संपादक- मनोज भावुक
पेट में आग त सुनुगल बा रहत ए भावुक
खुद के लवना तरह रोज जरावत बानी
कोरोना महामारी जब फइलल त एकर पड़े वाला असर प खूब बतकूचन होत रहे… बाकिर जइसे-जइसे दिन बीते लागल बतकूचन खतम हो गइल आ ओकर असर साक्षात सामने लउके लागल। अब हालात ई बा कि कंपनी-कॉर्पोरेट में छंटनी के सीजन शुरू हो गइल बा, त कहीं नौकरी पेशा वाला लोग के वेतन दू-दू महीना के बकाया चले लागल बा। एक त कोरोना के डर ऊपर से पॉकिट में पइसा के अभाव। ई अइसन स्थिति बा जवना में मध्यवर्ग सबसे अधिका पिसाता। ऊ राशन खातिर भा अउरी कवनो खैरात में मिले वाला सुविधा खातिर लाइन में नइखे लाग सकत। स्कूल ऑनलाइऩ चल रहल बा त स्कूल फीस देबहीं के बा। फ्लैट के किराया के अलावा अउरी दोसर देनदारी कपार प चढ़ले बा। मकान के ईएमआई से लेके दवा-दारु तक सब बड़ले बा। एही में रात-बीरात जब कबो अँघी टूटsता त बुझाता कि मेल प टर्मिनेशन लेटर आइल बा। जे बेरोजगार हो गइल बा, ओकरा नया रोजगार के कवनो संभवना लउकते नइखे। अइसे में आदमी मानसिक, सामाजिक आ आर्थिक अवसाद में घिर रहल बा।
दरअसल दिल आ दिमाग के रास्ता पेट से होके जाला। पेट में आग लागी त ओकर लपट दिल आ दिमाग तक जइबे करी। जब लपट दिल आ दिमाग तक जाई त ओकर असर परिसंचरण तंत्र आ तंत्रिका तंत्र यानी कि दिल के धड़कन आ दिमाग के फड़कन पर पड़बे करी। बीपी बढ़ी आ दिमाग खराब होई। ख़राब दिमाग से सही निर्णय होला ना। आदमी अंड-बंड करे लागेला। त सउँसे देश में अंड-बंड के स्थिति उपजे के ढेर संभावना बा। ई बहुत बड़ त्रासदी बा जवन कोरोना लेके आइल बा। कोरोना खाली बेमारी ना जिनगी के राहु-काल बा।
कहल जाता कि जइसे दूसरा विश्वयुद्ध के बाद दुनिया के परिदृश्य बदलल रहे ओइसही कोरोना के बाद दुनिया के परिदृश्य बदली। अब ई लउके लागल बा। कुछ सकारात्मक बदलाव लउकता त कुछ नकारात्मको बा। सकारात्मक पहलू ई बा कि कोरोना के डरे हीं सही, लोग अनियमित जीवनशैली से बाहर निकलल बा त नकारात्मक पहलू ई बा कि परिवारिक कलह, सामाजिक निराशा, अपराध में बढ़ोत्तरी जइसन चीज अब ढेर सामने आवता। भलही सरकार के ओर से अस्पतालन में कोरोना के इलाज के कथित तौर प बेहतर सुविधा मुहैया करावल गइल बा बाकिर एह कोरोना से उपजल मानसिक, सामाजिक व आर्थिक अवसाद में घिरल लोग के काउंसिलिंग खातिर अबहीं ले कवनो व्यवस्था नइखे लउकत। ई हाल खाली अपने देश के ना बलुक दुनिया के विकसित कहाये वाला देशन में भी अबहीं एकर भयावहता के ले के सत्ता प्रतिष्ठान में कवनो गंभीरता नइखे लउकत, जवन एगो बड़ खतरा के सिग्नल दे रहल बा।
आदमी के जिनगी चूल्हा हो गइल बा आ देह लवना। ओही में जरsता-धनsकता आदमी। एह लपट से मानवता के बचावे खातिर जल्दिये कुछ उपाय कइल जरुरी बा।