भोजपुरी-साहित्य खातिर मील के पत्थर बा चिन्तन कुसुम

February 13, 2023
पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक-चिन्तन कुसुम

लेखिका-श्रीमती शैलजा कुमारी श्रीवास्तव

विधा- निबन्ध

प्रकाशक- भोजपुरी संस्थान,पटना  

पृष्ठ-155

मूल्य- 25 रुपया

संस्करण- सन् 1989

भोजपुरी खातिर ई गौरव के विषय बा कि ‘चित्रलेखा पुरस्कार’ से पुरस्कृत ‘चिन्तन कुसुम’ जइसन ठोस विवेचनात्मक साहित्य-सर्जन अब भोजपुरी-साहित्य में हो रहल बा। ‘चिन्तन कुसुम’ श्रीमती शैलजा कुमारी श्रीवास्तव के लिखल- बात, जीवन के उद्देश्य,  काव्य में प्रकृति-वर्णन, नारी-सौन्दर्य आ प्रकृति, ऋतु चक्र,  वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, बसन्त कुसुमाकर, योग साधना आ भक्ति, साधना प्रक्रिया में नाद-योग के महत्त्व आ रस-सिद्धान्त के कसौटी पर भोजपुरी काव्य समेत कुल ग्यारह निबन्धन के एगो संग्रह ह; जवना में ‘बात’ शीर्षक निबन्ध ललित या व्यक्तिगत निबन्ध के श्रेणी में मानल जाला, शेष  निबन्ध  साहित्यिक चाहे आध्यात्मिक बा।

एह संग्रह के अध्ययन करते पाठक के ई समझत देर ना लागी कि शैलजाजी के अध्ययन के क्षेत्र बहुत विस्तृत  बा। एही बात के एह निबन्ध-संग्रह के भूमिका में अनुग्रह मेमोरियल कॉलेज, गया के प्रधानाचार्य  (आचार्य)  विश्वनाथ सिंह एह तरह से लिखतानी- “शैलजा कुमारी कवि आ कहानीकारो हई। इनका भोजपुरी-हिन्दी-कविता के कुछ नमूना उदाहरण के रूप में एह पुस्तक में जगह-जगह मिली। बाकी ई समझे में कवनों कठिनाई नइखे कि इनका व्यक्तित्व के प्रधान रूप अध्ययन, भावना आ चिन्तन का तन्तुअन से बनल बा। शैलजा जी का अध्ययन के क्षेत्र काफी व्यापक बा। संस्कृत, अँगरेजी, उर्दू, हिन्दी आ भोजपुरी-काव्य के अनुशीलन के साथे-साथे एक ओर लोकगीतन का लालित्य से आ दोसरा ओर योग अउर भक्ति का आध्यात्मिक तत्वन से लेखिका के जवन समृद्ध मानस निर्मित भइल बा ओकर परिणत स्वरूप एह चिन्तन कुसुम में मिलsता। इनका दार्शनिक अध्ययन का विस्तार में गीता, उपनिषद्, अउर हठयोग, नादयोग से लेके बाइबिल तक के समावेश बा।

शैलजाजी के जीवन-दर्शन आध्यात्मिक बा। उहाँ खातिर स्वाद आदमी के सबसे बड़ा दुश्मन ह। आदमी के अपना अन्तःकरण का केन्द्र का ओर बढ़े के चाहीं । जीवन के लक्ष्य आनन्द-प्राप्ति ह; ऊ आनन्द जेकर कभी अंत ना होखे। एकरा खातिर परम शान्ति आवश्यक बा। बिन्दु के सिन्धु में मिलल ही जीवन-लक्ष्य ह। एहसे माया से विमुख रहके ओकरा के प्राप्त करे के चाहीं। हमरा दोसरा में ना, अपना में दोष देखे के चाहीं आ अपना तन-मन पर काबू रखे के चाहीं,  अपना ज्ञान में वृद्धि आ किताबन से मित्रता करे के चाहीं । हमरा अपना में ही ई शक्ति पैदा कर लेबे के चाहीं जवना से हम अपना आप से बतिया सकीं। ओही के  ज्ञानीलोग  ‘ध्यान’ या ‘मनोयोग’ कहेला।

