पुस्तक-समीक्षा
ज्योत्स्ना प्रसाद
पुस्तक- कादम्बरी
रचनाकार- शैलजा कुमारी श्रीवास्तव
विधा- अनुवाद (उपन्यास)
प्रकाशक-भोजपुरी संस्थान
पृष्ठ-संख्या-96
मूल्य-75 डीलक्स संस्करण
संस्करण-प्रथम, 2003 ई.
‘पूर्व भाग’ आ ‘उत्तर भाग’ में विभक्त वाणभट्ट के ‘कादम्बरी’ संस्कृत लोक-साहित्य के एक उत्कृष्ठ, बाकिर कठिन ग्रंथ मानल जाला। एकर कथा काल्पनिक ह, जे पैशाची भाषा में निबद्ध ‘बृहत्कथा’ के संस्कृत रूपान्तरण ‘कथासरित्सागर’ से लेहल बा। बाकिर वाणभट्ट के प्रतिष्ठा एकरा कथा खातिर नइखे; बल्कि उदात्त चरित्र-चित्रण, कलात्मक अभिव्यक्ति, मानवीय-भावना के सूक्ष्म-विवेचन, प्रकृति के अलंकृत-मनोरम चित्रणादि खातिर बा। इहे वाणभट्ट के महनीय बनवले बा।
‘कादम्बरी’ के नायिका, कादम्बरी दक्ष प्रजापति के एगो पोता के कन्या हई आ दूसरा पोता के कन्या महाश्वेता कादम्बरी के सखी आ उपनायिका । ‘कादम्बरी’ के कथा-नायक उज्जैन-राजकुमार चन्द्रापीड़ के चन्द्र, चन्द्रापीड़ आ शूद्रक नाम से आ कथा-उपनायक एवं उनकर मित्र महर्षि श्वेतकेतु- पुत्र पुण्डरीक के पुण्डरीक, वैशम्पायन,शुक नाम से तीन-तीन जन्म के कथा बा।
उज्जैन-नरेश शूद्रक के राजदरबार में चाण्डाल-कन्या वैशम्पायन नाम के एगो तोता के लेके आइल जे आदमी के बोली बोलत रहे। ऊ नरेश से आपन कहानी बतवलस कि माई-बाप के ना रहला पर जाबालि मुनि के शिष्य पकड़ के आश्रम में ले अइले। एही प्रसंग में चन्द्रापीड़ आ पुण्डरीक के कथा बा।
‘कादम्बरी’ में नायक-नायिका के लौकिक प्रेम शापवश जन्मान्तर में समाप्त होके पुनः विशुद्ध-अलौकिक प्रेम-प्राप्ति द्वारा मानव जाति खातिर आदर्श प्रेम के दिव्य संदेश देता ।
वाणभट्ट के एही ‘कादम्बरी’ पर आधारित ‘चित्रलेखा पुरस्कार’ से सम्मानित स्व. शैलजा कुमारी श्रीवास्तव के भोजपुरी में लिखल कथा ‘कादम्बरी’ नाम से ही ‘भोजपुरी संस्थान’ से प्रकाशित बा। भोजपुरी ‘कादम्बरी’ के वाणभट्ट के ‘कादम्बरी’ के अनुवाद ना कहके ओकरा के संस्कृत ‘कादम्बरी’ के अनुनाद या प्रतिध्वनि कहल उचित होई। काहेकि वाणभट्ट के अतिशय अलंकारयुक्त भाषा, विस्तारित वर्णन-शैली संस्कृत जइसन महनीय भाषा में त ठीक बा। बाकिर भोजपुरी के प्रकृति के प्रतिकूल बा। एह से अगर ओकरा के भोजपुरी में ज्यों के त्यों उतारल जाइत त ओकरा में ऊ लालित्य आ रसात्मकता ना रह जाइत। एहसे शैलजा जी वाणभट्ट के ‘कादम्बरी’ के अनुवाद ना करके ओह कथा के उहाँ के अपना ढंग से लिख देहनीं। जवना के मूल आधार संस्कृत ‘कादम्बरी’ ही ह। बाकिर ओहमे वाणभट्ट द्वारा प्रयुक्त अलंकार व वर्णन-विस्तार के ओतने भर प्रयोग भइल बा, जेतना भोजपुरी के रंग में रंगा जाव।
भोजपुरी-पाठक के आसानी खातिर शैलजा जी यथासम्भव ‘कादम्बरी’ के कथा के सरल, संक्षिप्त आ ग्राह्य बनवले बानीं। उहाँ के भरसक कोशिश ई रहल बा कि मूल-कथा से छेड़-छाड़ ना कइल जाव। बाकिर कथा के ग्राह्य बनावे खातिर कथा में तनि-मनि हेर-फेर कइले बानीं। एही बात के उहाँ के एह तरह से लिखतानीं-” जहाँ तक सम्भव बा मूल-कथानक बिना छेड़-छाड़ के रखले बानी जे से कथा-कहानी पढ़े में अभिरुचि रखेवाला पाठक बिना संस्कृत पढ़ले कादम्बरी के कथा से केवल परिचित ना हो जाओ बल्कि रसास्वादन से तृप्तो हो जाए।” शैलजा जी पुनः लिखतानी-” अगर एह किताब से भोजपुरी-भाषी लोग के कुछुओ ज्ञान-भण्डार में वृद्धि होई त हमार मेहनत सफल हो जाई ।”
