पुस्तक-समीक्षा
सौरभ पाण्डेय
पुस्तक- भोजपुरी साहित्य परम्परा आ परख
लेखक- डॉ० ब्रजभषण मिश्र
विधा– आलेख
प्रकाशक- सर्वभासा ट्रस्ट, राजापुरी, उत्तमनगर, नई दिल्ली-110059
प्रकाशन वर्ष – 2021
पॄष्ठ संख्या – 168
मूल्य – 250 रुपया
रचनात्मकता आ उपलब्धी के नजर से देखल जाव त पाछिल साठ के दसक से भोजपुरी लेखन के जवन उठान बनल बा, ऊ पद्य भर ले ना, गद्य तक में रचना के मजगर प्रकाशन आ संकलन के कारन बनके लउक रहल बा। ई साफ बा, जे ई उठान सत्तर के दसक तक लेखन आ साहित्य-संवर्धन के सोझगर राहि ध लेले बा। साहित्य साधना के एह कालखण्ड में डॉ० ब्रजभूषण मिश्र लगभग पैंतालिस बरिस से भोजपुरी साहित्य के गँभिराह बिद्वान के तौर सोझा बानीं। भोजपुरी भासा के समुझ आ एकर सांगठनिक परसार खातिर जवन लगन, अध्ययन आ चहुँप चाहीं, आलोचना आ समीक्षा खातिर जवन पोढ़ नजर, जरूरी ग्यान आ परखर संप्रेषण चाहीं, ब्रजभूषण भाई के लगे ऊ सभ जरूरी गहिराई सङे मौजूद बा। सामयिक आलेख, नीर-छीर आलोचनवे ले ना, ब्रजभूषण भाई भोजपुरी में रचनाकारन के पुस्तकन खातिर जिम्मेवार भूमिकओ लिखत रहल बानीं। भूमिका आ समीक्षा के अर्थबोध प उहाँ के मत एकदम सोझ बा। जे, भूमिका में ’कमी के ओर खुल के संकेत करे में कठिनाई होला’। बाकिर, भूमिका के माध्यम से ओह पुस्तक के मूल बिसै प चर्चा करत ओकर कथ्य के बिसेसता, महत्व आदि के बखान होला। लेखक लेखन-परम्परा के कतना निर्वाह कइले बा, कतना प्रयोगधर्मी बा आदी का ओर चर्चा कइल जाला। ओजुगे, समीक्षा करत एह बिन्दू प जोर रहेला जे ’विवेच्य पुस्तक में पढ़े के का मिली?’ आ, ऊ किताब अपना मौजूदा समै में कहँवाँ ले प्रभावी बा।
अठाइस गो भूमिका आ आलेखन के संचयन के रूप में एगो पुस्तक सोझा आइल बा ’भोजपुरी साहित्य परम्परा आ परख’। एह संग्रह में भोजपुरी पुस्तकन प ब्रजभूषण भाई के मत संग्रहीत बा, चाहें भूमिका के रूप में भा समीक्षा के तौर प। जवना अधार प भोजपुरी भासा आ एकर परम्परा के बहुआयामी विस्तार के बूझे आ परखे के बेजोड़ संजोग बन रहल बा।
संग्रह के भूमिका में डॉ० रिपुसूदन श्रीवास्तव जी ब्रजभूषण भाई के साहित्यानुराग के एगो आउर महत्वपूर्ण जोगदान प धेयान घींच रहल बानीं, ’डॉ० ब्रजभूषण मिश्र संगठन आ साहित्य दूनू में समान रूप से सक्रिय ढंग से लागे वाला व्यक्ति के नाँव ह।’ ब्रजभूषण भाई के ई परिचय उनकर आलेख, आलोचना आ भूमिका के लेके पाठकन के उमेद सहजहीं बढ़ा देवे वाला बड़ुए। ब्रजभूषण भाई भोजपुरी साहित्य के हवाला से आलोच्य पुस्तकन के उदेस आ बिसेसता के निकहा चर्चा कइले बानीं। कुछेक उद्धरन आ उदाहरनन का हवाला से एह के परखल एह आलेख के कारन बा।
डॉ० अशोक द्विवेदी के पद्य-संग्रह ’फूटल किरिन हजार’ के भूमिका ’बोझा ना कबो हलुकाइल’ में ब्रजभूषण भाई के एह तुलनात्मकता प धेयाअन दिहल निकहा उचित होई, जे, ’मेहनती कामन के बिम्ब उनका कवितन में खड़ा भइल बा।’ चाहें, ’डॉ० अशोक द्विवेदी के पूर्ववर्ती कवियन में अनिरुद्ध अइसन कवि बाड़न जिनका काव्य-रचना में छोटहन किसान, खेतिहर मजदूर आ जातीय पेशा करेवाला का श्रम के बिसै बनावल गइल बा, जवन बिम्ब, प्रतीक आ मिथक के रूप में आइल बा।’ ब्रजभूषण भाई अपना तर्क के अकाट्य बनावे खातिर कवि अनिरुद्ध के कहन आ द्विवेदी जी के कहन के बीच महीनी के परखत कहतारन, ’श्रम प द्विवेदियो जी केन्द्रित बाड़न, बाकिर उनकर दृष्टी अनिरुद्धजी से अलगा बा। अनिरुद्ध के कवितन मे श्रम के महिमामंडन बा … ओतहीं, द्विवेदीजी के कवितन में श्रम के संघर्ष बा।’ माने, ब्रजभूषण भाई द्विवेदीजी के यथार्थबोध के सूत्र पाठकन के थमा देत बाड़न। ओजुगे, भोजपुरी साहित्य के पोढ़ गीतकार हरिराम द्विवेदी जी के गीत-संग्रह ’नदियो गइल दुबराय’ के भूमिका में पाठकन के गीतात्मकता के भावबोध से परिचित करावत कहत बाड़न, ’लोकभासा भइला के चलते भोजपुरी में दू तरह के साहित्यिक-धारा विकसित होत चलल आवत बा। एगो लोक परम्परा से चलल आ रहल लोक साहित्य के धारा जवन वाचिक परम्परा में सदियन से भोजपुरी समाज में पीढ़ी-दर-पीढ़ी से बरकरार चलल आवत बा। … दोसर साहित्यिक धारा … आध्यात्मिक बिचार धारा से आगे बढ़त, राष्ट्र-प्रेम के धारा से गुजरत, प्रगतिशील चेतना के आगे बढ़ावत समकालीन आ समसामयिक बिचारधारा के संपुष्ट क रहल बा।’ लोक-कृति आ साहित्यिक-कृति के सार्थक भेद से पाठक परिचित हो जा रहल बा। हरिराम द्विवेदीजी के गीत के परख करत उनका रचनन में गीति-प्रतीती प नजर राखत ब्रजभूषण भाई कौ गो गीतन में नवगीत के सरूप देख लेत बाड़न। ईहे ई साबित क देता जे हर नवगीत बलुक गीते ह, जवना के बिम्ब आ बिन्यास पाठक तक निकहा अलगा बिस्तार से होला।
हर नया समै बिसेस सवाल आ चुनौती लेके आवेला। ओह सवालन आ चुनौतियन से रचनाकार आ आलोचक दूनो के समुझ प्रभावित होला। लेखक-कवि आ आलोचक के आपन प्रतिभा, कहि सके के साहस, विवेक आ संवेदना प निर्भर करेला।’संस्कृति, प्रकृति आ प्रवृति के निबाह’ शीर्षक के अंतर्गत केशव मोहन पाण्डेय के संग्रह प इनकर कहनाम देखीं, ’एह संकलन के सब लेख सांस्कृतिक मान्यता के बचवले राख के, एक तरह से पर्यावरण के प्रदूषण से बचावे खातिर सजग बा … हमनी किहाँ पर्यावरण के बचावे खातिर परब, तेवहार बनल। ऊ मन के शुचिता के साथे प्रकृतिओ के शुचिता के बरकरार राखे के उतजोग ह।’ अइसहीं, डॉ० किशोरी शरण शर्मा के शोक-काव्य संग्रह ’भोर अँजोर नहाइल’ जेकरा रचनाकार प्रबन्धकाव्य के श्रेणी में राखत बाड़न, प आपन बात कहत ब्रजभूषण भाई आपन उद्घोषना से तथ्य में सोझ सुधार क देतारन, ’प्रबन्ध काव्य होखेला काव्यशास्त्री लोग कौ गो शर्त रखले बा। ओह दृष्टी से … काव्य के मूल भावना में भटकाव आ जाई।’ बिधा-बिधान के लेके अइसन नीर-छीर करे के साहस बगैर गहीर अध्ययनशीलता आ गहन मनन के ना आ सके। ब्रजभूषण भाई के अध्ययन, परख के प्रिज्म से भोजपुरी समाज के परंपरा आ ओकर मायना लेके बेलाग अस्पस्टता के साथ पाठकन के सोझा आवेला। आपन आलेख के आलोक में बिभिन्न छंदन के, हाइकु, ताँका आ सनेर्यु जइसन बिदेसी बिधानन के शिल्प प तार्किक नजर राखत निकहा परख कइले बानीं।
उहाँ का पुरजोर साहस आ तार्किकता से बात करे के हामी हईं। इनका आलोचनात्मक विवेक प संस्कृत काव्यशास्त्र के मानदण्ड भा पच्छिमी साहित्य के आलोचना के मुहावरा के आतंक नइखे। अइसना से भोजपुरी भासा के आलोचना ला निकहा स्वतंत्र पद्धती आ ओकर बनावट के सूत्र भेंटा रहल बा। संग्रह बिचारधारा, जीवनदृष्टी, साहित्यिक विवेक आ बेवहारिक रूप से साहित्यिक विश्लेषन आ मूल्यांकन के परिपाटी से परिचित करावे वाला बा। वस्तुतः समीक्षक के लगे गहन जीवनानुभूती आ बिभिन्नता भरल अनुभव चाहीं, जवन साहित्य के धरातल प आमजन के समर्थन में ठाढ़ क देवे। माने, आलोचना रचना के बहिरङ पाठ से ना, रचना में अंतर्निहित जीवनानुभव के मार्मिक मौजूदगी से अर्थ पावेले। आलोचना कवनो लेखन के भावबोध, अर्थबोध, शिल्प आ शब्द-बेवहार के साधे वाली ’कला’ कहल जाला। एह पुस्तक के हवाला से ब्रजभूषण भाई के गहन अध्ययन, साहित्यिक-अनुभव आ साहित्य-कर्म सार्थक रूप से पाठकन का सोझा आइल बा।
परिचय- छंदशास्त्री श्री सौरभ पांडेय भोजपुरी के खाँटीपन के आग्रही हईं। हिन्दी आ भोजपुरी में लगभग तीन दशक से समान रूप से सक्रिय बानीं।