आर.के. सिन्हा
ई साफ बा कि ब्रिक्स जइसन मंच एही खातिर बनले बा ताकि एह में शामिल देश एक-दोसरा के साथे सहयोग करे। ई लोग आपस में जुड़ेला भी एही खातिर काहेकि ये लोग में विभिन्न मसलन पर आपसी सहमति होला, चाहे एकरा खातिर सदिच्छा बनल रहेला। पर कोरोना काल के दौरान देखे में आ रहल बा कि ब्रिक्स देशन के एकमात्र सदस्य चीन अन्य सहयोगी देशन से, खासतौर पर भारत आ ब्राजील के कोरोना से लड़े में कतई साथ नइखे देत। ये दूनू देशन में कोरोना के कारण भारी नुकसान भी हो रहल बा। पिछले साल नवंबर में ब्रिक्स सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग कहले रहलन कि कोरोना संक्रमण पूरा विश्व में काफी तेजी से फइल रहल बा। कोरोना संक्रमण के इलाज खातिर चीनी कम्पनी अपना रूसी भागीदारन के साथ काम कर रहल बा। ओही जा उ दक्षिण अफ्रीका अउर भारत के साथ सहयोग करे खातिर भी तैयार बा। का चीन के एतना भर कह देहला से काम हो जाई?
जिनपिंग त ये समय में भी भारत के साथ सीमा पर लड़े के मूड में देखाई देत रहले। एही से उनकर ई कहल कि उनकर देश भारत से सहयोग खातिर तैयार बा समझ से परे बा। उनका अपना देश में उनका दावा के अनुसार कोरोना के संकट खत्म सा हो चुकल बा। उहाँ जिंदगी अब सामान्य हो रहल बा। तब उ पूरा विश्व के या कम से कम ब्रिक्स के सदस्य देशन के ई काहे नइखन बतावत कि कोरोना पर कवना तरे से काबू पावल जा सकेला? का चीन के ई देखाई नइखे देत कि भारत ये समय कवना घोर संकट से गुजर रहल बा? एकरा बावजूद उनका तरफ से भारत के कवनों मदद नइखे मिलत, ई साबित कर रहल बा कि उ ब्रिक्स आंदोलन के मजबूत करे के प्रति गंभीर नइखन। उ ब्रिक्स के एक अन्य सदस्य देश रूस से ही कुछ सीख ले लितन। रूस में बनल वैक्सीन के पहिलका खेप (डेढ़ लाख डोज) भारत पहुंच चुकल रहे। दोसर खेप भी जल्दी ही पहुंच जाई। रशियन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट फंड भारत में ये वैक्सीन के उपलब्ध करावे खातिर डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज से हाथ मिलवले बा। स्पूतनिक वी टीका के दुनियाभर के 50 से ज्यादा देश अप्रूवल दे चुकल बा।
ब्रिक्स के संबंध में कहल जाला कि ई उभरत अर्थव्यवस्था के संघ ह। एह में ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका बा। ब्रिक्स के स्थापना 2009 में भइल रहे। एके 2010 में दक्षिण अफ्रीका में शामिल कइला गइला के वजह से पहिले “ब्रिक” ही कहल जात रहे। रूस के छोड़ के ब्रिक्स के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगीकृत देश ही बाड़े जेकर अर्थव्यवस्था विश्व भर में आज के दिन सबसे तेजी से बढ़ रहल बा। दुनिया के 40 फीसद से अधिक आबादी ब्रिक्स देशन में ही रहेला। कहे खातिर त ब्रिक्स के सदस्य देश वित्त, व्यापार, स्वास्थ्य, विज्ञान अउर प्रौद्योगिकी, शिक्षा, कृषि, संचार, श्रम आदि मसलन पर परस्पर सहयोग के वादा करत रहल बा। पर चीन भारत के साथ हमेशा दुश्मन जइसन व्यवहार करत रहल बा। ई बात कोरोना काल के समय त अउर शीशा के तरह साफ हो गइल बा।
