लेखक- मनोज भावुक
गाँवे आइल बानी. गाँवे माने कौसड़, सिवान, बिहार. बड़का बाबूजी के तबीयत सीरियस बा. 94 साल के उम्र भइल. उम्र के असर बा. बाकी त चारो तरफ कोरोना के असर बा. कोरोना देश-दुनिया के तबाह कइले बा. लोग तड़प-तड़प के मुअता. उत्सव के एह महिना में चारो तरफ मातम बा.
रउरा सभे त जानते बानी. फागुन-चइत पूर्वांचल खातिर उत्सव के महिना ह. फगुआ-चइता गूँजत रहेला. बड़का बाबूजी भैरवी आ रामायण के बेजोड़ गायक. नाम ह- जंग बहादूर सिंह. गायत्री ठाकुर, बिरेन्द्र सिंह (आरा) आ बिरेंदर सिंह धुरान (बलिया) के समकालीन. आसनसोल, झरिया-धनबाद में साठ-सत्तर के दशक में गायिकी के क्षेत्र में एगो बड़ा नाम. भरत शर्मा व्यास जी जइसन गायक इहाँ के शागिर्दगी में गवले-बजवले बानी. प्रशंसक रहल बानी.
बाबूजी आसनसोल सेनरेले साईकिल फैक्ट्री में नोकरी करत रहीं बाकिर फागुन-चइत में कुछ ना कुछ बहाना कके गाँवे आ जाईं. दू महिना झलकूटन होखे.
भर फागुन दुआरे-दुआरे फगुआ. फगुआ के दिने दिनभर फगुआ आ 12 बजे रात के बाद उहे गोल, उहे समाज, उहे दरी, उहे तिरपाल, उहे ढोलक, उहे झाल, उहे हुड़का, उहे मजीरा, उहे पखावज, उहे झांझ, उहे तासा, उहे नगाड़ा, रंग-अबीर से पोतल, भांग में डूबल उहे लोग…ए हो रामा शुरू. माने फागुन खतम. चइत शुरू….नया साल के आगाज.
बाकिर, फगुआ-चइता के बीच पर साल से एगो कोरोना आ गइल बा. रंग में भंग के रूप में ई कोरोना संउसे दुनिया आ मनुष्यता खातिर एगो खतरा बा. एकरा से निपटे खातिर एहतियात बरतल बहुते जरूरी बा.
हमहूँ एहतियात बरतत दिन में अपना बंद कोठरी में भा रात में छत प लेटल आसमान में टिमटिमात जोन्हियन के निहारत बानी. हज़ार-हज़ार गो सवाल दिमाग के देवाल से टकरा के लौट जाता. बिजुरी-बत्ती आ गइल बा. खपरैल के जगह पक्का पिटा गइल बा. शहरो में जंगल काट-काट के अपार्टमेंट खड़ा हो गइल बा. अब एह पक्का मकान आ अपार्टमेंट के भीतर आदमी छटपटाता, तड़पता, घड़ी-घड़ी ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन लेवल चेक करsता. ई गाँव के बगइचवा भा शहर के जंगलवा काहे कटवा देलs ए चनेसर? इहे नू ऑक्सीजन देलs सन. जंगले नइखे त कोयल का कूकी ? का होई चइता ?
छत से उतर के बड़का बाबूजी के पास आ गइल बानी. रात के 2 बजsता. उहो जागले बाड़े. कुछ सोचते होइहें. आदमी के पास भगवान दिमाग देलें. एह से ई सर्वश्रेष्ठ प्राणी बन गइल. आदमी के पास भगवान दिमाग देलें. एही से ई सर्वश्रेष्ठ परेशान प्राणी भी बन गइल. नींन ना आवे, ओवर थिंकिंग, स्ट्रेस, फ्रस्ट्रेशन, डिप्रेशन ई सब दिमगवे के चलते नू बा. बड़का बाबूजी एक घंटा दुनिया भर के कथा-संस्मरण सुनवलें. कहीं के बात के तार कहीं जुड़ जाता. स्मृति भंग में इहे सब होला. कसहूँ सुता के फेर छत पर आ गइल बानी. बड़का बाबूजी के बतिया दिमाग में चलsता. सुतिये नइखीं पावत. उनका जीवन सफ़र आ संगीतिक यात्रा पर एक बार लमहर बात कइले रहनी. ओह समय के कई गो नामी-गिरामी गायक के सफ़र भी ओह इंटरव्यू में समेटाइल बा. बइठ के देखे लागल बानी. ली लिंक रउरो के देतानी. मन होई त देखब –
https://www.youtube.com/watch?v=JdSJcv1nJl0
आकाश साफ़ हो गइल बा. कउआ बोले लागल बाड़न स. कहाँ त भिनुसहरे कोयल के बोले के चाहीं बाकिर सगरो कउअने के राज बा. बड़का बाबूजी के इंटरव्यू वाला वीडियो ख़तम होते एगो नया वीडियो खुल गइल बा जवन चैता-चैती पर जानकारी देता.
