नारीमन के संवाद

February 13, 2023
पुस्तक समीक्षा
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दिव्येन्दु त्रिपाठी

कृति- हमहूँ बानी

विधा- काव्य संग्रह

संपादिका- डॉ. संध्या सिन्हा “सूफी “

प्रकाशक- सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली

प्रकाशन वर्ष-2020

पृष्ठ संख्या- 111

मूल्य 200₹ (सजिल्द)

       “हमहूँ बानी” डॉ. सन्ध्या सिन्हा द्वारा संपादित भोजपुरी के पहिलका अइसन काव्य संग्रह ह जवना में खाली कवयित्री लोग के रचना शामिल बाड़ी स। डॉ. संध्या सूफी नारीविषयक मौलिक क्रियाकलापन खातिर जानल जाली। ऊ पहिलकी अरु एकमात्र भोजपुरी के महिला पत्रिका “अंगना ” के प्रवर्तक आ संपादक बाडी़। ई काव्य संकलन के उपसंपादक वीणा पांडेय भारती बाड़ी। औरत के मन के तानाबाना, ओकरा द्वारा सहल गइल पीडा, स्नेह आ प्रेम के महसूस कइल गइल कोमल-मखमली भाव आ अवचेतन में दबल-छिपल काँच भा पाकल उद्भावना के अभिव्यंजना नारी से बेहतर भला के कइ सकेला। एह काव्य संग्रह के नारी अस्मिता के कसौटी प देखे-पढे के चाहीं।

      एह संग्रह में कुल्ह पनरह गो कवयित्री लोग के शामिल कइल गइल बा। एकरा में ना त कवनो एगो विधा भा शैली के प्रधानता बा आ नाहीं कवनो वादविशेष के वादी भा प्रतिवादी बने के चेष्टा झलकत बा बलुक एकरा में नारी मन के सामूहिक संवाद अधिक प्रतिध्वनित भइल बा। ई स्त्री मात्र के स्वर प्रस्तावित करत बा आ ऊ लोग के संश्लिष्ट संवेदना के तानाबाना देखावत बा। एकरा में छंदबद्धो रचना मिली छंदमुक्तो रचना मिली, मुक्तो छंद मिली आ गद्य कवितो मिली। गीत त मिलबे करीहें स। ई संग्रह में केहू प्रेम, विरह आ भावुकता से सनाइल बा त केहू में संघर्ष आ अंतरात्मा के दर्द अधिक मुखर बा। बाकिर परवशता आ बंधन के पीडा प तकरीबन सभे जानी कलम चलवले बाड़ी। नारी के पीडा आ ओह प रोकटोक प डॉ. ज्योत्सना अस्थाना के कविता “अब ना रोअब” बहुत मार्मिक बन पड़ल बा। उहाँ द्वारा लिखल ‘नाजुक गजल बा’ आ “काहे कहर तूँ ढइलू “जइसन कविता पढिके ई साफ हो जाता जे सौम्यता भा स्नेह के कतनो कोशिश होखे बाकिर यथार्थ आ समाज के दोराहपन मोलाएम शब्दन के लोर में बोर देता।

           असहीं छाया प्रसाद जी के रचनन में विरासत आ पारिवारिक संबंधन का प्रति दर्द आ लगाव झलकत बा उहां के ‘बेटी’ शीर्षक कविता में बेटियन के संघर्षमय जीवन के बडा मार्मिक चित्रण भइल बा-

       “बेटियन के भाग काहे अइसन लिखाइल बा ।

    जन्म से मरण ले दुख-दरद छाइल बा ।”

       श्रीमती किरण सिन्हा के कवितन में औरत के विविध रूप आ ओकर संघर्ष लउकत बा। ‘माई के देहरी’ कविता में बीतल बचपन आ “कइसे लिखाई कविता ” के बहाने ससुरारी में रहेवाली स्त्री के जीवन में लपटाइल अंतहीन बंदिशन के जिक्र बा। माई बने के असहनीय पीडा प इहाँ के ” ना जननी तोर पीर ए माई ” बढिया लिखाइल बा।        

                डॉ. मधुबाला सिन्हा के कविता लरछुत बहुत व्यंजनात्मक आ प्रतीकात्मक बा। बिम्ब विधान तारीफ के लाएक बा। आपन देश आ गाँव का प्रति आसक्ति के भाव इहांके कविता ” अपना झोंपडि़या में” में प्रकट भइल बा। श्रीमती ममता सिंह के गीतन में लोकपरम्परा के सुगंध मिलि जाई। विरह के पीडा आ निरगुन के भाव इनकर कविता” सुगना उडि जइहें” में देखेके मिली। पद्मा मिश्रा के रचनन में श्रृंगार आ प्रकृति के तालमेल देखेके मिली। छंदमुक्त कविता औरत के बिम्ब विधान बढिया बा आ एकरा कुछ-कुछ नई कविता के तासीर मिलि जाई –