कोरोना के दूसरा लहर में अचानक संक्रमण के मामला में बढ़ोतरी से भारत स्वास्थ्य व्यवस्था के मोर्चा पर जूझ रहल बा। ये जानलेवा बीमारी से निपटे खातिर भारत के चीन कतई साथ नइखे देले। हालांकि भारत आजकल भी ओकरा से काफी सामान आयात कर रहल बा। उदाहरण के रूप में भारतीय कम्पनियन के द्वारा चीनी विनिर्माता सब से खरीदे जाये वाली ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जइसन कुछ कोविड-19 मेडिकल सप्लाई महंगा हो गइल बा। हांगकांग में भारत के महावाणिज्य दूत प्रियंका चौहान हाल में चीन से मेडिकल सप्लाई के कीमत में बढ़ोतरी रोके खातिर कहले रहली। भारत से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के मांग कुछ ही समय में कई गुना बढ़ गइल बा।
केहू माने भा ना माने, पर चीन एक नंबर के घटिया देश बा। चीन के आतंकवाद के मसला पर भी रवैया कभी साफ ना रहल। उ हर मामला पर पाकिस्तान के साथ देत रहल बा। चीन कहले रहे, आतंकवाद सब देशन खातिर एक आम चुनौती बा। पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ अपना आजादी के लड़ाई में जबरदस्त प्रयास आ बलिदान कइले बा। एकरा खातिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के ओकर सम्मान करे के चाहीं अउर पहचान भी करे के चाहीं। जब समूचा विश्व बिरादरी पाकिस्तान पर आतंकवाद के ले के सख्त कदम उठावे खातिर दबाव बनावेला, तब दुष्ट चीन पाकिस्तान के बेशर्मी से बचावे में लाग जाला।
बेशक, ब्रिक्स दुनिया से कोरोना से बचाव आ आतंकवाद के खत्म करे के स्तर पर एक लमहर मुहिम चला सकत रहे। पर अभी तक ओकर कदम ये लिहाज से तेज रफ्तार से नइखे बढ़ल। ई दुखद बा कि संसार के एतना महत्वपूर्ण संगठन एह सवालन पर कमजोर हीं रहल। लेकिन, ई कहे के होई कि चीन से लोहा लेवे में आस्ट्रेलिया मर्दानगी देखाके आगे रहल। एही खातिर चीन आस्ट्रेलिया से व्यापारिक समझौतन पर चल रहल सब गतिविधियन पर अनिश्चितकाल खातिर रोक लगा देले बा। बीजिंग आस्ट्रेलिया से कोयला, आयरन, गेहूं, वाइन सहित केतने सामान के आयात के भी फिलहाल बंद कर देले बा। सवाल ई बा कि ब्रिक्स के बाकी देश चीन से काहे ना पूछेला कि उ कोरोना काल में अपना सहयोगी देशन के साथ काहे नइखे खड़ा? उ ब्रिक्स के साथी देशन के हित चाहsता कि ना?
खैर, ई कष्टकारी समय भारत खातिर अब एगो अवसर बन सकsता। भारत खातिर दुनिया के मैन्यूफैक्चरिंग हब बने के अवसर बा। भारत चाहे त चीन के खिलाफ दुनिया भर में फइलल नफरत के इस्तेमाल अपना खातिर एक बड़हन आर्थिक अवसर के रूप में कर सकsता। भारत के ये अवसर के कदापि छोड़े के ना चाहीं। ई संभव होई जब हम दुनिया भर के कंपनियन के अपना इहाँ निवेश खातिर सम्मानपूर्वक बुलायेम। हमनीं के सरकारी विभागन में फैलल भ्रष्टाचार अउर लालफीताशाही खत्म होई। केन्द्र आ राज्य सरकारन के ये दिशा में कठोर फैसला लेवे के होई। कोरोना काल के बाद से चीन में काम करे वाला सैकड़न बहुराष्ट्रीय कम्पनी उहाँ से आपन दुकान बंद कर रहल बा। भारत के ओ कंपनियन के अपना इहाँ बुलावे के चाहीं लेकिन आकर्षक शर्तन पर।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार अउर पूर्व सांसद हईं)