पाण्डेय कपिल जी लिखतानी-“शैलजा जी के ई ‘कादम्बरी’ वाणभट्ट के ‘कादम्बरी’ के अनुवाद ना ह। वाण के विस्तारित वर्णन शैली आ अतिशय समलंकृत पदावली भोजपुरी के प्रकृति के अनुकूल ना रहला से, अनुवाद के आँच से भोजपुरी में उतरत-उतरत कथा-रस के सूख जाए के सम्भावना रहे। एह से, अनुवाद ना करके कादम्बरी के कथा, ऊ अपना ढंग से लिखली, जवना के आधार वाण कृत ‘कादम्बरी’ त बा, बाकिर जवना में वाण के वर्णन आ अलंकरण के ओतने भर उपयोग कइल गइल बा, जे भोजपुरी में पचे लायक रहे।”
संस्कृत साहित्य के उद्भट विद्वान आ साहित्य अकादमी से सम्मानित साहित्यकार पण्डित गोविन्द झा ‘कादम्बरी’ के भूमिका में रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एगो चिट्ठी के उल्लेख करतानी, जे उहाँ के ‘कादम्बरी’ के बंगला अनुवाद के पढ़ला के बाद अनुवादक के लिखले रहनीं कि यह तो तुमने मानो स्वर्ग की मन्दाकिनी को भागीरथी की धारा की भाँति बंगाल की मिट्टी पर उतार दिया। एही प्रसंग में गोविन्द झा लिखतानी-” यह बात बहुत अंश तक आलोच्य पुस्तक पर भी लागू होती है जिसमें देवलोक की वस्तु को भोजपुर की धरती पर उतारने की कोशिश की गई है, अर्थात् महाकाव्य को लोक-कण्ठ की कहानी का स्वरूप दिया गया है।” आगे लिखतानी- ” भला हुआ कि श्रीमती शैलजा कुमारी श्रीवास्तव अनुवाद के फेर में नहीं पड़ीं। इसलिए तो उनकी कहानी सारे भारों से मुक्त हो, सारे अलंकरणों को दूर फेंक हल्की देह से फुदकती-थिरकती-सी चलती है। — फिर भी यह कृति न तो कादम्बरी का अनुवाद है न रूपान्तरण। मैं इसे अनुवाद नहीं, अनुनाद कहूँगा।–यह भोजपुरी की कादम्बरी न तो आज के कथा साहित्य में रखी जा सकती है, न लोक-साहित्य में। विनम्र शब्दों में और निश्छल रूप में यह कादम्बरी की काया नहीं आत्मा है और इसी रूप में इसकी उपयोगिता है, इसकी पठनीयता है। अलमधिकेन।”
अक्षयवर दीक्षितजी शैलजाजी खातिर लिखतानी-“
इनकर सबसे महत्त्वपूर्ण काम ई भइल जे वाणभट्ट के कादम्बरी-जे संस्कृत साहित्य के कठिन भाषा के ग्रंथ मानल जाला- के शैलजा जी भोजपुरी में सरिया-सीरिया के, फरिया-फरिया के, टुकड़न में कथा लिख देहली। ई पुस्तक पढ़ि के केहू कादम्बरी के कथा समझ सकेला।”
पाँच खण्ड आ अनेक छोट-छोट अध्याय में विभक्त शैलजाजी के भोजपुरी ‘कादम्बरी’ समर्पण, आमुख, भूमिका, प्रस्तावना समेत 94/96 पृष्ठ में समेटा गइल बा । जवना में पहिला खंड के प्रथम अध्याय ह- ‘सखी द्वय’, जवना में नायिका-उपनायिका के जन्मादि के वर्णन बा। ‘कादम्बरी’ के अंत भारतीय-परम्परा-अनुरूप सुखान्त बा। एहसे पाँचवा खण्ड के अन्तिम अध्याय ह-‘श्राप समाप्ति’। चाण्डाल-कन्या के बात से शूद्रकादि के सब कुछ इयाद आ गइल।
एह कठिन-कार्य खातिर शैलजाजी बधाई के पात्र बानीं ।
परिचय- डॉ. ज्योत्स्ना प्रसाद हिन्दी आ भोजपुरी के गद्य-पद्य में समान रूप से रचना करेनीं। इहाँ के हिन्दी उपन्यास ‘अर्गला’ नाम से प्रकाशित बा आ अरबी भाषा के प्रसिद्ध उपन्यास ‘अल-रहीना’ के हिन्दी अनुवाद ‘बंधक’ नाम से प्रकाशित बा।