      ” रसोई के धुँआइल अन्हार में/जरत चूल्हा के रोशनी के बीच /गरम पतीला से उठत भाप /धुँधला कर देबेला सबकुछ। “पृ 49

            डॉ. संध्या सूफी के रचनन में स्त्री के प्रति पक्षधरता सबका से अधिक मुखर बाटे। औरत के जीवन के विसंगतियन आ कलंकित कला के साथ जीएवाली लइकियन /युवतियन के सिसकत जीवन मार्मिक आक्रोश से भरल बा। “सवाल चिरईं के” एगो लमहर कविता ह। एकरा में चिरईं के रूपक के रूप में लेके तरुणाई का ओर बढेवाली लइकी के दुख बयान कइल गइल बा। अइसन प्रगतिजीवी कविता ई संग्रह के मूल्यवान बना रहल बा।

             श्रीमती वीणा पांडेय “भारती’ के रचनन में आपन देश आ संस्कृति का प्रति नेह-छोह झलकत बा आ राष्ट्र का प्रति अनुराग प्रतिबिंबित होत बाटे ।

              सरोज सिंह के रचनन में गज़ल के पुरकस तासीर मिली आ नया उपमान-विधान ख़ातिर ललको  झलकी। विरहिणी के पीडा आ गोवंश के दर्द व्यक्त करेके खूब काबीलियत बा इनकर शब्द-विन्यास में। निवेदिता श्रीवास्तव जी के कवितन में विरह श्रृंगार के विविधभाव, सावन आ कजरी के मेलजोल खूब व्यक्त भइल बा। “बाबा के नाम एगो पाती” नइहर के भावुक करेवाली याद संवेदनशील पाठक के आँख नम करे में सफल रही। श्रीमती माधवी उपाध्याय जी के कवितन में प्रकृति आ श्रृंगार के कोमलता के साथ साथ स्त्री के पीडा काफी मुखर मिली। आरती श्रीवास्तव “विपुला” भावजगत में रिश्तन के भावुक तानाबाना देखेके मिली। भाई -बहिन,माई-बेटी आ माता-पिता का प्रति इनकर गहन लगाव सहजे व्यक्त भइल बा।

              श्रीमती ममता सिंह जी के काव्यभाव मन के गहराई का साथ जटिल लगाव के उतार-चढाव आ दुनिया के दोरंगापन के छवि पेश करत बाटे। सोनी सुगंधा के गीतन में दुनिया के ऊँचनीच के समझे-समझावे आ जिनगी के सहेजे आ बनावे के कोशिश झलकत बा। डॉ. रजनी रंजन के गीतन में जीवन-लय आ मृत्यु के वेदना व्यक्त भइल बा। लोकोन्मुखता का प्रति आग्रह इनका में विशेष रूप से मिली।

            अधिकांश कवयित्री लोग भक्तिपूर्णो रचना कइले बा। ई संग्रह कोविड काल के पीडा झेलि के आइल बा। एही से दू-चार गो के छोडिके बाकी सभे कोरोना-कलम उठवले बा। ई संग्रह में कुछ भाव अइसन बा जवन सब कवयित्री लोग में समानुरूप से अभिव्यक्त भइल बा। सदियन से चलि आ रहल नारी के प्रति भेदभाव, शोषण, पराधीनता के खिलाफ सभे आवाज उठवले बा। घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृत्ति जइसन दैत्यन के खिलाफ बहुत  कठोर आक्रोश व्यक्त भइल बा। साथे  एकरा में ई बात भी प्रकट होता जे औरत अपना घर-परिवार, पति ,बालबच्चा खातिर कतना चिंतित आ कन्सर्न बाटे। ओकरा खातिर आपन घर-संसार दुनिया के कवनो दोसर मुद्दा से अधिक अहम बाटे। बात सही बा जे भावपक्ष के विविधता आ गहराई के एह संग्रह में प्रधानता बा। शिल्पगत भा कलापक्ष प कवनो राय बनावल अभी जल्दबाजी होई। ई संग्रह एगो ऐतिहासिक संग्रह बा। शब्दसाधिका लोग के रचनाशीलता में जहवाँ समाज आ परिवार के पुरान परल रूढि के तूरे के दमखम बा ओनिए दोसर ओर आपन विरासत,परंपरा आ श्रद्धाभाव के समेटे आ बचाने के निष्ठा प्रकट भइल बा। सही से ई संकलन  एक्कीसवीं सदी के भोजपुरिया नारीमन के अभिव्यंजित करत बा।

परिचय- दिव्येन्दु त्रिपाठी, लेखक, अन्वेषक आ वास्तुविद्, कैलाश धाम, मानगो डिमनारोड, जमशेदपुर

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