डॉ. सुमन सिंह
बंगड़ परेसान हो-हो खटपटिया गुरु के मकान क चक्कर काटत रहलन। कब्बो गेट के लग्गे जाके भित्तर झाँके क कोसिस करें कब्बो खिड़की के बंद पल्ला पर कान रोपें बाकिर कवनों आवाज़-आहट ना। दू तल्ला क बड़-बरियार मकान अइसन सून-सपाट रहे कि लगे बरिसन क उजाड़ ओम्मे वास ले लिहले ह। मानुस त मानुस चिरई-चुरुंग भी ना देखायँ। दू दिन पहिले त अइसन सन्नाटा ना रहल। अब एकाएक कइसे अइसन हो गइल! हरान-परेसान बंगड़ मकान के बंद गेट पर मूड़ी टिकवले अबहीं सोचते रहलन कि आखिर का बात भइल, काहें दू दिन पहिले क हँसत-बोलत मकान एतरे सून हो गइल। कहाँ गइलन गुरु, कहवाँ गइलिन भउजी ..कि पिंकू पीछे से आके बंगड़ के पीठ पर जोरदार मुक्का मरलन-
-“का बंगड़ भैया! अब इहे रह गइल ह। का ताक-झाँक लगवले हउवा यार। कहीं डाका-वाका डाले क त ना मन बनावत हउवा ? ” पिंकू अबहीं सुर धइले आगे बोलहीं के रहलन कि बंगड़ खिसियाय गइलन- ” देख पिंटुआ एक त सबेरे ही सबेरे हमार दिमाग खराब हो गइल ह अब तू अउरी मत ख़राब कर, नाहीं त जान जईहे।” बंगड़ के अगियाबैताल बनत देख पिंटू के मन में अनार फूटे लगल। बहुत दिन बाद बंगड़ गुरु भेंटाइल रहलन। पिंटू क मन लहकत-चहकत रहे चिकारी करे खातिर। कुछ दिन पहिले बंगड़ पिंकू क बीच बजार, साह जी के चाह के दुकान पर कुल ढाँकल-तोपल भेद उजागर क दिहले रहलन। भाँग-गांजा पियले-छनले क आ इँहा तक कि जवन-जवन नसा आ काण्ड दुनु जानी आपस में गाँठजोड़ के कइले रहलन कुल्ह उजागर हो गइल। संगी-साथी, भइया-चच्चा लोग के सामने पिंटू क जमके जगहँसाई भइल। एह जगहँसाई करे के पीछे का कारण रहे ना त पिंटू जान पइलन ना बंगड़ बतावे गइलन बाकिर ओह दिन के बाद केहू बंगड़ आ पिंटू के एक संगे न देखलस।
अब जब बंगड़ केहू के दुआर ओरी झाँकत-ताकत पकड़इलन त पिंटू के उनकर लानत-मलामत करे क मौका मिल गइल। बंगड़ के एह करतूत के भरल समाज में ले आवे खातिर पिंटू भर जोर चिचिआए बदे मुँह फड़हीं वाला रहलन कि बंगड़ उनकर मुँह दबवले, घिसिरावत अपने दुआरे ले अइलन- “का बे, पिटाये बिना मानोगे नहीं का। अबहीं मारे दुई चप्पल ससुर क नाती ! ” बंगड़ अबहीं गोड़े में से चप्पल निकलहीं जात रहलन कि पिंटू अकड़ के खड़ा हो गइलन-” भैया जवन कहना है हमको कहिए बिच्चे में ससुर को मत लाइये, समझे कि नाहीं।” पिंटु बात त क्रोध से किटकिटा के कढ़वले रहलन बाकिर बंगड़ ठठा के हँसे लगलन- ” का बे, अबहीं उ ससुर तोहार ससुर बनबे नहीं किये आ अबहिएँ से तुम उनसे एतना थर्रा रहे हो ? बाद में का होगा बे। उ ससुर एक ले बिसधर। का जान रहे हो तोहरे नियन लहकट के दमाद बनायेंगे। आ जदि लइकी के मोह में पड़ के बनाइये लिए तो का समझ रहे हो तुम्हारे जइसे आवारा की आरती उतारेंगे आयं। ” बंगड़ क हँसी-ठिठोली बोली-कुबोली में बदल गइल रहल। पिंटू के फिर से आपन पिछला अपमान याद आ गइल। क्रोध में लहकत कहलन–” भइया इकुल बात ठीक नहीं है। आपका सादी-बियाह नहीं होगा तो का केहुवे का नहीं होगा। बचपन से पचपन के उमिर तक आप