चइता के बोल के शुरुआत अमूमन ‘रामा’ आ अंत ‘हो रामा’ से होला. रउरा अगर चइता सुनीं त रउरा ओहमें प्यार खातिर निहोरा चाहे विरह में होखे वाला वेदना मिली. चइता के मैथिली में चइती कहल जाला. हालांकि चइती आपन शास्त्रीय पहचानो बनइलस अउर हिंदुस्तानी गायन में ई एगो लोकप्रिय विधा बनल. बनारस घराना चइती खातिर मशहूर बा. ठुमरी सम्राज्ञी गिरिजा देवी चइतियो गायन खातिर जानल जाली. चइती संगीत के जानकार चइती के ठुमरी के करीब मानेले, काहेकि एह गाना के शैली में समानता बावे.
चइता में रउरा लोकजीवन के तात्कालिक रूपो लउकेला जइसे गेहूं के कटनी, टिकोरा से लदल गाछ, लइकन-लइकियन के बियाह खातिर अकुलइनी आ बेचैनी आदि. चइता सामूहिक गायन के विधा हवे, जवन आपस के मेलजोल के प्रेरको हवे.
चइत में भगवान श्रीराम के जनम भइल रहे, एह से रउरा चइता में उनका जनम के ले के प्रसंगो सुने के मिलेला. हालांकि बधाइयो एगो गायन शैली हवे बाकिर रउरा चइता शैली में अइसन गाना सुन सकत बानी.
हई देखीं अब खेसारी लाल यादव के चइता के लिंक खुल गइल-
घाम लागऽता ए राजा, घाम लागऽता
तू तऽ बहरा में करेलऽ अराम
चइत में हमरा घाम लागऽता… हो रामा
एही लगले पवनो सिंह के चइता के लिंक आँखी का सोझा आ गइल –
चइत में जाइब द्वारिका जल भरी ले आइब हो रामा
अरे शिव जी पऽ जलऽवा चढाइब हे रामा.. घूमि-घूमि
फिल्म हमार प्रिय विधा ह. अब हम फिलिम में चइता खोजे लागल बानी-
मनोज तिवारी के फिलिम ‘दामाद जी’ में एगो चइता बा विनय बिहारी के लिखल आ लाल सिन्हा के संगीतबद्ध कइल. ‘गंगा’ फिल्म में भी एगो चइता बा अशोक घायल के लिखल आ संगीतबद्ध कइल. मनोज तिवारी के स्वर में एह चइता के बोल बा-
हे रामा गोरी-गोरी बंहिया ए रामा….
में हरी-हरी चुडि़या हे रामा हो… चइत मासे
अरे! चइत मासे झुलनी गढ़ाइब हो गोरी
ए रामा गोरी-गोरी बंहिया ए रामा….
बड़का बाबूजी के भैरवी नीचे शुरू हो गइल बा. रहि-रहि के साँस ऊपर नीचे होता. एह संसार में सब साँसे के खेला बा. जब तक साँस सुर में बा जिंदगी लय में बा. बड़का बाबूजी के लयदारी में सानी नइखे रहल. जिंदगी के उतार-चढ़ाव में भी उहाँ लय-सुर-ताल में रहल बानी. उहाँ के हाथ हमरा माथ पर बा- ‘’ बबुआ तू दिल्ली से आ गइलs, अब हम ठीक हो जायेम. बाप खातिर बेटा के साथ संजीवनी बूटी होला‘’. हमार आँख भर आइल बा.