पारंपरिक गीत च‌इता

डॉ. भोला प्रसाद आग्नेय

हिंदी कलेंडर के पहिला महीना च‌इत में च‌इता गावल जाला। होली के दिन ले फगुआ गवाला आ ओही दिने आधी रात के बाद सुर लय ताल बदल जाला आ च‌इता शुरू हो जाला। च‌इत महीना में फसल के कटाई शुरू होला आ नया फसल से आपन भण्डार भरे के आसार ल‌उके लागेला। एह से नया फसल के प्रति आपन खुशी के झलक च‌इता में ल‌उकेला। पारंपरिक च‌इता महज दु‌इए लाइन के होला। ज‌इसे-

खेतवा में लगली कटनिया हो रामा, च‌इत महीनवा।

अब भरिहें पलनिया हो रामा च‌इत महीनवा।।

बाकिर अब त कवि भा गायक लोग लटका जोड़ के एके लमहर गीत बना देता लोग। कुछ गायक लोग त एकर रूप एकदम से बदल देले बा लोग। पारंपरिक च‌इता में कटनी, दवरी ओसावन के अलावे राम कृष्ण के कथानक, प्रेम, आलसी पति, प्रणय, कलह, ननद भौजाई वगैरह पर भी आधारित च‌इता गावल जाला। ज‌इसे-

राम चन्द्र लिहले जनमवा हो रामा च‌इत शुभ दिनवा।

बाजेला बध‌इया हो रामा च‌इत शुभ दिनवा।।

राग के दृष्टि से भोजपुरी लोकगीत के तीन भाग में बांटल ग‌इल बा। पहिलका श्रेणी में पौराणिक आ आध्यात्मिक, दुसरका श्रेणी में आधुनिक आ तिसरका श्रेणी में संस्कार गीत के राखल ग‌इल बा। दुसरका श्रेणी आनी कि आधुनिक में कजरी, बिरहा, च‌इता, बिदेसिया आदि मुख्य रूप से बाड़न स। एह गीतन में अक्सर कामोद आ झिंझोरी राग के प्रयोग होला।

च‌इता के अन्त में हो रामा जरूर रहेला। एह गीत के बीच में एकाध गो शब्द के जोड़ला के शब्द भा पद स्तोभ कहल जाला। एमे पिंगल शास्त्र के कठोर बंधन के पालन ना होला। व‌इसे च‌इता में चौदह गो मात्रा होखे के चाही। बाकिर गायक लोग अपने सुविधा के अनुसार समय मात्रा भा शब्द घटा बढ़ा लीहे।

च‌इत के महीना में अक्सर एकर दंगल होला। दू गो दल आमने-सामने ब‌इठ ज‌इहें। दुनों दल में कम से कम इगारह गो गायक होइहें जवना में एगो व्यास कहालन। व्यास च‌इता के गावे शुरू करिहें तुरंते सब संगे गावे लागी दुनो दल अपने च‌इता में सवाल जवाब पारी-पारी गावत रहिहें जवले कवनो एगो दल निरुत्तर ना हो जाई।

च‌इता गावत खा पहिले तीन हाली सामान्य स्वर में ग‌इहें, फिर तीन हाली बढ़ती स्वर में ग‌इहें आ ओकरे बाद तीन हाली चढ़ती स्वर में ग‌इहें। चढ़ती स्वर में गावत खा पूरा जोश में आ ज‌इहें आ सभे अपना ठेहुना पर खड़ा हो ज‌इहें।

एमे वाद्य खाली ढोलक अउर झाल रहेला। एगो च‌इता दंगल के उदाहरण बा-

पहिलका दल-

राजा जनक कठिन प्रण ठाने हो रामा देसे देसे।

पतिया लिख लिख भेजे हो रामा देसे देसे।।

दुसरका दल जवाब देता-

पश्चिम ही देसवा नगर अयोध्या हो रामा उहवां के।

भूप कुंवर दोउ अइले हो रामा उहवां के।।

  फिर पहिलका दल-

राम छुवत धनुहिया तीन खण्डा भ‌इले हो रामा टूट ग‌इले।

राजा जनक से नेहिया जुट ग‌इले हो रामा टूट ग‌इले।

दुसरका दल के जवाब-

नगर के लोगवा निहाल भ‌इले हो रामा सिया डालें।

राम गले वरमालवा हो रामा सिया डालें।।

एह तरे ई दंगल रात भर चलत रही आ आयोजक जीते वाला दल के अच्छा खासा इनाम देत रहल ह बाकिर अब ई पारंपरिक गीत के रूप स्वरूप तौर तरीका मय बदल ग‌इल बा आ धीरे धीरे हमार पुरान परंपरा लुप्त भ‌इल जाता।

( परिचय- मुरली मनोहर टाउन इंटर कॉलेज बलिया उ०प्र० के पूर्व प्रवक्ता डॉ. भोला प्रसाद आग्नेय कवि, कथाकार, नाटककार, निबंधकार आ आकाशवाणी-दूरदर्शन के कलाकार हईं।)