भोजपुरी के थाती – पहिलका डेग

February 13, 2023
पुस्तक समीक्षा
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कृतिपहिलका डेग

रचनाकारअशोक कुमार तिवारी

विधाकविता

प्रकाशक अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना

प्रकाश वर्ष2014

मूल्य१५० (एक सौ पचास रूपये मात्र)

पृष्ठ116

       ‘पहिलका डेग’ सूर्यभानपुर, बलिया (उ0प्र0) के रहनिहार यशस्वी साहित्यकार अशोक कुमार तिवारी जी के पहिलका भोजपुरी काव्य संग्रह ह। भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका के सम्पादक प्रो0 ब्रजकिशोर, चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह, डाँ जनार्दन राय, आ बृजमोहन प्रसाद ‘अनारी’ आदि दिग्गज साहित्यकारन के भूमिका/शुभकामना से सज्जल ई किताब सांचो सराहे जोग बीया।

     काव्य संग्रह के पहिलका रचना ‘गणेश जी के जोहार’ में भारतीय परम्परा के निबाहत गणेश जी के वन्दना अपना ढंग से करत जब कवि आगे बढत बा त सबसे पहिले ओकरा देश लउकत बा आ अपना रचना ‘इहे परिपाती’ हऽ भारत महान के पक्तिंयन’ घरे घरे मंदिर बा घरे-घरे धाम बा। केहू जये देबी केहू रटत हरि नाम बा। राखे ईमान ओकर नाम मुसलमान बा। बेरि-बेरि मसजिद में गूँजत अजान बा। कहीं बाटे चरच, कहीं बाटे गुरुद्वारा। आपन-आपन धरम से जुटल लोग सारा। ‘ से देश के एकता आ अखण्डता के अलख जगावे के प्रयास करत बा। ‘पान गुटखा’, ‘मोबाइल’, ‘फेंड’, ‘गमछा’, टाइटिल से लिखल दू-दू गो कुण्डलियन के पढला से ई साफ बा कि कवि छन्दबद्ध रचनो करे में प्रवीण बा।  ‘का बा दोस हमार’ कविता में कवि नारी महिमा के बरनन करत भ्रूणहत्या के घोर विरोध करत अगिला कविता ‘कहिया ना लाज लुटाता’ में देश के नैतिक-चारित्रिक पतन पर आपन चिन्ता व्यक्त करत कहत बा ‘आखिर एकर कारन का बा?’ कांहे अइसन होता। आखिर कांहे उजरल जाता?। हर गरीब के खोंता।। धनिक-धनिक अउरी होता,। होता गरीब भिखमंगा। चिरकुट गांथे वाला अउरी। होखल जाता नंगा।। एह कविता के बाद जवन कविता एह संग्रह में संग्रहित बीया, ओकरा के एक तरह से एह किताब के आत्मा कहल जा सकेला। ‘गाँव होई नापाता’ ई कविता एह काव्य संग्रह के सबसे लम्बा दस पेजी कविता बीया जवना में कवि गाँवन पर कइसे शहरीकरण के प्रभाव पसरल जाता, घर-दुआर, बाग-बगइचा, खेती-बारी, पेन्हांव-ओढाव, रहन-सहन, रीति-रिवाज, संस्कार-परम्परा कइसे बदलल जाता, एकरा पर आपन गझिन दृष्टि डालत बडा रोचक रूप में कविता के माध्यम से कहे के प्रयास कर रहल बा। कहे के ढंग केतना रोचक बा देखल जाऊ-  खेती-बारी पर कइसे मशीनीकरण हाबी बा, नमूना देखी-   ” हर-बैल जुआठ का होई?/ का होई पैनानाथा?