ए हो रामा…

संपादक- मनोज भावुक

फगुआ  के बाद चइता अंक परोस रहल बानी। फगुआ अगर अंत हऽ त चइता शुरूआत। अंत आ शुरुआत के अद्भूत तालमेल ह फगुआ-चइता। एही संगम पऽ हमनी के नया साल के उद्गम बा। रउरा सभे के नया साल के शुभकामना।

नया साल के अइसन जश्न त दुनिया में कहीं मनावले ना जाला। दिनभर फगुआ गवाला आ 12 बजे रात के बाद उहे गोल, उहे समाज, उहे दरी, उहे तिरपाल, उहे ढोलक, उहे झाल, उहे हुड़का, उहे मजीरा, उहे पखावज, उहे झांझ, उहे तासा, उहे नगाड़ा, रंग- अबीर से पोतल, भांग में डूबल उहे लोग…ए हो रामा…शुरू क देवेला। माने फागुन खतम। चइत शुरू।…नया साल के आगाज।

बाकिर, फगुआ-चइता के बीच एह साल एगो कोरोना आ गइल बा। रंग में भंग के रूप में ई कोरोना खाली भारत खातिर ना, संउसे दुनिया खातिर, मनुष्यता खातिर एगो खतरा बा। एकरा से निपटे खातिर एहतियात बरतल बहुते जरूरी बा।

कोरोना के चलते असो दिल्ली के होली पनछुछ्छुर रहल हऽ आ गांव के चइता इहां कहां? गांव के ईयाद आवऽता।

कटिया शुरू हो गइल होई। तीसी, मसूरी, खेसारी, लेतरी, सरसो, मटर उखड़ा गइल होई। रहर के ढेढ़ी, जौ-गेहूं के बाल, महुआ बारी के महुआ गांवे बोलावऽता। काली जी के मंदिरवा पऽ चइता-चइती त होते होई। कई गो लोक धुन आ लोक राग मन में गूंजऽता। लहर पऽ लहर उठता।

लहर त महेन्दरो बाबा उठवले रहलें, ‘पोरे-पोरे उठेला लहरिया रे, ए ननदी, दियरा जरा दे/अंगुरी में डंसले बिया नागिनिया रे, ए ननदी, दियरा जरा दे।’ पूर्वी के बेताज बादशाह महेन्दर मिसिर के जनम दिन ह ए महिना में, 16 मार्च के। एही से एह अंक में इनका पऽ विशेष आलेख बा। महेन्दर बाबा के हम सबसे पहिले जननी अपना गुरु आचार्य पांडेय कपिल जी के उपन्यास ‘फुलसूंघी’ से। आहा- ढेलाबाई, केसरबाई, गुलजारी बाई, ललकी कोठी, उजरकी कोठी, हलिवंत सहाय, रिवेल साहेब, पलटुआ, जिरिया ..एकहऽ गो किरदार आंख के सामने नाचऽता। एह उपन्यास में  महेन्दर मिसिर के जवन किरदार गढ़ाइल बा, ओकरा से इतर बा भोजपुरी के पहिला उपन्यासकार रामनाथ पांडेय के उपन्यास ‘ महेन्दर मिसिर’ में महेन्दर मिसिर के किरदार। एह में उनकर स्वतंत्रता सेनानी वाला रूप ज्यादा मुखर बा। बाद में त महेन्दर मिसिर पऽ कई गो किताब पढ़नी। भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के मिसिर जी पऽ मोनोग्राफ आइल। जौहर जी के ‘पूर्वी के धाह’ देखनी। रवीन्द्र भारती के हिंदी नाटक ‘कंपनी उस्ताद’ देखनी। एकरा अलावा 1998 में जब हम टेलीविजन पऽ भोजपुरी के पहिला धारावाहिक ‘सांची पिरितिया’ में काम करत रहीं, ओही समय मॉरिशस से एगो सीरियल आइल, ‘महकेला माटी भोजपुरिया’। उहो महेन्दर मिसिर पऽ केंद्रित रहे। डॉ. सुरेश कुमार मिश्र जी अपना किताब ‘कविवर महेन्दर मिसिर के गीत-संसार’ में महेन्दर मिसिर के गीतन के संकलन कइले बानी।

एही महीना में 21 मार्च के भोजपुरी माटी के एगो अइसन लाल के जन्मदिन बा, जे कहल कि हमरा अमेरिका में रहे में दिक्कत नइखे, बस तू अमेरिका में हमरा गंगा जी के लेआ दऽ, बनारस के पान, घंटा घडि़याल आ सुबह के अजान लेआ दऽ। कुल मिला के अमेरिका में बनारस ले आ दऽ। जेकरा से ताउम्र आपन बनारस ना छूटल। ओह भारत रत्न शहनाई के शहंशाह बिस्मिलाह खां पर भी एह अंक में सामग्री बा। भारतीय मूल के आ खांटी भोजपुरिआ माटी के सर अनिरुद्ध जगनाथ जे कि मॉरिशस के प्रधानमंत्री आ राष्ट्रपति दूनों रहल बानी, पर भी मॉरिशस से एगो आलेख आइल बा। उहों के जन्मदिन एही महीना में 29 मार्च के बा। 27 मार्च के विश्व रंगमंच दिवस बा त एह बहाने भोजपुरी रंगमंच पऽ सामग्री बा। पूर्वी आ चइता के रस में पागल एह अंक में हलचल, सिनेमा आ पंडी जी के पतरा आदि त पहिलहीं के तरह बड़ले बा। राउर पाती में भी बड़-बड़ विद्वान लोग नेह बरसवले बा। उम्मीद बा ई सिलसिला जारी रही।