटना आइल रहीं जेकरा के राम बाबू ‘माई ‘ के निर्देशक रखेवाला रहन। ऊ हमरा के उहाँ से मिलववले आ उहाँ का हमरा से दू-तीन गो गीत सुनलीं। संजोग से ओही घरी शत्रुध्न सिन्हा जी के ‘बिहारी बाबू’ बने लागल आ एकर निर्देशक दिलीप बोस जी रहीं जे लोकेशन देखे खातिर फेर पटना गइल रहीं। उहाँ का रामबाबू के खबर कइलीं कि ऊ हमरा के उहाँ से जतना जल्दी हो सके मिलवावस काहे कि हमरे ओकर गीत लिखे के रहे। 11 जनवरी 1985 के राम बाबू संगे सांझि खानि हम उहाँ से शत्रुध्न सिन्हा जी के घरे मिललीं आ उहाँ का हमरा के 12 जनवरी 1985 के गाड़ी धरे के कहलीं। 14 जनवरी 1985 के हम बंबई पहुंच गइलीं। दिलीप बोस जी जहाँ लेखन में लागल रहीं। हमरा के पहिला गीत (राखी के गीत ) लिखे के मिलल। 16 जनवरी 1985 के चित्रगुप्त जी से भेंट भइल आ गीत के कुछ कड़ी सुनवला के बाद हमरा के गीतकार राख लिहल गइल। ‘बिहारी बाबू ‘ के सब गीत लिखत-लिखत चित्रगुप्त जी अतना प्रभावित भइलीं कि पुत्रवत नेह दुलार देवे लगलीं। उहाँ का हमरा के बंबई में रहे के सलाह देलीं, बाकिर अपना पारिवारिक हालत के चलते हम स्थाई रूप से बंबई में रहे के हालत में ना रहीं। उहाँ के भावुक होके कहलीं “हमार आसिरवाद बा। बंबई में नाहियों रहला प रउआ के लोग गीत लिखे खातिर बोलावत रही, जवन हरदम साँच भइल।

आगे ब्रज किशोर जी कहनी कि ‘बिहारी बाबू ‘ के बाद रामबाबू के ‘माई ‘ बने लागल जवना के निर्देशक रहलीं ‘ दूलहा गंगा पार के’ निर्देशक राज कुमार शर्मा जी। गीत त हम पहिलहीं लिख के रखले रहीं। फेर दृश्य के मुताबिक ओकरा के बनावल गइल। एकर संगीत संयोजन उत्तम सिंह जी कइलीं। गीत से राजकुमार शर्मा जी अतना प्रभावित भइलीं कि हमरा के छोट भाई अइसन माने लगलीं। भगवान के अइसन किरिपा भइल कि ‘ माई ‘ के जुबली हो गइल। ‘बिहारी बाबू ‘ आ ‘माई ‘ के गीतकार के रूप में हमरा जनता के अपार नेह-दुलार मिलल आ हमार पहचान बन गइल। एही तरे गीत-लेखन के यात्रा चलत रहल जवन आजो चल रहल बा।

ब्रजकिशोर दूबेजी के गीत वाला कुछ प्रमुख फिल्म बा, बिहारी बाबू, माई, जुग जुग जीयs मोरे लाल, हो जाये द नयना चार, महुआ, हे तुलसी मइया, दुलहिन, हम हईं गँवार आ हमार देवदास आदि।

‘ राखी हर साल कहेले सवनवा में, भईया बहिनी के रखिहs अपना मनवा में ‘  के अलावा जवना गीतन से दूबे जी के पहचान मिलल, ओह मे के कुछ प्रमुख गीत बा – तोहरी सुरतिया से (‘बिहारी बाबू), सरवता कहाँ भूलि गइलs (‘बिहारी बाबू), माई ना रही त (माई), जीयs बबुआ जीयs(‘जुग जुग जीयs मोरे लाल), बेटी भइली पराई (‘हे तुलसी मइया) आ अइले कन्हइया तोहार (‘हो जाय त नयना चार) आदि।

