पीपर के पतई: जीवन के पैंसठ गो रंग के संकलन

February 13, 2023
पुस्तक समीक्षा
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हरेश्वर राय

पुस्तक: पीपर के पतई

लेखक: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

विधा: कविता

प्रकाशक: नवजागरण प्रकाशन, नई दिल्ली- 59

प्रकाशन वर्ष: 2017

पृष्ठ संख्या: 104

सजिल्द मूल्य: 200/-

जिनिगी के अनंत विस्तार बा। जल आ थल के साथे-साथे नभ में भी एकर मौजूदगी बा। एहिसे ई एगो अबूझ पहेली कहाले।  एकर रंग हजार आ कोण करोड़ बा। एह रंगन आ कोणन के अभिव्यक्त करे खातिर कविता के सबसे दमदार आ प्रभावकारी विधा मानल गइल बा। अंग्रेजी साहित्य के एगो लोकप्रिय समीक्षक मैथ्यू अर्नाल्ड के भी कह्नाम बा कि ‘कविता जीवन के समीक्षा ह’। भोजपुरी कविता संकलन पीपर के पतई में शामिल पैंसठ गो कवितन के माध्यम से जयशंकरजी जिनिगी के पैंसठ गो रंगन के संप्रेषित करे के सराहे जोग परयास कइले बानी।

पीपर के पतई  के जदि फूल, धूल आ शूल के संग्रह कहल जाय त अनुचित ना कहाई। सार आ शैली के विविधता एह संकलन के ख़ास ख़ूबसूरती बा। लयात्मकता के मामला में भी एह संकलन के रचना कहीं से दब नईखी सन।  सपाटपन आ एकरसता के कमजोरी से कोसन दूर संकलन के रचनन में अदिमी के जिनिगी के घरेलू, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आ राजनीतिक पक्षन के प्रस्तुति के विषय बनावल गइल बा। रचनन से साक्षात्कार भइला के बाद हमरा अइसन लागल कि एह सम्प्रेषण के प्रभावकारी बनावे में जयशंकरजी के कल्पनाशीलता के आ अनुभव के बराबर के जोगदान बा।

पीपर के पतई  में जयशंकरजी कतहूँ से भी ‘कला कला के लिए’ के सिद्धांत के अनुयायी नइखीं बुझात। उहाँ के ‘कला जीवन के लिए’ के सिद्धांत के जबर्दस्त समर्थक प्रतीत हो रहल बानी। रचनाकार के हर रचना में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण एकदम साफ झलक रहल बा। हर रचना जीवन के बेहतरी के कोशिश करत प्रतीत हो रहल बाड़ी सन। कवि के ई जवन आशावादिता बिया उहे एह संकलन के असली सौंदर्य कहाई।

पीपर के पतई  के पहिल कविता के नाँव देल गइल बा ‘सरस्वती वंदना’। एह रचना के अंतिम अंतरा में उहाँ के ज्ञान के देवी से बहुते विनम्रता के साथ निहोरा कर रहल बानी कि हे माई ! सभके मन के मइल धो दीं आ स्वस्थ जनमानस के निर्माण करीं। एह रचना में जिनिगी के सुन्दर बनावे के भाव रेखांकित करे जोग बा! जयशंकरजी निवेदन कर रहल बानी:

ब्रम्ह दुलारी माई

मन अंजोर लाईं..

आज रिश्ता, मूल्य आ नैतिकता, भौतिकता के भंवरजाल में फँसल नजर आ रहल बाड़न स। जिनिगी के एह महत्वपूर्ण पहलुअन के क्षरण बड़ी तेजी के साथ हो रहल बा। एह्में कवनों दू मत नईखे कि एह तरह के क्षरण आज के समाज के सबसे बड़ त्रासदी बा। घर, परिवार, समाज, राष्ट्र आ सम्पूर्ण मानवता के हिफाजत करे खातिर एह क्षरण के गति प विराम लगावल बहुत जरुरी बा। पीपर के पतई के ‘अइसने घरवा’, ‘घूँटत बाप’, ‘पतोह का निबाही’ जइसन कई गो रचना एह क्षरण के रोके के प्रयास करत दिख रहल बाड़ी सन:

तुनक के बबुआ मत बतियावा

सभकर अइठन छूटल

अइसने घरवा फूटल (अइसने घरवा)