/ एकही हेक्टर आइ गइल कि/दूर भइल सब बाधा/ कुँआ रहट से जल निकालल/ नइखे अब जरुरी/ पम्पिंग सेट चलावे पानी/ दूर भइल मजबूरी/ अब पकौढा कहँवा लागे? / होरहा कहाँ झोलाता? / कुछुए दिन में अइसन होई/ गाँव होई नापाता/” पुरनका लूर-गून कहाँ भुलाइल जाता एकर बानगी देखी- ” के चाहत बा सीखल बोने? / छँइटी- खाँच खँचोली/ कँहवा लउकत बा अब सोझा? / बँसखट अउर खँचोली/ चरबधिया-छवबधिया सोखऽ/ बहुत कठिव बा ठाटल/ इन्द्र चन्द्र-जम् राज के गोनल / समय फालतू काटल/ के लउकत बा खटिया छानत/ कँहवा सोक गिनाता? / कुछुए दिन में अइसन होई/ गाँव होई नापाता/ कँहवा सोके गिनाता? धर्म परम्परा के हमनी के कातना ताक पर राखत जात बानी जा, एकर उदाहरण देखी- ”कहाँ सुनाता केनियो अब/ त्रिलोकीनाथ के काथा/ अण्ड-बण्ड-महमण्ड रहत बा/ के करो ई ताथा?/ दू घण्टा लोगन के झेलऽ / तब बांटऽ परसादी। बाटे बहुत कठिन काम। सऽहल दूनो बरबादी/ कँहवा लोग-हँसी ठहाका?/ कँहवा शंख फुकाता?/ कुछुए दिन में अइसन होई/ गाँव होई नापाता।” सब मिला के ई कविता भले लम्बा बीया बाकिर एकर विषय, ठेठ-भोजपुरीयन आ कहे के तरीका एतना रोचक आ मनभावन बा कि पाठक एको सेकेण्ड खातिर कहीं बोरियत महसूस नइखे कर सकत। एह तरे ई कविता ”गाँव होई नापाता” संचहूँ एगो कालजयी रचना बन पडल बीया। काव्य संग्रह में नमूना के तौर पर दीहल गइल दूगो गजल आपन अलग प्रभाव डालत बा तऽ ”गरीबी के पीर” कविता में गरीबी के बरनन मर्मभेदी बा। ”झुलनिया उधार ना मिली” काव्य के निर्गुन रुप में हाजिर बा।” जनि मूव रोपिया खातिर” आ ”तुहूँ खेल हमहूँ खेलीं” कविता में यथार्थ आ दर्शन के मिलल जुलल रुप लउकत बा। ”दु:ख- सुख” कविता त दर्शन के साक्षात रुप प्रस्तुत करतीया। देखीं- ”दुनिया ऊ दियना हऽ हिसे जिनिंगी जरल करेला,/ जनम-मरन के खेल निरन्तर असहीं चलल करेला। / जिनिगी तेल हऽ सुख जोती हऽ दुखवा ओहकर बाती हऽ/ सुख हवे दुइ छन के पाहुन/ दुख जिनिगी के थाती हऽ ”। ”परले राम कुकुर के पाला” में कवि तथाकथित नेता जी लोग के सीधे कहत बा- ”जीये दऽ जनता के चाहे, गरदन जांति मुआव। हते देश बपौती तहरे जइसे मन चलावऽ”। किताब के टाइटिल वाली कविता ”पहिलका डेग” स्वछन्द गद्यात्मक शैली के कविता के एगो सुन्दर उदाहरण पेश करत बीया। देखीं- ”पहिलका डेग/ ई करेला तय/ कि का होई आगे/ एह से ई जरुरी बा/ सबका खातिन/ सोच बिचार कइल/ कि हम कवना ओर/ डाले जात बानी/ आपन/ पहिलका डेग ”।”मुखिया जी के शौचालय” आ” सूनी एगो खीसा” दास्तान शैली के रचना बाडी सन जवन कवि के बहुमुखी प्रतिभा देखा पावे में सक्षम बाडी सन आ एह दूनो के बीचे सेनरयू आ  हाइकू पन्द्रह-पन्द्रह गो के संख्या में बा जवना से ई साफ बा कि हर तरह से एगो सक्षम रचनाकार बा। अंतिम कविता ”सूनी एगो खीसा” में शराब के दुष्प्रभाव से अवगत करावत कवि ”इहे हटे चरित दारु के/ सत्य बचन ई मानों/ दोस्त-दोस्त दुसुमन भइले/भइली द एण्ड कहानी। ” पंक्तियन से सुनियोजित तरीका से किताब के सम्पन्न करत बा।

परिचय डॉ. आदित्य कुमार अंशुगीत, गज़ल, कहानी, नाटक,,संस्मरण, समीक्षा आदि विध में लेखन।  

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