पुस्तक-समीक्षा
डॉ. नीरज सिंह
स्वर्गीय बरमेश्वर सिंह कवनो परिचय के मोहताज नइखन। उहां के भोजपुरी के एगो बहुत समर्थ रचनाकार रहनी हां जे एक साथ ही कविता आ कहानी दुनो क्षेत्र में सक्रिय रहीं। उहांके लिखल कविता के दुगो संग्रह प्रकाशित हो चुकल बा। पहिला कविता संग्रह छंद मुक्त कविता के ह, जवना के शीर्षक ह – अथ लुकाठी कथा। दूसर पुस्तक छंदोंबद्ध रचनन के संग्रह ह- ‘ गीत-अगीत ‘। एह दुनो कविता संग्रहन के अतिरिक्त बरमेश्वर जी के दुगो कहानी संग्रह भी प्रकाशित बाड़न स- ‘ कथा वृक्ष’ आ ‘ अमर कथा ‘। एह चार पुस्तकन के रचनाकार बरमेश्वर जी अपना लेखकीय सजगता के चलते बहुत बिपुल परिमाण में सृजन कार्य त नइखी कइले बाकिर गुणवत्ता के लिहाज से उनका कृतियन के अप्रतिम महत्व बा। कविता के साथे साथे कहानी के क्षेत्र के भी में उहांके योगदान बेजोड़ रहल बा। सबसे बड़ चीज कि जब तक उहांके जीवित रहनी, नियमित लेखन करत रहनी आ सार्थक रचत रहनी।
बरमेश्वर सिंह जी के चारो पुस्तक उहांके जीवनकाल में ही प्रकाशित हो चुकल रही स। एकरा बावजूद उहांके अलग-अलग कईगो गद्य विधन के कुछ रचना अब तकले अप्रकाशित रह गइल रही स। ओह सभ बाचल-खुचल रचनन के प्रकाशन हाल फिलहाल सर्व भाषा ट्रस्ट दिल्ली से भइल हा। एह पुस्तक के संपादन कइले बाड़न- सुप्रसिद्ध कवि- कथाकार-आलोचक विष्णुदेव तिवारी आ अनुभवी संपादक-रचनाकार दिलीप कुमार। ‘ बटवृक्ष ‘ के प्रकाशन से एगो बहुत बड़ काम भइल बा जवना खातिर संपादक- द्वय आ प्रकाशक के साथ ही स्वर्गीय बरमेश्वर सिंह जी के सुपुत्र हेमंत कुमार सिंह भी बराबर के बधाई के हकदार बाड़न।
बटवृक्ष में निबंध, प्रतिक्रिया, समीक्षा आ संस्मरण खंड के अंतर्गत कुल उन्नीस गो रचना संकलित बाड़ी स। एंहनी में एग्यारह गो निबंध, दू गो प्रतिक्रिया, पांच गो समीक्षा आ एगो संस्मरण विधा के रचना बा। संस्मरण के शीर्षक ‘ बटवृक्ष ‘ ह जवना के नाम पर ही एह पुस्तक के नामकरण भी कइल गइल बा। संस्मरण बटवृक्ष के अतिरिक्त पुस्तक में शामिल सभ रचना भोजपुरी के बाड़ी स। बटवृक्ष एकमात्र रचना बा जवन हिंदी के बा आ पुस्तक के अंत में राखल बा। अब ई बात हमरा समझ से परे बा कि आखिर संपादक द्वय के अइसन कवन मजबूरी रहल हा जवना के चलते उहां सभे के एगो जानल-मानल भोजपुरी साहित्यकार के मरणोपरांत प्रकाशित अंतिम पुस्तक के नामकरण हिंदी में प्रकाशित रचना के नाम पर करे के पड़ल हा! हमरा समझ से एकरा के उचित ना कहल जा सके। खैर।
पुस्तक के पहिला रचना के रूप में एगो निबंध बा जवना के शीर्षक ह -‘ कहानी के व्याकरण ‘। एह निबंध में कहानी विधा के स्वरूप पर बहुत बढ़िया से प्रकाश डालल गइल बा। कहानी के परिभाषा आ ओकरा तत्त्वन प एह निबंध में विचार कइल गइल बा। सबसे बड़ चीज बा- कहानी के अंग्रेज लेखकन द्वारा दिहल गइल परिभाषण के बहुत सुन्दर अनुवाद। अंग्रेजी परिभषन के अतना बढ़िया साफ सुथरा आ सटीक अनुवाद त हिंदी