सभ भाषा आ बोली के लोकोक्ति लेखा ही भोजपुरी भाषा के लोकोक्ति भी बहुते चुटीली आ अर्थपूर्ण होली सन। कवनों कथन के सजीव, रोचक. प्रभावकारी आ सहज ढंग से समुझे लायक बनावे में एहनी के विशिष्ट जोगदान होखेला। कवनों बात के समर्थन, विरोध भा सीख आदि अभिव्यक्त करे खातिर एहनी के प्रयोग कइल जाला। पीपर के पतई के रचनाकार के लोकोक्तिन के प्रति बड़ा आकर्षण बा; अइसन एकदम साफ लउक रहल बा। लगभग आधा दर्जन से अधिका कवितन के शीर्षक में लोकप्रिय भोजपुरी लोकोक्तिन (आन्हर कुकुर बतासे भोंके, खग बुझे खगही के भाषा, छनहीं तोला छनहीं माशा, खीझल बिलिया खम्भा नोचे आ छुंछा के बा के पुछवइया) के स्थान देल गइल बा।

पीपर के पतई के कई गो रचनन (अब्बो ले सुपवा बोलेला, खग बूझे खगही के भाषा, छुंछा के बा के पुछवइया, बहल गाँव बिलाइल खेती) में गाँव के जीवन के दुःख- दरद के सजीव चित्र उकेरल गइल बा। ‘हाय रे मनई!’ में आज के आदिमी के बेचारगी के भी बड़ा सुंदर फोटो खींचाइल बा:

इंटरनेट के बाज़ार में, बेजार भइल मनई

हर बेरा गूगल के शिकार भइल मनई

घरी-घरी टुकुर-टुकुर वेभ के निहारत रहे

छितिराइल वेभ क औजार भइल मनई..

कल्पना, प्रकृति, अतीत, ग्राम्य जीवन आ कमजोर तबका के प्रति प्रेम राखेवाला रचनाकार लोगन के छायावादी रचनाकार के श्रेणी में राखल जाला। जयशंकर जी के पीपर के पतई में भी कतहूँ कतहूँ छायावाद (अंगरेजी साहित्य के रोमांटिसिज्म) के कई गो विशेषता के दर्शन हो रहल बा। ‘हेराइल आपन गाँव’ के कवि अपना बचपन के याद करत कह रहल बाड़न:

इयाद आवत बा

लरिकाईं में

कोइला से पटरी पचरल फिर

सुखा के ओपर शीशी घोंटल आज

इयाद आवत बा इस्कूल से लवटले प

माई क रगड़ी के हमार मुँह पोंछ्ल..

पीपर के पतई  में हास्य. ब्यंग्य, कटाक्ष आदि साहित्यिक संसाधन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के विकृति (लालच, चापलूसी, दिखावा, भेदभाव, ईर्ष्या, द्वेष, जलन, बेईमानी, शैतानी, खींचातानी, लंगी लगौअल) प सधल चोट कइल गइल बा। उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकारन के प्रयोग भी बड़ा तरीका से कइल गइल बा। ‘बेपरवाह’ नाम के कविता के प्रथम पंक्ति में अनुप्रास अलंकार के बहुत सुन्दर प्रयोग देखल जा सकेला: ‘कब कवने कोने से का निकली …’

पीपर के पतई एकदम खाली दूध के धोअले नइखे। कहल जाला कि चाँद में भी दाग होला। पीपर के पतई के कुछ नकारात्मक पक्ष भी बा। ‘बबुआ’ शब्द के आवृति के कारन एह संकलन में छोट-मोट आवृति दोष आ गइल बा। प्रूफ रीडिंग भी बहुत सजगता से नइखे भइल। एह संकलन के अनुक्रम में बहुत सुधार के जरूरत बा। एगो रचना में एगो दल विशेष के प्रमुख हस्ती के नाम शामिल कइल भी हमरा बहुत खटकल।

परिचयबिहार के भोजपुर (आरा) जिला के जमुआँव गाँव के एगो किसान परिवार में जनमल हरेश्वर जी हिंदी, अंग्रेजी आ भोजपुरी में अपना छात्र जीवन से ही लेखन कार्य कर रहल बानी। अंग्रेजी आ भोजपुरी मिला के इहाँ के नौ गो पुस्तक प्रकाशित बाड़ी सन। वर्तमान में इहाँ के शासकीय पी. जी. महाविद्यालय सतना, मध्यप्रदेश, में अंग्रेजी के प्रोफेसर के पद प सेवा दे रहल बानी।

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