सुनुगल दरदिया के दस्तावेज : किसिम किसिम के फूल

February 13, 2023
पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक-समीक्षा  

डॉ. रमाशंकर श्रीवास्तव

पुस्तक: किसिम किसिम के फूल

लेखक- श्रीभगवान पाण्डेय

विधा: गीत-गजल

प्रकाशक: नवजागरण प्रकाशन, नई दिल्ली।               

प्रकाशन वर्ष: 2017

पृष्ठ संख्या : 120

मूल्य: ₹ 200(पेपर बैक) / ₹ 250( सजिल्द)

सुपरिचित कवि-गीतकार श्रीभगवान पाण्डेय के गीत-गजल संग्रह “किसिम किसिम के फूल” जब मिलल, त मन मे आइल रहे कि कबो पढ़ के कुछ लिख देबि। लेकिन हमार सोच गलत रहे। जब पढ़े शुरू कइनी त पता चलल कि “किसिम किसिम के फूल” सचहुँ के किसिम किसिम के भाव भरल कविता, समाज मे धज्जी-धज्जी होत नैतिक मूल्य आ पारिवारिक रिश्ता के टूटन के दर्द में डूबल भोजपुरी गीतन आ रूमानी गजल के मनोहारी गुलदस्ता बा। जब पढ़े के शुरू कइनी त बुझाइल जे गोड़ कीचड़ कादो में अचके पड़ गइल बा। निकले के कोशिश में हम अउरी गहराई में जाए लगनी, एगो अलगे मस्ती में धँसत गइनी। मस्ती अइसन की बहरी निकले के मन ना कइल। अलग-अलग स्वाद के मस्ती लेत मन आंनद में डूबे लागल। पता ना श्रीभगवान पाण्डेय के लेखन में कँटीला बंसी के कइसन जादू बा। पाठक मछरी नियर फँस गइल त फँसते चलि। चहनी कि अचके में अझुरहट के फांस के अलग कर दीं, लेकिन कहाँ भइल!

           किताब में छोट-छोट कविता के रचना क्रम बड़के बा। लगभग अस्सी गो छोट-बड़ काव्यानुभूति के विस्तार विषय फइलल बा। मन ना ऊबी,सबके संवाद लेत चलीं। पुस्तक के भूमिका में आचार्य गणेशदत्त किरण जी अइसन गीतकार के निमन से पहचान कइले बानीं। उहाँ के मनले बानी कि- “श्रीभगवान पाण्डेय के गीतन में उक्ति-वैचित्र्य, लालित्य, अर्थ-गौरव भरल बा।” हमरा समझ से भी संकलन के गीतन से गुजरला के बाद पाठक संकलन के गीतन में  अइसन अनुभव कर सकेला। पाठक के आगे इठलात प्रकृति के सौंदर्य त लउकते बा बाकिर उनका आँखि के रौशनी उ सब देखे के क्षमता नइखे राखत, ई काम पाण्डेय जी कइले बानीं। आ एतने कम नइखे कि, कवि पाठक में दृष्टि पैदा कर देता कि प्रकृति के सभ सौंदर्य सामने आ जाता। मिठाई के नाम लेल अउर बात ह,मगर मिठाई जब साक्षाते सामने आ जाई त खाए वाला (पाठक) के संयम टूटिये जाई। एह दशा से हम खुद गुजरल बानी आ विश्वास बा कि जे भी संकलन के रचनन से गुजरी ओकरा ई स्वाद मिली।

           “किसिम-किसिम के फूल” में विषय के विस्तार, भाषा के निखार, विडम्बना के भरमार, सामाजिक पहलुअन पर सटल व्यंजना के स्वाद से पाठक के नजर ना बची।          प्रो.(डॉ)अरुण मोहन भारवि त एह संकलन से भोजपुरी साहित्य में एगो नई आस के शुरुआत मनले बानी।

आईं जा संकलन के गीतन के स्वाद लेत चलल जाय। करूण रस में पगलाइल एगो गीत के बानगी  देखीं जा- 

“सुनुगल दरदिया जिनिगिया धुँआइल

आसरा के अचके दियरिया बुताइल।”

 *       *       .*            *

“जब  जब  चंदा मुंडेरवा  प आवे।

दिल के समुन्दर में हलचल मचावे।

अँखिया के मोतिया छिटाइल अँखिया से।

आइल बा कइसन बिपतिया।।” 

*      *         *          *         *

          अइसन पचासो विम्ब बा जवन आँखि में चिपक जाता।  संकलन के गीतन में  विम्ब-प्रतीक योजना,उपमा, अलंकार आ गेयता से पाठकन के ओइसने ताजगी भेटाई जइसन गरमी के दिनन में ठंढा पानी से नहइला से मिलेला।  

 इहाँ के गीतन के कुछ बानगी देखल जाय –

“छंदन अस अंग गठल,गीत मतिन देहिया।

बोलिया में मिसिरी,नजरिया में नेहिया।

चाल फागुन के जइसे बयार

उमिरिया चटोर हो गइल।।”

*       *       *      *         *

“रूप देखते लजा गइल दरपन

              सनेह भइल अरपन।

मादकता डूबल बा छंद-लय-ताल में,

उलझल चनरमा बा रजनी के बाल में,

भइल सरगम के साज पर समरपन।

सनेह भइल अरपन।”

