आकृति विज्ञा ‘अर्पण‘
महुवा बीनत हम थाकीं हो रामा,
ननद असकितही….
कहनी ननद तनि महुआ बिनाई द
ऊ त जाके ह्वाट्सएप चलावें हो रामा,
ननदि असकितही….
कहनी ननद तनि खैका बनाइ द
ऊ त हाय जांगरो चोरावें हो रामा,
ननदि असकितही….
कहनी ननदि मोर हथवा पिराला
हमरे से नजर देखावें हो रामा,
ननदि असकितही….
कहनीं ननद तोहे गवन भेजाइ देबें
सासु से लौना लगावें हो रामा,
ननद असकितहीं….
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