पुस्तक: हमार गाँव (स्मृति आख्यान)
लेखक: चंद्रेश्वर
प्रकाशन: रश्मि प्रकाशन, 204, सनशाइन अपार्टमेंट, बी-3, बी-4, कृष्णानगर, लखनऊ
प्रकाशन वर्ष:
मूल्य: 200 रुपया
चंद्रेश्वर जी के एगो किताब ह ‘हमार गाँव’। एह किताब में चंद्रेश्वर अपना गाँव के बीतल दिन के इयाद करत बाड़न। बचपन से लेके हाल हाल तक के अपना गांव के एकेक बात खोज खोज के सुनावत बाड़न। जतने आपन गांव के खोजत बाड़न, गांव के लोगबाग के, जोरापारी के लइकन के, नाता रिश्ता के, अतने अपनहूँ के। खेत-खरिहान, बाग, नदी- ताल- पोखर, मेला-ठेला,लीला-रामलीला,परब-तेवहार, गीत-गवनई, झगड़ा-रगड़ा, गारी-गेंग, कथा-कहानी,भूत-पिचास, खेल, माई, बाबू, चाचा, चाची, नाना, नानी, गोतिया-नइया, हरवाह, चरवाह, बूढ़-पुरनिया, मजूर, गवनिहार,गवनिहारिन सब अपना रंग ढंग में हाजिर बा। इयाद दर इयाद एगो लड़ी परोसल गइल बा। स्मृति में कवनो ठहरल ना, बदलत गांव उभरत बा। बदलाव चाहे जइसन होखे। लेखक खुदे एह के इयाद कथा कहत बाड़न, स्मृति आख्यान। एकर भूमिका लिखले बाड़न हरे प्रकाश उपाध्याय। संजोग बा कि चंद्रेश्वर जी आ हरे प्रकाश एके जिला जवार के ह लोग। दूनो लोग के मातृभाषा भोजपुरी ह। हरे प्रकाश एह किताब के बारे में सही बात लिखले बाड़न कि ई किताब खाली चंद्रेश्वर के गांव ‘आशा पड़री’ के खिस्सा नइखे कहत, बलुक भोजपुरी क्षेत्र के अनेक गांवन के नीक-जबून कह जात बिया। एह किताब के पढ़त समय जे भोजपुरी अंचल के भौगोलिक बनावट, भाषालत, उच्चारण आदि से वाकिफ होई ऊ जरूर बूझ जाई कि एह किताब में गंगा के मैदानी इलाका, जेके दीयर कहल जाला, मुख्य रूप से ओहिजे के बात बा। चंद्रेश्वर जी एकर जिकिरो करत बाड़न।
ई पूरा किताब एकावन उपशीर्षक में बा। एकावनो मिल के एगो गांव के बहाने एगो इलाका के निकट अतीत आ वर्तमान के हाल अहवाल सब बतियावत बा। निकट अतीत आ वर्तमान के बीचे कवनो फांक नइखे। इयाद सबके जोड़ले रहत बा। कुल पचास पचपन साल के गांव के बात बा आ खाली अतने ले नइखे। लेखक से बेसी उमिर के जे बा, जे काका, बाबा, काकी आ ईया बा, पहिले के पीढ़ी के बा, ओकर बात बतकही में जवन बात आवत बा ऊ पिछिला के पिछिला पीढ़ी से जुड़ल बा। मतलब कि लमहर कालखंड बोलत बा।
भोजपुरी समाज में, खास क के आमजीवन में बात बतकही के जवन शैली देखे में आवेला,आपन बात प जोर देके बतियावे के, सुनेवाला यकीन करिए ले, ना यकीन करे के कवनो गुंजाइश बेछोड़ले, ओह शैली के अनूठापन एह किताब में जगह जगह देखल जा सकेला। बतियावे वाला जदी मरद बा, त ऊ बात बात में कहेला कि लोहा छू के कहत बानी, खटिया प होई त खटिया छुवे के कही, गाँछ त होई त ऊपर देखत कही कि बिरिछ त बानी, कुछ ना होई त धरती छू के भा आकाश देने ताक के बात कही। कि सुनेवाला खूब सुने आ यकीनो करत जाए। मेहरारू होले त किरिया खाले, आँखी किरिए। चंद्रेश्वर के एह किताब में एकर बानगी जगह जगह देखल जा सकेला। बानगी के तौर प पहिलके चैप्टर के ओह अंश के देखल जा सकेला जहां ऊ मोबाइल नंबर देवे के कहत बाड़न कि “ना परतोख होखे त रउवा सब हमरा बाबूजी से भा हमार समउरिया चचेरा बड़ भाई अशोक जी से पूछ सकत बानी। ओह लोग के मोबाइल नंबर दे देब।” केहू के पतियावे के हद तक जाए के कला ‘डकैत सिरी किसुना अहीर’ पाठ में भी देखल जा सकेला -“केतना लोग पतियाई ना आ कही कि बनत बाड़े, बाकी सचाई इहे बा।” अब साँच चाहे जे होखे।
बाकी लेखक जहां तक जानत बा, जवन कहत बा ऊ साँच बा।
एह में एगो अंश बा ‘गांव में मेहरारू”। लेखक के स्मृति में जवन गाँव घर बा, ओह में मेहरारू त खूब बा लोग, बाकी ऊ अपना अपना नाम के संगे नइखे लोग। एकाध गो के छोड़ के। केहू अपना पति के नाम से त केहू बेटा बेटी के नाम से जानल जाता। ऊ चाची होत रही, काकी, मउसी, ईया, नानी, फुआ होत रही। बहुत लोग त आपन नाम तक भुला गइल होई। लेखक इहो सवाल उठा रहल बा कि केतने मेहरारुन के घर भितरे मुआ देल गइल, एकर कवनो हिसाब नइखे। केतने के पेट गिरल, केतने कुहुक के मुअल। एह में लेखक अपना पट्टीदारी के एगो बीस बाइस साल के बियाहल लइकी के, जे नाता में लेखक के फुआ लागत रहे, जिनगी के बहुते त्रासद प्रसंग के वर्णन करत बा। ओह लइकी के अपना भरल जवानी में आग लगा के मुवे के राह चुने के परल। लेखक तब छोट रहे। ओह के लेके ना ससुरा के केहू फिकिरवंत लउकल आ नइहर त रहले ना रहे।
स्मृति आख्यान लिखल जोखिम के काम ह। बहुत कुछ कहे के संगे संगे बहुत कुछ छिपा लेवे के भी भरपूर गुंजाइश होला। ई किताब पढ़त बुझाला कि चंद्रेश्वर लेखकीय ईमानदारी के ताक पर नइखन रखले। बाकी कुछ बात बा जवना के तरफ ध्यान बेगइले नइखे रहत। ऊ ई कि अधिकांश त अइसन लागत बा जइसे लेखक धड़ाधड़ आपन बात कहत जा रहल बा। जहां रुक के बात कहल बा, ऊ हिस्सा जादे तथ्यपूर्ण बा, विश्लेषणपरक बा।
भाषा के लेके भी कुछ बात बा। बेशक ई किताब भोजपुरी के मुकम्मल स्मृति आख्यान ह। आ भाषा के लेके जवन आग्रह दिखाई देत बा ऊ खाली इनके साथ नइखे। जइसे सिरी भगवान , परकीरती, संस्कीरती के देखल जाए। बहुते लोग अइसे लिखेला। बाकी सोचे के चाहीं कि जब मल्लाह लिखल ठीक बा त संस्कृति काहे बेठीक बा।
गाँव के धूर्त आ चलबिद्धधर चरित्र के भी खोज बा। लेखक कवनो ठहरल गाँव के बात नइखे करत। गाँव कतना आ कवना रूप में बदल रहल बा, लेखक के नजर ओह पर बा। परिचय- बलभद्र, हिंदी विभाग, गिरिडीह कॉलेज, गिरिडीह, झारखंड।