शैलजाजी के अध्यात्मिक निबन्धन के पढ़ते ई स्पष्ट  हो जाई कि उहाँ के जीवन-दर्शन के मूल में केवल उहाँ के अध्ययन-चिन्तन-मनन ही नइखे, बल्कि उहाँ के व्यक्तित्व पर साधना-सत्संग के प्रभाव के साथ ही आस्था भी अपना बीज रूप में वर्तमान बा।

आदमी स्वभाव से ही सौंदर्यप्रेमी रहेला, एहसे ऊ हर हालत में सौंदर्य के उपासक रहेला। मनुष्य के एही सौंदर्यवृत्ति के तुष्ट करे खातिर अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य के रचना भइल बा। एतने भर ना प्रकृति के रचना आदमी के उपयोग खातिर भी भइल बा। एहीसे जे लोग प्राकृतिक सौन्दर्य से अभिभूत ना होखे; ऊ लोग प्रायः दुर्जन होला। मनुष्य के सुन्दरता के प्रति एही आकर्षण  के चलते भगवानो के स्वरूप अत्यंत सुन्दर मानल गइल बा।

भारतीय काव्य-शास्त्र में काव्यानन्द के ब्रह्मानन्द के सहोदर कहल बा। बाकिर शैलजाजी अपना के एगो मौलिक चिन्तक के प्रमाण देत ‘रस-सिद्धान्त का कसौटी पर भोजपुरी काव्य’ में अपना बात के सतर्क रखत काव्यानन्द के ब्रह्मानन्द से श्रेष्ठ बतावतानीं। उहाँ के  लिखतानी कि ब्रह्मानन्द संसार-निरपेक्ष होला अर्थात् आत्मगत होला जबकि काव्यानन्द संसार में रहके भी लौकिक धरातल से ऊपर। कवि के दृष्टिकोण मानवीय होला; एहसे मानवीकरण से प्रकृति के भाव-रस में डुबा देला। जवना कारण, ब्रह्मानन्द से काव्य में आनन्द अधिक होला।

शैलजाजी के अध्ययन-चिन्तन के दायरा काफी विस्तृत बा; जवना में एक ओर आध्यात्मिकता-दार्शनिकता के भाव प्रचुर अनुपात में दृष्टिगोचर होता, उहईं दोसरा ओर लौकिक-संस्कृत, हिन्दी, उर्दू आ भोजपुरी पर भी उहाँ के पकड़ बहुत मजबूत दीखता । एकर कारण ई बा कि शैलजाजी संस्कृत के एगो प्रतिभाशाली (स्वर्ण पदक प्राप्त) विद्यार्थी रहनीं; बाकिर उहाँ के हिन्दी,उर्दू से अधिक अपना मातृभाषा भोजपुरी से लगाव रहे। एहसे उहाँ के चाहत रहनीं कि भोजपुरी के जवना कोना में अभी ओतना समृद्धि नइखे भइल, ओह कोना के समृद्ध बनावल जाव आ भोजपुरी में भी बहुत कुछ अइसन बा जे समृद्ध साहित्य के इयाद करा सकेला, ओकरा के पाठक के ध्यान में ले आवल जाव। एहसे उहाँ के सिर्फ पाठक खातिर ही ना भोजपुरी-साहित्यकारन के प्रेरित करे आ ओह लोगन के ज्ञान- भंडार बढ़ावे खातिर भी एह संग्रह में कइगो शोधात्मक निबन्ध लिखले बानीं; जे अगली पीढ़ी के मार्गदर्शन करे में सक्षम बा।