जिनगी में करबे का किये जी। पढ़ाई -लिखाई छोड़ के गल्ली-गल्ली घूम के बस इनके उनके रासन-पानी, दर-दवाई आ अनाज -तरकारी ढोवे। तीज-त्योहार में, सादी -ब्याह में बिना मजूरी लिए खटनी खटे। मिला क्या ? सुनने को फटकार आ खाने को गारी। आप आज ले तो चेतबे नहीं किये अपना नफा-नुकसान। मय गाँव-जवार, हीत-नात, आपन-आन आपको सुधारने में लगा रहा आ आप न सुधरे। कम से कम हम्मे तो अपना हानि-लाभ समझने दीजिये। ” पिंटू बिना साँस लिहले कुल उघटा-पैंच कय भइलन। इकुल सुन के केहुवे के कपार धीक जाए के चाही बाकिर बंगड़ सनाका खा गइल रहलन। कुछ घरी बंगड़ के चुप देख के पिंटू के अपने बोली-कुबोली पर पछतावा होवे लगल। बंगड़ के मूड़ी गोतले आ आँस छिपावत देख पिंटू क कुल मोहमाया उमड़-घुमड़ आइल। बंगड़ एह घरी अइसन दीन-हीन दुखियार देखात रहलन कि पिंटू अपने के कोसे लगलन। बहुत साहस बटोर के कहलन- ” भइया माफ़ कर दा यार। अब अइसन कुछु ना कहब कि तोहके बुरा लगी। हम त…।” अबहीं पिंटू हकलात आगे अउरी कहहीं के रहलन कि बंगड़ आँस पोछत ठाढ़ हो गइलन- “आज ले सबही हमके कुछ न कुछ टेढ़-सोझ कह देत रहल ह बाकिर हम केहू क बात करेजा पर ना लिहलीं, तोहरो ना लेब। बाकिर अब घरहूँ में मार-मार दुर-दुर होवे लगल ह। दू जून क रोटी खातिर एतना जहर-माहुर नियन बोली-टिबोली सुनले से ठीक कि आदिमी गंगा जी में समाय जायं। बेरोजगारी जिनगी खातिर गरहन बनल जात हे भाय पिंटू…. अच्छा ! ई कुल जंजाल त लगले रही…छोड़, चल चलीं जा बड़का भइया के घरे।
पता ना काहें हमार मन घबरात ह। कल्हिएँ से उनकर गेट बंद ह। अइसन आज ले ना भइल। सबेरे से लेके सुतली रात ले भउजी बोलत-बतियावत मनसायन कइले रहत रहलीं ह आ…” ऐसे पहिले कि बंगड़ आगे कुछ बोलें पिंटू बिच्चे में कूद गइलन- “ओके मनसायन ना कहल जाला। कपार खाइल कहल जाला भइया। अइसन करकसा मेहरारू हम अबहीं आज ले ना देखलीं। केसे ना करकर कइले होई ऊ मेहरारू.. सब्जीवाला, ठेलावाला, दूधवाला, राशनवाला तक ओकरे दुआरी जाए में आनाकानी करेला। आ तोहीं बतावा, तोहरे कवनों करम छोड़लस ऊ ? का-का अछरंग लगा के तोहके घर-निकाला दिहलस आ अबहीं तू उनही के फिकिर में बूड़त-उतरात हउवा ? बड़ा बरियार करेजा बा भइया तोहार यार ! मान-सम्मान कुल्हिये घोर के भोग लगा लेले हउवा का भाय ? हम त ना जाइब ओह करकसनी के दुआरी तोहके जाए के ह त जा।” कह के पिंटू भागे के भइलन कि बंगड़ कस के उनकर बाँह पकड़ लिहलन- ” मान-अपमान क चिंता आज तोके ढेर लेस देहलस…चल नाहीं त अबहिएँ तोहरे ससुर के हिकभर गरियाइब….। “बंगड़ हँसत पिंटू के बाँह पकड़ के घिसिरावत खटपटिया गुरु के दुआरे ले गइलन। कई बेर गेट पिटलन, कॉलबेल बजवलन बाकिर केहू क अता-पता ना। बहुत देर तक दुनू जनी घर क परिक्रमा क के गेट पीट के, घंटी बजा के जब थक गइलन त बंगड़ कहलन–” कूदे के पड़ी। “बंगड़ क विचार सुनते पिंटू के कँपकँपी छूट गइल-