के बड़ बड़ विद्वान लोग भी नइखे कर सकल। एहिजा विस्तारभय से हम उदाहरण नइखीं देत। एकरा साथही एह निबंध में हेनरी हडसन के द्वारा उल्लेखित कहानी के छह तत्वन के तनिका संशोधित बाकिर ज्यादे ग्राह्य आ संप्रेषणीय रूप में बतलावल गइल बा। ई निबंध एगो आदर्श वस्तुनिष्ठ निबंध के उदाहरण कहल जा सकेला। एही तरह के अउर तीन गो निबंध पुस्तक में संकलित बाडन स- लघु कथा आ भोजपुरी लघु कथा, भोजपुरी पत्रकारिता: दशा आ दिशा तथा गजल आ भोजपुरी ग़ज़ल। एकरा साथ-साथ दुगो और निबंध बाड़न स- ब्राह्मणवाद के शब्दार्थ आ आर्ष ग्रंथन में पर्यावरण चिंतन। एह सभ निबंधन में विषय वस्तु के बहुत बढ़िया से विवेचन विश्लेषण भइल बा। उदाहरणस्वरूप लघुकथा के ई परिभाषा के देखल जाव – ” लघुकथा जिनिगी के लघु-धड़कन के कहानी ह। जवना के काल क्षणिक होला। हालांकि, ओह क्षणिक काल में तीव्रता आ गति के कमी ना होला। इहे कारण बा कि लघुकथा चील-झपट्टा अस पूर्ण होला। माने कि प्रारम्भ होखते अपना समाप्ति पर पहुंच जाला।” हां, भोजपुरी ग़ज़ल पर आपन बात कहे के क्रम में गजलकार लोग के लापरवाही आ भावन के पुनरावृत्ति के जवना अंदाज में चर्चा लेखक कइले बाड़न, ओकरा से एगो रम्य रचना पढ़े के आनंद मिलत बा। बाकी के जवन निबंध बाड़न स, ऊ सभ त संचहूं के ललित निबंध बाड़न स- एकदम बरमेश्वर सिंह जी द्वारा देल गइल ललित निबंध के परिभाषा के अनुरूप। उहेँ के शब्दन में – ” साहित्य के क्षेत्र के हर आदमी जानेला कि ललित निबंध भा रम्य रचना जे कहीं, के माने होला – उड़ी जहाज के पंछी पुनि जहाज पर आए। बाकीर, ई उड़ान आ वापसी कलात्मक आ ललित रूप से घटित होला। फूहड़पन खातिर एह में कावनो स्थान ना होला । एह में जो फूहड़पन के पयसार हो जाई त ऊ निबंध ललित निबंध ना होके फूहड़ी के बड़ी हो जाई।” ‘ भोजपुरी कविता के वर्तमान स्थिति ‘, ‘ भोजपुरी आलोचना के नया प्रतिमान ‘, ‘ भोजपुरी कविता के त्रिकोण ‘ आ ‘ भोजपुरी के हिट साहित्यकार ‘ हमरा दृष्टि में ललित निबंध के उपर्युक्त कसौटी पर खरा उतरेवाली रचना बाड़ी स। एह सभ निबंधन से अलग डॉ. विजय बालियाटिक के व्यक्तित्व आ कृतित्व प केंद्रित निबंध एगो शुद्ध शोधपूर्ण निबंध बा, जवना से उहांके हिंदी आ भोजपुरी के साधक साहित्यकार आ एगो प्रभावशाली आ लोकप्रिय शिक्षक नेता रूप के सुंदर परिचय मिलत बा।
पुस्तक में एगो प्रतिक्रिया खंड बा, जवना में दुगो पाठकीय प्रतिक्रिया शामिल बाड़ी स। एगो के शीर्षक बा -‘ सावन भादो के मिलन समारोह ‘ । एकरा में भोजपुरी के दुगो प्रतिष्ठित साहित्यकार लोग के सावन आ फागुन के आगमन प रचाइल गीतन में दिखलाई पड़ेवाला भावसाम्य के बहुत रोचक अंदाज में चर्चा कइल गइल बा। दोसरकी प्रतिक्रिया समकालीन भोजपुरी साहित्य के कहानी विशेषांक के रूप में प्रकाशित ओकरा चउथा अंक प केंद्रित बा जवन बरमेश्वर बाबू के अपना कबीराना अंदाज के चलते बहुते रोचक हास्य-व्यंग्यपूर्ण रचना बन गइल बिया। एह रचना में उहांके एह विशेषांक में प्रकाशित कहानियन प आपन बेबाक राय रखला के बाद अंत में जवन निष्कर्ष प्रस्तुत कइले बानी, ऊ बेजोड़ बा आ पढ़े लायक बा – ‘ बाकिर, तइयो ई विशेषांक दू बात में बेजोड़ बा। पहिला-आपन जात के भात खियावे में आ दोसर-सेतु न्यास के धन प गुलछर्रा उड़ावे में। ‘