‘नारी-सौन्दर्य आ प्रकृति’ शीर्षक निबन्ध में लेखिका के कहनाम बा कि संस्कृत-साहित्य में प्रकृति के चारुतम रूप प्रस्फुटित भइल बा । प्रकृति के प्रेमिका के रूप में या वास्तविक नायिका के रूप से प्रकृति-नायिका के स्पर्धा दिखावल गइल बा। कभी-कभी उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, प्रतीप, श्लेषादि के प्रयोग से पाठक कठिनाई  में पड़ जाला कि उपमान श्रेष्ठ बा कि उपमेय। कालिदास उपमा के जादूगर हउअन। उनका रचना में दूनू तरह से उपमा के प्रयोग भइल बा। भोजपुरी में भी उपमा के प्रयोग बहुत भइल ला। भिखारी ठाकुर द्वारा उपमा के प्रयोग देखीं-

“आँखिया त हउए जइसे अमवाँ के फँकिया से,

मोछिया      भँवर       गुलजार   रे    बिदेशिया

ओठवा     त   हऊए   जइसे  कतरल पनवाँ  से,

नकिया    सुगनवा   के    ठोर      रे    बिदेशिया ।।”

शैलजाजी के बारे में पाण्डेय कपिलजी लिखतानी- “एह ग्रंथ में चिन्तन के कुसुम कुसुमित भइल बा। चिन्तन के अइसन फूल त पाण्डित्ये का गाछ पर फुला सकेला। शैलजाजी के विदुषी व्यक्तित्व के आयाम बहुत व्यापक बा। संस्कृत, हिन्दी आ भोजपुरी, भाषा, साहित्य आ संस्कृति; धर्म, दर्शन आ अध्यात्म के अध्ययन, मनन आ विवेचन से उहाँ के जवन साहित्यिक व्यक्तित्व निर्मित भइल बा ओकरे रम्य आ सुचिन्तित अभिव्यक्ति एह ग्रंथ का निबन्धन में भइल बा।”

हालाँकि भोजपुरी में निबन्ध पिछला कुछ दशक से  लिखाये लागल बा। फिर भी स्तरीय आ अध्ययन-विवेचन-परक निबन्धन के सर्वथा अभाव बा। एहसे पाण्डेय कपिल लिखतानी- ” एह अभाव के पूर्ति का दिसाईं, एह ग्रंथ के प्रणयन आ प्रकाशन के महत्त्व माने के होई।– एह विशिष्ट कृति खातिर श्रीमती शैलजा कुमारी श्रीवास्तव जी भोजपुरी-जगत के साधुवाद के पात्र बानीं।” एही बात के (आचार्य) विश्वनाथ सिंह एह तरह से लिखतानी-“हम एह कृति के अभिनन्दन करsतानी कि एकरा से भोजपुरी के व्यक्तिगत आ समीक्षात्मक, दूनों तरह के निबन्धकार लोगन के दिशा-निर्देश होई।”  

एह तरह से हम कह सकेनी कि शैलजाजी के ई निबन्ध-संग्रह कोई मामूली निबन्ध-संग्रह ना ह बल्कि ई भोजपुरी-साहित्य खातिर मील के पत्थर साबित भइल बा। काहेकि एह संग्रह के निबन्ध एक ओर जहाँ अध्ययन-विवेचन से भरपूर बा, त उहईं दोसरा ओर एह संग्रह के व्यक्तिगत आ समीक्षात्मक दूनू तरह के निबन्ध भोजपुरी निबन्धकार लोगन के दिशा-निर्देश करे में भी सक्षम बा।

परिचय – अनिल कुमार प्रसाद (जन्म 1958-), अंग्रेज़ी के अवकाशप्राप्त प्रोफ़ेसर आ शिक्षाविद देस विदेस में कार्यरत रहल बानी  , अंग्रेज़ी, हिंदी आ भोजपुरी में कविता, कहानी आ निबंध बराबर लिखत  रहेनी।

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