-“ना भाई ना। तोहके कूदे के होय त कूदा बाकिर हमके माफ़ करा भइया। बत्तीस के उमिर में त केहुतरे पियाय, खियाय-पटाय के बियाह तय भइल ह। का चाहत हउवा ई तोहरे समाज सेवा में हम चोर-चाईं बनाय के जेल भेज दीहल जाईं। हमसे इकुल ना होई। तू ही कुद्दा..हम बहरे रह के निगरानी करब।”
“कवने बात क निगरानी बे ? चोरी करे जात हईं का हम ?।” मारे खीस के बंगड़ क मन करत रहे पिंटू के हिकभर कूटे क बाकिर केहू तरे धीर धइलन आ चारदीवारी धय के धप्प से घरे में कूद गइलन।
बइठका क खिड़की उढ़कल रहे, खोल के भित्तर झंकलन। भित्तर दिनहूँ में अन्हार रहे। बंगड़ क जी धुकपुक करे लगल। का बात ह, का भइल बूढ़ा-बूढ़ी के…कहीं … । मन के कड़ा क के गोहरवलन–” भइया हो !सब ठीक ह न हो ? कहवाँ हउवा भाय तू लोग ? बेमार-ओमार हउवा का ? …आँख फाड़-फाड़ के बंगड़ भित्तर के अन्हार में भइया-भउजी के टोहत रहलन आ लगातर गोहरावत रहलन। दस-पंद्रह मिनट के मेहनत-मसक्कत के बाद भउजी गिरत-भहरात अइलीं। भर्राइल कंठ से कुछ बोलल चहलीं पर बोल ना फूटल। भउजी के एह दसा में देख के बंगड़ क परान सूखा गइल- ” भउजी पहिले केवाड़ी खोला। भित्तर आवे दा।” बंगड़ हाल-समाचार जाने खातिर बेचैन रहलन बाकिर भउजी केवाड़ी ना खोललीं। भितरे से बोललीं–” तोहरे भइया के तीन-चार दिन से जर-बोखार रहल ह। जाँच करवावल गइल त कोरोना बतावत ह बचवा। तब्बे ले केवाड़ी बन के आदिमी पड़ल हउवन। बहरे केहू के पता न चले के चाही बचवा …। “कह के भउजी रोवे लगलीं। बंगड़ समझावत-बुझावत कहलन—
” देखा भउजी बहुते आदिमी के आजकल कोरोना होत ह आ बहुते लोग ठीक हो जात हउवन। घबराए क कवनों जरूरत ना ह। एतरे केवाड़ी बन कइले आ ढंकले-तोपले बेमारी ठीक होई कि बढ़ी?
तोहन लोग के बढ़िया देखभाल आ इलाज क जरूरत ह। घबरा जिन अबहीं घरे से बहिनिया के भेजत हईं। तोहन लोगन क भोजन-पानी क बेवस्था आ देखभाल खातिर। तनी दूरी बना के आ सावधानी रख के चलिहा लोग। सब ठीक हो जाई। घरे में लाइट जरावा, खिड़की-दरवाजा खोला। ई का मनहूसियत फइलवले हऊ। बंगड़ के एक-एक सबद भउजी खातिर संजीवनी रहल। ऊ रोवे लगलीं–” ए बचवा, तोहार एहसान कब्बो ना भुलाइल जाई हमहन दुनु जनी। आज दिन जब आपन औलाद हमहन के अकेल मरे खातिर छोड़ देले हउवन त तूँ ….ए बचवा…। “भउजी बहुत चहलीं बाक़ी ऐसे आगे ना बोल पवलीं।
“अच्छा-अच्छा अब ढेर रोवले क आ कमज़ोर पड़ले क जरूरत ना ह। मजबूती से जइसे आज ले भइया के ठोंकत-बजावत आयल हऊ वइसहीं कोरोना के भी तू बढ़िया से ठोक-बजा लेबू। परेसान भइले क का जरूरत आंय..बतावा भला कोरोना माई क मजाल जवन तोहरे नियन मातारानी के समने टिक पइहन…अब आके गेटवा खोलबू कि फेर से चारदीवारी फाने के पड़ी..आयं।” बंगड़ क बोली एसे पहिले भउजी के कान में अंगार जस लगत रहे बाकिर आज संकट में संजीवनी बन गइल रहे। गदगद कंठ से टूटल-फूटल एतने कह पवलीं-
” कहल -सुनल माफ़ करिहा ए बचवा…।”
“तोहरे ना भउजी हम त सबही क कहल-सुनल माफ करत चल जात हईं…बज्र बेहया आदिमी क का मान, का अपमान ?
आपन आ भइया क खेयाल रखिहा। तनिको जिन घबरइहा। ठीक न …!” भउजी पहिली बार केहू के रोवां-रोवां से असीसत रहलीं।