रेड, ऑरेंज आ ग्रीन जोन वाला आदमी

May 20, 2020
संपादकीय
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संपादक- मनोज भावुक

” लॉकडाउन समस्या नइखे। समस्या त भूख बा। ”  मदर्स डे पर बाते बात में ई बतिया समझा देलस माई। विश्व के तमाम माई के मने मन प्रणाम करत हम लॉकडाउन अउर भूख के बारे में सोचे लगनी। सोचे लगनी, पूर्वांचल के माई-दादी आ चाची-भउजी का बारे में जे पूरा जिनगी लॉकडाउन में काट देलस। ससुरा अइला के बाद घर के चौखट से बाहर ना निकलल। बाकिर उ लॉकडाउन खलल ना। काहे कि उ लॉकडाउन जीवन शैली या संस्कार रहे। घर के मान-मरजादा रहे आ ओही में आनंद रहे। एह से उ लॉकडाउन कबो लॉकडाउन लगबे ना कइल। लॉकडाउन में रहियो के माई-दादी आ चाची-भउजी अपना के रानी-महारानी महसूस कइल लोग। उहाँ बेबसी ना रहे। भूख भी ना रहे। ( पेटवे के ना,  मनवो के भूख होला। जेकरा एह व्यवस्था में घुटन महसूस भइल उ समय के साथे उन्मुक्त भी भइल।)

जहाँ भूख रहे, ई लॉकडाउन टूटल। ओही यूपी-बिहार में एगो अइसन तबका रहे आ अभियो बा, जेकरा घर के औरत के खेत-खरिहान में काम करे निकले के पड़ल, गाँव के दोसरा घर में काम करे निकले के पड़ल। उ लॉकडाउन में रहती त मर जइती। उहां भूख के समस्या रहे।

हमरा आपन एगो शेर मन पड़Sता-

पानी के बाहर मौत बा, पानी के भीतर जाल बा
लाचार मछरी का करो
, जब हर कदम पर काल बा  

आज प्रवासी मजदूरन के पीड़ा कुछ अइसने बा। उ भूख, बेमारी आ भविष्य के लेके भकुआइल बा। ओकर माथा काम नइखे करत अउर उ उजबुजा के मुंबई आ दिल्ली जइसन जगह से पैदले निकल पड़ल बा गाँव खातिर।

गाँव ओकरा के खींचत त बा बाकिर अँकवारी में ना भरी। गाँवों डेराइल बा। कोरोना के डर गाँव-शहर सबका धमनी-शिरा में पसर गइल बा। प्रधानमंत्री जी के बेसी जोर गाँव के बचावे पर बा। गाँव में कोरोना मत घुसे। एह से गाँव हर आवे वाला के शक के निगाह से देखsता। त गाँव के ओर बेतहाशा भागे वाला एह अभागन के लोर के पोंछी?   लोर के साथ हमरा जेहन में हमार अशआर इको कs रहल बा-

लोर पोंछत बा केहू कहां / गाँव अपनो शहर हो गइल …

सबसे बड़का शाप गरीबी / सबसे बड़का पाप गरीबी                                                            
से उम्र भर
डेग-डेग पर / बनके करइत साँप गरीबी 

एह गरीब आ विवश लोग खातिर महीनन से बंद पड़ल रेल त आज (12 मई ) चालू हो गइल बाकिर एह लोग के जिनिगी के रेल पटरी पर कब आई, कब दौड़ी, पता ना ?

पीएम के सभ सीएम लोग से मीटिंग प मीटिंग चलsता। पांचवा बार बइठक भइल ह। केंद्र आ राज्य सरकार दुनों लागल बा। अभी ले दुनिया में 42 लाख आ भारत में 67152 से बेसी ममिला हो गइल बा कोरोना संक्रमण के। लॉकडाउन के तीसरा चरण (लगभग 55 दिन) ख़तम होखे वाला बा। अब जान के साथे जहानो के फिकिर बा। रोजी-रोजगार खातिर लॉकडाउन में कुछ ढील के बात होता। कबले बंद दरवाजा के भीतर से बाहर झाँकल जाई। कबो ना कबो त बाहर निकलहीं के पड़ी। बाकिर हँ,  .. अब त मास्क आ सोशल डिस्टेंसिंग के आदत डाल लेवे के चाहीं काहे कि कोरोना अचानक से छू मंतर ना हो जाई। ई अभी दुनिया के साथे आँखमिचौली खेलsता। संकट बड़हन बा त ओकर उपचारो बड़ा करे के पड़ी। सरकार के पास कवनो जादू के छड़ी नइखे कि एक बार में सब कुछ ठीक हो जाई। दोबारा व्यवस्था बनावे में समय लागी। समस्या के हल निकाले खातिर केंद्र,  राज्य अउर नागरिक सबके अपना-अपना हिस्सा के जिम्मेदारी उठावे के पड़ी।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 12 मई 2020  के राष्ट्र के नाम सम्बोधन में आत्मनिर्भर भारत खातिर देश के आह्वान करत 20 लाख करोड़ रूपया के (भारत के जीडीपी के 10 % ) आर्थिक पैकेज के घोषणा कइले बानी।  साथ हीं लोकल उत्पाद खातिर वोकल होखे के मंतर देले बानी।

एह से जात-पात, धर्म-सम्प्रदाय, सरहद-सीमा से ऊपर उठ के मानवता के आधार पर सचेत रहत कोरोना से जंग लड़े के बा। अइसहूँ अभी त आदमी के तीने गो जात बा- रेड जोन वाला आदमी,  ऑरेंज जोन वाला आदमी आ ग्रीन जोन वाला आदमी….एही आधार पर ई. टिकट भा ‘’ सब ‘’ सहूलियत मिले के बा।

भारत के हर आदमी ग्रीन जोन वाला आदमी बन जाय,  भगवान से इहे गोहरावत बानी। रउरा सभ के जागे-जगावे, हिम्मत बढ़ावे, सचेत करे अउर समय के दस्तावेजीकरण खातिर प्रस्तुत बा कोरोना विशेषांक (भाग-2)। पढ़ीं। पढ़ाईं।

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