समीक्षा खंड में भोजपुरी के पहिला उपन्यास ‘ बिंदिया ‘ के लेखक स्व रामनाथ पांडेय जी के चउथा उपन्यास ‘ इमरितिया काकी ‘, हिंदी-भोजपुरी के बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी के लघुकथा संग्रह ‘ थाती ‘, स्व कृष्णानंद कृष्ण के चउथा कहानी संग्रह ‘ हादसा ‘, राज नारायण दीक्षित जी के पौराणिक कहानी संग्रह ‘ सेर भर सतुआ ‘ आ विदुषी साहित्यकार शारदा पांडेय जी के निबंध संग्रह ‘ रसबोध के एने-ओने ‘ के समीक्षा शामिल बा।
अंत में एह पुस्तक के शीर्षक रचना आ एकमात्र हिंदी रचना ‘ बटवृक्ष ‘ के बारे में दू शब्द। ई रचना सांच पूछी त एगो श्रद्धांजलि वक्तव्य ह, जवन हिंदी-भोजपुरी के अनन्य साधक आ बलिया से प्रकाशित होखेवाली पत्रिका ‘ रससुलभ ‘ के संपादक स्व नरेंद्र शास्त्री जी प केंद्रित बा। एकरा में शास्त्री जी के विस्तृत परिचय त नइखे दिहल गइल बाकिर उहांके बहुते आत्मीयतापूर्वक इयाद कइल गइल बा।
‘ बटवृक्ष ‘ में शामिल रचना अपना विषयवस्तु के चलते त पठनीय बड़ले बाड़ी स, आपन रचना शिल्प आ भाषा-शैली के चलते भी पाठक के मन-मस्तिष्क में हमेशा खातिर रच-बस जाए में समर्थ बाड़ी स। विस्तारभय से डेरइला के बादो हम एकाधगो उदाहरण देबे से अपना के रोक नइखीं पावत। देखल जाव – ‘ खैर, भोजपुरियो में ग़ज़ल आइल आ खूब ताम-झाम के संगे आइल। नतीजा ई भइल कि जवना भोजपुरी के आत्मा गीत में बसत रहे, ओकरा के जबर्दस्ती ग़ज़ल में ठेले के पुरजोर कोशिश होखे लागल। फिर इहे कोशिश बाद में चलि के एगो कुचक्र के रूप अख्तियार करि लिहलस आ ई सिद्ध करे के तिकड़म होखे लागल कि बिना ग़ज़ल लिखले अब भोजपुरी के कल्याण होखेवाला नइखे, कि जतना दम गज़ल में बा, ओतना दम अउरी कवनो विधा में नइखे, कि भोजपुरी के इज्जत भोजपुरी ग़ज़ले बंचा सकेला। नतीजा ई भइल कि भोजपुरी साहित्य के आकाश में बरसाती फितिनगी अस भोजपुरी के सैकड़न ग़ज़लगो उड़े लगलें। हालात इहवां तकले पहुँचि गइल कि भोजपुरी के अच्छा खासा निबंधकार, कहानीकार आ आलोचक तकले गजलगो कहाय खातिर छटपटाए लगलें। ‘
अंत में, ‘ बटवृक्ष ‘ के संपादन-प्रकाशन रूपी एह महत्त्वपूर्ण कार्य में शामिल भाई विष्णुदेव तिवारी, दिलीप कुमार, हेमंत कुमार सिंह अउर बहुते सुन्दर आ साफ-सुथरा प्रकाशन-मुद्रण खातिर केशव मोहन पांडेय जी आ सर्व भाषा ट्रस्ट के बार-बार बधाई आ धन्यवाद।
परिचय- डॉ. नीरज सिंह, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के स्नातकोत्तर हिंदी आ भोजपुरी विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर आ विभागाध्यक्ष।