चीन खातिर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा के गिरफ्तारी ये ज्वलंत बहस के जन्म दे देले बा कि का पत्रकार के कुछ भी करे के छूट मिलल बा? का ऊ लोग ये देश आ इहाँ के कानून से ऊपर बा? का अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के नाम पर सब कुछ कइल जायज बा? लोग इहो मांग कर रहल बा कि जे लोग चाहे कवनो भी पद पर काहे ना होखे यदि राष्ट्रीय हित के नुकसान पहुँचा रहल बा, ओकरा कठोरतम सजा मिलहीं के चाहीं।
वास्तव में ई बेहद शर्मनाक स्थिति बा कि अपना देश में ही कुछ प्रतिष्ठित कहल जाए वाला लोग चीन खातिर जासूसी कर रहल बा। अइसन लोग में पत्रकार लोग भी शामिल बा। एह सिलसिला में स्वतंत्र पत्रकार राजीव शर्मा के ‘ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट’ (ओएसएस) के तहत गिरफ्तारी आँख खोल देवे वाला बा। यतीश यादव अपना किताब रॉ: अ हिस्ट्री ऑफ इंडियाज कवर्ट ऑपरेशंस’ , जे कुछ दिन पहिलही आइल बा, में लिखले बाड़े – ई निर्विवाद तथ्य ह कि साइबर जासूसी के मामला में चीन दुनिया में सबसे सक्रिय देश ह। उ अपना जासूसी नेटवर्क के विस्तार करे खातिर ठीक ओही तरे ‘सॉफ्ट पॉवर’ के इस्तेमाल कर रहल बा जइसन कबो अमेरिका आ रूस कइले रहे। उ भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के ओट में जासूसी गतिविधि के बढ़ा रहल बा। एकरा खातिर उ शैक्षणिक संस्थान, विद्वान, कारोबारी, पेशेवर आ इहाँ तक कि पत्रकार के भी इस्तेमाल कर रहल बा। हद त ई हो रहल बा कि कुछ पत्रकार मीडिया से जुड़ल संस्थान के भी ई लागता कि पुलिस द्वारा राजीव शर्मा के गिरफ्तारी अन्यायपूर्ण बा।
ई लोग दिल्ली पुलिस के ही कसूरवार ठहरा रहल बा कि उनकर रिकॉर्ड ‘संदिग्ध’ बा। एही तरे कई वेबसाइट भी राजीव शर्मा के पक्ष में उतर आइल बा, जेकरा बारे में ई आम धारणा बा कि ऊ लोग “अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता” के नाम पर कवनो भी हद तक चल जाला। जब ओ लोग के कुछ कहल जाला, त ऊ लोग आपन आवाज दबावे आ लोकतंत्र के हत्या के राग छेड़ देला। अइसन लोग के एगो शक्तिशाली गठजोड़ बा, जे खुद पर आँच आवत देख एक सुर में हल्ला मचावे लागेला, जबकि ये पत्रकार आ संस्थान सबके ई अच्छा से पता बा कि ओ लोग के बयान के भारत विरोधी ताकत ही भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फइलावे में उपयोग करेला। एकर ढेरों उदाहरण मौजूद बा। राजीव शर्मा के मामला में भी ई बात एक बार फेर सामने आ गइल बा। भारत के घोर विरोध करे वाला तुर्की के एक वेबसाइट त बाकायदा राजीव शर्मा के पक्ष में आर्टिकल लिख के उनका के निर्दोष तक बता देले बा। उ वेबसाइट ये संदर्भ में ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ के बयान के भी उद्धृत कइले बा।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया पत्रकार कहल जाए वाला पियक्कड़न आ नशेड़ियन के अड्डा बन के रह गइल बा ई बतावल जरूरी नइखे। ई पूरा तरह से जग जाहिर बा। अब त केहू प्रतिष्ठित पत्रकार उहाँ दिखाई तक ना देला।
राजीव शर्मा के बचावे खातिर ई प्रोपेगेंडा भी फइलावल शुरू कर देहल गइल बा कि उ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से जुड़ल रहलन। उनका से कई बार मिल चुकल बाड़े आ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में डोभाल के नियुक्ति के जोरदार समर्थन भी कइले रहलन। का ई कवनो उचित तर्क बा कि केहू से मिल लेहला से, ओकर प्रशंसा कर देहला से कोई केहू के करीबी हो जाला? दरअसल ई सब मूल मुद्दा से लोग के ध्यान भटकावे के कोशिश ह। मामला के ट्विस्ट देवे के एक सुनियोजित चाल ह। खुफियागिरी करे वाला के त ई विशेष रूप से सिखावल जाला कि जवन भी तू कर रहल बाड़s ओकरा से ठीक उलटा दिखs।