किशोर कुमार भी गवले बाड़न ब्रजकिशोर दुबे जी के गीत 

किशोर कुमार भगवान शंकर पर भोजपुरी में भी एगो गाना गवले रहलन जवना के उनका हिंदी क्लासिक हिट गाना ‘जय जय शिवशंकर, कांटा लगे न कंकड़’ के भोजपुरी विकल्प के रूप में देखल जा सकत बा। शत्रुघ्न सिन्हा के जवानी के दिन के भोजपुरी फिल्म ‘बिहारी बाबू’ में ई गाना रहे, बोल रहे  अगड बम बमक बमक बम बोल बबुआ’। किशोर दा अइसन कठिन शब्द वाला गीत गावे खातिर मशहूर रहलन। ई फिल्म 1985 में रिलीज़ भइल रहे। ब्रजकिशोर दुबे जी के लिखल एह गीत के संगीत देले रहनी चित्रगुप्त जी।

सम्मान-पुरस्कार-

दूबे जी के गीत-संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान खातिर कई बेर सम्मानित कइल गइल।   महामहिम राष्ट्रपति जी द्वरा राष्ट्रपति भवन में 17 जनवरी 2018 के भारत सरकार के ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2016 से नवाजल गइल।एकरा अलावा बिहार सरकार के ओर से ‘विध्यवासिनी देवी पुरस्कार ‘(वरिष्ठ)-2013, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन का ओर से ‘महंत लाल दास पुरस्कार आ बिहार राज्य भोजपुरी सम्मलेन का ओर से स्वर्ण पदक मिलल।

ब्रजकिशोर दुबे जी से जुड़ल संस्मरण

ब्रजकिशोर दुबे जी से हमार व्यक्तिगत रिश्ता बहुत मधुर आ आत्मीय रहल बा। साल 98-99 के बात ह। अक्सर भोरे टहलत ब्रजकिशोर भईया हमरा कोचिंग पर चल आईं। तब हम एसबीआईसी – सिंह भावुक आईएससी कोचिंग  नाम से एगो संस्थान खोल के इंटर आ मेडिकल के तैयारी करे वाला लइकन के पढ़ावत रहीं लेकिन लेखन में भी ओतने सक्रिय रहीं। थियेटर (बिहार आर्ट थियेटर ) आ भोजपुरी सम्मेलन से भी जुडल रहीं। महाभोजपुर पत्रिका ( संपादक – विनोद देव) में धारावाहिक रूप से भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर लिखत रहीं। भोजपुरी सिनेमा के विकास यात्रा, भोजपुरी फिल्मन पर विहंगम दृष्टिपात, भोजपुरी सिनेमा: चुनौती आ संभावना, काहे बनल भोजपुरी सिनेमा चनाजोर गरम, भोजपुरी सिनेमा के निर्माता-निर्देशक, भोजपुरी सिनेमा के गीतकार-संगीतकार ।।अइसन बहुत सारा चैप्टर लिखनी। ओह खातिर मिले-जुले आ इंटरव्यू के सिलसिला चलते रहे। गंगा किनारे मोरा गांव आ धरती मईया के निर्माता अशोक चंद जैन, पिया के गांव के निर्माता मुक्ति नारायण पाठक, हो जाये द नैना चार के निर्माता संजय राय, हक के लड़ाई, कजरी आ बबुआ हमार के निर्देशक किरण कांत वर्मा समेत बहुत सिनेहस्ती से मिलनी, लिखनी, जननी, बुझनी। फिल्मी गीतकारन के अलावां विशुद्ध साहित्यकार के फिल्मी गीतन से गुजरनी। डॉ0 रामनाथ पाठक प्रणयी, डॉ0 प्रभुनाथ सिंह, भोलानाथ गहमरी के बाद ब्रज किशोर दूबे आ विशुद्धानंद जी के कलम के कमाल देखनी। हमरा जइसन लइका खातिर ई सब रोचक आ रोमांचक रहे। ब्रजकिशोर भईया चूंकि सम्मेलन पत्रिका से जुड़ल रहीं आ मंच से भी त गाहे-बगाहे भेंट मुलाकात भी शुरू हो गइल। मंच भी साझा करे लगनी सं। भारतीय नृत्य कला मंदिर में कई बेर साथे कार्यक्रम भइल। ब्रज भैया बहुआयामी प्रतिभा के धनी। आला दर्जा के ललित निबंधकार, कवि, गीतकार, अभिनेता के अलावा कमाल के मंच संचालक आ मिमिक्री आर्टिस्ट। एस्ट्रोलॉजर भी। फोन पर जब बात होखे, कहीं कि बबुआ हो तोहरा चाय आ बिस्किट के पइसा सधा देले बानी। तहार हाथ देख के कहले रहनी नू कि विदेश जइबs …रह अइलs नू अफ्रीका-इंग्लैंड।