…………………

“चाँद झाँके बदरिया के पार

अँजोरिया बारि-बारि के।

रात विहँसेले करि के सिंगार

सनेहिया ढारि-ढारि के।”

*     *          *          *          *

           रचनाकार के दृष्टि सूक्ष्माति सूक्ष्म विशेषता पर कइसे गइल बा एकर जियतार अभिव्यक्ति संकलन के गीतन में देखल जा सकेला।एगो मनोहारी चित्र  देखते बनता –

“ताल-तलइया बीच चन्द्रमा,

      नील गगन में रंग भरे।

मन विभोर बा देखि देखि के

      भीतर नया उमंग भरे।

जुगनू टिमटिमात बिरिछन पर

लोग निहारे प्यार में।

सरग भुला जाला आके धरती के एह सिंगार में।।”

अइसन ढेरो प्रसंग बा जवना के चित्रण में श्रीभगवान पाण्डेय आपन सूक्ष्म दृष्टि आ सहृदयता के परिचय देले बाड़े। कवि के सहृदयता कहीं-कहीं सिंगार सौंदर्य में अइसन लपटाइल बा कि तारीफ में कलम छटपटा जात बिया। जइसे-

“अलंकार से सजल-धजल, 

 आ गठल छंद जइसन काया।

  लाज कल्पनो के लागे, 

देखते तहरा जइसन जाया।

संयम टूटल, आजु ओठ से 

       गीत फेनु बिछिलाइल बा।”

*          *             *       .    *

भा-

“कजरा के कोर और बिंदिया पुकारे

पायल आ कंगन भी बाजत डिठारे।

    बाकिर करवट अबहियो लजार।

           निहोरवा टारि-टारि के।

           चाँद झाँके बदरिया के पार।

           अँजोरिया बारि -बारि के।।”

*            *                *              *

हर अनुभव के बेहोश कर देबे वाला ताकत बा अइसन पँक्तियन में। केतना देखाईं भा गिनाईं।

कवि व्यंग्य-प्रहार में भी पीछे नइखे। व्यक्ति,समाज आ देश के धरती कहाँ कहाँ ऊसर बा ओके कवि अपना व्यंग्य के कुदारी से उटकेर-उटकेर के देखा रहल बा। कुछ बानगी देखीं-

“तू कमाल होख कबीर के, भा पुलस्त्य के नाती।

तू ही पट्ठा एक दिन बनब,लोकतंत्र के थाती।

का मजाल जे केहू आ के तो से हाथ मिलाई।”

नेता लोगन पर चुटकी लेबे में कलम के कमाल देखते बनत बा-

“रउरो पावे के बाटे त कर लीं करम कमाई।

अपना घर मे आजादी के रउरो कीर्तन गाईं।

पिचकल गाल करम कइला से, सेव मतिन हो जाई।

झंडा फहराते राउर घर लाल किला हो जाई।”

आजादी के बाद से ही सुना रहल बा कि देश मे रामराज्य आ रहल बा।एकरा पर कवि बता रहल बा कि कइसन रामराज आवे वाला बा-

 “धीरज धर भइया रामराज आई।

 सूरज ना डूबी कहीं रात ना ओराई।   

जेकर लाठी उहे भईस ले के जाई।

नीम पर करैला फुलाई।।

धीरज धर भइया रामराज आई।।”

*            *               *             *

मानवीय पीड़ा पर-

“भूख पेट से लाज चेट से,कइल करे बलजोरी।

एगो रोटी खातिर नन्हका,छछनत खोरी-खोरी।

हम कइसे खेलीं होरी।।”

*            *            *             *

एगो लाइन देखे लायक बा- 

“फूल टटका रहल,गंध बासी मिलल, 

जिंदगी में उदासी-उदासी मिलल।।”

*          *              *             *

कवि के सूक्ष्म दृष्टि समाज के पीड़ा के खोज लेत बा। एगो दोहा में देखीं-

“उमड़त बदरी देखि के,सुरुज गइल लुकाय।

दिन माथा पीटत रहल,रतिया हँसत ठठाय।।”

बहुत कुछ कहलाती जा सकेला। बाकिर सभकर सीमा होला। कुछ पाठकन पर छोड़ देबे के चाहीं।

पाठक के मूल्यांकन महत्वपूर्ण होला।

संकलन के सभ रचना में वर्तमान सामाजिक परिवेश आ मनुष्य के नैतिक स्वरूप पर लेखनी चलल बा। सब कुछ बहुत स्वाभाविकता से कहल गइल बा। स्वाभाविकता हृदय के छुवेला। मूक शरीर सब कुछ देखत आ अनुभव करता। युग मनुष्य बनावेला आ ओही में फँसि के छटफटइबो करेला। कवि श्रीभगवान पाण्डेय के भी दशा उहे बा। सपना दूर बा तबो ओ के अपना बनावे में कवि के योगदान कम नइखे।रउरा रो रो के आपन बात कहीं तबो सभ कुछ कहा जाला।पाण्डेय जी के प्रयास सार्थक बा।

              एह संकलन खातिर रचनाकार श्रीभगवान पाण्डेय जी के बधाई। सुबह के हर किरिन उहाँ खातिर एगो खिलल फूल ले के आओ।

परिचय- डॉ. रमाशंकर श्रीवास्तव हिन्दी-भोजपुरी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार आ हास्य-व्यंगकार हईं। 

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