ये देश के कुछ पत्रकार लोग के मानना बा कि पत्रकार भइला के नाते ऊ सारा नियम-कानून से ऊपर बा। ओ लोग पर कवनो प्रकार के कोई रोक ना होखे के चाहीं, चाहे ऊ लोग राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ ही काहे ना करे। अतीत में भी कई घटना अइसन भइल बा, जेमे जाने- अनजाने कवनो पत्रकार के वजह से सैन्य गतिविधि, संवेदनशील सुरक्षा संस्थानन के जानकारी आसानी से देश विरोधी ताकतन के मिल गइल। ओह लोग पर जब कार्रवाई के मांग उठल, त “अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता” के हल्ला मचा देहल गइल। हमार त अमित भाई शाह से ई अनुरोध होई कि अइसन सब लोग पर भी सख्त निगरानी अउर गहन जाँच करे के जरूरत बा जे राष्ट्र विरोधी हरकत में लागल लोग के बचाव करे में लागल बा।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल ई उठsता कि का पत्रकार देश के सुरक्षा से ऊपर बा? का उनका राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करे के खुला छूट बा? राजीव शर्मा प्रकरण में कुछ लोग के प्रतिक्रिया से त अइसहीं लागsता कि ऊ लोग अइसहीं माने ला। लेकिन ओह लोग के मान्यता ही अंतिम सत्य त ना ह। अइसन पत्रकार लोग आपन विश्वसनीयता खो चुकल बा। देश के अधिकांश लोग एह लोग के बात पर भरोसा ना करे ला। राष्ट्रीय सुरक्षा के दांव पर लगावे वाला के खिलाफ कठोर कार्रवाई जरूरी बा। अइसन कार्रवाई जे आगे खातिर मिशाल बन जाय। अइसन लोग के अपराध दोहरा बा। देश के सुरक्षा के साथे खिलवाड़ आ लोग के भरोसा के हत्या। कई हलका से त अब ई भी आवाज आवे लागल बा कि अइसन लोग के फाँसी के सजा दे देवे के चाहीं।
ई सुन के मन वास्तव में बहुत उदास आ क्षुब्ध हो जाला कि हमरा सेना में ही कार्यरत कुछ देश के गद्दार महत्वपूर्ण सूचना देश के शत्रु सब के देत रहेला लोग।
एक बात जान लीं कि सेना के तीनों अंगों में प्रत्येक संवेदनशील दस्तावेज के सुरक्षा के दृष्टि से अलग-अलग श्रेणी में रखल जाला। एमे गोपनीय, रहस्य, गुप्त और अति गुप्त के श्रेणी बा। ये सब के x के निशान से पहचानल जाला यानि एक x अगर गोपनीय बा त xxxx अति गोपनीय होई। सेना में सोशल मीडिया के इस्तेमाल खातिर एक सख्त नकारात्मक नीति बा। सेना के अधिकारी के सोशल मीडिया के इस्तेमाल के सीमित इजाजत त बा, लेकिन ऊ लोग सेना के वर्दी में आपन फोटो पेस्ट नइखे कर सकत। साथ ही उ कहाँ तैनात बा, ये संबंध में भी जानकारी साझा नइखे कर सकत। एकरा अलावा कोई भी अधिकारिक जानकारी, प्लान आ इहाँ तक कि कार्यालय के बुनियादी ढांचा के संबंध में भी कोई जानकारी नइखे दे सकत।
हम 1970-71 में भारत-पाक युद्ध (बांग्लादेश आजादी के लड़ाई) के समय युद्ध संवाददाता के रूप में कार्यरत रहनी। ओह समय कोलकाता और ढाका में तथाकथित वामपंथी पत्रकारन के जवन गुट भारतीय सेना के बांग्लादेश जाए के विरोध करत रहे, अउर पाकिस्तान के समर्थन करत रहे, कुछ अइसहीं समझ लीं कि उनके मानसपुत्र ही आज भी चीन-पाकिस्तान के जासूसी कर रहल बा।
संसद के एह पर गंभीरता से विचार करे के चाहीं कि अइसन लोग खातिर कठोर से कठोर सजा के प्रावधान होखे। देश के सुरक्षा से बढ़के त कुछ भी नइखे। देश बा तभिये त हम सब बानी।
भारत के रक्षा संबंधी तैयारी से संबंधित दस्तावेज बेचे वाला जयचंद के मौत के सजा होखे। इनके केस पर कोर्ट तुरंत अउर लगातार सुनवाई करके फैसला लेवे। ई केस कवनो भी हालत में लटके के ना चाहीं। अगर केहू पर आरोप सिद्ध होता त ओकर सजा सिर्फ फांसी ही होखे के चाहीं।
( लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं। )