संपादक- मनोज भावुक
शादी के सालगिरह पर अपना पत्नी के मुस्कुरात तस्वीर के साथे केहू पोस्ट डलले बा कि – ‘’ तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे लिए ऑक्सीजन है और तुम वैक्सीन। सदा खुश रहना और साथ रहना। ‘’
चारो तरफ कोरोना के तांडव चलsता। सोशल मिडिया श्मशान घाट बनल बा। सगरो चीख-चिल्लाहट, रोना-रोहट, दहशत आ घबड़ाहट बा। अइसना में परिवार के साथ-सहयोग सबसे बड़ संबल बा। अब रउरा परिवार के दायरा केतना बड़ बा, ई त रउरा प निर्भर बा। मनुष्य जाति भी त एगो परिवारे ह। जहाँ तकले सँपरे निभावे के चाहीं।
1944 के आसपास बिहार में मलेरिया अउर हैजा महामारी के रूप में फइलल रहे। ओहू समय अइसने लाश के ढेर लागल रहे। आजेकल के तरह मउवत के डर आ भय से लोग काँपत रहे। तब फणीश्वर नाथ रेणु के कहानी पहलवान की ढोलक के हीरो लुट्टन पहलवान ढोलक बजा-बजा के लोग में जिनिगी के प्रति भरोसा जगवलें।
गीत-संगीत स्ट्रेस बूस्टर ह। चिंता निवारक औषधि ह। एही भावना से एह कोरोना काल में ई चइता अंक रउरा के सउंपत बानी। ई चइता अंक कोरोना काल के एकांतवास में राउर जायका बदली, डर आ दहशत से दूर रख के राउर मनोरंजन करी आ हो सकेला कि लुट्टन पहलवान जइसन जिनिगी के प्रति भरोसो जगावे।
एह अंक में 35 गो कवियन के चइता-चइती संकलित बा। साथ हीं चइता-चइती के शास्त्रीयता अउर सिनेमा में ओकरा सौन्दर्य पर आलेख बा। दुनिया के सबसे बड़ नायक भगवान राम भी हिम्मत आ हौसला बढ़ावे खातिर एह अंक में बाड़े काहे कि चइते में उनकर जनम भइल रहे। रामजी के जनमे प केतना चइता बा।
एह संकलन के अधिकांश चइता वियोग श्रृंगार बा, पिया के पास ना रहला के पीड़ा आ ताना से भरल-
रतिया भइल बा नगीनिया हो रामा, पिया घर नाहीं / तनिको ना सोहेला गहनवा हो रामा, पिया परदेसी / चुड़िया गिनत बीते रतिया हो रामा, पियवा ना अइलें / अगिया लगावे कोयलिया, हो रामा, अइलें ना सांवरिया
कवि भालचंद त्रिपाठी जी के नायिका के त पति के आगमन के सपना आवsता आ अचके नीन खुलला पर देखsतारी कि नाक के नथुनिया त तकिया में फँसल बा। ओही तरे शैल पाण्डेय शैल जी के नायिका पति के ना अइला का खीसी कोयल के सहकल छोड़ावे के बात करत बाड़ी।
गया शंकर प्रेमी जी के चइता में हास्य-व्यंग्य के रंग बा। इहाँ कोयलिया ठीक भिनुसहरे जरला पर नून दरत बिया। आकृति विज्ञा ‘अर्पण’ के रचना में ननद-भौजाई के नोंक-झोंक के साथे भौजाई के महुआ बीने के ट्रेडिशन आ ननद के व्हाट्सएप चलावे के मॉडर्न अप्रोच देखे के मिलता।
चइता के चुनावी रंग भी बा- पहिले त सुध मुंह, पियवा ना बोले / महिला कोटा होते आगा पाछा डोले
/ बेरी-बेरी कहें दिलजनिया ए रामा, छुटली चुहनिया / पियवा के चाहीं परधानिया ए रामा, छुटली चुहनिया
सब कुछ के बावजूद वर्तमान से कटल कहाँ संभव बा। मन के कतनो भुलवाईं, कोरोना आँख का सोझा आके खड़ा होइये जाता। कई गो चइता में कोरोना समाइल बा आ जीव डेराइल बा त ओह में प्रार्थना बा, सलाह बा, चेतावनी बा आ चिंता बा।
एही चिंता के बीचे बलिया के कवि शशि प्रेमदेव जी के चइता बा- हम काटब गेहूं, गोरी कटिहs तूं मुसुकी ! / कटनी के काम आगा हाली-हाली घुसुकी !
भाई हो, काम के साथे-साथ जीवन में एही मुस्की के जरुरत बा। इहे ऑक्सीजन ह।
जे ना चेती ओकरा खातिर डॉ. अशोक द्विवेदी जी त जिनिगी के सच्चाई कहते बानी- गते-गते दिनवा ओराइल हो रामा, रस ना बुझाइल
कोरोना काल में ई चइती फुहार अगर रउरा सब के तनिको आराम देता, होठ प मुस्की आ हियरा में हौसला देता त हमनी के कइलका सुकलान हो जाई। ईश्वर से प्रार्थना बा कि सबकर साँस बनल रहे, आस बनल रहे, साहस बनल रहे, सकून कायम होखे आ मन के अँगना में चइता गूँजत रहे।
जे-जे साथ छोड़ के हमेशा खातिर चल गइल ओकरा प्रति लोरभरल श्रद्धांजलि।