भोजपुरी सिनेमा के इतिहास वाला अपना किताब में गीतकार-संगीतकार वाला आलेख में चित्रगुप्त जी आ ब्रजकिशोर दूबे जी पर कुछ बेसिये लिखा गइल रहे। एह पर ब्रज किशोर भईया कहले रहीं कि कहंतरी में से खाली छाल्ही खिअइले बाड़s लोग के। हम अतनो अच्छा नइखीं जेतना तू बतवले बाड़s।

ब्रजकिशोर भईया के साथ अंतिम मंच पंजवार में साझा कइले रहीं। सुकुल चाचा (पंडित घनश्याम शुक्ल ) होत फ़जीरे हमरा कोचिंग पर पहुँचल रहीं। लाइब्रेरी के 25 साल पूरा होता मनोज। कार्यक्रम करे के बा। कवि- सम्मेलन, गीत-संगीत आ विचार गोष्ठी भी। ब्रज किशोर भईया से तब मेल मिलाप कुछ बेसिये बढ़ गइल रहे। हमरा मुंह से अनायास निकलल, गायन खातिर ब्रज किशोर दूबे जी। चाचा कहनी तू जेकरा के फाइनल कर द। ब्रज भईया से बात कइनी त उहां के कहनी तू जइसे आ जेतना में फाइनल कर द। फाइनल हो गइल। फेर कवि सम्मेलन के अध्यक्षता खातिर हम चाचा के लेके पांडेय कपिल जी किहाँ गइनी। उहाँ के भी हमार बात मान लेनी। ई सब सन 2000 के आस पास के बात ह।

ओकरा बाद हमार पटना छूट गइल लेकिन पोस्टकार्ड तमाम साहित्यकार, कलाकार से रिश्ता जोड़ले रहे। मोबाइल हमरा पास ना रहे अउर टेलीफोन से ज्यादा आराम पोस्टकर्डवे में रहे। सिरहाना पोस्टकार्ड के बंडल राखत रहीं। पीपीएल के हॉस्टल में डाकिया आवे त रिसेप्सनिस्ट मुस्कुरा के कहे … और किसी का लेटर हो ना हो भावुक सर का तो होगा हीं।

ब्रजकिशोर भईया से चाहे फोन प बतियायीं या पढ़ी उहां के भाषा में गजब के लासा होला। लेकिन अब ऊ लासा कहाँ भेंटाई। अब ऊ हँसी-ठहाका सुने के कहाँ मिली ! बात-बात पर हँसावे वाला ब्रज किशोर भईया गजब तरीका से रोआ के गइलें। ई कइसे आ का हो गइल ब्रज भईया। कादो राउर हत्या हो गइल आ कि रउरा आत्महत्या कर लेले बानी ।।। ई गुत्थी अभी सुलझल नइखे। ओम शांति। ईश्वर रउरा के अपना चरण में स्थान दीं।

रउरा याद के साथे राउर गीत ‘ बाँसुरी मन के रोवे बजवला बिना / गीत लोर हो गइल सब सुनवला बिना ‘ दिलोदिमाग में गूँजत रहेला।

श्रद्धांजलि!     

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